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दिवस- 13: "अनुच्छेद 21, अनगिनत अधिकारों का स्रोत बन गया है।" भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के दायरे का विस्तार करने में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णयों के महत्त्व का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। उत्तर में उपयुक्त उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)

30 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • दिये गए संदर्भ में अनुच्छेद 21 के उपबंध को प्रस्तुत करते हुए उत्तर लेखन प्रारंभ कीजिये।
  • अनुच्छेद 21 के अंतर्गत हाल के न्यायिक विस्तार का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
  • अपने उत्तर को प्रासंगिक उदाहरणों से स्पष्ट कीजिये।
  • एक विवेकपूर्ण टिप्पणी के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21— जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण: "किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।" मूलतः यह प्रावधान राज्य की मनमानी से व्यक्ति की सुरक्षा के लिये बनाया गया था, किंतु न्यायिक व्याख्या के माध्यम से अनुच्छेद 21 एक जीवंत प्रावधान में परिवर्तित हो गया है।

मुख्य भाग:

अनुच्छेद 21 का विकास: प्रक्रिया से लेकर मूल न्याय तक

  • ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (1950) में अनुच्छेद 21 की संकीर्ण व्याख्या की गई, “अगर कोई कानून अस्तित्व में है, तो उसके अनुसार जीवन और स्वतंत्रता छीनी जा सकती है।”
  • इस दृष्टिकोण का मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) में बदलाव किया गया, जहाँ न्यायालय ने माना कि ‘प्रक्रिया’ न्यायसंगत, निष्पक्ष और युक्तिसंगत होनी चाहिये। इससे भारतीय विधिशास्त्र में ‘ड्यू प्रोसेस ऑफ लॉ’ अर्थात् विधि की उचित प्रक्रिया का समावेश हुआ।
  • इस निर्णय ने अनुच्छेद 21 को अधिकारों के ऐसे भंडार में बदल दिया, जिनमें से अनेक संविधान में स्पष्टतः सूचीबद्ध नहीं हैं, किंतु एक गरिमामय जीवन के लिये आवश्यक हैं।

अनुच्छेद 21 का विस्तार करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के हालिया निर्णय

  • निजता का अधिकार– पुट्टस्वामी निर्णय (2017)
    • न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से निजता को अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकार घोषित किया।
    • प्रभाव: निगरानी से सुरक्षा, शारीरिक स्वायत्तता तथा डेटा प्राइवेसी की रक्षा।
  • सम्मान के साथ मरने का अधिकार – कॉमन कॉज केस (2018) गरिमा के साथ मरने का अधिकार – कॉमन कॉज़ केस (2018)
    • न्यायालय ने निष्क्रिय इच्छामृत्यु (Passive Euthanasia) के अधिकार को स्वीकार किया तथा 'लिविंग विल' को वैध ठहराया, यह कहते हुए कि गरिमा के साथ मरना जीवन के अधिकार का तार्किक विस्तार है।
    • व्यक्तिगत स्वायत्तता और चिकित्सकीय नैतिकता को मान्यता दी गई।
  • प्रजनन अधिकार – X बनाम स्वास्थ्य मंत्रालय (2022)
    • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम के तहत अविवाहित महिलाओं को गर्भपात की अनुमति के अधिकार का विस्तार किया गया, जिससे शारीरिक स्वायत्तता और प्रजनन स्वतंत्रता सुनिश्चित हुई।
    • प्रभाव: विवाहित और अविवाहित महिलाओं को समान चिकित्सकीय अधिकार प्रदान किये गये।
  • पर्यावरण अधिकार
    • न्यायालय ने अनुच्छेद 21 में स्वच्छ पर्यावरण, वायु, जल तथा प्रदूषण-मुक्त परिवेश के अधिकार को शामिल किया है।
    • एम.सी. मेहता संबंधी अनेक मामलों में पर्यावरण संरक्षण को जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग माना गया।
  • डिजिटल और सूचना संबंधी स्वायत्तता
    • पुट्टस्वामी निर्णय के आधार पर न्यायालय ने सूचना संबंधी आत्मनिर्णय की आवश्यकता को स्वीकार किया है, विशेषतः कृत्रिम बुद्धिमत्ता और निगरानी तकनीकों के संदर्भ में।

समालोचनात्मक मूल्यांकन

  • सकारात्मक योगदान:
    • मानव गरिमा, स्वायत्तता और भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र को सुदृढ़ करता है।
    • यह सुनिश्चित करता है कि अधिकार तकनीकी और सामाजिक परिवर्तनों के साथ विकसित हों।
    • कमज़ोर वर्गों की रक्षा करता है तथा विधायी रिक्तियों की पूर्ति करता है।
  • चिंताएँ:
    • न्यायिक अतिक्रमण: न्यायालयों द्वारा व्याख्या के स्थान पर विधिनिर्माण।
      • इस विस्तार के साथ स्पष्ट कानूनों और संसदीय निगरानी की आवश्यकता है, जिससे लोकतांत्रिक वैधता और एकरूपता बनी रहे।
    • प्रवर्तन में अस्पष्टता: कई अधिकार बिना सहायक कानूनों या संस्थानों के अनुपालनीय नहीं हैं।
      • न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के बीच संस्थागत संतुलन की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

जैसा कि संवैधानिक विशेषज्ञ नानी पालखीवाला ने कहा है—

“न्यायपालिका की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही है कि इसने अनुच्छेद 21 की व्यापक और समग्र महिमा का अभिनिर्धारण किया है।”

यह न्यायिक रचनात्मकता, जिसे कभी-कभी अतिक्रमण के रूप में आलोचना का सामना करना पड़ता है, बड़े पैमाने पर सामाजिक परिवर्तन और अधिकार-आधारित शासन की दिशा में प्रायः एक सकारात्मक शक्ति सिद्ध हुई है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि संविधान केवल एक विधिक ग्रंथ नहीं बल्कि स्वतंत्रता का पूर्ण संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है।