24 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज
दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर
हल करने का दृष्टिकोण:
- जनांकिक लाभांश और जनांकिकीय अवधि क्या हैं, यह बताते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
- भारत के जनांकिक लाभ की संभावनाओं और सीमाओं का विश्लेषण कीजिये।
- आगे की राह बताते हुए उचित निष्कर्ष दीजिये।
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परिचय:
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार, जनांकिकीय लाभांश उस आर्थिक वृद्धि की संभावना है जो जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकती है, विशेषतः जब कार्यशील आयु वर्ग (15 से 64 वर्ष) की जनसंख्या का अनुपात, गैर-कार्यशील आयु वर्ग (14 वर्ष से कम और 65 वर्ष से अधिक) की तुलना में अधिक होता है। भारत ने वर्ष 2005-06 में जनांकिकीय लाभांश की संभावनाओं की अवधि में प्रवेश किया था और यह स्थिति वर्ष 2055-56 तक बनी रहेगी।
मुख्य भाग:
भारत का जनांकिकीय अवसर
- लगभग 68% जनसंख्या 15 से 64 वर्ष की आयु के बीच है तथा 26% जनसंख्या 10-24 आयु वर्ग में है, जिससे भारत विश्व में सबसे युवा देशों में से एक बन गया है।
- यह उल्लेखनीय है कि भारत की जनसंख्या अपेक्षाकृत युवा है तथा इसकी औसत आयु 28.4 वर्ष है।
- इसके अलावा, भारत में वर्ष 2030 तक कार्यशील आयु वर्ग के व्यक्तियों की संख्या 1.04 बिलियन होगी। इसी प्रकार, भारत का निर्भरता अनुपात वर्ष 2030 तक अपने इतिहास में सबसे कम 31.2% होगा।
- अगले दशक में वैश्विक कार्यबल में लगभग 24.3% की वृद्धि के साथ भारत विश्व में मानव संसाधन का सबसे बड़ा प्रदाता बना रहेगा।
लाभांश में बाधा डालने वाली सीमाएँ
- कौशल अंतराल और शिक्षा घाटा:
- राष्ट्रीय कौशल विकास मिशन कार्यान्वयन रूपरेखा के अनुसार, यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में केवल 2.3% कार्यबल ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जबकि ब्रिटेन में यह आँकड़ा 68%, जर्मनी में 75%, अमेरिका में 52%, जापान में 80% तथा दक्षिण कोरिया में 96% है।
- इंडिया स्किल्स रिपोर्ट- 2023 के अनुसार, केवल 50.3% भारतीय स्नातकों को ही रोज़गार योग्य माना जाता है
- उच्च शिक्षा और उद्योग की मांग के बीच बेमेल 'शिक्षित बेरोज़गारी' को जन्म देता है।
- श्रम अनौपचारिकता और अल्प-रोज़गार:
- 85% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक है, जिसके पास नौकरी की सुरक्षा या सामाजिक लाभ नहीं है।
- गिग इकॉनमी, यद्यपि लचीलेपन का वादा करती है, परंतु इसमें सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।
- कृषि क्षेत्र में 45% श्रमिक कार्यरत हैं, लेकिन सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान केवल 15-18% है, प्रछन्न बेरोज़गारी का संकेत है।
- क्षेत्रीय असमानताएँ:
- दक्षिणी राज्यों (जैसे: केरल, तमिलनाडु) में पहले से ही वृद्धावस्था शुरू हो चुकी है, जबकि उत्तरी राज्य (जैसे: बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड) अभी भी प्रारंभिक जनांकिकीय अवस्था में हैं। हालाँकि, उत्तरार्द्ध में पर्याप्त बुनियादी अवसंरचना, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और औद्योगिक आधार का अभाव है।
- NFHS-5 (2019-21) के अनुसार, उत्तरी राज्यों में बच्चों में बौनापन और स्कूल छोड़ने की दर अधिक है, जिससे उनकी जनांकिकीय उत्पादकता सीमित हो रही है।
आगे की राह
- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल में निवेश करना: युवाओं को उद्योग के लिये तैयार करने के लिये नौकरी-प्रासंगिक प्रशिक्षण, डिजिटल साक्षरता और सॉफ्ट स्किल पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- कौशल भारत मिशन, PMKVY और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का उद्देश्य रोज़गार क्षमता में सुधार करना है।
- कार्यबल को औपचारिक बनाना: श्रम कानूनों को मज़बूत किया जाना चाहिये, सामाजिक सुरक्षा संहिता लागू की जानी चाहिये और MSME में कारोबार को आसान बनाया जाना चाहिये।
- मुद्रा ऋण, स्टार्ट-अप इंडिया और उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ उद्यमशीलता एवं रोज़गार सृजन को बढ़ावा देती हैं।
- लैंगिक समावेशन को बढ़ावा देना: महिला भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये सुरक्षित, लचीले और न्यायसंगत कार्यस्थल सुनिश्चित किये जाने चाहिये।
- क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना: समान जनांकिकीय लाभ सुनिश्चित करने के लिये पिछड़े राज्यों में सार्वजनिक और निजी निवेश को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत का जनांकिकीय लाभांश समयबद्ध है और इसे समावेशी नीतियों, सामाजिक निवेशों एवं श्रम सुधारों द्वारा समर्थित किया जाना चाहिये। अन्यथा, लाभांश एक ऐसी अवधि में सिमट जाएगा जो बिना किसी इनाम के गुजर जाएगी। SDG4 (सर्वोत्तम शिक्षा), SDG8 (उत्कृष्ट श्रम और आर्थिक विकास) और SDG10 (असमानताएँ कम करना) को प्राप्त करना इस अवसर को खोने से पहले उसका लाभ उठाने के लिये अनिवार्य है।