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दिवस- 5: "औद्योगिक पूंजीवाद 19वीं सदी के यूरोपीय साम्राज्यवाद में निहित उद्देश्य और तंत्र दोनों था।" औद्योगीकरण ने यूरोपीय औपनिवेशिक साम्राज्यों की प्रकृति और विस्तार को प्रकार प्रभावित किया। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

20 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण :

  • स्पष्ट कीजिये कि औद्योगिक क्रांति ने यूरोप की आर्थिक संरचना को किस प्रकार रूपांतरित किया।
  • समझाइये कि किस प्रकार औद्योगिक पूँजीवाद ने यूरोपीय साम्राज्यवाद की प्रवृत्तियों और उद्देश्यों को प्रभावित किया।
  • औद्योगिक पूँजीवाद को विस्तार की एक प्रमुख प्रक्रिया या तंत्र के रूप में प्रस्तुत कीजिये।
  • उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

19वीं शताब्दी का यूरोपीय साम्राज्यवाद आरंभिक वाणिज्यिक (व्यापारिक) विस्तार से भिन्न था। यह औद्योगिक क्रांति से प्रेरित था, जिसने साम्राज्य-निर्माण की प्रेरणा और प्रक्रियाओं, दोनों को आकार दिया। इसने उपनिवेशवादी शासन के स्वरूप और विस्तार को भी मौलिक रूप से बदल दिया।

मुख्य भाग:

औद्योगिक पूँजीवाद ने यूरोपीय साम्राज्यवाद की प्रवृत्तियों और उद्देश्यों को गहराई से प्रभावित किया —

  • कच्चे माल की कमी: औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं को आवश्यक उत्पादन-घटकों की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता थी।
    • इसलिये उपनिवेशों से कपास (भारत, मिस्र), रबड़ (कांगो, मलाया), चाय (श्रीलंका), कोयला और खनिज (दक्षिण अफ्रीका) का दोहन किया गया।
  • बाज़ारों की खोज:औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि के कारण अधिशेष निर्मित वस्तुओं के लिये नये बाज़ारों की आवश्यकता हुई।
    • भारत ब्रिटिश वस्त्रों के लिये एक प्रमुख बाज़ार बना, वहीं चीन को 'अफीम युद्धों' के दौरान अपने बाज़ार खोलने पर विवश किया गया।
  • व्यापक आर्थिक शोषण: औपनिवेशिक क्षेत्रों को साम्राज्यवादी आवश्यकताओं के अनुरूप पुनर्गठित किया गया। खाद्य फसलों के स्थान पर नकदी फसलें उगाई गईं, जिसके कारण भयानक अकाल (जैसे: 1876–78 का बंगाल अकाल) उत्पन्न हुए। उपनिवेशों में स्वदेशी उद्योगों को जानबूझ कर नष्ट किया गया—जैसे भारत में वस्त्र उद्योग का विऔद्योगीकरण।
    • उपनिवेशों में स्वदेशी उद्योगों को जानबूझ कर नष्ट किया गया, जैसे: भारत में वस्त्र उद्योग का विऔद्योगीकरण।
  • शोषणकारी प्रशासनिक संरचना: राजस्व वसूली को अधिकतम करने के लिये प्रशासनिक व्यवस्थाएँ बनाई गईं, भारत में 'ज़मींदारी प्रथा' इसका उदाहरण है।
    • रेलवे और बंदरगाह जैसे बुनियादी ढाँकों का मुख्यतः संसाधनों के निष्कर्षण के लिये का निर्माण किया गया, न कि क्षेत्रीय विकास के लिये।

विस्तार की एक प्रवृत्तिशील प्रक्रिया के रूप में औद्योगिक पूंजीवाद

  • प्रौद्योगिकीय सहायक तत्त्व:
    • स्टीमशिप और रेलवे ने वस्तुओं, सैनिकों और प्रशासकों की आवाजाही को तेज़ कर दिया।
    • टेलीग्राफ लाइनों के माध्यम से साम्राज्यवादी केंद्रों (जैसे: लंदन से दिल्ली तक) से त्वरित आदेश संप्रेषण संभव हुआ।
    • स्वेज नहर (वर्ष 1869) के निर्माण ने एशिया तक समुद्री मार्गों को छोटा कर दिया, जिससे साम्राज्यवादी नियंत्रण और मज़बूत हुआ।
  • सैन्य वर्चस्व:
    • मैक्ज़िम गन और आयरनक्लाड (लोहे के युद्धपोत) जैसे आधुनिक हथियारों ने यूरोपीय शक्तियों को तीव्र गति से प्रतिरोध को कुचलने में सक्षम बनाया, विशेषतः अफ्रीका में 'स्क्रैम्बल फॉर अफ्रीका' के दौरान।
  • आंतरिक क्षेत्रों में गहरी पैठ:
    • रेलमार्गों और वाष्प-चालित नौपरिवहन ने उपनिवेशवादी शक्तियों को दूरदराज़ के क्षेत्रों (जैसे: ब्रिटिशों द्वारा बर्मा में, फ्राँस द्वारा कांगो में) पर नियंत्रण स्थापित करने में सक्षम बनाया।
    • टेलीग्राफ ने विद्रोहों पर शीघ्र प्रतिक्रिया संभव बनाई, जिससे केंद्रीकृत शासन और अधिक प्रभावी हो गया।

निष्कर्ष

औद्योगिक पूँजीवाद ने केवल साम्राज्यवाद को ही पुनर्जीवित नहीं किया, बल्कि इसके स्वरूप को ही परिवर्तित कर दिया, अर्थात् यह एक छिटपुट विजय से बदलकर आर्थिक दोहन, सैन्य प्रभुत्व और प्रशासनिक नियंत्रण की एक सुसंगठित प्रणाली में परिवर्तित हो गया। जैसा कि एरिक हॉब्सबॉम ने कहा था, "साम्राज्यवाद एक ऐसे पूँजीवाद का अनिवार्य परिणाम था, जिसके लिये वैश्विक विस्तार की आवश्यकता थी।"