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दिवस 45: “नैतिक संहिता प्रेरणा देती है, जबकि आचार संहिता अनुशासनात्मक ढंग से लागू होती है।" भारत में लोक सेवा के संदर्भ में इस अंतर का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

06 Aug 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • लोक सेवा में आचार संहिता और आचरण संहिता को परिभाषित और दोनों में अंतर स्पष्ट करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • मुख्य भाग में, भारत के उदाहरणों और ढाँचों का उद्धरण करते हुए, विश्लेषण कीजिये कि वे किस प्रकार भिन्न रूप से कार्य करते हुए भी एक-दूसरे के पूरक हैं।
  • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

परिचय:

"नैतिक संहिता प्रेरणा देती है, जबकि आचार संहिता अनुशासनात्मक ढंग से लागू होती है।," यह शासन में एक विशिष्टता/पार्थक्य दर्शाता है। भारत में, जहाँ नैतिक संहिता नैतिक मूल्यों को आकार देती है, वहीं आचार संहिता विधिक मानकों का पालन सुनिश्चित करती है और लोक सेवा में नैतिक आचरण को बढ़ावा देती है।

मुख्य भाग:

पहलू

नैतिक संहिता

आचार संहिता

उद्देश्य

नैतिक मूल्यों पर आधारित व्यवहार को प्रेरित और निर्देशित करता है।

स्वीकार्य व्यवहार की दृष्टि से नियम और विनियम का प्रवर्तन करता है।

विषय

उचित और अनुचित संबंधी व्यापक सिद्धांत।

दैनिक व्यावसायिक आचरण के लिये विशिष्ट दिशा-निर्देश।

प्रकृति

दार्शनिक और आकांक्षात्मक।

व्यावहारिक और परिचालनात्मक।

विषय क्षेत्र

समग्र व्यवहार और व्यावसायिक सत्यनिष्ठा से संबंधित।

विशिष्ट कार्यों और अपेक्षित व्यवहारों से संबंधित।

प्रवर्तन

विधिक रूप से बाध्यकारी नहीं; एक नैतिक दिशासूचक के रूप में कार्य करता है।

विधिक रूप से बाध्यकारी और प्रायः दंड के साथ प्रवर्तनीय।

उदाहरण

निष्ठा, ईमानदारी, निष्पक्षता, दूसरों के प्रति सम्मान।

उपस्थिति, समय की पाबंदी, ड्रेस कोड, प्रक्रियाओं का पालन।

  • नैतिक संहिता: नैतिक संहिता लोक सेवकों के लिये ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और जवाबदेही जैसे मूलभूत नैतिक सिद्धांतों की रूपरेखा प्रस्तुत करती है। इसका उद्देश्य अधिकारियों को स्वेच्छा से उच्च नैतिक मानकों को बनाए रखने के लिये प्रेरित करना और निर्णय लेने में उनका मार्गदर्शन करना है।
    • उदाहरण: भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) संहिता निष्पक्षता पर बल देती है और अधिकारियों को व्यक्तिगत या राजनीतिक एजेंडे के बजाय जनहित हेतु कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करती है।
  • आचार संहिता: आचार संहिता स्पष्ट नियमों और विनियमों को निर्दिष्ट करती है और बाध्यकारी दायित्वों के माध्यम से नैतिक व्यवहार का प्रवर्तन करती है। यह कार्यों को नियंत्रित करती है, कर्तव्य निर्धारित करती है, और अननुपालन के लिये दंड का प्रावधान करती है एवं लोक सेवा में अनुशासन तथा जवाबदेही बनाए रखने के लिये एक विधिक तंत्र के रूप में कार्य करती है।
    • उदाहरण: केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम में लोक सेवकों के हितों के संघर्ष और राजनीतिक गतिविधियों से प्रविरत रहने और अपनी आधिकारिक भूमिकाओं में जवाबदेही सुनिश्चित करने के प्रावधान हैं।
  • प्रेरणा बनाम प्रवर्तन: जहाँ नैतिक संहिता व्यक्तियों को सत्यनिष्ठा से कार्य करने के लिये प्रेरित करती है, वहीं आचार संहिता स्थापित नियमों के अनुपालन का प्रवर्तन करती है।
    • नैतिक संहिता आंतरिक नैतिक दिशा-निर्देश तैयार करती है और आचार संहिता यह सुनिश्चित करती है कि सत्ता का दुरुपयोग न हो और कदाचार के लिये दंड का प्रावधान करती है।
    • उदाहरण: सूचना का अधिकार अधिनियम पारदर्शिता (नैतिक प्रेरणा) को बढ़ावा देता है और केंद्रीय सतर्कता आयोग भ्रष्ट आचरण के लिये जाँच और दंड के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
  • शासन में पूरक भूमिका: दोनों संहिताएँ प्रभावी शासन सुनिश्चित करने में पूरक भूमिका निभाती हैं। 
    • नैतिक संहिता स्व-नियमन की संस्कृति को बढ़ावा देती है, जबकि आचार संहिता प्रवर्तन के लिये विधिक ढाँचे का निर्माण करती है। संयुक्त रूप से ये लोक सेवा का पारदर्शी और जवाबदेह बने रहना सुनिश्चित करती हैं।
    • उदाहरण: 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान, आचार संहिता से भ्रष्टाचार का निवारण हुआ, जबकि नैतिक संहिता ने अधिकारियों को संसाधनों के प्रबंधन में ईमानदारी से कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया।

निष्कर्ष:

नैतिक संहिता नैतिक आचरण को प्रेरित करती है, जबकि आचार संहिता लोक सेवा में अनुपालन का प्रवर्तन करती है। दोनों ही भारत में नैतिक शासन सुनिश्चित करते हैं और लोक सेवा में जवाबदेही, पारदर्शिता और सत्यनिष्ठा को अक्षुण्ण रखते हैं।