दिवस- 13: "कोई भी संविधान जो अपने मूल तत्त्वों की रक्षा नहीं कर सकता, वह केवल एक विधिक दस्तावेज़ है, स्वतंत्रता का घोषणा-पत्र नहीं।" इस संदर्भ में विवेचना कीजिये कि 'मूल संरचना सिद्धांत' किस प्रकार संवैधानिक नैतिकता की रक्षा करता है तथा भारतीय संविधान के आधारभूत सिद्धांतों को सुरक्षित करता है। (250 शब्द)
30 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण:
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परिचय:
संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं है; यह राष्ट्र की नैतिक और दार्शनिक रूपरेखा को व्यक्त करता है। वास्तव में संविधान को स्वतंत्रता के चार्टर के रूप में कार्य करने के लिये, इसकी मूल विशेषताओं की रक्षा करना आवश्यक होता है। भारत में यह कार्य मूल संरचना सिद्धांत (Basic Structure Doctrine - BSD) द्वारा किया जाता है, जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में विकसित एक न्यायिक नवाचार है।
मुख्य भाग:
मूल संरचना सिद्धांत की समझ
संवैधानिक नैतिकता की रक्षा
संवैधानिक नैतिकता का तात्पर्य केवल विधिक प्रावधानों ही नहीं, बल्कि संविधान के मूल उद्देश्य और मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता से है। BSD संवैधानिक नैतिकता की रक्षा इस प्रकार करता है:
मूलभूत सिद्धांतों की सुरक्षा
न्यायपालिका ने संविधान के मूलभूत सिद्धांतों की रक्षा के लिये लगातार BSD का सहारा लिया है:
निष्कर्ष:
मूल संरचना सिद्धांत संविधान की अंतरात्मा के रूप में कार्य करता है; यह संविधान के मूल सिद्धांतों तथा संवैधानिक नैतिकता की रक्षा करके विधायी अधिनायकवाद और बहुमतवादी अति की रोकथाम करता है।
जैसा कि विधिशास्त्री उपेंद्र बक्शी कहते हैं, "मूल संरचना के बिना, हमारे पास संविधान तो हो सकता है, पर संवैधानिकता नहीं।"
इस सिद्धांत के माध्यम से भारत का संविधान केवल एक विधिक संहिता नहीं, बल्कि स्वतंत्रता का एक जीवंत घोषणापत्र (चार्टर) बन जाता है, जो अपने नैतिक मूल और न्यायिक सतर्कता द्वारा कायम है।