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दिवस -9: “भारतीय धर्मनिरपेक्षता 'सैद्धांतिक अंतर' का मॉडल है, न कि पूर्ण पृथक्करण का।” टिप्पणी कीजिये। (150 शब्द)

25 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण: 

  • सामान्यतः और भारतीय संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित कीजिये।
  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता ‘सैद्धांतिक अंतर' का एक आदर्श है, विवेचना कीजिये।
  • इसकी तुलना पूर्ण पृथक्करण के पश्चिमी मॉडल से कीजिये।
  • एक विवेकपूर्ण टिप्पणी के साथ उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय: 

धर्मनिरपेक्षता उस वैचारिक कार्यढाँचे को दर्शाती है जो राज्य को धर्म से पृथक रखता है तथा प्रत्येक व्यक्ति को धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। हालाँकि, धर्मनिरपेक्षता का मॉडल विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों में भिन्न होता है। जहाँ पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता राज्य और धर्म के कठोर पृथक्करण पर बल देती है, वहीं भारतीय धर्मनिरपेक्षता एक भिन्न मार्ग अपनाती है, जिसे राजनीतिक विचारक राजीव भार्गव ने ‘सैद्धांतिक अंतर’ (Principled Distance) की संज्ञा दी है।

मुख्य भाग: 

भारतीय धर्मनिरपेक्षता और संतुलित सहभागिता का सिद्धांत

  • भारतीय धर्मनिरपेक्षता इस विचार पर आधारित नहीं है कि राज्य धर्म-विरोधी या अधार्मिक हो। 
  • इसके विपरीत, यह एक 'सैद्धांतिक अंतर’ की भावना को दर्शाती है, जहाँ राज्य विभिन्न संदर्भों और सामाजिक न्याय, समानता तथा सुधार जैसे मूल्यों के आधार पर धर्मों से संबंध बना भी सकता है तथा दूरी भी बनाए रख सकता है।
  • भारतीय संविधान राज्य को भेदभाव को खत्म करने और मौलिक अधिकारों को बनाए रखने के लिये धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने की अनुमति देता है। उदाहरणों में शामिल हैं: भारतीय संविधान राज्य को यह अनुमति देता है कि वह धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सके, यदि वह भेदभाव को समाप्त करने और मूलभूत अधिकारों की रक्षा करने के लिये आवश्यक हो। इसके उदाहरण हैं:
    • अनुच्छेद 17 के तहत अस्पृश्यता का उन्मूलन।
    • समानता सुनिश्चित करने के लिये मंदिर प्रवेश और धार्मिक प्रथाओं में सुधार।
    • हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम जैसे कानूनों के तहत धार्मिक संस्थाओं का विनियमन।
    • मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के माध्यम से ट्रिपल तलाक को अमान्य करना।
  • साथ ही, राज्य अनुच्छेद 25 से 28 के माध्यम से धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करता है, जिससे सभी नागरिकों को अपने धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने का अधिकार मिलता है।

पाश्चात्य (पूर्ण पृथक्करण) मॉडल के साथ तुलना

  • पाश्चात्य धर्मनिरपेक्षता (विशेष रूप से अमेरिका और फ्राँस में) पूर्ण पृथक्करण की अवधारणा पर आधारित है।
  • अमेरिका में 'प्रथम संशोधन' राज्य को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप से रोकता है। इस मॉडल में धर्म को एक निजी विषय माना जाता है, जो सार्वजनिक और राजनीतिक क्षेत्र के कार्यकलापों से पृथक् होता है।
  • फ्राँस में laïcité (लैसिते: धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत) धार्मिक मामलों में सख्त गैर-हस्तक्षेप को लागू करता है। उदाहरणस्वरूप, वहाँ सार्वजनिक संस्थानों में हिजाब जैसे धार्मिक प्रतीकों पर प्रतिबंध है।
  • इस प्रकार का सख्त पृथक्करण भारत जैसे गहन विविध और धार्मिक रूप से बहुल समाजों के लिये उपयुक्त नहीं होता, जहाँ धर्म प्रायः सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से गहराई से जुड़ा होता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार, भारतीय धर्मनिरपेक्षता एक गतिशील और संदर्भ-संवेदी दृष्टिकोण को मूर्त रूप देती है। 'सैद्धांतिक अंतर’ का भारतीय मॉडल धर्मनिरपेक्षता को एक जटिल और बहुलतावादी समाज के अनुकूल ढालने की एक सुविचारित संवैधानिक प्रवृत्ति को दर्शाता है। जैसा कि राजीव भार्गव ने उचित ही कहा है: "भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्मविरोधी नहीं है; यह बहु-मूल्य और बहु-सिद्धांत आधारित है, जो स्वतंत्रता, समानता एवं सुधार पर बल देती है।"