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दिवस 46: विभिन्न नैतिक विचारकों द्वारा दिये गए स्पष्टीकरणों का विशेष संदर्भ देते हुए अंतरात्मा शब्द की व्याख्या कीजिये। (150 शब्द)

25 Aug 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 4 | सैद्धांतिक प्रश्न

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

  • अंतरात्मा शब्द को संक्षेप में परिभाषित करते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
  • नैतिक विचारकों द्वारा अंतरात्मा की विभिन्न अवधारणाओं पर चर्चा कीजिये।
  • उपयुक्त निष्कर्ष लिखिये।

अंतरात्मा सही और गलत की पहचान करने की आंतरिक या अंतःप्रज्ञात्मक शक्ति है। मनोविज्ञान के अनुसार, जब किसी व्यक्ति का कोई कार्य नैतिक मूल्यों के विपरीत परिणाम देता है तो अंतरात्मा उस व्यक्ति में पश्चाताप की भावना को जन्म देती है। किंतु जब हमारे कार्य, विचार और अभिव्यक्ति नैतिक मूल्यों के अनुरूप परिणाम देते हैं तो इससे खुशी की भावना उत्पन्न होती हैं। ऐतिहासिक रूप से लगभग हर संस्कृति ने अंतरात्मा के अस्तित्व को ईश्वर की आवाज़ या आंतरिक प्रकाश के रूप में मान्यता दी है।

अंतरात्मा का सबसे सरल उदाहरण व्यक्तिगत नैतिकता है जो आपको परीक्षा में नकल करने से रोकती है।

नैतिक विचारकों द्वारा अंतरात्मा की विभिन्न अवधारणाएँ

  • अंत:प्रज्ञावाद: वह दृष्टिकोण जो अंतरात्मा को एक ऐसा सहज ज्ञान युक्त संकाय मानता है जो सही और गलत की धारणा को निर्धारित करता है, अंत:प्रज्ञावाद कहलाता है।
    • डार्विन ने परिकल्पना की कि अंतरात्मा मानव की सहज प्रवृत्तियों के बीच संघर्षों को हल करने के लिये विकसित हुई है; उदाहरण के लिये आत्म-संरक्षण की प्रवृत्ति और अन्य मनुष्यों की रक्षा एवं सहयोग करने जैसी सहज प्रवृत्ति के बीच संघर्ष की स्थिति में अंतरात्मा सही मार्गदर्शन करती है।
  • अनुभववाद: वह दृष्टिकोण जो अंतरात्मा को अतीत के अनुभव से भविष्य के आचरण को दिशा देने के लिये संचयी और व्यक्तिपरक निष्कर्ष मानता है, अनुभववाद कहलाता है।
    • स्पिनोज़ा ने लिखा है कि सामाजिक रूप से वातानुकूलित भावनाओं और धारणाओं के अनुरूप व्यवहार करने के लिये उपयुक्त परिस्थितियों का अभ्यास तथा विकास करना आवश्यक होता है।
  • सामाजिक प्रेरणा: व्यवहारात्मक विज्ञान अंतरात्मा को विशेष सामाजिक प्रोत्साहन के लिये सीखी गई प्रतिक्रियाओं के एक समूह के रूप में देख सकता है।
    • इमैनुएल कांट ने आलोचनात्मक तर्क को अंतरात्मा का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना। यह मानते हुए कि नैतिक सत्य का मूल्यांकन उनकी 'स्पष्ट अनिवार्यता' के आलोक में निष्पक्ष रूप से किया जा सकता है।

अंतरात्मा के एक अमूर्त अवधारणा होने के बावजूद इसे व्यक्तिपरक नैतिकता कहा जा सकता है। यह उन क्षेत्रों में नैतिक कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिये सार्वजनिक पदाधिकारियों के चरित्र का एक आवश्यक गुण है जहाँ किसी विशेष तरीके से कार्य करने के लिये उन पर कोई कानूनी दायित्व नहीं होता है।