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दिवस 16: "संसद में बहस होती है, लेकिन समितियाँ विचार-विमर्श करती हैं।" भारत की विधायी प्रक्रिया में समिति प्रणाली के योगदान का परीक्षण कीजिये। (150 शब्द)

03 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण: 

  • संसदीय समिति प्रणाली का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • समिति प्रणाली के योगदान का परीक्षण कीजिये।
  • चुनौतियों पर प्रकाश डालिये और उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

परिचय: 

लोकतंत्र में संसद सर्वोच्च कानून निर्माण संस्था है, जहाँ जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनहित से संबंधित मुद्दों पर बहस करते हैं। हालाँकि समय की सीमाओं, राजनीतिक ध्रुवीकरण और विषय विशेषज्ञता की कमी के कारण संसदीय बहसें अक्सर सतही और सामान्य स्तर तक ही सीमित रह जाती हैं। ऐसे में संसदीय समितियाँ एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं वे विषयों पर गहराई से विचार-विमर्श करती हैं, तकनीकी विवरणों की जाँच करती हैं, विशेषज्ञों की राय लेती हैं और विधेयकों की विधायी परीक्षण (Vetting) का कार्य करती हैं।

Types of Parliamentary Committees in India

मुख्य भाग: 

विधायी प्रक्रिया में योगदान

  • विधान की विस्तृत जाँच: समितियाँ विधेयकों की प्रत्येक धारा (क्लॉज़) की गहराई से समीक्षा करती हैं और संशोधन तथा सुधार के सुझाव देती हैं।
    • संसद में पुनः प्रस्तुत किये जाने से पहले संयुक्त संसदीय समिति द्वारा डेटा संरक्षण विधेयक की व्यापक समीक्षा की गई।
    • 2G स्पेक्ट्रम आवंटन की जाँच में लोक लेखा समिति (PAC) की भूमिका अनियमितताओं को उजागर करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही थी।
  • गैर-राजनीतिक और सूचित विचार-विमर्श: समितियाँ सदन के प्रतिकूल माहौल से अलग होकर कार्य करती हैं जिससे विभिन्न दलों के बीच सहमति और तार्किक बहस को बढ़ावा मिलता है।
  • विशेषज्ञता और जन परामर्श: समितियाँ विषय विशेषज्ञों, नौकरशाहों और हितधारकों को आमंत्रित करती हैं, जिससे विधायी प्रक्रिया की गुणवत्ता और दक्षता में वृद्धि होती है।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने विशेषज्ञों से परामर्श लेकर सरकार की प्रतिक्रियाओं की समीक्षा की।
  • बजटीय निरीक्षण: समितियाँ अनुदानों की मांगों और नीतिगत परिणामों का आकलन करती हैं, जिससे राजकोषीय उत्तरदायित्व बढ़ता है।
    • प्राक्कलन समिति यह मूल्यांकन करती है कि सरकारी धन का आवंटन और व्यय किस प्रकार किया जाता है।
  • वर्ष भर सक्रियता: समितियाँ संसद के सत्र न होने पर भी कार्य करती रहती हैं, जिससे नीतिगत प्रक्रिया में निरंतरता और सतत् भागीदारी सुनिश्चित होती है।

सीमाएँ और चुनौतियाँ

  • सिफारिशों का बाध्यकारी न होना।
  • कृषि कानून (2020), UAPA (2019) जैसे प्रमुख विधेयकों के लिये समितियों को दरकिनार करना।
  • सदस्यों में कम उपस्थिति और विशेषज्ञता का अभाव।
  • कार्यकारी द्वारा विलंबित रिपोर्ट और खराब अनुवर्ती कार्रवाई।

निष्कर्ष:

संसदीय समितियाँ "थिंक टैंक" और विधायी "कार्यशालाओं" के रूप में कार्य करती हैं, और यह सुनिश्चित करती हैं कि राजनीतिक बहसें नीतिगत गहराई में परिवर्तित हों। जैसा कि पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने ठीक ही कहा था, "समितियों के बिना, संसद भाषणों के लिये एक सार्वजनिक मंच बनकर रह जाएगी, न कि कानून बनाने के लिये।" समिति प्रणाली को मज़बूत करना भारतीय लोकतंत्र में मज़बूत, सहभागी तथा सूचित कानून निर्माण की कुंजी है।