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दिवस 18: 'रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance) आधुनिक चिकित्सा की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हैं।' चर्चा कीजिये। (250 शब्द)

28 Jul 2022 | सामान्य अध्ययन पेपर 3 | विज्ञान-प्रौद्योगिकी

दृष्टिकोण / व्याख्या / उत्तर

हल करने का दृष्टिकोण:

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध को परिभाषित कीजिये।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध से संबंधित कारणों और चिंताओं पर चर्चा कीजिये।
  • एएमआर को कम करने के लिये किये गए उपायों के बारे में लिखिये।
  • यह समझाते हुए निष्कर्ष लिखिये कि इस मुद्दे को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने AMR को वैश्विक स्वास्थ्य के लिये शीर्ष दस खतरों में से एक के रूप में पहचाना है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी, आदि) द्वारा रोगाणुरोधी दवाओं (जैसे- एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेल्मिंटिक्स) के खिलाफ प्राप्त प्रतिरोध है जिसे संक्रमण के इलाज के लिये उपयोग किया जाता है। नतीजतन, मानक उपचार अप्रभावी हो जाते हैं, संक्रमण बना रहता है और दूसरों में फैल सकता है। रोगाणुरोधी प्रतिरोध विकसित करने वाले सूक्ष्मजीवों को कभी-कभी "सुपरबग" कहा जाता है। ग्लोबल रिसर्च ऑन एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस (GRAM) की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में AMR (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस) के प्रत्यक्ष परिणाम के 1.27 मिलियन लोगों की मौत हुई। AMR के कारण होने वाली मौतें अब दुनिया भर में मौत का एक प्रमुख कारण है, जो एचआईवी/एड्स या मलेरिया से ज़्यादा हैं। AMR से अधिकांश मौतें श्वसन संक्रमण, जैसे निमोनिया और रक्त प्रवाह संक्रमण के कारण हुईं, जिससे सेप्सिस हो सकता है। MRSA (मेथिसिलिन-रेसिस्टेंट स्टैफिलोकोकस ऑरियस) विशेष रूप से घातक था, जबकि ई. कोलाई और कई अन्य बैक्टीरिया भी दवा प्रतिरोध के उच्च स्तर से जुड़े थे।

AMR के प्रसार का कारण:

  • दवा में रोगाणुरोधी दवाओं का दुरुपयोग और कृषि में अनुपयुक्त उपयोग।
  • फार्मास्यूटिकल निर्माण स्थलों के आसपास संदूषण जहाँ अनुपचारित अपशिष्ट पर्यावरण में बड़ी मात्रा में सक्रिय रोगाणुरोधी छोड़ते हैं।

भारत में AMR:

  • भारत में बड़ी आबादी के संयोजन के साथ बढ़ती हुई आय जो कि एंटीबायोटिक दवाओं की खरीद की सुविधा प्रदान करती है, संक्रामक रोगों का उच्च बोझ और एंटीबायोटिक दवाओं के लिये आसान ओवर-द-काउंटर (Over-the-Counter) पहुँच की सुविधा प्रदान करती है, प्रतिरोधी जीन की पीढ़ी को बढ़ावा देती है।
  • बहु-दवा प्रतिरोध निर्धारक, नई दिल्ली मेटालो-बीटा-लैक्टामेज़-1 (एनडीएम -1), इस क्षेत्र में विश्व स्तर पर तेज़ी से उभरा है।
    • अफ्रीका, यूरोप और एशिया के अन्य भाग भी दक्षिण एशिया से उत्पन्न होने वाले बहु-दवा प्रतिरोधी टाइफाइड से प्रभावित हुए हैं।
  • भारत में सूक्ष्मजीवों (जीवाणु और विषाणु सहित) के कारण सेप्सिस से प्रत्येक वर्ष 56,000 से अधिक नवजात बच्चों की मौत होती है जो पहली पंक्ति के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी हैं।
  • 10 अस्पतालों में ICMR (इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च) द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि जब कोविड-19 के मरीज़ अस्पतालों में दवा प्रतिरोधी संक्रमण की चपेट में आते हैं तो मृत्यु दर लगभग 50-60% होती है।

