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दिवस 44: भारत में प्रेस का विकास एक रोलरकोस्टर सवारी थी। विश्लेषण कीजिये कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में प्रेस राष्ट्रीय एकता और आवाज का प्रतीक कैसे बन गया? (250 शब्द)

23 Aug 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण

  • भारत में प्रेस के उद्भव का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
  • राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता के संघर्ष में प्रेस के योगदान का उल्लेख कीजिये।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रेस पर लगाए गए प्रतिबंधों को लिखिये।
  • एक उपयुक्त निष्कर्ष दीजिये।

भारत में पहला समाचार पत्र वर्ष 1780 में जेम्स आगस्टस हिक्की द्वारा प्रकाशित किया गया। इस समाचार पत्र का नाम बंगाल गज़ट या कलकत्ता जनरल एडवरटाइजर था। इसके बाद बॉम्बे हैराल्ड व द कलकत्ता क्रॉनिकल जैसे अन्य समाचार पत्रों का प्रकाशन शुरू हुआ जिसके प्रति ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी नीति को अपनाया।

  • देशी भाषा के समाचार पत्र:
    • नाना साहेब पेशवा द्वारा पयाम-ए-आज़ादी” या स्वतंत्रता का संदेश (1857)
    • जी. सुब्रहमण्यम अबयर के संरक्षण में द हिन्दू व स्वदेश मित्र
    • सुरेंद्रनाथ बनर्जी द्वारा द बंगाली
    • अमृत बाज़ार पत्रिका (शिशिर कुमार घोष)
    • वॉयस ऑफ इंडिया (दादा भाई नौरोजी)
    • केसरी (मराठी) व मराठा (अंग्रेज़ी), (बाल गंगाधर तिलक)
    • सुधारक (गोपाल कृष्ण गोखले)
    • हिन्दुस्तानी व एडवोकेट (जी.पी. वर्मा)

भारतीय प्रेस का योगदान:

  • राष्ट्रीय विचारधारा का प्रसार: लगभग 1870 से 1918 तक के राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रारंभिक चरण में राजनीतिक प्रचार और शिक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया, न कि जन आंदोलन या खुली बैठकों के माध्यम से जनता को सक्रिय रूप से संगठित करने पर। भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस अपने शुरुआती दिनों में अपने प्रस्तावों और कार्यवाही के प्रचार के लिये पूरी तरह से प्रेस पर निर्भर थी।
  • जनसमूह से संबंधित: समाचार पत्र का प्रभाव शहरों और कस्बों तक सीमित नहीं था ये समाचार पत्र सुदूर गाँवों में पहुँचे, जहाँ प्रत्येक समाचार और संपादकीय को 'स्थानीय पुस्तकालयों' में पढ़ा और चर्चा की जाती थी।
    • प्रेस ने अपनी व्यापक पहुँच के माध्यम से देश की जनता को जोड़ा। बाल गंगाधर तिलक, अपने समाचार पत्रों के माध्यम से निम्न मध्यम वर्ग, किसानों, कारीगरों और श्रमिकों को कॉन्ग्रेस की तरफ लाने की वकालत करने वाले पहले लोगों में से थे।
  • जागरूकता: इन समाचार पत्रों में सरकारी अधिनियमों और नीतियों की आलोचनात्मक जाँच की गई। उन्होंने सरकार के विरोध की संस्था के रूप में काम किया। प्रेस ने लोगों को औपनिवेशिक शोषण के प्रति जागरूक किया।

सरकार द्वारा प्रतिबंध

  • ब्रिटिश सरकार ने प्रेस के दमन के लिये विभिन्न कानूनों का प्रयोग किया जिसमें भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 124A के द्वारा सरकार को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष व भड़काने वाली गतिविधियाँ संचालित करने पर 3 वर्ष का कारावास या देश से निर्वासित करने का अधिकार दिया।
  • देशी भाषा के समाचार-पत्र अधिनियम, 1878 (The Vernacular Press Act, 1878) इस अधिनियम को पारित करने का उद्देश्य समाचार पत्रों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करना तथा राजद्रोही लेखों को रोकना था। इसके द्वारा अंग्रेज़ों व देशी भाषा के समाचार पत्रों के मध्य भेदभाव किया गया। इसमें अपील करने का कोई अधिकार नहीं था।
    • VPA के तहत सोम प्रकाश, भरत मिहिर, ढाका प्रकाश और समाचार के खिलाफ कार्यवाही की गई। अमृता बाज़ार पत्रिका VPA से बचने के लिये रातोंरात अंग्रेजी समाचार पत्र बन गई। 1883 में सुरेंद्रनाथ बनर्जी जेल जाने वाले पहले भारतीय पत्रकार बने।

प्रेस की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी क्योंकि इसने भारत की असंतोषजनक आवाजों के लिये एक प्रजनन स्थल के रूप में काम किया, जो औपनिवेशिक अधिकारियों के प्रचलित आख्यान को झूठा मानता था और अपना विरोध दर्ज कराना चाहता था।

तिलक और गांधी जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने अपने समाचार पत्रों और संपादकीय के माध्यम से भारत के सुदूर हिस्सों के पाठकों तक पहुँचने का लाभ उठाया। इस प्रकार, एक राष्ट्रवादी भावना पैदा करना और एक "राष्ट्र" की स्वतंत्रता हेतु लड़ने के लिये जनता को लामबंद करना एक ऐसी कल्पना थी जिसने पहले से ही शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में जनता के सोच को समान रूप से पकड़ लिया था।