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दिवस 14: "भारत में संघवाद केवल संस्थागत संरचना से नहीं, बल्कि राजनीतिक आचरण से भी प्रभावित होता है।" इस कथन के आलोक में, हाल के वर्षों में सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा और टकराव ने केंद्र–राज्य संबंधों को किस प्रकार परिभाषित किया है, स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

01 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण : 

  • भारतीय संदर्भ में संघवाद को परिभाषित करके शुरुआत कीजिये।
  • संघवाद के सहकारी, प्रतिस्पर्द्धी और टकरावपूर्ण प्रकारों में अंतर स्पष्ट कीजिये।
  • आगे की राह बताते हुए एक विवेकपूर्ण टिप्पणी के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारत का संघवाद, जिसे एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अर्ध-संघीय कहा, एकात्मक झुकाव और संघीय विशेषताओं का मिश्रण प्रस्तुत करता है। हाल के वर्षों में सहयोग, प्रतिस्पर्द्धा और टकराव की त्रयी ने केंद्र–राज्य संबंधों की दिशा और प्रकृति को गहराई से प्रभावित किया है।

मुख्य भाग: 

सहकारी संघवाद:

  • सहकारी संघवाद की अवधारणा को वर्ष 2014 के बाद विशेष महत्त्व मिला, जब योजना आयोग को समाप्त कर उसकी जगह नीति आयोग की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य साझा निर्णय-निर्माण को बढ़ावा देना था।
  • GST परिषद सहकारी संघवाद की एक प्रमुख संस्थागत नवाचार है, जहाँ केंद्र और राज्य दोनों सरकारें परस्पर सहमति से अप्रत्यक्ष कराधान से संबंधित निर्णय लेती हैं।
  • कोविड-19 महामारी के दौरान लॉकडाउन, वैक्सीन वितरण और आपदा प्रबंधन जैसे मामलों में केंद्र–राज्य समन्वय ने सहकारी तंत्र की भूमिका को दर्शाया।
  • हालाँकि, कुछ अवसरों पर राज्यों ने आपदा प्रतिक्रिया दिशा-निर्देशों और निधियों के वितरण में टॉप-डाउन दृष्टिकोण की शिकायत की है।

प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद:

  • प्रतिस्पर्द्धात्मक संघवाद राज्यों को शासन में सुधार करने, निवेश आकर्षित करने और सेवाओं का बेहतर वितरण करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
  • ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग, आकांक्षी ज़िलों का कार्यक्रम और प्रधानमंत्री गतिशक्ति योजना जैसे उपकरण इस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।
  • वित्त आयोगों, विशेष रूप से 15वें वित्त आयोग ने स्वच्छता, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में प्राप्त परिणामों से अनुदान को जोड़कर प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन दिये हैं।
  • हालाँकि, अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा राज्यों के बीच असमानता को जन्म दे सकती है, विशेष रूप से समृद्ध और गरीब अथवा संसाधन-संपन्न तथा संसाधन-वंचित राज्यों के बीच।

टकरावात्मक संघवाद:

  • पिछले एक दशक में केंद्र और विपक्ष शासित राज्यों के बीच राजनीतिक टकराव में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
  • राज्यपाल की भूमिका प्रायः विवादों में रही है, विशेषकर राज्य विधेयकों को स्वीकृति देने में देरी या रोकने को लेकर (जैसे तमिलनाडु में NEET विधेयक, केरल में विश्वविद्यालय संबंधी कानून, पंजाब में कृषि विधेयक)।
  • GST मुआवज़ा भुगतान में देरी और विपक्षी शासित राज्यों में केंद्रीय एजेंसियों (ED, CBI) के कथित दुरुपयोग ने आपसी अविश्वास को और गहरा किया है।
  • भाषा अधिरोपण (हिंदी), नई शिक्षा नीति और कृषि कानूनों जैसे मुद्दों की आलोचना इसलिये भी हुई क्योंकि इन्हें राज्यों से पर्याप्त परामर्श किये बिना लागू किया गया।

आगे की राह:

  • पुंछी आयोग (2010) ने सिफारिश की:
    • राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों को संहिताबद्ध करना।
    • राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिये एक निश्चित समय-सीमा प्रदान करना।
    • अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य आयोग की स्थापना करना।
  • सरकारिया आयोग (1988) ने समवर्ती सूची के मामलों पर राज्यों के साथ पूर्व परामर्श करने तथा अंतर-राज्य परिषद जैसी संस्थाओं के पुनर्गठन का समर्थन किया ताकि उनकी बैठकें अधिक बार हों।

निष्कर्ष:

जैसा कि राजनीति विज्ञानी पॉल आर. ब्रास ने कहा था: "भारतीय संघवाद विविध पक्षों और हितों के बीच बातचीत, समायोजन और सामंजस्य की एक गतिशील प्रणाली है।" इस गतिशीलता को रचनात्मक रूप से बनाए रखने के लिये, भारत को अंतर-राज्यीय परिषद जैसे सहकारी मंचों को संस्थागत बनाना होगा, सरकारिया और पुंछी आयोगों द्वारा परिकल्पित राजकोषीय विकेंद्रीकरण को पुनर्जीवित करना होगा तथा राजनीतिक व्यवहार में संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखना होगा।