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दिवस 11: "हालाँकि हिमालय और पश्चिमी घाट दोनों ही भू-स्खलन के प्रति सुभेद्य हैं, परंतु इनके अंतर्निहित कारणों में महत्त्वपूर्ण अंतर है।" इस कथन की विवेचना कीजिये। (150 शब्द)

27 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण: 

  • भूस्खलन की सामान्य परिभाषा और भारत में भूस्खलन की घटना का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • हिमालय और पश्चिमी घाट में भूस्खलन के अंतर्निहित कारणों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कीजिये।
  • NDMA दिशानिर्देशों का संदर्भ देते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय: 

भूस्खलन (Landslide) गुरुत्वाकर्षण द्वारा उत्प्रेरित एक भूवैज्ञानिक घटना है जिसमें शैल, मिट्टी और मलबे के एक भाग का नीचे की ओर खिसकना या संचलन शामिल होता है।  भारत भूस्खलनों की दृष्टि से अत्यधिक सुभेद्य है, विशेषतः हिमालयी क्षेत्र और पश्चिमी घाट में। हालाँकि दोनों क्षेत्र भूस्खलनों के प्रति संवेदनशील हैं, फिर भी इन दोनों क्षेत्रों में भूस्खलनों के मूल कारण भिन्न हैं, क्योंकि इनके भौगोलिक संघटन, स्थलाकृति, जलवायु तथा मानवजनित कारकों में स्पष्ट अंतर पाया जाता है।  

मुख्य भाग: 

हिमालय में भूस्खलन

  • हिमालय भारत का सर्वाधिक भूस्खलन-प्रवण क्षेत्र है, जिसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के जोखिम वर्गीकरण के अनुसार ज़ोन-I और ज़ोन-II में रखा गया है। इस क्षेत्र में भूस्खलनों के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
    • विवर्तनिक अस्थिरता: हिमालय भूगर्भीय रूप से एक नव्य पर्वतमाला है तथा भारतीय और यूरेशियाई प्लेटों के निरंतर टकराव के कारण यह क्षेत्र भूकंपीय रूप से सक्रिय है। निरंतर विवर्तनिक (टेक्टोनिक) गतिविधियों के कारण भूस्खलन की घटनाएँ होती हैं।
    • तीव्र ढालें और भंगुर शैल/चट्टानें: इस क्षेत्र में भौगोलिक संरचना में तीव्र ढाल प्रवणताएँ और खंडित, अपक्षयित चट्टानों की प्रधानता है, जो स्वाभाविक रूप से ढलानों को अस्थिर बनाती है।
    • अत्यधिक वर्षा और हिमनदीय गतिविधियाँ: मानसूनी काल की तीव्र वर्षा तथा तीव्र हिम-विगलन ढलानों की स्थिरता को कमज़ोर करते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड(GLOF) घटनाएँ भी भूस्खलनों की आवृत्ति में वृद्धि करती हैं।
    • मानवजनित गतिविधियाँ: बिना वैज्ञानिक आधार के सड़क निर्माण, जलविद्युत परियोजनाएँ एवं वनों की कटाई जैसी गतिविधियाँ ढलानों के अवतलन या स्खलन को और बढ़ा देती हैं।

पश्चिमी घाट में भूस्खलन

  • पश्चिमी घाट, यद्यपि हिमालय की तुलना में प्राचीन और विवर्तनिक रूप से स्थिर हैं, फिर भी यहाँ होने वाले भूस्खलन के कारणों में भिन्नता है:
    • तीव्र वर्षा: केरल और कर्नाटक में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान होने वाली अत्यधिक वर्षा मृदा को संतृप्त कर देती है जिससे ढलानों की स्थिरता कम हो जाती है।
    • लैटेराइट और अपक्षयित मृदा: इस क्षेत्र की चट्टानें लैटेराइट प्रकार की और अत्यधिक अपक्षयित होती हैं, जो जल-संतृप्त होने पर स्खलन के लिये प्रवण हो जाती हैं।
    • मानवजनित दबाव: चाय, कॉफी जैसी बागान कृषि, शहरीकरण तथा वनों की कटाई जैसे भूमि उपयोग में परिवर्तनों ने प्राकृतिक जल-निकासी प्रणाली और ढलान संतुलन को बाधित किया है।
    • भू-स्थलाकृति: यद्यपि पश्चिमी घाट की ढलानें हिमालय जितनी तीव्र-प्रवण नहीं हैं, फिर भी कुछ तीव्र ढलानों और घाटी क्षेत्रों में भू-स्थलाकृतिक परिवर्तनों के कारण स्थानीय स्तर पर भूस्खलन की गतिविधियाँ होती हैं।

निष्कर्ष: 

हालाँकि हिमालय क्षेत्र में भू-स्खलन प्राकृतिक तथा विवर्तनिक कारणों से होते हैं, वहीं पश्चिमी घाटों में यह समस्या अब बढ़ते हुए मानवीय कारणों से उत्पन्न हो रही है। इन भिन्नताओं को समझना प्रभावी निवारण तथा सतत् योजना-निर्माण के लिये अत्यंत आवश्यक है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के वर्ष 2009 के दिशा-निर्देश भूस्खलन जोखिमों के प्रबंधन हेतु क्षेत्र-विशेष उपायों, जैसे: भूस्खलन जोखिम क्षेत्रांकन (LHZ) मानचित्रण, पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ तथा पारिस्थितिकीय दृष्टि से सुरक्षित विकास की अनुशंसा करते हैं।