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दिवस- 7:  समकालीन भारत में महिलाओं के अधिकारों एवं सुरक्षा के संदर्भ में प्रौद्योगिकी की भूमिका को ‘सशक्तीकरण’ तथा जोखिम दोनों दृष्टियों से स्पष्ट कीजिये। (150 शब्द)

23 Jun 2025 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भारतीय समाज

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण: 

  • आधुनिक समाज में प्रौद्योगिकी की भूमिका को संक्षेप में समझाइये।
  • महिलाओं को सशक्त बनाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका का उल्लेख कीजिये।
  • महिलाओं को खतरे में डालने में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
  • एक विद्वत्तापूर्ण अवलोकन के साथ निष्कर्ष दीजिये।

परिचय:

21वीं सदी में प्रौद्योगिकी एक परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में उभरी है, जो पहुँच, समानता और समावेशन को पुनर्परिभाषित करती है। भारत में, यह महिलाओं के जीवन में दोहरी भूमिका निभाती है— अधिकारों और स्वतंत्रता के एक शक्तिशाली प्रवर्तक के रूप में कार्य करती है तथा डिजिटल भेद्यता व नुकसान का स्रोत भी है। यह विरोधाभास लैंगिक रूप से संवेदनशील तरीके से तकनीकी उपकरणों को विनियमित करने, वितरित करने और तैनात करने की व्यापक सामाजिक चुनौतियों को दर्शाता है।

मुख्य भाग: 

सशक्तीकरण के साधन के रूप में प्रौद्योगिकी

  • शिक्षा और सूचना तक पहुँच:
    • SWAYAM, ई-पाठशाला और DIKSHA जैसी सरकारी पहलें ऑनलाइन शिक्षण मंच प्रदान करती हैं, जो विशेष रूप से दूरदराज़ एवं वंचित क्षेत्रों में उपयोगी हैं।
    • सोशल मीडिया व यूट्यूब अनौपचारिक कौशल अधिगम एवं कानूनी अधिकारों, मासिक धर्म स्वास्थ्य और वित्तीय साक्षरता पर जागरूकता के साधन बन गए हैं।
  • आर्थिक सशक्तीकरण:
    • मीशो, अमेज़न सहेली और उद्यम सखी जैसे प्लेटफॉर्म महिला उद्यमियों को व्यापक बाज़ारों तक पहुँचने में सहायता प्रदान करते हैं।
    • गिग और दूरस्थ कार्य के अवसर (जैसे: डिजिटल फ्रीलांसिंग, ऑनलाइन ट्यूशन) घर से लचीले ढंग से आय सृजन को सक्षम करते हैं, विशेष रूप से टियर-2 और टियर-3 शहरों में।
  • स्वास्थ्य देखभाल और कल्याण:
    • ई-संजीवनी, mMitra और आरोग्य सेतु जैसे ऐप मातृ स्वास्थ्य, प्रजनन सेवाओं एवं आपातकालीन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच प्रदान करते हैं।
    • टेलीमेडिसिन ग्रामीण-शहरी अंतर को पाटता है तथा स्त्री रोग और मानसिक स्वास्थ्य परामर्श तक पहुँच में सुधार करता है।
  • सुरक्षा और कानूनी सहायता:
    • रक्षा, हिम्मत और 112 इंडिया जैसे सुरक्षा ऐप आपात स्थिति में उपयोगकर्त्ताओं को पुलिस से जोड़ते हैं।
    • साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल और हेल्पलाइन (1930, 1090) महिलाओं को पुलिस स्टेशन गए बिना शिकायत दर्ज करने में सहायता करते हैं।
  • सामाजिक लामबंदी और आवाज़:
    • #MeTooIndia और #DigitalNari जैसे आंदोलनों ने महिलाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में उत्पीड़न, भेदभाव एवं प्रणालीगत पूर्वाग्रह के मुद्दों को उठाने के लिये सशक्त बनाया है।

खतरे के स्रोत के रूप में प्रौद्योगिकी

  • साइबर अपराध और ऑनलाइन उत्पीड़न:
    • मॉर्फिंग, रिवेंज पोर्न, साइबरस्टॉकिंग और ट्रोलिंग के मामलों में काफी वृद्धि हुई है।
    • NCRB की 2022 रिपोर्ट के अनुसार, पूरे भारत में 65,893 साइबर अपराध के मामले दर्ज किये गए, जिनमें 3,434 मामले विशेष रूप से यौन शोषण के रूप में दर्ज किये गए।
  •  AI-चालित खतरे:
    • डीपफेक तकनीक का दुरुपयोग AI का उपयोग करके गैर-सहमति वाले स्पष्ट कंटेंट तैयार करने के लिये किया गया है, जिसमें सार्वजनिक हस्तियों और आम उपयोगकर्त्ताओं को समान रूप से निशाना बनाया गया है।
    • इंस्टाग्राम और रेडिट जैसे सोशल प्लेटफॉर्म पर वायरल होने से प्रतिष्ठा तथा मनोवैज्ञानिक तौर पर गंभीर नुकसान हो सकता है।
  • डिजिटल जेंडर डिवाइड:
    • NSSO (वर्ष 2021) से पता चलता है कि 58% ग्रामीण पुरुषों की तुलना में केवल 33% ग्रामीण महिलाओं के पास नियमित इंटरनेट की सुविधा है।
    • यह असमानता जन धन योजना, ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म और ऑनलाइन शिकायत निवारण जैसी योजनाओं तक पहुँच को सीमित करती है।
  • तकनीक-समर्थित पितृसत्ता और निगरानी व्यवस्था
    • कुछ परिस्थितियों में तकनीक का प्रयोग पुरुष संरक्षकों द्वारा महिलाओं की गतिविधियों पर निगरानी रखने, उन्हें नियंत्रित करने या उनके आवागमन और ऑनलाइन संवादों को सीमित करने के लिये किया जाता है।
    • सोशल मीडिया, विशेषकर रूढ़िवादी ग्रामीण परिवेश में, 'नैतिक पहरेदारी' का उपकरण बन जाता है, जहाँ महिलाओं के आचरण को नियंत्रित करने के लिये सार्वजनिक आलोचना एवं सामाजिक दबाव का सहारा लिया जाता है।

निष्कर्ष: 

जैसा कि प्रौद्योगिकी के इतिहासकार मेल्विन क्रैन्ज़बर्ग ने कहा था—"प्रौद्योगिकी न तो अच्छी है, न बुरी; बल्कि यह तटस्थ भी नहीं है।"
प्रौद्योगिकी का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि उसमें कौन-से मूल्य अंतर्निहित हैं और उसका प्रयोग किस उद्देश्य से किया जा रहा है। इसलिये यह आवश्यक है कि डिजिटल क्रांति का स्वरूप समावेशी, सुरक्षित और नैतिक उत्तरदायित्व से परिपूर्ण हो, ताकि वह विशेष रूप से महिलाओं के लिये भी सशक्तीकरण का साधन बन सके।