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दिवस 31: भारत जल संपन्न देशों में से एक होने के बावजूद जल सुरक्षा के लिये संघर्ष करता है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)

10 Aug 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | भूगोल

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने क दृष्टिकोण:

  • आँकड़ों के साथ भारत में जल संसाधनों की प्रचुरता का परिचय दीजिये।
  • भारत में जल की कमी के कारणों और इसे दूर करने के लिये उठाए जाने वाले आवश्यक कदमों की चर्चा कीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

उत्तर:

भारत एक मानसूनी जलवायु वाला देश है, जिसकी सतह में भूजल प्रचुर मात्रा में विद्धमान है तथा विश्व की आबादी का 18% और जल संसाधनों का लगभग 4% हिस्सा भारत में है।

भारत के जल संसाधनों में वर्षा, सतह, भूजल भंडारण और जल विद्युत क्षमता शामिल हैं। भारत में प्रति वर्ष औसतन 118 सेंटीमीटर या लगभग 4,000 क्यूबिक किलोमीटर वर्षा होती है जो प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 1,720 क्यूबिक मीटर ताज़े पानी की आपूर्ति करता है।

जल की यह मात्रा संयुक्त राष्ट्र के दिशा-निर्देश से कहीं अधिक है। भारत में अन्य जल संसाधनों की परवाह किये बिना अकेले वर्षा का जल ही भारत की जल आपूर्ति की मांग को पूरा कर सकता है।

यद्यपि प्रकृति ने भारत को अपनी ज़रूरत के लिये पर्याप्त जल संसाधन उपहार में दिये हैं, लेकिन यह कृषि, उद्योग और घरेलू मांग से लेकर अपने लोगों की दैनिक जल की मांग को पूरा करने के लिये संघर्ष करता है।

भारत में जल की कमी के कारण:

  • भारत एक उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाला देश है यहाँ बारिश इतनी तेज़ होती है की कुल वर्षा का 2/3 वर्षा केवल 3 महीनों में मानसूनी वर्षा से होता है। और कहा जाता है कि भारत में बारिश नहीं होती है।
  • कम समय में गहन वर्षा से अपवाह में तेजी आती है जिसके साथ ही बहुत कम रिसाव होता है। यह बारिश का बहुत कम उपयोग करता है।
  • मानसून के देर से आने या जल्दी वापसी जैसी अनिश्चित प्रकृति के कारण कृषि में सूखा पड़ जाता है और कृषि में पानी की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये भूजल की निकासी की जाती है।
  • मानसूनी वर्षा एक समान नहीं होती है क्योंकि यह क्षेत्र की स्थलाकृति से प्रभावित होती है। उदहारण के लिये समानांतर पहाड़ियों के कारण हिमालय की तलहटी, उत्तर-पूर्वी भारत और पश्चिमी घाट में प्रचुर मात्रा में मानसूनी वर्षा होती है।
  • भारत का भूमिगत जल भी देश के एक बड़े हिस्से में मानसून पर निर्भर है और कम बारिश की स्थिति (कमज़ोर मानसून) में इसमें बहुत कम जल होता है। उदहारण के लिये गोदावरी और नर्मदा नदियों में कमज़ोर मानसून के दौरान बहुत कम जल रहता है।
    • यह किसी भी भंडारण बुनियादी ढाँचे के महत्त्व को कम प्रयोग करने योग्य बनाता है तथा मानसून के मौसम में अतिप्रवाह का ज़ोखिम भी पैदा करता है।
  • भूजल का पुनर्भरण और उसका उपयोग भी कई तरह से भू-स्थलाकृति से प्रभावित होता है।
    • दक्षिण भारत और उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र की पहाड़ी, चट्टानी और पठारी प्रकृति एक तरफ भूजल पुनर्भरण को रोकती है, तो दूसरी ओर घाटी क्षेत्र में भूजल की निकासी और त्वरित अपवाह जल चक्र की समस्या को बढ़ा देता है।
  • भूजल का 80% से अधिक जल कृषि में खपत होता है और घरेलू ज़रूरत कुल निकाले गए भूजल के केवल 5% तक ही सीमित है जो बहुत बड़े पैमाने पर भूजल के कुप्रबंधन को दर्शाता है।
  • ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में जलाशयों के पुनर्भरण और संरक्षण के बिना जल के सभी संसाधनों का एकतरफा गहन उपयोग।
  • शहरी क्षेत्रों में कंक्रीटीकरण और शहरी एवं ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में जल निकायों का अतिक्रमण न केवल सतही भंडारण और भूजल पुनर्भरण को रोकता है बल्कि बाढ़ जैसी आपदाओं का भी कारण बनता है।
    • उदाहरण के लिये गुवाहाटी के दीपोर बील का उपयोग नगर निगम ठोस कचरे को डंप करने के लिये करता है।
  • जल संचयन और पुन: उपयोग तकनीक अभी भी भारत में विलासपूर्ण है, ग्रामीण और छोटे शहरों में लोगों को इन उपकरणों के उपयोग के लिये सार्वजनिक अधिकारियों और आम जनता दोनों के बीच कम प्रेरणा के कारण खरीद, उपयोग और मरम्मत के लिये कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

