दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) और प्रारंभिक वैदिक काल दोनों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- दोनों के बीच अंतर और निरंतरता का उल्लेख कीजिये।
- विद्वानों की टिप्पणियों के साथ उत्तर को समाप्त कीजिये।
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परिचय:
सिंधु घाटी सभ्यता (IVC),जो 2600-1900 ईसा पूर्व के बीच फली-फूली, विश्व की प्राचीनतम नगरीय सभ्यताओं में से एक थी, जो सुव्यवस्थित नगर नियोजन और विस्तृत व्यापारिक नेटवर्क के लिये जानी जाती है। इसके विपरीत, प्रारंभिक वैदिक काल (1500-1000 ईसा पूर्व) में आर्यों का आगमन और पशुपालन-केंद्रित, जनजातीय जीवन की स्थापना हुई। यद्यपि दोनों के बीच स्पष्ट भिन्नताएँ थीं, फिर भी कुछ सांस्कृतिक और धार्मिक निरंतरताएँ भी देखी जा सकती हैं।
मुख्य भाग:
सिंधु घाटी सभ्यता और प्रारंभिक वैदिक काल के बीच मुख्य अंतर:
- निवास पैटर्न:
- IVC: मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, धोलावीरा जैसे नगरीय ग्रिड पैटर्न, सार्वजनिक जल निकासी, दुर्ग, अन्नागार और मानकीकृत ईंटों से निर्मित थे।
- वैदिक: समाज अर्ध-घुमंतू था, अस्थायी बस्तियाँ बनती थीं। ऋग्वेद में ग्राम और गृह का उल्लेख है, जो लकड़ी, मिट्टी और घास से बने होते थे।
- आर्थिक जीवन:
- IVC: कृषि, शिल्प निर्माण (जैसे लोथल में मणि निर्माण), और मेसोपोटामिया जैसे क्षेत्रों के साथ दीर्घकालीन व्यापार।
- वैदिक: प्रमुख रूप से पशुपालक जीवन, गाय (गोमाता) संपत्ति का मुख्य सूचक थी। उत्तर वैदिक काल में कृषि का विकास हुआ।
- सामाजिक और राजनीतिक संरचना:
- IVC: न तो स्पष्ट रूप से किसी राजा का प्रमाण मिलता है, न ही सैन्य तंत्र का। संभवतः यह एक धार्मिक या समानतावादी समाज था।
- वैदिक: जनजातीय संरचना जिसमें राजन होता था, जिसे सभा और समिति का समर्थन प्राप्त होता था।
- धर्म और विश्वास
- IVC: पुरातात्विक खोजों में "आद्य-शिव" पशुपति मुहर , मातृ देवी मूर्तियाँ और पशु पूजा (बैल, गेंडा) शामिल हैं।
- वैदिक: प्रकृति देवताओं की पूजा- इंद्र (वर्षा), अग्नि (आग) और वरुण (ब्रह्मांडीय व्यवस्था)। अनुष्ठान यज्ञ और बलिदान केंद्रीय थे।
- लेखन और भाषा
- IVC: मुहरों और मिट्टी के बर्तनों पर देखी गई एक अपठित लिपि का प्रयोग किया गया।
- वैदिक: भाषा संस्कृत थी, जो श्रुति (ऋग्वेद) के माध्यम से मौखिक रूप से संरक्षित थी, प्रारंभिक काल में इसकी कोई लिपि नहीं थी।
सिंधु घाटी सभ्यता और प्रारंभिक वैदिक काल के बीच प्रमुख निरंतरताएँ:
- कृषि पद्धतियाँ
- दोनों ही गेहूँ और जौ की खेती करते थे, कालीबंगन (IVC) में जुते हुए खेतों के साक्ष्य मिले हैं वहीं वैदिक ग्रंथों में हल और सिंचाई का उल्लेख मिलता है।
- प्रतीकवाद और धार्मिक निरंतरता:
- स्वस्तिक चिन्ह और अग्नि वेदियों का प्रयोग, जो उत्तर-हड़प्पा संस्कृति और वैदिक यज्ञों में समान है।
- लिंग पूजन की संभावित निरंतरता, जो IVC की मुहरों और बाद की हिंदू परंपराओं में देखी जाती है।
- सांस्कृतिक भूगोल:
- पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्र दोनों युगों में बसे हुए थे, जो सांस्कृतिक संक्रमण की प्रक्रिया को दर्शाते हैं—यह बदलाव अचानक नहीं, बल्कि क्रमिक था।
निष्कर्ष
जैसा कि इतिहासकार डी. डी. कोसांबी ने कहा है, "प्रारंभिक वैदिक संस्कृति ने हड़प्पा विरासत को नष्ट नहीं किया, बल्कि उसके खंडहरों पर पनपी—उसने पुरानी परंपराओं को नए सामाजिक-आर्थिक ढाँचे के अनुसार ढाल दिया।" यद्यपि सिंधु और वैदिक समाज मूलभूत रूप से अलग थे, फिर भी वे भारत की गहन सभ्यतागत निरंतरता के अभिन्न भाग हैं।