देश देशांतर : गवाह की परवाह | 13 Dec 2018

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि


बड़े और संवेदनशील मामलों में गवाहों की सुरक्षा को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 5 दिसंबर को केंद्र सरकार की गवाह संरक्षण योजना के मसौदे को मंज़ूरी दी है। केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से चर्चा करने के बाद गवाह संरक्षण योजना का मसौदा तैयार किया है। न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संसद द्वारा इस संबंध में कानून बनाए जाने तक सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इसका पालन करना होगा। गवाह संरक्षण योजना के मसौदे में गवाह को सुरक्षित अदालत में ले जाने और बिना किसी डर या दबाव के बयान देने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। गवाहों की पहचान को गुप्त रखना अनिवार्य बनाया गया है और सरकारों को ज़िम्मेदारी दी गई है कि वे गवाहों की पहचान में गोपनीयता बरतें और उनकी पहचान को उजागर करने की प्रवृत्ति को रोकें।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश?

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह सुरक्षा योजना, 2018 संविधान के अनुच्छेद 141 और 142 के तहत तब तक 'कानून' रहेगा जब तक इस विषय पर संसद या राज्य द्वारा उचित कानून नहीं बनाए जाते।
  • जस्टिस ए. के. सीकरी और जस्टिस एस. ए. अब्दुल नजीर की बेंच ने निर्देश दिया कि 2019 के अंत तक सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा देश की सभी ज़िला अदालतों में संवेदनशील गवाहों के बयान दर्ज कराने के लिये परिसर बनाए जाएँ।
  • बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार को वित्तीय और अन्य तरीके से मदद कर राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के इस काम में सहयोग करना चाहिये। अदालत ने कहा कि गवाहों के बयान से पलट जाने की मुख्य वज़हों में से एक राज्यों द्वारा उन्हें उचित सुरक्षा मुहैया ना कराना भी होता है।
  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) और पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPRD) से परामर्श के बाद गवाह संरक्षण योजना के मसौदे को अंतिम रूप दिया गया जिसमें गवाहों के जीवन को लेकर खतरे के आकलन के आधार पर इसे तीन श्रेणियों में रखा गया है-
  1. ऐसे मामले जिनकी जाँच के दौरान या जाँच के बाद गवाह या उसके परिवार के सदस्यों के जीवन को गंभीर खतरा हो।
  2. ऐसे मामले जहाँ जाँच के दौरान या मुक़दमे के विचारण के दौरान गवाह या उसके परिवार के सदस्यों की प्रतिष्ठा, सुरक्षा तथा संपत्ति को खतरा हो।
  3. ऐसे मामले जहाँ गवाह या उसके परिवार के सदस्यों पर जाँच या मुक़दमे की सुनवाई के दौरान प्रतिष्ठा तथा संपत्ति के उत्पीड़न का खतरा बढ़ता हो।
  • केंद्र सरकार ने 18 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों, पाँच राज्य कानून सेवा प्राधिकारियों और सिविल सोसाइटी, तीन उच्च न्यायालयों के साथ-साथ पुलिसकर्मियों समेत खुले स्रोतों से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह योजना तैयार की है। 
  • अदालत का यह निर्देश आसाराम बापू से जुड़े बलात्कार मामले में गवाहों के संरक्षण के लिये जनहित याचिका की सुनवाई के बाद सामने आया है।
  • गौरतलब है कि आसाराम के खिलाफ गवाही देने वाले कई लोगों की हत्या कर दी गई और कई पर जानलेवा हमला किया गया था।
  • इसलिये इस मामले के साथ-साथ समूची न्याय-प्रक्रिया में इंसाफ सुनिश्चित करने के लिहाज़ से गवाहों की सुरक्षा की दिशा में सरकार की ओर से तैयार मसौदा और उसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई मंज़ूरी एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
  • गवाहों की सुरक्षा को लेकर दायर याचिका में गवाहों के लापता होने और उन पर हमलों की घटनाओं की जाँच कराने का अनुरोध किया था। 
  • इस याचिका के बारे में केंद्र ने न्यायालय को सूचित किया था कि उसने पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण से परामर्श के बाद गवाह संरक्षण योजना का मसौदा तैयार किया है। केंद्र ने इस मसौदे पर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की राय भी प्राप्त की थी।  इसके बावजूद इस योजना को मूर्तरूप नहीं दिया जा सका था।

गवाहों की सुरक्षा क्यों ज़रूरी है?

  • मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल जिसे व्यापम भी कहा जाता है, मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश तथा विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिये भर्ती से संबंधित है। इस भर्ती प्रक्रिया में वृहद रूप से अनियमितताओं तथा भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए थे। इसके बाद इस मामले से संबंधित कई आरोपी और गवाहों की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी।
  • उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के भ्रष्टाचार से जुड़े मामले में पुलिस अभिरक्षा में चार गवाहों की एक के बाद एक संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी।
  • 2 जी स्कैम, चारा घोटाला, हिट एंड रन आदि अनेक बड़े मामले हैं जिनमें प्रमुख गवाहों को ख़त्म कर दिया गया या डरा-धमका कर गवाही नहीं देने के लिये मजबूर किया गया।
  • संत आसाराम बापू के खिलाफ दो मामलों में बलात्कार का आरोप लगाया गया था। वर्तमान में वह जेल में है। इस मामले का एक महत्त्वपूर्ण गवाह, 35 वर्षीय किरपाल सिंह की शाहजहाँपुर में अज्ञात हमलावरों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी।
  • इससे पहले दो अन्य गवाहों गुजरात में अमृत प्रजापति तथा उत्तर प्रदेश में अखिल गुप्ता की हत्या कर दी गई।
  • आपराधिक मामलों में गवाह ही घटना परिदृश्य को लेकर आंख और कान की भूमिका निभाते हैं। लेकिन कई बार देखा गया है कि अदालत में गवाही का दौर शुरू होने पर महत्त्वपूर्ण गवाह पुलिस में दिये बयान से मुकर जाते हैं या फिर उनकी गवाही में काफी विसंगति आ जाती है।
  • इसका नतीजा यह होता है कि कई बार गवाहों के मुकर जाने की वज़ह से आपराधिक मुकदमा कमज़ोर हो जाता है और आरोपी रिहा भी हो जाते हैं।
  • देश के बड़े आपराधिक मामलों में गवाहों की भूमिका तथा उन्हें तरह-तरह से प्रभावित करने से लेकर उनकी सुरक्षा तक के मुद्दे लगातार न्यायालय की चिंता का विषय रहे हैं।
  • एक अनुमान के मुताबिक, देश में हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में गवाहों के मुकर जाने की वज़ह से करीब 10 से 12 प्रतिशत मामलों में ही अपराधियों को सज़ा हो पाती है।
  • गवाहों के मुकरने जैसी स्थिति को ध्यान में रखकर हालाँकि गवाहों के संरक्षण का मुद्दा लगातार उठ रहा है, लेकिन अब ऐसा लगता है कि न्यायिक हस्तक्षेप के बाद शायद गवाहों को संरक्षण देने की योजना मूर्तरूप ले लेगी।
  • गवाहों की सुरक्षा के संदर्भ में कारगर कानूनों की अनुपस्थिति के कारण न्याय मिलना दूर की कौड़ी की तरह लगता है।
  • ऐसी परिस्थितियों में जहाँ सच्चाई का एकमात्र स्रोत साक्षी है, ऐसे में उसकी सुरक्षा के लिये कड़े कानून की आवश्यकता है।
  • आपराधिक न्याय प्रणाली को और अधिक कारगर बनाना है तो गवाहों की सुरक्षा बेहद ज़रूरी है क्योंकि बहुत सारे आपराधिक मामलों में केवल इसीलिये सजा नहीं हो पाती क्योंकि गवाह को कोर्ट में आने से पहले ही गायब कर दिया जाता है या वह डर के कारण न्यायालय नहीं आ पाता।
  • न्यायालयों में मामलों पर निर्णय लेने में काफी देरी होती है जिसके कारण गवाह कोर्ट में आना बंद कर देते हैं।
  • एक अच्छी बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश लागू करना सभी राज्यों के लिये बाध्यकारी होगा लेकिन इसके लिये एक अलग कानून की आवश्यकता होगी क्योंकि कानून और योजना में काफी फर्क होता है।

अब तक भारत में गवाह संरक्षण कानून पर क्या प्रगति हुई है?

