03 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- न्यायिक सक्रियता और न्यायिक अतिक्रमण का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- न्यायिक सक्रियता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में इसकी भूमिका समझाइये।
- न्यायिक अतिक्रमण और लोकतांत्रिक संतुलन के लिये इसके जोखिमों का वर्णन कीजिये।
- तद्नुसार निष्कर्ष लिखिये।
|
परिचय:
न्यायिक सक्रियता से तात्पर्य न्यायपालिका की उस सक्रिय भूमिका से है, जिसमें वह संविधान की रक्षा, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा और न्याय को बढ़ावा देती है, विशेषकर तब जब शासन के अन्य अंग विफल हो जाते हैं। हालाँकि जब न्यायालय संविधानिक स्वीकृति के बिना नीतिनिर्धारण या प्रशासन के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने लगते हैं, तो इसे न्यायिक अतिक्रमण कहा जाता है। जहाँ न्यायिक सक्रियता शासन में जवाबदेही को सुदृढ़ करती है, वहीं न्यायिक अतिक्रमण शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के अंतर्गत परिकल्पित लोकतांत्रिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
मुख्य भाग:
न्यायिक सक्रियता जवाबदेही सुनिश्चित करती है:
न्यायिक सक्रियता ने संविधान की व्याख्या और अधिकारों के विस्तार के माध्यम से लोकतांत्रिक जवाबदेही को सशक्त किया है।
- मौलिक अधिकारों की सुरक्षा: मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) मामले में न्यायालय ने अनुच्छेद 21 का विस्तार करते हुए इसमें सम्मान के साथ जीने के अधिकार को भी शामिल किया।
- जनहित याचिका (PIL): एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981) के माध्यम से जनहित याचिका की शुरुआत हुई, जिसने हाशिए पर मौजूद लोगों के लिये न्याय तक पहुँच संभव बनाई और कार्यपालिका की निष्क्रियता पर न्यायिक समीक्षा को सक्षम बनाया।
- विशाखा दिशा-निर्देश (1997): विशाखा बनाम राजस्थान राज्य मामले में कामकाजी महिलाओं के लिये विधायी संरक्षण के अभाव में सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न को रोकने हेतु प्रवर्तनीय दिशानिर्देश निर्धारित किये।
- पर्यावरण और सामाजिक न्याय: एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ मामले में न्यायालय ने प्रदूषण नियंत्रण, औद्योगिक खतरों (ओलियम गैस लीक) और नदियों के संरक्षण (गंगा प्रदूषण मामले) पर महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय दिये।
- जाँच एजेंसियों की जवाबदेही: विनीत नरैन बनाम भारत संघ (1997) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और कार्यपालिका के हस्तक्षेप को रोकने के लिये दिशानिर्देश जारी किये।
न्यायिक अतिक्रमण से लोकतांत्रिक संतुलन को खतरा:
न्यायिक अतिक्रमण तब होता है जब न्यायपालिका विधायी या कार्यपालिका के क्षेत्राधिकार में अतिक्रमण करती है, जिससे शक्तियों के पृथक्करण के संवैधानिक सिद्धांत को कमजोर किया जाता है।
- NJAC को रद्द करना: सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015) में, न्यायालय ने 99वें संविधान संशोधन को अवैध घोषित किया, जिसने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की स्थापना की थी और इसे न्यायिक स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया। आलोचकों का तर्क है कि यह न्यायिक अतिक्रमण था जिसने संसदीय सहमति को अस्वीकार कर दिया।
- नीतिगत हस्तक्षेप: राजमार्गों के 500 मीटर के भीतर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने (2016) या दिवाली के दौरान पटाखों के उपयोग को विनियमित करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को कार्यकारी नीति निर्माण में न्यायिक अतिक्रमण के रूप में देखा गया।
- सिनेमाघरों में राष्ट्रगान अनिवार्य करना (2016): सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान बजाया जाना चाहिये और हर व्यक्ति को खड़ा होना चाहिये। इस आदेश का कोई कानूनी आधार नहीं था, जिससे नागरिक अधिकार बनाम राष्ट्रीय कर्तव्य के बीच भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई।
निष्कर्ष:
न्यायिक सक्रियता ने संविधानिक मूल्यों की रक्षा में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है, विशेषकर तब जब अन्य संस्थाएँ विफल रही हैं। हालाँकि लगातार होने वाला न्यायिक अतिक्रमण उसी लोकतांत्रिक संतुलन को कमज़ोर कर सकता है जिसकी परिकल्पना संविधान करता है। जैसा कि न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा ने कहा था "न्यायिक सक्रियता कभी भी न्यायिक दुस्साहस में नहीं बदलनी चाहिये।"