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दिवस 55: उपनिवेशवाद दूसरे राष्ट्र पर नियंत्रण स्थापित करना चाहता है, जबकि साम्राज्यवाद औपचारिक या अनौपचारिक रूप से ऐसा करना चाहता है। उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के पीछे अंतर्निहित तर्कों की तुलना करके उनकी व्याख्या कीजिये। (250 शब्द)

03 Sep 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 1 | इतिहास

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

दृष्टिकोण

  • उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद को संक्षेप में समझाते हुए परिचय दीजिये।
  • उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के बीच अंतर बताते हुए इनके उदय के पीछे अंतर्निहित कारकों पर चर्चा कीजिये।
  • उपनिवेशों और स्वदेशी लोगों पर इसके प्रभावों को बताते हुए निष्कर्ष दीजिये ।

साम्राज्यवाद को किसी देश की ऐसी नीति के रूप में संदर्भित किया जाता है जिसमें कोई देश सैन्य बल के साथ-साथ शक्ति के अन्य साधनों के माध्यम से अन्य देशों या क्षेत्रों पर अपना प्रभाव स्थापित करता है। उपनिवेशवाद को ऐसी व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें कोई देश अपने राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिये विश्व में कहीं (अन्य देशों या क्षेत्रों में) अपने उपनिवेश या बस्तियों को स्थापित करता है।

उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के बीच अंतर:

  • यद्यपि उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद किसी दूसरी सत्ता के दमन को रेखांकित करते हैं लेकिन उपनिवेशवाद से आशय किसी एक देश का दूसरे पर नियंत्रण से है वहीँ साम्राज्यवाद के तहत औपचारिक या अनौपचारिक रूप से किसी देश पर राजनीतिक या आर्थिक नियंत्रण स्थापित करना है। सरल शब्दों में उपनिवेशवाद को इस व्यवस्था के व्यवहारिक पहलु के रुप में देखा जा सकता है और साम्राज्यवाद को इस व्यवस्था के प्रेरक तत्त्व के रूप में संदर्भित किया जा सकता है।
  • उपनिवेशवाद के तहत कोई देश किसी अन्य क्षेत्र पर प्रभाव स्थापित कर शासन करता है। इसका अर्थ है कि शासन करने वाला देश अपने लाभ के लिये शासित देश के संसाधनों का दोहन करता है। साम्राज्यवाद से तात्पर्य साम्राज्य का निर्माण, पड़ोसी क्षेत्रों में अपना विस्तार और अपने प्रभुत्व का प्रसार करना है ।
  • उपनिवेशवाद से किसी क्षेत्र की सामाजिक संरचना, भौतिक संरचना और आर्थिक व्यवस्था में बदलाव आ सकता है। दीर्घकालिक स्तर पर यह सामान्य है कि शासक देश की विशेषताएँ शासित देश को विरासत में मिल जाती हैं।
  • उपनिवेशवाद को भारत, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, अल्जीरिया, न्यूज़ीलैंड और ब्राज़ील जैसे देशों में स्थापित यूरोपीय व्यवस्था के रुप में संदर्भित किया जाता है। वहीँ दूसरी ओर साम्राज्यवाद के तहत बिना किसी विशेष व्यवस्था के किसी देश द्वारा दूसरे पर शासन किया जाता है। प्यूर्टो रिको और फिलीपींस पर अमेरिकी प्रभुत्व को साम्राज्यवाद के उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है ।
  • उपनिवेशवाद के अंतर्गत नए क्षेत्र में लोगों की व्यापक स्तर पर आवाजाही और वहाँ पर इनके स्थायी रूप से रहने को देखा जा सकता है। स्थायी रुप से बसने के बावजूद यह लोग अपनी मातृभूमि के प्रति निष्ठा बनाए रखते हैं। साम्राज्यवाद के तहत विजित क्षेत्रों पर या तो संप्रभुता या नियंत्रण के अप्रत्यक्ष साधनों के माध्यम से सत्ता का उपयोग किया जाता है ।

अगर इन दोनों की उत्पत्ति की बात की जाए तो साम्राज्यवाद का इतिहास उपनिवेशवाद की तुलना में अधिक पुराना है। उपनिवेशवाद की उत्पत्ति को 15वीं शताब्दी से देखा जा सकता है वहीँ साम्राज्यवाद की उत्पत्ति रोमन से हुई है।

इनके उदय के तर्क:

  • आर्थिक कारण: 1870 तक यूरोपीय जैसे औद्योगिक राष्ट्रों के लिये यह आवश्यक हो गया कि वह उन उत्पादों को बेचने के लिये विश्व स्तर पर अपने बाज़ारों का विस्तार करें जिन्हें वह घरेलू स्तर पर नहीं बेच सकते थे। इस समय व्यवसायियों और बैंकरों के पास निवेश करने हेतु अतिरिक्त पूंजी थी और जोखिमों के बावजूद विदेशी निवेश में अधिक लाभ के अवसर थे। सस्ते श्रम की आवश्यकता और तेल, रबर के साथ स्टील व मैंगनीज जैसे कच्चे माल की स्थिर आपूर्ति के लिये दूर- दराज के क्षेत्रों पर नियंत्रण बनाए रखना आवश्यक था ।
  • सैन्य और राजनीतिक कारण: प्रमुख यूरोपीय देशों ने यह महसूस किया कि सैन्य शक्ति, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद के लिये उपनिवेश महत्त्वपूर्ण हैं। सैन्य प्रमुखों ने दावा किया कि एक महान शक्ति बनने हेतु मज़बूत नौसेना आवश्यक है। इस प्रकार से कोयले और आपूर्ति पर नियंत्रण के लिये नौसेना के जहाज़ों को दुनिया भर में सैन्य ठिकानों की ज़रूरत थी।
  • मानवीय और धार्मिक लक्ष्य: कई पश्चिमी लोगों का मानना था कि यूरोप को समुद्र पार के दूरदराज के देशों को सभ्य बनाना चाहिये। इस दृष्टिकोण के पीछे यह कारण था कि अश्वेत लोगों को चिकित्सा, कानून और ईसाई धर्म के रुप में लाभ प्राप्त हो सकेगा। यह संकल्पना "द व्हाइट मैन्स बर्डन" सिद्धांत से प्रेरित थी।
  • नए स्थानों की खोज : उन्होंने साहसिक कार्यों के रुप में नए स्थानों की खोज की। निरपवाद रूप से शाही खोजकर्त्ताओं ने साम्राज्यवादी प्रतिस्पर्द्धा से पहले आंशिक रूप से राष्ट्रीय और व्यक्तिगत गौरव के लिये और आंशिक रूप से विस्तार के साम्राज्यवादी लक्ष्य की पूर्ति हेतु किसी क्षेत्र की खोज और उसका नक्शा तैयार करने के साथ उस पर अपना दावा किया।

पश्चिमी साम्राज्यवादी विस्तार के प्रभाव काफी जटिल रहे हैं। इसके नकारात्मक आर्थिक प्रभाव के साथ स्वदेशी लोगों पर विदेशी संस्कृति को थोप दिया गया। हालाँकि पश्चिमी वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपनिवेशो को लाभान्वित किया जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार और शिक्षा तक पहुँच के साथ रेलवे, बंदरगाहों आदि का निर्माण भी हुआ।