  • विधि आयोग ने गवाह संरक्षण कानून का मसौदा तैयार करने के लिये कई प्रयास किये हैं और केंद्र से इसकी आवश्यकता पर ज़ोर देने की सिफारिश भी की है।
  • विधि आयोग की 154वीं रिपोर्ट में साक्षी (गवाह) की सुरक्षा और सुविधाओं पर एक अध्याय शामिल किया गया है।
  • इसी प्रकार विधि आयोग ने 2001 में अपनी 178वीं रिपोर्ट में गवाहों को पक्षद्रोही (hostile) बनाने से रोकने के मुद्दे को संबोधित किया।
  • 2003 में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार हेतु न्यायमूर्ति मलिमथ कमेटी ने संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य देशों में गवाहों तथा उनके परिवार के सदस्यों को सुरक्षा देने हेतु बनाए गए कानूनों की तर्ज़ पर भारत में भी एक अलग गवाह सुरक्षा कानून बनाने की सिफारिश की थी।
  • इस रिपोर्ट की सबसे महत्त्वपूर्ण सिफारिश पराध प्रक्रिया संहिता, 1973 में संशोधन कर एक नया खंड 164-A जोड़ना था जो मजिस्ट्रेटों की उपस्थिति में महत्त्वपूर्ण गवाहों के बयान दर्ज करने से संबंधित था।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 195-A में गवाहों की सुरक्षा का प्रावधान है।
  • गुजरात के 2002 के दंगों से संबंधित बेस्ट बेकरी कांड की चश्मदीद गवाह जाहिरा शेख सहित कई मामलों में गवाहों की सुरक्षा को लेकर उठे सवालों पर उच्चतम न्यायालय ने चिंता व्यक्त की थी।
  • विधि आयोग की 198वीं रिपोर्ट और प्रस्तावित 'गवाह की पहचान से सुरक्षा और गवाह सुरक्षा कार्यक्रम' के आधार पर गवाहों के संरक्षण के लिये एक विधेयक गवाह सुरक्षा विधेयक, 2015 तैयार किया गया था।
  • यह विधेयक राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को भेजा गया था लेकिन इस पर कोई आम सहमति नहीं बन सकी।

सुप्रीम कोर्ट की यह नई गाइडलाइन कितनी मज़बूत दिख रही है?

  • यह नई गाइडलाइन धरातल पर कितनी मज़बूत होगी इस पर अभी कुछ कहना ठीक नहीं होगा लेकिन अच्छा यह होता कि संसद इस पर कानून बनाती।
  • विधि आयोग की रिपोर्ट, 2003 में नीलम कटारा केस में दिल्ली हाईकोर्ट की गाइडलाइन, नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी की गवाह संरक्षण योजना का मसौदा कुछ ऐसे प्रयास हैं जिससे लोगों में जागरूकता आई है।
  • लोगों ने न्यायपालिका को एक तरह से संवेदनशील बनाने का कार्य किया है और अब संसद को न्यायपालिका के माध्यम से संवेदी बनाया जा रहा है कि वह कानून बनाए। जब तक कानून नहीं बनता तब तक यह गाइडलाइन लागू रहेगी।
  • लोगों की मानसिकता में बदलाव आ रहा है। लोग अब महसूस करने लगे हैं कि जो चल रहा है वह अब नहीं चलेगा क्योंकि लोग इसे अब बर्दाश्त करने के लिये तैयार नहीं हैं।
  • देश में जितने भी हाई प्रोफाइल केसेज हुए हैं उनमें महत्त्वपूर्ण गवाहों को या तो मार दिया गया है या धमकी या लालच की वज़ह से वे गवाही देने से पीछे हट जाते हैं।
  • इस बदलती स्थिति का स्वागत होना चाहिये क्योंकि जो चीजें संसद या राजनीतिक प्रतिष्ठानों से आनी चाहिये वह अब न्यायपालिका की तरफ से आ रही हैं। हमारे नीति निर्धारक जिनके ऊपर इस दिशा में कदम उठाने की ज़िम्मेदारी है वह कुछ नहीं कर पा रहे हैं, जबकि सिविल सोसाइटी इसमें अग्रणी भूमिका निभा रही है जो खेद की बात है।