यह सच है कि भारत के पास अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त जल है। लेकिन इसकी निरंतरता के लिये जल चक्र के प्रबंधन पर कार्य करने की ज़रुरत है ।

जल प्रबंधन हेतु उठाए जाने वाले आवश्यक कदम:

  • कृषि क्षेत्र में पानी की मांग में कटौती के लिये-
    • कृषि-जलवायु क्षेत्र की प्रकृति के अनुसार फसलों को प्राथमिकता देना
    • ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकल इरिगेशन आदि जैसी जल दक्ष प्रौद्योगिकियों को अपनाना।
    • वाष्पोत्सर्जन को कम करने के लिये फसल पर शेड का प्रावधान क्योंकि पौधे अवशोषित पानी का केवल 2% उपयोग करते हैं और शेष वाष्पोत्सर्जन के रूप में ताप को कम करने के लिये करते है।
    • लंबी अवधि में, हमें आनुवंशिक संशोधन और जैवजनन द्वारा अधिक जल कुशल फसलों को विकसित करने की आवश्यकता है साथ ही एक्वाकल्चर, एरोपोनिक्स आदि जैसी तकनीको को अपनाने की आवश्यकता है।
  • औद्योगिक क्षेत्र में, हमें एक ही जल के अधिकतम उपयोग के लिये शून्य तरल निर्वहन या न्यूनतम तरल निर्वहन जैसी तकनीकों को अपनाने और उद्योग के जल बजट को कम करने की आवश्यकता है।
  • पानी के अधिकतम उपयोग के लिए घरेलू क्षेत्र को पानी के चक्रीय उपयोग को अपनाना चाहिए।

पानी की उपलब्धता में वृद्धि के लिये निम्नलिखित कदम उठाए की जरूरत:

  • ग्रामीण क्षेत्रों में वर्षा जल भंडारण और पानी की स्थानीय आवश्यकता के लिये मनरेगा के तहत अमृत सरोवर और तालाब बनाने जैसी छोटी जल संरक्षण एवं भंडारण सुविधाओं को और अधिक गहनता से लागू करने की आवश्यकता है।
  • प्रत्येक नवनिर्मित घर में घरेलू जल संचयन प्रणाली स्थापित करने के लिये अनिवार्य प्रावधान करने की आवश्यकता है।
  • पीने योग्य जल की बिक्री तथा सड़क किनारे पेयजल की आवश्यकता को पूरा करने के लिये वाटर एटीएम की स्थापना करना जो प्लास्टिक की बोतलों पर भी अंकुश लगाएगा।
  • नदी को स्थानीय क्षेत्रों में छोटी नहरों से जोड़कर जलसंभर क्षेत्रों में बाढ़ और सूखे की मांग को कम किया जा सकता है। जैसे- केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना।
  • भूजल पुनर्भरण के लिये ग्रामीण और शहरी जल निकायों में भूजल ‘रिचार्जिंग सिस्टम’ स्थापित करने और इन जल निकायों के कायाकल्प और अतिक्रमण की रोकथाम की आवश्यकता समान रूप से महत्वपूर्ण है।
  • मानसून के पूर्वानुमान के लिये प्रौद्योगिकी को उन्नत करने की आवश्यकता है।