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दिवस 51: सरकारी नीतियों के प्रभावी कामकाज और कार्यान्वयन के लिये नियामकों की संसदीय निगरानी आवश्यक है। विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)

30 Aug 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 2 | राजव्यवस्था

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • संसदीय निगरानी की क्रियाविधि को बताइये।
  • इन पर नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु निगरानी की आवश्यकता को बताइये।
  • विधायी निगरानी को बेहतर बनाने के लिये विभिन्न समितियों की सिफारिशों को बनाते हुए निष्कर्ष दीजिये।

नियामक, सरकारी नीतियों के बाहर में मौजूद नहीं होते बल्कि उन्हें अपनी भूमिकाओं को निभाने के लिये पर्याप्त स्वायत्ता दी गई है, वे अभी भी राज्य की कार्यकारी शाखा की विस्तृत परिभाषा में आते हैं तथा विधायिका के प्रति उत्तरदायी हैं। नियामकों की निरंतर स्वायत्ता सुनिश्चित करने तथा सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन में प्रभावी नियंत्रण के क्रम में नियामकों पर विधायी निगरानी होना आवश्यक है।

भारत में संसदीय निगरानी हेतु मौजूद क्रियाविधि

विनियामकों पर संसदीय समीक्षा प्रमुख माध्यमों से हो सकती है जैसे- प्रश्नकाल, संसदीय चर्चाएँ, संसदीय समितियाँ, विभिन्न विनियामकों द्वारा संसद में वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत करना आदि।

  • प्रश्नकाल: प्रश्नकाल के दौरान सांसद प्रमुख मंत्रालयों के विभागों से संबंधित विनियामकों के बारे में प्रश्न पूछ सकते हैं।
  • चर्चाएँ: संसद की प्रक्रिया संबंधी विभिन्न नियमों (जैसे लोकसभा नियम 194 के तहत आधे घंटे की चर्चा) के माध्यम से विनियामकों की भूमिका पर प्रश्न किये जा सकते हैं।
  • विभागों संबंधी स्थायी समितियाँ: भारत में कुल 24 प्रमुख विभागीय स्थायी समितियाँ विद्यमान है, जिनमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं। ये समितियाँ विनियामों की कार्य प्रगति संबंधी समीक्षा कर सकती है।
  • वित्तीय समितियाँ: संसद में दो प्रमुख वित्तीय समितियाँ हैं जो नियामकों की निगरानी करती हैं जिनमें (i) लोक लेखा समिति (ii) प्राक्कथन समिति।
    • ये समितियाँ सरकारी विभागों की बजटीय निगरानी करती हैं।
  • तदर्थ समितियाँ: संसद विनियामकों की कार्यप्रणाली की जाँच हेतु कुछ तदर्थ समितियों की स्थापना करती है जैसे- 2G मामले में गठित संयुक्त तदर्थ समिति।

विधायी निगरानी हेतु विभिन्न समितियों की सिफारिशें

योजना आयोग एवं द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस संबंध में कई सिफारिशें दी हैं-

  • विनियामकों की विधायी निगरानी क्षेत्रीय समितियों द्वारा की जानी चाहिये। सभी विनियामकों के कार्यकरण समितियों की सहायता नहीं लेनी चाहिये।
  • विनियामकों को स्थायी समितियों के समक्ष अपने कार्यों की व्याख्या करने और विधायी प्रश्नों के अधीन रहने के लिये उपस्थित रहना चाहिये।
  • विनियामकों को अपने लक्ष्यों तथा कार्यों संबंधी वार्षिक रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करनी चाहिये।
  • वार्षिक रिपोर्ट एवं समिति द्वारा जाँच रिपोर्ट को जनता के लिये सार्वजनिक करना चाहिये।