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दिवस 26: “एक सुनिश्चित मूल्य, सुनिश्चित बाजारों का विकल्प नहीं हो सकता।” न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) व्यवस्था की कानूनी गारंटी की मांग के बीच कृषि संधारणीयता और किसान आय सुरक्षा को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (250 शब्द)

15 Jul 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | अर्थव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • MSP तंत्र और उसके उद्देश्यों (मूल्य आश्वासन, आय समर्थन) की व्याख्या कीजिये।
  • कृषि संधारणीयता और किसान आय सुरक्षा सुनिश्चित करने में MSP की भूमिका का आकलन कीजिये।
  • MSP को वैध बनाने की आवश्यकता और इसमें चुनौतियों पर प्रकाश डालिये।
  • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय: 

भारत में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) किसानों के लिये न्यूनतम आय सुनिश्चित करने और कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु एक न्यूनतम मूल्य के रूप में कार्य करता है। हालाँकि इसे 23 फसलों के लिये घोषित किया गया है, लेकिन आय सुरक्षा और संधारणीयता पर इसका प्रभाव विवादास्पद बना हुआ है। कानूनी गारंटी की बढ़ती माँग किसानों की गहरी चिंताओं को दर्शाती है। फिर भी, सुनिश्चित, सुलभ और प्रतिस्पर्द्धी बाज़ारों के बिना, गारंटीकृत मूल्य भी सीमित लाभ प्रदान करते हैं, जो इस विचार को पुष्ट करता है कि "एक सुनिश्चित मूल्य सुनिश्चित बाज़ारों का स्थान नहीं ले सकता।"

मुख्य भाग:

कृषि संधारणीयता और आय सुरक्षा में MSP की भूमिका

  • आय आश्वासन: MSP किसानों को गिरती कीमतों के विरुद्ध एक वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है। यह विशेष रूप से अत्यधिक फसल उपज के कारण होने वाली कीमतों में गिरावट के दौरान संसाधन-विहीन किसानों को लाभान्वित करता है।
  • उत्पादन प्रोत्साहन: यह प्रमुख फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहित करता है, आपूर्ति शृंखलाओं को स्थिर करता है और NFSA तथा मध्याह्न भोजन योजना जैसी योजनाओं के अंतर्गत खाद्य खरीद नीतियों के साथ संरेखित करता है।
  • जोखिम न्यूनीकरण में सहायता: मानसून पर निर्भरता, जलवायु परिवर्तन और मूल्य अस्थिरता के प्रति सुभेद्य क्षेत्र में, MSP अनुमानित लाभ प्रदान करता है।
  • खाद्य सुरक्षा की रीढ़: भारतीय खाद्य निगम (FCI) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लिये MSP फसलों की खरीद करता है, जिससे लगभग 80 करोड़ लोगों को किफायती खाद्यान्न सुनिश्चित होता है।

MSP की कानूनी गारंटी की आवश्यकता

  • निरंतर कृषि संकट: किसानों की आत्महत्या, बढ़ता कर्ज (NABARD: औसत ₹1.04 लाख/कृषि परिवार ऋण) और आय की असुरक्षा के कारण MSP को वैध बनाने के लिये तीव्र विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
  • सीमित पहुँच: शांता कुमार समिति (2015) के अनुसार, क्षेत्रीय और फसल-आधारित विषमता (जैसे: पंजाब-हरियाणा का धान और गेहूँ पर ध्यान) के कारण, केवल 6% किसान ही MSP से लाभान्वित होते हैं।
    • स्वामीनाथन आयोग ने किसानों को उनकी समग्र लागत की वास्तविक क्षतिपूर्ति के लिये C2 + 50% पर MSP की सिफारिश की थी।

MSP को वैध बनाने में चुनौतियाँ

  • राजकोषीय बोझ: सभी फसलों के लिये कानूनी रूप से अनिवार्य MSP की लागत सालाना ₹10-11 लाख करोड़ तक हो सकती है (NITI आयोग का अनुमान), जिससे राजकोषीय स्थिरता को खतरा हो सकता है।
  • बाज़ार विकृतियाँ: इससे अतिउत्पादन, मूल्य असंतुलन, फसल विविधीकरण में बाधा और भारतीय कृषि की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी आ सकती है।
  • पारिस्थितिक असंतुलन: चावल और गेहूँ जैसी MSP-समर्थित फसलों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण भू-जल स्तर में कमी (जैसे: पंजाब) और मृदा क्षरण हुआ है।
  • निजी क्षेत्र की अनिच्छा: कानूनी MSP निजी खरीद को रोक सकता है, बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा को कम कर सकता है और सरकारी एजेंसियों पर निर्भरता बढ़ा सकता है।

आगे की राह

  • विकेंद्रीकृत खरीद: छत्तीसगढ़ के धान और ओडिशा के बाजरा खरीद जैसे राज्य-आधारित मॉडल MSP के तहत फसलों के विविधीकरण में सफलता दर्शाते हैं।
  • मूल्य न्यूनता भुगतान योजनाएँ: मध्य प्रदेश की भावांतर योजना जैसे मॉडल किसानों को खुले बाज़ारों में अपनी उपज बेचने की अनुमति देते हैं, जिसमें मूल्य अंतर के लिये सरकारी क्षतिपूर्ति भी शामिल है।
  • बाज़ार सुधार: बाज़ार अभिगम में सुधार और मध्यवर्तियों के शोषण को कम करने के लिये e-NAM, FPO नेटवर्क और कृषि-बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • स्थायित्व-संबंधी प्रोत्साहन: क्षेत्र-विशिष्ट MSP और पारिस्थितिक बोनस के माध्यम से पोषक अनाज, दलहन और तिलहन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

निष्कर्ष:

किसान कल्याण के लिये MSP महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसकी कानूनी गारंटी सभी कृषि समस्याओं का समाधान नहीं है। सुनिश्चित बाज़ारों, संस्थागत सुधारों और सतत् फसल के बिना, केवल MSP से समृद्धि सुनिश्चित नहीं हो सकती। वास्तव में आत्मनिर्भर और समुत्थानशील कृषि क्षेत्र के लिये मूल्य आश्वासन को बाज़ार अभिगम, संधारणीयता और नवाचार के साथ जोड़ने वाले संतुलित दृष्टिकोण आवश्यक हैं।