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दिवस 17: “एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग न केवल संभार-तंत्र संबंधी निकाय बल्कि राजनीतिक निष्पक्षता का संरक्षक भी है।” हाल के घटनाक्रमों के आलोक में, चुनावी अखंडता सुनिश्चित करने में ECI के समक्ष विद्यमान संस्थागत चुनौतियों का आकलन कीजिये। (250 शब्द)

04 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • राजनीतिक निष्पक्षता के संरक्षक के रूप में ECI के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।
  • इसके अधिदेश की पूर्ति के समक्ष विद्यमान चुनौतियों का उल्लेख कीजिये।
  • इसकी कार्यप्रणाली और स्वायत्तता में सुधार हेतु सुधारों का सुझाव दीजिये।
  • आगे की राह के साथ उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

परिचय: 

संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत स्थापित भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व सौंपा गया है। हालाँकि ECI की कार्यप्रणाली की दक्षता सर्वविदित है, लेकिन राजनीतिक निष्पक्षता के संरक्षक के रूप में इसकी व्यापक संवैधानिक भूमिका—समान अवसर और चुनावी अखंडता सुनिश्चित करना—हाल के विवादों के कारण जाँच के दायरे में आ गई है।

मुख्य भाग: 

राजनीतिक निष्पक्षता के संरक्षक के रूप में निर्वाचन आयोग

  • स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव का आयोजन: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने समग्र देश में अनेक चुनावों का सफलतापूर्वक आयोजन किया है और यह सुनिश्चित किया है कि वे निष्पक्ष और पक्षपात रहित हों।
    • इसने वर्ष 1947 से अभी तक 18 राष्ट्रीय और 370 से अधिक राज्य चुनावों की निष्पक्षता—स्वतंत्र एवं निष्पक्षता—सुनिश्चित की है।
  • मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत: मतदाता पहचान पत्र पहचान और पते के प्रमाण के रूप में उपयोग होते हैं, जिससे मतदाता सूची की अखंडता बनाए रखने और छद्म पहचान की घटनाओं को कम करने में मदद मिलती है।
    • भारतीय मतदाता पहचान पत्र (आधिकारिक तौर पर मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC)) पहली बार 1993 में मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी. एन. शेषन के कार्यकाल के दौरान शुरू किया गया था।
  • इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) की शुरुआत: निर्वाचन आयोग द्वारा EVM को अपनाने से मतदान प्रक्रिया काफी सुव्यवस्थित हो गई है, जिससे यह अधिक कुशल हो गई है और चुनावी धोखाधड़ी की संभावना कम हो गई है।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) का कार्यान्वयन: निर्वाचन आयोग सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने हेतु चुनावों के दौरान आदर्श आचार संहिता (MCC) लागू करता है।
  • समावेशी भागीदारी के लिये पहल: इसने अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिये आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों जैसे विशेष प्रावधानों को लागू किया है और साथ ही बूथ कैप्चरिंग, मतदाताओं को डराने-धमकाने तथा रिश्वतखोरी जैसी चुनावी समस्याओं का निवारण करने के उपाय भी किये हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया अक्षुण्ण रही है।
  • प्रौद्योगिकी का नवोन्मेषी उपयोग: निर्वाचन आयोग ने चुनावी प्रक्रिया में सुधार के लिये तकनीकी प्रगति को अपनाया है, जैसे मतदाता पंजीकरण पोर्टल, ऑनलाइन मतदाता सत्यापन प्रणाली और मतदाता शिक्षा एवं सूचना प्रसार के लिये मोबाइल ऐप की शुरुआत।

भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ:

  • निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति: अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ (2023) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि नियुक्ति प्रक्रिया में स्वतंत्रता का अभाव है और अन्य संवैधानिक प्राधिकारियों की तरह नियुक्तियों के लिये एक कॉलेजियम प्रणाली (प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता, मुख्य न्यायाधीश) अनिवार्य कर दी।
  • अपारदर्शी राजनीतिक चंदा: चुनावी बॉन्ड से संबंधित चिंताओं के बावजूद, निर्वाचन आयोग इस योजना का सार्वजनिक रूप से विरोध करने में विफल रहा। सर्वोच्च न्यायालय ने फरवरी 2024 में चुनावों में पारदर्शिता के उल्लंघन के कारण इसे रद्द कर दिया।
  • पक्षपातपूर्ण आचरण के आरोप: वर्ष 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान, विशेष रूप से वरिष्ठ नेताओं द्वारा अभद्र भाषा और सांप्रदायिक प्रचार के संबंध में, चुनिंदा निष्क्रियता के आरोपों से जनता का विश्वास कम हुआ।
  • अप्रभावी प्रवर्तन शक्तियाँ: आदर्श आचार संहिता के उल्लंघनों पर कठोर दंड के बजाय सलाह दी जाती है। आदर्श आचार संहिता के लिये वैधानिक समर्थन का अभाव इसकी प्रवर्तनीयता को कमज़ोर करता है।
  • राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने में असमर्थता: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में राजनीतिक दलों के पंजीकरण (धारा 29A) का प्रावधान किया गया है, लेकिन यह निर्वाचन आयोग को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन या वित्तीय अननुपालन जैसे उल्लंघनों के लिये दलों का पंजीकरण रद्द करने का स्पष्ट अधिकार नहीं देता है।
  • EVM-VVPAT संबंधी चिंताएँ: पूर्ण रूप से VVPAT सत्यापन की निरंतर माँगों को अस्वीकार कर दिया गया, जिससे पारदर्शिता और जनता के विश्वास को लेकर प्रश्न किये गए।
  • डिजिटल अभियानों का अपर्याप्त विनियमन: चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर मिथ्या सूचना, एआई-जनित सामग्री और अभद्र भाषा का निवारण करने के लिये निर्वाचन आयोग के पास प्रभावी तंत्र का अभाव है।

आवश्यक सुधार 

  • निर्वाचन आयोग की नियुक्तियों के लिये प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता को शामिल करते हुए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अधिदेशित चयन समिति का कार्यान्वन करने की आवश्यकता है (अनूप बरनवाल बनाम भारत संघ, 2023 - सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय)।
  • प्रवर्तनीयता बढ़ाने के लिये आदर्श आचार संहिता (MCC) को वैधानिक आधार प्रदान करने की आवश्यकता है। (द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग)।
  • गंभीर उल्लंघनों के लिये राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने के लिये निर्वाचन आयोग का सशक्तीकरण करना आवश्यक है (द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग)।
  • पूर्ण वित्तीय स्वायत्तता के साथ निर्वाचन आयोग के लिये एक स्वतंत्र सचिवालय की स्थापना की जानी चाहिये (भारतीय विधि आयोग - 255वीं रिपोर्ट, 2015)।
  • मिथ्या सूचना के निवारण और नैतिक प्रचार सुनिश्चित करने के लिये सोशल मीडिया और एआई-आधारित राजनीतिक विज्ञापनों पर अनुवीक्षण बढ़ाया जाना चाहिये (सूचना प्रौद्योगिकी पर संसदीय स्थायी समिति, 2021)
  • पारदर्शिता और मतदाता विश्वास बढ़ाने के लिये VVPAT सत्यापन को वर्तमान 5% से अधिक किया जाना चाहिये।
  • सुरक्षा बढ़ाने और छेड़छाड़ या धोखाधड़ी के जोखिम को कम करने के लिये ब्लॉकचेन-आधारित मतदान प्रणालियों जैसी उन्नत मतदान तकनीकों का अंगीकरण किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष: 

जैसा कि पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त प्रो. एस.वाई. कुरैशी ने टिप्पणी की थी:

"लोकतंत्र की विश्वसनीयता केवल चुनावों के आयोजन पर ही नहीं, बल्कि उनके स्वतंत्र और निष्पक्ष होने पर भी निर्भर है।"

निर्वाचन आयोग को चुनावों के आयोजन प्रबंधक तक सीमित नहीं किया जाना चाहिये। इसकी संवैधानिक पवित्रता को स्वायत्तता, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने वाले सुधारों के माध्यम से संरक्षित किया जाना चाहिये। केवल तभी निर्वाचन आयोग राजनीतिक निष्पक्षता और लोकतांत्रिक वैधता के एक सुदृढ़ स्तंभ के रूप में अपनी वास्तविक भूमिका का निर्वहन कर सकेगा।