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दिवस -3: "गाँधी जी ने परंपरा में निहित आध्यात्मिक स्वराज पर जोर दिया, जबकि नेहरू ने विज्ञान और समाजवाद द्वारा आकार वाले आधुनिक भारत की कल्पना की।" उनके वैचारिक मतभेद और स्वतंत्रता संग्राम पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

18 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • स्वाधीनता आंदोलन के वैचारिक स्तंभों के रूप में गांधी और नेहरू का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • उनके वैचारिक भिन्नताओं पर चर्चा कीजिये तथा यह स्पष्ट कीजिये कि इन भिन्नताओं का स्वतंत्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा।
  • अंत में सटीक टिप्पणी के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारत का स्वतंत्रता संग्राम केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि भविष्य के भारत की आत्मा और स्वरूप को लेकर एक दार्शनिक विमर्श भी था। इस विमर्श में दो महान व्यक्तित्व: महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने अलग-अलग किंतु प्रभावशाली दृष्टिकोण प्रस्तुत किये। जहाँ गांधी ने पारंपरिक भारतीय मूल्यों पर आधारित आध्यात्मिक ‘स्वराज’ को महत्त्व दिया, वहीं नेहरू ने विज्ञान और समाजवाद की नींव पर एक आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष और औद्योगिक भारत की कल्पना की।

मुख्य भाग:

स्वाधीनता संग्राम पर प्रभाव

पहलू

महात्मा गांधी

जवाहरलाल नेहरू

कोर विज़न

आध्यात्मिक स्वराज– नैतिकता और नैतिक आत्म-संयम के रूप में स्व-शासन

आधुनिक भारत– विज्ञान, औद्योगीकरण और समाजवाद द्वारा संचालित

आर्थिक दृष्टिकोण

आत्मनिर्भर ग्राम अर्थव्यवस्था (ग्राम स्वराज); औद्योगिक पूंजीवाद के प्रति अविश्वास

केंद्रीकृत आर्थिक नियोजन; राज्य-प्रेरित औद्योगीकरण

तकनीकी रुख

आधुनिक मशीनरी को अमानवीय माना; खादी और हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया

राष्ट्रीय विकास के लिये वैज्ञानिक सोच और आधुनिक उद्योग को उपकरण के रूप में समर्थन दिया

शासन मॉडल

विकेंद्रीकृत शासन ग्राम पंचायतों में निहित

मज़बूत, केंद्रीकृत राज्य संस्थाएँ 

दार्शनिक प्रभाव

भारतीय परंपरा, नैतिकता, जैन धर्म, टॉलस्टॉय और धार्मिक नैतिकता

पश्चिमी उदारवाद, फेबियन समाजवाद, मार्क्सवाद और धर्मनिरपेक्ष मानवतावाद

स्वतंत्रता संग्राम में प्रमुख रणनीतियाँ

असहयोग (वर्ष 1920), नमक मार्च (वर्ष 1930) और भारत छोड़ो (वर्ष 1942) के माध्यम से जन लामबंदी

पूर्ण स्वतंत्रता का समर्थन किया; नीति को आकार देने के लिये भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस के साथ काम किया

प्रमुख योगदान

आध्यात्मिक और नैतिक नेतृत्व; खादी कातने जैसे प्रतीकात्मक अभियान

दूरदर्शी नेतृत्व; योजनाबद्ध विकास और संस्थाओं की नींव रखी

आधुनिक सभ्यता पर विचार

इसे नैतिक रूप से अक्षम बताकर आलोचना की गई (हिंद स्वराज, 1909)

इसे प्रगति और सामाजिक समानता के लिये आवश्यक माना गया

  • पूरक शक्तियाँ: गाँधी का भावनात्मक आह्वान जनसाधारण तक पहुँचा, जबकि नेहरू के आधुनिकतावादी विचार ने शिक्षित अभिजनों को आकर्षित किया।
  • व्यापक आंदोलन: उनके वैचारिक भेदों के कारण भारतीय राष्ट्रवाद परंपरा एवं आधुनिकता, ग्रामीण एवं शहरी, भावना एवं तर्क सभी का प्रतिनिधित्व कर सका।
  • विरासत: स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत ने दोनों दृष्टिकोणों— गाँधी के नैतिक मूल्यों एवं लोकतांत्रिक संस्थानों को और नेहरू की योजना, विज्ञान एवं अवसंरचना पर आधारित दृष्टिकोण को आत्मसात किया।

निष्कर्ष:

अपने मतभेदों के बावजूद गाँधी तथा नेहरू की विचारधाराओं ने एक सृजनात्मक समन्वय उत्पन्न किया, जिससे भारत का स्वाधीनता संग्राम और भी समृद्ध हुआ। जैसा कि इतिहासकार जूडिथ ब्राउन ने कहा है— "गाँधी की परंपरा और नेहरू की आधुनिकता के बीच की रचनात्मक असंगतता ने भारतीय राष्ट्रवाद को हृदय एवं मस्तिष्क दोनों से जोड़ने योग्य बनाया।"