स्कीम के क्रियान्वयन की चुनौती

  • इस योजना का उचित ढंग से क्रियान्वयन बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि किसी भी आपराधिक मामले की न्यायालयों में सुनवाई की प्रक्रिया इतनी लंबी होती है कि गवाह को सुरक्षा देना शायद राज्यों के लिये संभव न हो।
  • मामलों की तेज़ी से जाँच, मुकदमों का तेज़ी से विचारण और तेज़ी से फैसले या दोषियों को सज़ा हो तो शायद इतनी बड़ी योजना की ज़रूरत न पड़े और लंबे समय तक गवाहों को सुरक्षा देने की ज़रूरत न पड़े।
  • गवाहों की पहचान को छुपाना अपने आप में बहुत मुश्किल काम है। इसके लिये मैनपॉवर, फंड, संसाधन आदि के लिये अलग से प्रावधान करना पड़ेगा।
  • इसके अलावा, गवाह संरक्षण कार्यक्रम में भारी धनराशि व्यय होगी जिसको वहन राज्यों द्वारा वहन किया जाएगा। भारत में ज़्यादातर राज्य ऐसी योजनाओं पर व्यय करने के अनिच्छुक हैं।
  • आधिकारिक गवाह संरक्षण कानूनों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता है, लेकिन इसे लागू करना कठिन कार्य होगा क्योंकि इसके लिये पर्याप्त पुलिस बल की आवश्यकता होगी जो कि वर्तमान में बहुत कम है।
  • प्रत्येक आपराधिक मामले में सभी गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करना पुलिस के लिये व्यवहार्य नहीं है।
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट से पता चलता है कि गवाह संरक्षण कार्यक्रम पर मोटी रकम खर्च करना संभव नहीं है, वह भी तब जब देश गरीबी, बीमारी तथा स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित है।
  • कुछ सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का मानना है कि गंभीर आपराधिक मामलों में गवाहों की सुरक्षा के लिये राजनेताओं को दी जाने वाली सुरक्षा हटा देनी चाहिये।
  • राजनेता और नौकरशाह बड़े स्तर पर सुरक्षा व्यवस्था का फायदा उठाते हैं, अतः प्रत्येक राजनेता के सुरक्षा दल के कुछ पुलिसकर्मियों को गवाहों की सुरक्षा के लिये लगाया जा सकता है।

आगे की राह

  • प्रभावी गवाह संरक्षण कानून में आदर्श रूप से सभी तीन संबंधित एजेंसियों, पुलिस, सरकार और न्यायपालिका को शामिल किया जाना चाहिये।
  • सरकार को आवश्यक अधिनियमों को लागू करने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रदर्शित करनी चाहिये, न्यायपालिका कानूनी पहलुओं को देख सकती है और उसका निष्पादन कार्य पुलिस को सौंपा जा सकता है।
  • एक स्वतंत्र विटनेस प्रोटेक्शन सेल का गठन किया जाना चाहिये और इसमें झूठी पहचान, स्थानांतरण तथा जाँच प्रावधान की व्यवस्था की जानी चाहिये।
  • गवाहों के साथ निष्पक्ष, सम्मानित और गरिमापूर्ण व्यवहार किया जाना चाहिये तथा आपराधिक न्याय प्रक्रिया को धमकी, उत्पीड़न या दुर्व्यवहार से मुक्त होना चाहिये।
  • गवाहों को चिकित्सा सुविधाएँ, सामाजिक सेवाएँ, राज्य से मुआवज़ा, परामर्श, उपचार और अन्य सहायता प्रदान की जा सकती है।
  • झूठी गवाही के मामले में गवाहों को दंडित करने के प्रावधान को भी कड़ाई से लागू किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष


यह कहना गलत नहीं होगा कि राजनेता और प्रभावशाली लॉबी आमतौर पर जाँच को रोकने या प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। एक भ्रष्ट पुलिस बल इस घृणास्पद कार्य में प्रमुख रूप से भागीदार होता है। न्याय व्यवस्था के प्रति सार्वजनिक प्रतिबद्धता को बढ़ाने के लिये गवाहों की रक्षा करना महत्त्वपूर्ण है। साथ ही गवाहों को डराने और उन्हें रास्ते से हटा देने की दुष्प्रवृत्ति के खिलाफ जनता को एकजुट होने की ज़रूरत है। अदालत का आदेश निश्चय ही ईमानदार नागरिकों को हिम्मत देगा। अब ज़रूरत है कि संसद बिना देर किये इस पर प्रभावी कानून पारित करे।