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दिवस 21: आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर अधिक कर लगाने की अनुशंसा के पीछे के तर्क का परीक्षण कीजिये। यह कदम जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को दूर करने और जन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में किस प्रकार योगदान दे सकता है? (150 शब्द)

09 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | सामाजिक न्याय

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (UPF) पर कर लगाने के मुद्दे और औचित्य का संक्षेप में परिचय दीजिये।
  • अनुशंसा के पीछे के औचित्य का परीक्षण कीजिये तथा उपाय भी सुझाइये कि यह किस प्रकार जीवनशैली संबंधी बीमारियों का समाधान कर सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है। 
  • एक दूरदर्शी सुझाव के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में बढ़ती जन स्वास्थ्य चिंताओं को दूर करने के लिये अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (UPF) पर ‘उच्च स्वास्थ्य कर' लगाने की अनुशंसा की गई है। चीनी, नमक व अस्वास्थ्यकर वसा से भरपूर UPF, मोटापे और मधुमेह जैसी जीवनशैली संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देते हैं। यह पहल गैर-संचारी रोगों से निपटने और स्वस्थ आहार को बढ़ावा देने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।

मुख्य भाग:

  • उच्च करों के पीछे तर्क: शीतल पेय, पैकेज्ड स्नैक्स और फास्ट फूड जैसे अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को प्रायः स्वास्थ्यकर के रूप में विज्ञापित किया जाता है, लेकिन इनमें अत्यधिक मात्रा में चीनी, नमक और संतृप्त वसा होती है, जो दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं में योगदान करती है। 
    • आर्थिक सर्वेक्षण में ऐसे उत्पादों पर स्वास्थ्य कर लगाने की मांग की गई है जो आकर्षक विज्ञापनों के माध्यम से उपभोक्ताओं, विशेषकर बच्चों को भ्रमित करते हैं।
  • जीवनशैली रोगों पर प्रभाव: शोध से पता चलता है कि UPF के अधिक सेवन से मधुमेह, मोटापा, उच्च रक्तचाप और अन्य दीर्घकालिक बीमारियाँ होती हैं। 
    • वर्ष 2023 की WHO रिपोर्ट के अनुसार, भारत में UPF की खपत वर्ष 2006 में 900 मिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2019 में 37.9 बिलियन डॉलर से अधिक हो गई।
  • कर लगाने के लाभ: UPF पर उच्च कर दर एक निवारक के रूप में काम कर सकती है, जिससे उनकी खपत (विशेष रूप से निम्न आय वर्ग के बीच, जो सस्ते प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ खरीदने की अधिक संभावना रखते हैं) कम हो सकती है। 
    • मैक्सिको और डेनमार्क जैसे देशों में इसी प्रकार की पहल से पता चला है कि इस प्रकार के करों से अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों के सेवन में कमी आ सकती है तथा स्वस्थ विकल्पों को बढ़ावा मिल सकता है।
  • नियामक उपाय और सार्वजनिक स्वास्थ्य: आर्थिक सर्वेक्षण में UPF के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने (विशेष रूप से स्कूलों और कॉलेजों में) के लिये सख्त लेबलिंग आवश्यकताओं को लागू करने और भ्रामक विज्ञापनों की निगरानी करने का सुझाव दिया गया है।
    • FSSAI अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के लिये स्पष्ट मानक लागू कर सकता है, जिससे उपभोक्ताओं को सूचित विकल्प चुनने में सहायता मिलेगी और खाद्य कंपनियों को स्वस्थ विकल्प प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
  • वैश्विक मिसालें और स्थानीय चुनौतियाँ: ब्राज़ील, कनाडा और चिली सहित कई देशों ने पहले ही अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर कर लागू कर दिया है तथा स्वास्थ्य-केंद्रित नियम लागू कर दिये हैं। 
    • इन उपायों से खपत में कमी आई है और स्वास्थ्य परिणाम बेहतर हुए हैं। हालाँकि, भारत में निम्न-आय वाले परिवारों (जो किफायती, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर निर्भर हो सकते हैं) पर कर के बोझ को संतुलित करने की चुनौती है।

निष्कर्ष:

अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर उच्च कर लगाने की आर्थिक सर्वेक्षण की अनुशंसा निवारक स्वास्थ्य सेवा की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है। नियमन, जागरूकता और किफायती विकल्पों के साथ, यह आहार की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार ला सकता है, जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को कम कर सकता है तथा एक स्वस्थ भारत के निर्माण में योगदान दे सकता है।