संसद टीवी संवाद

देश देशांतर : गवाह की परवाह | 13 Dec 2018 | विविध

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि


बड़े और संवेदनशील मामलों में गवाहों की सुरक्षा को लेकर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 5 दिसंबर को केंद्र सरकार की गवाह संरक्षण योजना के मसौदे को मंज़ूरी दी है। केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों से चर्चा करने के बाद गवाह संरक्षण योजना का मसौदा तैयार किया है। न्यायमूर्ति ए. के. सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संसद द्वारा इस संबंध में कानून बनाए जाने तक सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इसका पालन करना होगा। गवाह संरक्षण योजना के मसौदे में गवाह को सुरक्षित अदालत में ले जाने और बिना किसी डर या दबाव के बयान देने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। गवाहों की पहचान को गुप्त रखना अनिवार्य बनाया गया है और सरकारों को ज़िम्मेदारी दी गई है कि वे गवाहों की पहचान में गोपनीयता बरतें और उनकी पहचान को उजागर करने की प्रवृत्ति को रोकें।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का निर्देश?

  1. ऐसे मामले जिनकी जाँच के दौरान या जाँच के बाद गवाह या उसके परिवार के सदस्यों के जीवन को गंभीर खतरा हो।
  2. ऐसे मामले जहाँ जाँच के दौरान या मुक़दमे के विचारण के दौरान गवाह या उसके परिवार के सदस्यों की प्रतिष्ठा, सुरक्षा तथा संपत्ति को खतरा हो।
  3. ऐसे मामले जहाँ गवाह या उसके परिवार के सदस्यों पर जाँच या मुक़दमे की सुनवाई के दौरान प्रतिष्ठा तथा संपत्ति के उत्पीड़न का खतरा बढ़ता हो।

गवाहों की सुरक्षा क्यों ज़रूरी है?

अब तक भारत में गवाह संरक्षण कानून पर क्या प्रगति हुई है?

सुप्रीम कोर्ट की यह नई गाइडलाइन कितनी मज़बूत दिख रही है?

स्कीम के क्रियान्वयन की चुनौती

आगे की राह

निष्कर्ष


यह कहना गलत नहीं होगा कि राजनेता और प्रभावशाली लॉबी आमतौर पर जाँच को रोकने या प्रभावित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। एक भ्रष्ट पुलिस बल इस घृणास्पद कार्य में प्रमुख रूप से भागीदार होता है। न्याय व्यवस्था के प्रति सार्वजनिक प्रतिबद्धता को बढ़ाने के लिये गवाहों की रक्षा करना महत्त्वपूर्ण है। साथ ही गवाहों को डराने और उन्हें रास्ते से हटा देने की दुष्प्रवृत्ति के खिलाफ जनता को एकजुट होने की ज़रूरत है। अदालत का आदेश निश्चय ही ईमानदार नागरिकों को हिम्मत देगा। अब ज़रूरत है कि संसद बिना देर किये इस पर प्रभावी कानून पारित करे।