03 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की केंद्रीयता की समीक्षा कीजिये।
- भारत की चुनाव प्रणाली की कमज़ोरियों पर चर्चा कीजिये।
- उपयुक्त सुधारों का सुझाव दीजिये।
- उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।
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परिचय:
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था की आधारशिला होते हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि शासन जनता की इच्छा को प्रतिबिंबित करे। भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, ने संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन आयोग के माध्यम से नियमित चुनावों की संस्थागत व्यवस्था की है। फिर भी बार-बार उत्पन्न होने वाले विवाद चुनाव प्रक्रिया की बढ़ती संवेदनशीलता को उजागर करते हैं, जिससे व्यापक सुधारों की आवश्यकता है।
मुख्य भाग:
भारत की चुनाव प्रणाली में कमज़ोरियाँ
- राजनीतिक दलों का व्यय: वर्तमान में चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों पर कोई व्यय सीमा नहीं लगाई गई है, जिससे उन्हें अप्रतिबंधित व्यय की अनुमति मिलती है।
- वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भारत में एक मत की कीमत लगभग 1,400 रुपये होगी और कुल खर्च लगभग 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गया है।
- राजनीति का अपराधीकरण: वर्ष 2024 में चुने गए सांसदों में से 46% (251) के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें से 31% (170) गंभीर आरोपों जैसे बलात्कार, हत्या और अपहरण का सामना कर रहे हैं।
- राजनीतिक फंडिंग में अस्पष्टता: वित्तीय वर्षों 2004-05 से 2022-23 के बीच एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अनुसार, छह राष्ट्रीय पार्टियों ने अज्ञात स्रोतों से 19,083.08 करोड़ रुपये की राशि प्राप्त की।
- ECI की संस्थागत स्वतंत्रता: मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और पदावधि) अधिनियम, 2023 ने कॉलेजियम प्रणाली को भारत के मुख्य न्यायाधीश को छोड़कर एक चयन पैनल के साथ बदल दिया, जिससे चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को कमजोर करने की चिंता बढ़ गई।
- EVM छेड़छाड़ को लेकर चिंता: कई लोगों ने EVM से छेड़छाड़ की चिंता का हवाला देते हुए पेपर बैलेट की ओर वापसी की मांग की।
- 100% VVPAT सत्यापन: EVM के आलोचक पूर्ण VVPAT-EVM मिलान की मांग करते हैं, जबकि वर्तमान में यह सत्यापन प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र/सेगमेंट में केवल पाँच मशीनों पर किया जाता है।
- आदर्श आचार संहिता (MCC) का उल्लंघन: प्रमुख प्रचारक अक्सर अनुचित भाषा का प्रयोग करते हैं, जाति/सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काते हैं और अप्रमाणित आरोप लगाते हैं।
- राज्य एजेंसियों का उपयोग: कुछ आलोचकों का तर्क है कि चुनावों के दौरान ED, CBI और आयकर विभाग द्वारा लगातार की गई छापेमारी से कथित निष्पक्षता और चुनावी प्रक्रिया पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
- भ्रामक सूचना और पेड न्यूज़ (प्रायोजित समाचार):
- चुनावों के दौरान सोशल मीडिया डीपफेक, घृणास्पद भाषण और भ्रामक सूचना का माध्यम बन गया है।
- डिजिटल प्रचार व्यय पर विनियमन का अभाव असमान प्रतिस्पर्द्धा का कारण बनता है।
व्यापक चुनावी सुधारों की आवश्यकता
- राजनीतिक वित्तपोषण पारदर्शिता:
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC): द्वितीय ARC की शासन में नैतिकता रिपोर्ट ने चुनावों में अवैध धन पर अंकुश लगाने के लिये आंशिक राज्य वित्त पोषण का समर्थन किया, जैसा कि चुनावों के राज्य वित्त पोषण पर इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) द्वारा पहले ही सिफारिश की गई थी।
- विधि आयोग (255वीं रिपोर्ट, 2015): राजनीतिक योगदान का पूर्ण खुलासा करने और नियमों का पालन न करने पर दंड देने की सिफारिश की गई।
- चुनाव व्यय का विनियमन: जन प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 में संशोधन किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने उम्मीदवार को दिया जाने वाला धन निर्धारित चुनाव व्यय सीमा के अंतर्गत आता हो।
- वोहरा समिति (वर्ष 1993): इसने सख्त पृष्ठभूमि जाँच और अपराधी-राजनेता-नौकरशाह संबंधों के बारे में गुप्त जानकारी एकत्र करने, उसका विश्लेषण करने और उस पर कार्यवाही करने के लिये एक नोडल एजेंसी के गठन की सिफारिश की।
पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ केस, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को सख्ती से लागू करना, जिसके अनुसार, उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले तीन बार व्यापक रूप से प्रचारित होने वाले मीडिया माध्यमों में अपने आपराधिक रिकॉर्ड की घोषणा करना आवश्यक है।
- एक साथ चुनाव: विधि आयोग (255वीं रिपोर्ट) द्वारा चुनाव संबंधी थकावट (Election Fatigue) और लागत को कम करने के लिये सिफारिश की गई है।
- ECI की संस्थागत स्वतंत्रता:
- दिनेश गोस्वामी समिति (1990): चुनाव आयुक्तों के द्विदलीय चयन और कार्यकारी प्रभाव से अलगाव की सिफारिश की गई।
- डिजिटल अभियानों का विनियमन:
- ECI की सिफारिश: आदर्श आचार संहिता के तहत डिजिटल प्लेटफॉर्म को शामिल करने के लिये जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (1951) में संशोधन करना।
- एल्गोरिथम जवाबदेही, प्लेटफॉर्म तटस्थता और प्रकटीकरण मानदंडों के लिये एक कानूनी ढाँचा विकसित करना।
- चुनावी साक्षरता और मतदाता जागरूकता:
- गलत सूचना का मुकाबला करने और सूचित मतदान में सुधार करने के लिये SVEEP (व्यवस्थित मतदाता शिक्षा तथा चुनावी भागीदारी) की पहुँच का विस्तार करना।
निष्कर्ष:
लोकतांत्रिक वैधता बनाए रखने के लिये भारत को पारदर्शी, जवाबदेह और समावेशी चुनावी प्रक्रियाओं को समय पर सुधारों के माध्यम से संस्थागत रूप देना होगा। भारत की चुनावी प्रणाली को अपने लोकतांत्रिक वादों को निभाने के लिये विकसित होना आवश्यक है। जैसा कि भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने सही कहा था: "चुनावों की विश्वसनीयता परिणामों से अधिक महत्त्वपूर्ण है। जब विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है, तो लोकतंत्र खोखला हो जाता है।"