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दिवस 36: नैतिकता इस बात का सिद्धांत नहीं है कि हम खुद को कैसे खुश कर सकते हैं बल्कि इस बात का सिद्धांत है कि हम कैसे खुद को खुशियों के लायक बना सकते हैंं। (150 शब्द)

15 Aug 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण :

  • प्रसन्नता और नैतिकता के बारे में संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  • प्रसन्नता के लिये पात्र होने के बारे में बताइये।
  • निष्पक्ष निष्कर्ष दीजिये।

नैतिकता मानदंडों का एक समूह है जो व्यक्तियों को अपने समुदायों में सद्भावपूर्वक रहने की अनुमति देता है। यह वही मानक हैं जिन्हें सभ्यताएँ ""उचित" और "स्वीकार्य" मानती हैं। प्रसन्नता मन की एक अवस्था है, एक मौलिक विशेषता नहीं है। यह क्षणिक है व स्थिति के अनुसार बदलती है, जो लंबे समय तक चलने वाली, स्थायी विशेषता या व्यक्तित्व विशेषता के विपरीत है।

जो लोग नैतिक रूप से व्यवहार करते हैं वे प्रसन्न रहने के पात्र हैं, खासकर जब ऐसा करने से उन्हें प्रसन्नता मिलती है। प्रसन्नता संतुष्टि या आनंद की भावनाओं से जुड़ी है, जिसका अर्थ है कि इसे उत्साह, आनंद या अन्य मजबूत भावनाओं के साथ गलत नहीं माना जाना चाहिये। प्रसन्नता को या तो महसूस किया जा सकता है या दिखाया जा सकता है, जिसका अर्थ है कि यह प्रायः एक आंतरिक या बाहरी घटना नहीं है, लेकिन दोनों हो सकती है। एक मूल्य वाक्यांश के रूप में, 'प्रसन्नता' मूल रूप से कल्याण या संपन्नता के समान है। प्रसन्नता जीवन में संपूर्णता, आनंद या एक अनुकूल भावनात्मक स्थिति लाती है। जब कोई सही काम करता है, तो उसे कठिनाइयों और दुख का सामना करना पड़ता है, लेकिन उसे अंत में उसका लाभ मिलता है।

एक व्यक्ति को क्या करना चाहिये और एक व्यक्ति क्या हासिल करना चाहता है, ये असंगत अवधारणाएँ हैं। जब कोई व्यक्ति वह करता है जो वह चाहता है, तो वह एक ऐसे रास्ते पर चल पड़ता हैैं जो उसे तुरंत आनंद प्रदान करता है लेकिन लंबे समय में उनकी मदद नहीं करता है। नैतिकता का उद्देश्य हमें खुश करना नहीं है, बल्कि सही कार्य करने के लिये निर्देशित करना है। सही काम करने से हम अपनी इच्छित मंजिल तक पहुंचेंगे। यदि हमारे कार्यों के परिणामों पर हमारा पूर्ण नियंत्रण नहीं है, तो हम किसी भी प्रकार के दंड या पुरुष्कार के लिये स्वयं को ज़िम्मेदार नहीं मान सकते है। निर्णय लेते समय, यदि कोई व्यक्ति संघर्ष के बिना अपने व्यवहार का सामान्यीकरण नहीं कर सकता है, तो निर्णय से बचना चाहिये। भावनाएँ स्थिर नहीं होती हैं, इसलिये यह नैतिक निर्णय के लिये एक विश्वसनीय स्रोत नहीं है क्योंकि वे हमेशा बदलेती रहती हैं। लोग इस बात पर बहस करेंगे कि क्या सम्मान एक भावना है, लेकिन यह डर या चाहत के समान नहीं है। प्रश्न में नैतिकता प्रसन्नता के योग्य होने की धारणा की ओर इशारा करती है, प्रसन्नता के योग्य होने के लिये, एक व्यक्ति को अपने हित में आकार देने और उत्कृष्ट बनाने के लिये कड़ी मेहनत और लगातार काम करने की आवश्यकता होगी।

प्रसन्नता मूल्य अभिव्यक्ति के रूप में शुभ या सफलता का लगभग पर्यायवाची है। जीवन की संतुष्टि, सुख या एक सकारात्मक भावनात्मक स्थिति सभी प्रसन्नता से लाई जाती हैं। नैतिक रूप से ईमानदार लोगों को खुश रहना चाहिये, भले ही इसके लिये उनकी प्रसन्नता की कीमत चुकानी पड़े। हम नैतिक रूप से कार्य करके वहाँ पहुंचेंगे जहाँ हम जाना चाहते हैं। अगर हम हमारे कार्यों द्वारा पड़ने वाले प्रभाव को पूरी तरह से नियंत्रित नहीं कर सकते तो हमें किसी पर उंगली नहीं उठानी चाहिये या प्रशंसा नहीं करनी चाहिये।