कैसे होती हैं न्यायिक नियुक्तियाँ?
- ध्यातव्य है कि संविधान के अनुच्छेद 124(2) के अनुसार सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते हैं।
- इसके अनुसार राष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे जजों से परामर्श करने के बाद, जिनसे वह परामर्श करना उचित समझे, सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति करेगा।
- परंतु मुख्य न्यायाधीश से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से सदैव परामर्श किया जाएगा।
न्यायिक नियुक्तियों से संबंधित महत्त्वपूर्ण मामले
फर्स्ट जजेज़ मामला (first judges case)
- वर्ष 1981 का फर्स्ट जजेज़ मामला, जिसे एस.पी. गुप्ता मामले के नाम से भी जाना जाता है, में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से अगले 12 वर्षों के लिये न्यायिक नियुक्तियों के संदर्भ में न्यायपालिका के ऊपर कार्यपालिका को वरीयता दी गई।
सेकेण्ड जजेज़ मामला (second judges case)
- वर्ष 1993 के एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन एवं अन्य बनाम भारत संघ (सेकेण्ड जजेज़ केस) के मामले में नौ जजों की पीठ ने यह व्यवस्था दी है कि:
- यदि उच्चतम न्यायालय का सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश पदधारण करने के लिये उपयुक्त है तो उसे भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया जाना चाहिये।
- साथ ही, उच्चतम न्यायालय के अन्य जजों की नियुक्ति की दशा में मुख्य न्यायमूर्ति से परामर्श का अर्थ सहमति होगा।
थर्ड जजेज़ मामला (third judges case)
- वर्ष 1998 में इन नियुक्तियों के संदर्भ में अनुच्छेद 143 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा मांगे गए परामर्श, जिसे थर्ड जजेज़ मामला भी कहते हैं, में नौ जजों की पीठ ने राय व्यक्त करते हुए पाँच जजों से मिलकर बने एक कॉलेजियम की व्यवस्था दी है।
- इसमें भारत का मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- हालाँकि कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ को अन्य न्यायाधीशों की तुलना में "अधिक योग्य और उपयुक्त" माना है किंतु यह संदेहास्पद है कि सिफारिश के दिनांक पर सर्वोच्च न्यायालय में छः रिक्तियाँ होने के बावजूद केवल दो नामों की ही सिफारिश क्यों की गई।
- चूँकि अन्य नामों को रोकना शेष न्यायाधीशों की वरिष्ठता पर निश्चित प्रभाव डालेगा अतः न्यायपालिका को जवाबदेह होना चाहिये।
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