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दिवस 17: “भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) सार्वजनिक व्यय और विधायी परीक्षण के बीच के अंतराल को समाप्त करता है।” लोकतांत्रिक जवाबदेही बनाए रखने में इसकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

04 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) और उसके संवैधानिक प्राधिकार का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • लोकतांत्रिक जवाबदेही को बनाए रखने में इसके योगदान पर चर्चा कीजिये।
  • CAG की अंकेक्षण शक्तियों की सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
  • आगे की राह के साथ उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत स्थापित भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG), लोक निधि की जवाबदेही सुनिश्चित करने वाला एक प्रमुख संवैधानिक प्राधिकारी है। एक निष्पक्ष लेखा परीक्षक के रूप में, CAG की रिपोर्टें विधायी जाँच का आधार बनती हैं और इस प्रकार कार्यपालिका की कार्रवाई और संसदीय अन्वेक्षा के बीच एक सेतु का कार्य करती हैं।

Functions of CAG

मुख्य भाग: 

लोकतांत्रिक जवाबदेही में CAG का योगदान

  • CAG के अंकेक्षण से अनेक बड़े घोटालों का खुलासा हुआ: 
    • 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2010): अनुचित आवंटन के कारण ₹1.76 लाख करोड़ का अनुमानित नुकसान हुआ।
    • कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला (2012): ₹1.86 लाख करोड़ के राजस्व नुकसान को उजागर किया गया।
    • कॉमनवेल्थ खेल (CWG) घोटाला: वृहद स्तर पर हुई खरीद में हुई विसंगतियों का अंकेक्षण किया गया।
    • ये रिपोर्ट लोक विमर्श, संसदीय कार्यवाही और अनेक मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप का आधार बनीं।
  • निष्पादन अंकेक्षण: 
    • CAG वित्तीय अनुपालन से इतर भी अंकेक्षण करता है—जैसे, MNREGA, सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन—जिसमें खामियों, निराशाजनक परिणामों तथा अक्षमताओं को उजागर किया जाता है। इससे इनपुट-आधारित शासन से परिणाम-आधारित शासन पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता हुई।
  • कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करना 
    • CAG अपनी नियतकालिक रिपोर्टों के माध्यम से विधानमंडल को निधि के विलंब, दुरुपयोग और अल्प उपयोग के बारे में सूचित करता है, जिससे पारदर्शिता बढ़ती है। इस प्रकार यह राजकोषीय संघवाद और सार्वजनिक वित्त में अखंडता को बनाए रखता है।

CAG की प्रभावकारिता को प्रभावित करने वाली सीमाएँ

  • प्रवर्तन शक्तियों का अभाव: CAG केवल सूचना दे सकता है; उसके पास दंड अधिरोपित करने का अधिकार नहीं है।
  • विलंबित रिपोर्टिंग: CAG की रिपोर्ट प्रायः व्यय किये जाने के वर्षों बाद जारी की जाती हैं, जिससे रियल-टाइम जवाबदेही कम हो जाती है।
  • सीमित अनुवर्ती कार्रवाई: इसकी अनुशंसाएँ सलाहकारी होती हैं औ सरकारी कार्रवाई अनिवार्य नहीं है।
  • PAC का अत्यधिक कार्यभार:इसकी रिपोर्टें अत्यधिक विस्तीर्ण होती हैं और संसदीय समितियाँ सभी निष्कर्षों की प्रभावी समीक्षा करने में अक्षम होती हैं।
  • राजनीतिकरण: लेखापरीक्षा निष्कर्षों का यदा-कदा चयित रूप से उद्धरण दिया जाता है या राजनीतिक उद्देश्यों के लिये इसका दुरूपयोग किया जाता है।

आगे की राह

  • डिजिटल प्लेटफॉर्म और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग कर रियल-टाइम अंकेक्षण किया जाना चाहिये।
  • अनुशंसाओं पर समयबद्ध कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिये।
  • तकनीकी विशेषज्ञों और विषयक्षेत्र विशेषज्ञों के साथ PAC का सुदृढ़ीकरण किया जाना चाहिये।
  • व्यापक जनभागीदारी के लिये नागरिक-केंद्रित ऑडिट रिपोर्ट को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • कार्य क्षेत्र में विस्तार कर जलवायु व्यय, डिजिटल शासन और कल्याणकारी वितरण अंकेक्षण को शामिल करना आवश्यक है।

निष्कर्ष: 

जैसा कि डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने सही कहा था, CAG "भारतीय संविधान में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अधिकारी है।" व्यय और अन्वेक्षा के बीच के अंतराल को समाप्त कर, CAG लोकतांत्रिक जवाबदेही बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, हालाँकि संस्थागत सुधारों, समय पर अनुवर्ती कार्रवाई और अधिक विधायी भागीदारी के माध्यम से इसकी प्रभावशीलता को अभिवर्द्धित किया जा सकता है।