दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण :
- दोनों विश्व युद्धों को सबसे विनाशकारी वैश्विक संघर्षों के रूप में संक्षेप में प्रस्तुत कीजिये।
- प्रत्येक युद्ध के प्राथमिक कारणों का अभिनिर्धारण कीजिये तथा उनकी व्याख्या कीजिये।
- वैश्विक संदर्भ में दोनों विश्व युद्धों की तुलना और अंतर बताइये।
- एक विवेकपूर्ण अवलोकन के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध आधुनिक इतिहास की दो सबसे विनाशकारी संघर्ष-स्थितियाँ थीं। यद्यपि दोनों ही युद्ध वैश्विक स्तर पर फैले तथा अप्रत्याशित विध्वंस का कारण बने, किंतु इनकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमियाँ भिन्न थीं और इनकी प्रेरक शक्तियाँ भी अलग-अलग थीं। प्रथम विश्व युद्ध की जड़ें राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, सैन्यवाद व गुटबंदी की प्रणालियों में निहित थीं, जबकि द्वितीय विश्व युद्ध मुख्यतः वैचारिक कट्टरता, फासीवादी विस्तारवाद एवं प्रथम विश्व युद्ध के उपरांत स्थापित व्यवस्था की विफलताओं से प्रेरित था।
मुख्य भाग:
प्रथम विश्व युद्ध के कारण (वर्ष 1914-1918)
- सैन्य राष्ट्रवाद: यूरोप में राष्ट्रवादी उन्माद तीव्र हो चुका था, विशेषकर जर्मनी, फ्राँस और ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य में। बाल्कन क्षेत्र में स्लाविक राष्ट्रवाद, जिसे रूस का समर्थन प्राप्त था, ऑस्ट्रो-हंगेरियन हितों से टकरा रहा था।
- औपनिवेशिक प्रतिस्पर्द्धा: यूरोपीय शक्तियों, विशेषकर ब्रिटेन, फ्राँस और उभरते हुए जर्मनी के बीच उपनिवेशों के लिये प्रतिस्पर्द्धा गहराती जा रही थी, जिससे आपसी अविश्वास बढ़ा। मोरक्को संकट (वर्ष 1905, 1911) इसी प्रकार की औपनिवेशिक टकरावों के उदाहरण हैं।
- गठबंधन प्रणाली: यूरोप दो विरोधी गुटों— ट्रिपल एंटेंट (फ्राँस, ब्रिटेन, रूस) और ट्रिपल एलायंस (जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, इटली) में विभाजित हो चुका था। इससे यह संभावना बनी रहती थी कि कोई भी स्थानीय संघर्ष एक व्यापक युद्ध का रूप ले सकता है।
- सैन्यवाद और हथियारों की होड़: सैन्य शक्ति का बढ़ता महत्त्व तथा व्यापक सैन्य तैयारी, विशेषकर ब्रिटेन व जर्मनी के बीच नौसैनिक प्रतिस्पर्द्धा, युद्ध की संभावनाओं को और बढ़ा रही थी।
- तत्काल कारण: एक सर्बियाई राष्ट्रवादी द्वारा साराजेवो में आर्कड्यूक फ्राँज़ फर्डिनेंड की हत्या (जून 1914) के बाद ऑस्ट्रिया-हंगरी ने मित्र राष्ट्रों को शामिल करते हुए सर्बिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।
द्वितीय विश्व युद्ध के कारण (वर्ष 1939-1945)
- वैचारिक अतिवाद : इटली में फासीवाद, जर्मनी में नाज़ीवाद और जापान में सैन्यवाद के उदय ने लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं अंतर्राष्ट्रीय शांति के लिये प्रतिकूल राजनीतिक वातावरण उत्पन्न कर दिया।
- वर्साय संधि का प्रतिशोध: जर्मनी पर थोपी गई कठोर शर्तों— क्षेत्र की हानि, निरस्त्रीकरण और युद्ध क्षतिपूर्ति ने असंतोष को बढ़ा दिया और हिटलर, जिसने राष्ट्रीय पुनरुत्थान का वादा किया था, को सत्ता में आने में सहायता की।
- विस्तारवादी सिद्धांत: हिटलर की लेबेन्स्राम (रहने की जगह) की अवधारणा, अफ्रीका में मुसोलिनी की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाएँ और पूर्वी एशिया में जापान की प्रभुत्व की इच्छा (जैसे: वर्ष 1931 में मंचूरिया पर आक्रमण, वर्ष 1937 में चीन पर आक्रमण) गहन वैचारिक थे।
- सामूहिक सुरक्षा की विफलता: राष्ट्र संघ आक्रामकता को रोकने में विफल रहा (उदाहरण के लिये इटली का इथियोपिया पर आक्रमण, जर्मनी का राइनलैंड पर पुनः कब्ज़ा) और पश्चिमी लोकतंत्रों ने तुष्टिकरण को अपनाया (उदाहरण के लिये म्यूनिख समझौता, 1938 ) जिससे धुरी शक्तियों का हौसला बढ़ा।
- उत्प्रेरक: 1 सितम्बर 1939 को जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण, जिसके बाद ब्रिटेन और फ्राँस द्वारा युद्ध की घोषणा की गई।
तुलना और विरोधाभास
पहलू
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प्रथम विश्व युद्ध
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द्वितीय विश्व युद्ध
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प्रेरक शक्ति
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राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, सैन्यवाद
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वैचारिक उग्रवाद (नाज़ीवाद, फासीवाद)
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संघर्ष की प्रकृति
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साम्राज्यों और राष्ट्रीय हितों का टकराव
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विचारधाराओं का टकराव: फासीवाद बनाम लोकतंत्र
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गठबंधन की भूमिका
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युद्ध के लिये पूर्व नियोजित गठबंधनों के मध्य उलझी हुई स्थिति
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युद्ध के दौरान गठित गठबंधन (धुरी राष्ट्र बनाम मित्र राष्ट्र)
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उत्प्रेरक कारण
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आर्कड्यूक फर्डिनेंड की हत्या
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नाज़ी जर्मनी द्वारा पोलैंड पर आक्रमण
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वैश्विक प्रभाव
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वैश्विक स्तर पर क्षेत्रीय तनाव बढ़ा
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वैचारिक विस्तारवाद ने संपूर्ण युद्ध को जन्म दिया
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निष्कर्ष
जैसा कि ए. जे. पी. टेलर ने उपयुक्त रूप से कहा है, "प्रथम विश्व युद्ध एक राजनीतिक भूल थी; द्वितीय विश्व युद्ध एक नैतिक पतन।"
इन युद्धों ने यूरोपीय उपनिवेशवादी साम्राज्यों के पतन, संयुक्त राष्ट्र के गठन तथा द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था की शुरुआत को गति दी।