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दिवस -8: "भारत के शहरी क्षेत्र तीव्रता से जलवायु जोखिम के हॉटस्पॉट बनते जा रहे हैं।" नगरों के इस रूपांतरण में जल संबंधी तनाव, अपशिष्ट प्रबंधन की विफलता और मानव-जनित नगरीय ऊष्मा द्वीपों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये। (250 शब्द)

24 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण: 

  • भारत के शहरी क्षेत्र तीव्रता से जलवायु जोखिम के हॉटस्पॉट बनते जा रहे हैं, इस तथ्य का परिचय दीजिये।
  • प्रमुख तनाव कारकों की उत्प्रेरक भूमिका का विश्लेषण कीजिये।
  • आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

भारत के शहरी क्षेत्र, जो कभी आर्थिक अवसर और आधुनिकीकरण के प्रतीक थे, पर्यावरणीय तनावों के संचयी प्रभाव के कारण जलवायु जोखिम के हॉटस्पॉट बनते जा रहे हैं। भारत में, जहाँ शहरी आबादी वर्ष 2021 में 35% से बढ़कर वर्ष 2030 तक 40% होने की उम्मीद है, अनियोजित विकास ने जलवायु जोखिमों को बढ़ा दिया है, जो हाइड्रोलॉजिकल तनाव, अपशिष्ट कुप्रबंधन और मानवजनित नगरीय उष्मा द्वीपों द्वारा संचालित है।

मुख्य भाग: 

प्रमुख तनाव कारकों की उत्प्रेरक भूमिका 

  • जल विज्ञान संबंधी तनाव: शहरी भारत विरोधाभासी जल विज्ञान संबंधी चुनौतियों (गर्मियों में जल की कमी और मानसून के दौरान बाढ़) का सामना करता है।
    • चेन्नई और दिल्ली जैसे शहरों में अत्यधिक भूजल दोहन एवं पुनर्भरण क्षेत्रों में कमी के कारण गंभीर भूजल संकट का सामना करना पड़ रहा है।
    • वर्ष 1960 के बाद से बंगलुरु ने अपनी 80% झीलें खो दी हैं, जिससे स्टॉर्म वाटर स्टोरेज प्रभावित हुआ है और बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।
    • वर्ष 2015 की चेन्नई बाढ़ और वर्ष 2020 की हैदराबाद बाढ़ अकुशल जल निकासी प्रणालियों एवं अवरुद्ध प्राकृतिक चैनलों के कारण गंभीर हो गई थी।
    • NITI आयोग के अनुसार, वर्ष 2030 तक 21 भारतीय शहरों में भूजल समाप्त हो सकता है, जिससे जल विज्ञान संबंधी तनाव एक प्रमुख जलवायु गुणक बन जाएगा।
  • कुप्रबंधित अपशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्र: भारतीय शहर प्रतिदिन लगभग 1.5 लाख टन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं (CPCB, 2021), जिसमें से केवल 30-35% का ही वैज्ञानिक रूप से प्रसंस्करण किया जाता है।
    • गाज़ीपुर (दिल्ली) और देवनार (मुंबई) जैसे स्थल मीथेन व जहरीली गैसें उत्सर्जित करते हैं, जिससे शहरी वायु प्रदूषण तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी खतरे बढ़ते हैं।
    • गैर-जैवनिम्नीकरणीय अपशिष्ट नालियों को अवरुद्ध कर देता है, जिससे मानसून के दौरान जलभराव और वेक्टर जनित बीमारियाँ बढ़ जाती हैं।
    • अनुचित निपटान से शहरी वातावरण में विषाक्त पदार्थ की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • मानवजनित नगरीय ऊष्मा द्वीप: नगरीय ऊष्मा द्वीप (UHI) प्रभाव एक ऐसी घटना है, जिसमें शहरी केंद्र का तापमान, ताप/ऊष्मा अवशोषित सतहों और वनस्पति की कमी के कारण आसपास के क्षेत्रों की तुलना में 3-5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाता है।
    • ताप को बनाए रखने वाली सामग्रियों से अत्यधिक निर्माण कार्य तथा संकुचित होते हरित क्षेत्र हीट वेव्स को और तीव्र कर देते हैं।
    • कणीय पदार्थ और ओज़ोन में वृद्धि, श्वसन संबंधी बीमारियों में योगदान देती है तथा ऊष्मा के प्रभाव को बदतर बनाती है।
    • अहमदाबाद में वर्ष 2010 में आई भीषण गर्मी से 1,300 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जिसके कारण शहर को भारत की पहली हीट एक्शन योजना शुरू करनी पड़ी थी।

निष्कर्ष:

AMRUT, स्मार्ट सिटीज़ मिशन और जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के माध्यम से भारत के प्रयासों का उद्देश्य SDG 11 (सतत शहर एवं संतुलित समुदाय) एवं SDG 13 (जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई) के अनुरूप स्थायी शहरों का निर्माण करना है। शहरों को जलवायु परिवर्तन से ग्रसित होने की बजाय जलवायु समुत्थानशील और अनुकूल बनाने में अग्रणी बनना होगा।