दिवस 21: एक प्रमुख खाद्य उत्पादक होने के बावजूद, भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI)- 2024 में 127 देशों में से 105वें स्थान पर रहा है। भुखमरी से संबंधित विरोधाभास का विश्लेषण कीजिये, इसके प्रमुख कारणों को रेखांकित करते हुए इस समस्या के समाधान के लिये नीतिगत हस्तक्षेपों का सुझाव दीजिये। (250 शब्द)
09 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- भारत जैसे खाद्यान्न-अधिशेष राष्ट्र में भुखमरी की विरोधाभासी स्थिति पर प्रकाश डालते हुए संक्षिप्त परिचय से उत्तर लेखन की शुरुआत कीजिये।
- मुख्य भाग में, भुखमरी के संरचनात्मक कारणों (गरीबी, वितरण अंतराल, नीतिगत विसंगतियाँ) का डेटा (GHI रैंक, NFSA कवरेज) के साथ विश्लेषण कीजिये और समाधान प्रस्तावित कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
विश्व स्तर पर सबसे बड़े खाद्य उत्पादकों में से एक होने के बावजूद, भारत वर्ष 2024 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) में 127 देशों में से 27.3 अंकों के साथ 105वें स्थान पर रहा, जो एक गंभीर भुखमरी-संकट का संकेत देता है। यह विरोधाभास खाद्य असुरक्षा और कुपोषण की मौजूदा चुनौतियों को उजागर करता है, जो खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद भारत में बनी हुई हैं।
मुख्य भाग: भारत में भुखमरी के प्रमुख कारण:
- आर्थिक असमानताएँ: सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, भारत गहरी आय असमानता से जूझ रहा है।
- आर्थिक विकास ने संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित नहीं किया है तथा पौष्टिक भोजन की उपलब्धता में गरीबी एक बहुत बड़ी बाधा बनी हुई है।
- ग्रामीण व शहरी गरीबों के एक बड़े हिस्से के पास विविध एवं पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन खरीदने की क्रय शक्ति का अभाव है, जिसके कारण खाद्यान्न-अधिशेष वाले क्षेत्रों में भी दीर्घकालिक भुखमरी और कुपोषण की स्थिति बनी रहती है।
- खाद्य वितरण में अक्षमताएँ: भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) हालाँकि खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करने में सहायक है, लेकिन इसमें प्रणालीगत समस्याएँ हैं।
- आधिकारिक अनुमान के अनुसार, लीकेज, अपवर्जन त्रुटियाँ और सीमित कवरेज, TPDS की क्षमता को बहुत हद तक कमज़ोर कर देते हैं, क्योंकि 90 मिलियन से अधिक पात्र व्यक्ति— मुख्य रूप से जनजातीय समूह, प्रवासी और भूमिहीन मज़दूर इससे वंचित रह जाते हैं।
- पोषण संबंधी कमियाँ: भारत में खाद्य सुरक्षा को प्रायः पोषण मूल्य के बजाय कैलोरी सेवन के नजरिये से देखा जाता है।
- कई खाद्य योजनाएँ मुख्य रूप से अनाज प्रदान करती हैं तथा दालें, सब्जियाँ, डेयरी और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसे आवश्यक खाद्य समूहों की उपेक्षा करती हैं।
- परिणामस्वरूप, आयरन, विटामिन A और प्रोटीन की व्यापक कमी बनी हुई है, विशेषकर बच्चों और महिलाओं में।
- बाल कुपोषण: NFHS-5 के अनुसार, भारत में बाल कुपोषण का स्तर बहुत अधिक है, जिसमें 35.5% बच्चे वृद्धि-रोधन से ग्रसित हैं और 18.7% कुपोषित हैं।
- विश्व स्तर पर सबसे अधिक जनसंख्या क्षय (वेस्टिंग) तीव्र कुपोषण और निम्नस्तरीय स्वास्थ्य सेवाओं का संकेत है।
- प्रारंभिक वर्षों में कुपोषण के कारण अपरिवर्तनीय संज्ञानात्मक और शारीरिक क्षति होती है, जिससे गरीबी-भुखमरी का चक्र चलता रहता है।
- सामाजिक विषमता: लैंगिक विषमता भुखमरी की स्थिति को और गंभीर बना देती है। अनेक निम्न-आय वाले परिवारों में महिलाएँ और लड़कियाँ सबसे बाद में और सबसे कम भोजन करती हैं।
- सामाजिक मान्यताओं में प्रायः महिलाओं की पोषण आवश्यकताओं की उपेक्षा की जाती है जिससे उनके अनीमिया और कम वज़न वाले शिशुओं को जन्म देने का खतरा बढ़ जाता है।
- शहरीकरण और बदलता आहार: शहरी प्रवास ने आहार संबंधी एक परिवर्तन को जन्म दिया है, जिसमें सस्ते और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर निर्भरता बढ़ गई है।
- वर्ष 2022 की टाटा-कॉर्नेल अध्ययन में यह बताया गया कि दिल्ली के शहरी झुग्गी बस्तियों में 51% परिवार खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे थे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि केवल वहनीयता से आहार विविधता सुनिश्चित नहीं होती।
भुखमरी से मुक्ति के लिये नीतिगत हस्तक्षेप:
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को सुदृढ़ करना: लक्ष्यीकरण में सुधार, अपवर्जन त्रुटियों को समाप्त करना तथा पोषण-संवेदनशील घटकों को शामिल करना।
- 'एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड' के अंतर्गत डिजिटलीकरण और पोर्टेबिलिटी का विस्तार किया जाना चाहिये।
- पोषण पर्याप्तता पर ध्यान केंद्रित करना: बाजरे की खपत, जैव-प्रबलित फसलों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये तथा कल्याणकारी योजनाओं में खाद्य पदार्थों में विविधता लाकर दालें, सब्जियाँ एवं पशु प्रोटीन को शामिल किया जाना चाहिये।
- सामाजिक सुरक्षा संजाल और जागरूकता कार्यक्रम: पोषण अभियान और PMGKAY को बढ़ावा दिया जाना चाहिये तथा स्कूलों एवं स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से स्वस्थ भोजन प्रथाओं के लिये स्थानीय अभियान लागू किया जाना चाहिये।
- मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में निवेश: WASH, प्रसवपूर्व देखभाल और स्तनपान सहायता को ICDS व NHM कार्यढाँचे में एकीकृत किया जाना चाहिये।
- समावेशी विकास और लैंगिक समानता: किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और महिला किसानों को लक्ष्य करके लैंगिक परिवर्तनकारी पोषण नीतियाँ तैयार की जानी चाहिये।
- वैश्विक साझेदारियों और पहलों का लाभ उठाना: भुखमरी और कुपोषण से निपटने में वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के लिये WFP के साथ सहयोग किया जाना चाहिये तथा SDG2 (भुखमरी से मुक्ति) के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत का यह विरोधाभास कि यह एक प्रमुख खाद्य उत्पादक देश होने के बावजूद भुखमरी की समस्या से जूझ रहा है, खाद्य असुरक्षा के समाधान के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है। खाद्य वितरण प्रणाली को बेहतर बनाकर, पोषण पर विशेष ध्यान देकर, आर्थिक विषमताओं को दूर करके और लक्षित नीतियों को लागू करके SDG2 (भुखमरी से मुक्ति) का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है।