रोगाणुरोधी प्रतिरोध से संबंधित चिंताएँ

  • संक्रमण की रोकथाम और उपचार के लिये खतरा- अंग प्रत्यारोपण, कैंसर कीमोथेरेपी, मधुमेह प्रबंधन और प्रमुख सर्जरी (उदाहरण के लिये सिजेरियन सेक्शन या हिप रिप्लेसमेंट) जैसी चिकित्सा प्रक्रियाएँ बहुत जोखिम भरी हो जाती हैं।
  • अस्पतालों में लंबे समय तक रहने, अतिरिक्त परीक्षण और अधिक महँगी दवाओं के उपयोग से स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है।
  • यह सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के लाभों और सतत् विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की उपलब्धि को खतरे में डाल रहा है।
  • पिछले तीन दशकों में एंटीबायोटिक दवाओं के किसी भी नए वर्ग ने बाज़ार में प्रवेश नहीं किया है, मुख्य रूप से उनके विकास और उत्पादन के लिये अपर्याप्त प्रोत्साहन के कारण।
  • तत्काल कार्रवाई के अभाव में हम एंटीबायोटिक विनाश की ओर बढ़ रहे हैं, एंटीबायोटिक के बिना एक भविष्य, जिसमें सूक्ष्म जीव उपचार के विरुद्ध पूरी तरह से प्रतिरोधी हो जाते हैं तथा सामान्य संक्रमण और मामूली चोटें भी मानव की मृत्यु का कारण बन सकती हैं।

आगे की राह:

  • चूँकि रोगाणु नई रोगाणुरोधक प्रतिरोधी क्षमता विकसित करते रहेंगे, अत: नियमित आधार पर नए प्रतिरोधी उपभेदों (Strain) का पता लगाने और उनका मुकाबला करने के लिये निरंतर निवेश और वैश्विक समन्वय की आवश्यकता है।
  • एंटीबायोटिक दवाओं के अनुचित प्रोत्साहन को कम करने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित करने के साथ प्रदाताओं के लिये उपचार संबंधी दिशा-निर्देश जारी करने की भी आवश्यकता है। वित्तीय अनुमोदन जैसे उपाय उचित नैदानिक उपयोग को (Clinical Use) प्रोत्साहित करेंगे। साथ ही रोगाणुरोधी की आवश्यकता वाले लोगों तक इसकी पहुँच को सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि संक्रमण की स्थिति में उपचार योग्य दवाओं के अभाव में दुनिया भर में 7 मिलियन लोग प्रतिवर्ष मर जाते हैं।
  • इसके अलावा रोगाणुओं में प्रतिरोध के प्रसार को ट्रैक करने व समझने के क्रम में इन जीवाणुओं की पहचान के लिये निगरानी उपायों के लिये अस्पतालों के साथ-साथ पशुओं, अपशिष्ट जल एवं कृषि व खेत-खलिहान को भी शामिल करने की आवश्यकता है।
  • व्यक्तियों को केवल एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करना चाहिये जब एक प्रमाणित स्वास्थ्य पेशेवर द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध से निपटने के लिये एक मज़बूत राष्ट्रीय कार्य योजना नीति निर्माताओं द्वारा सुनिश्चित की जा सकती है। इस योजना में प्रयास किये जाने चाहिये:
    • एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमणों की निगरानी में सुधार।
    • संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण उपायों की नीतियों, कार्यक्रमों और कार्यान्वयन को सुदृढ़ बनाना।
    • गुणवत्ता वाली दवाओं के उचित उपयोग और निपटान को विनियमित और बढ़ावा देना।
    • एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रभाव पर जानकारी उपलब्ध की जाए।
    • नई एंटीबायोटिक दवाओं, टीकों, निदान और अन्य उपकरणों के अनुसंधान और विकास में निवेश करना चाहिये।

दुनिया को तत्काल एंटीबायोटिक दवाओं को निर्धारित करने और उपयोग करने के तरीके को बदलने की ज़रूरत है। भले ही नई दवाएँ विकसित हो जाएँ, व्यवहार में बदलाव के बिना, एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक बड़ा खतरा बना रहेगा। व्यवहार में बदलाव के साथ ही इसमें टीकाकरण, हाथ धोने, सुरक्षित संभोग और उचित खाद्य स्वच्छता के माध्यम से संक्रमण के प्रसार को कम करने के उपाय भी शामिल होने चाहिये।