द बिग पिक्चर: आरक्षण की 50% सीमा की समीक्षा | 22 Mar 2021

चर्चा में क्यों

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ( Supreme Court) में पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय लिया है कि वर्ष 1992 में नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा आरक्षण की 50% सीमा (इंद्रा साहनी मामले) के निर्णय को बाद में हुए संवैधानिक संशोधनों तथा सामाजिक परिवर्तनों के कारण संशोधित किया जाना चाहिये।

प्रमुख बिंदु

मराठा आरक्षण:

  • यह सर्वोच्च न्यायालय के संज्ञान में तब आया जब महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के कारण 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन हुआ।
  • महाराष्ट्र सरकार ने मराठाओं को कुल सीटों का 16% आरक्षण देने का निर्णय किया।
    • हालाँकि बॉम्बे उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने इसे कम करके सरकारी नौकरियों में 12% एवं शैक्षणिक संस्थानों में 13% कर दिया था।
    • जब इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई तो सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी।

वर्ष 1992 के निर्णय की समीक्षा:

  • यदि सर्वोच्च न्यायालय की पाँच जजों की पीठ यह स्वीकार करती है कि इंद्रा साहनी मामले (Indra Sawhney Case) के निर्णय को संशोधित किया जाना चाहिये, तो इस मामले को 11 या 13 जजों की पीठ के पास भेजना होगा।
    • केवल एक बड़ी पीठ ही सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व निर्णय को संशोधित कर सकती है, अर्थात् इस पीठ में पूर्व निर्णय देने वाली पीठ से अधिक न्यायाधीश होने चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त केवल अन्य पिछड़ा वर्ग ही नहीं बल्कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के मामले में भी क्रीमी लेयर अवधारणा की समीक्षा की जानी है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उठाए गए प्रश्न:

  • पीठ ने राज्यों द्वारा बढ़ाए जा रहे आरक्षण के दायरे को लेकर छह प्रश्न तैयार किये तथा इस संबंध में सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को नोटिस जारी किये गए हैं। इसमें शामिल हैं:
    • क्या वर्ष 1992 के निर्णय को बाद के संवैधानिक संशोधनों, निर्णयों एवं सामाजिक परिवर्तनों के मद्देनज़र एक बड़ी बेंच के पास भेजा जाना चाहिये। 
    • अन्य पाँच प्रश्न 102वें संविधान संशोधन की संवैधानिक वैधता से संबंधित हैं।
      • क्या संविधान का अनुच्छेद 342A "किसी भी पिछड़े वर्ग" के संदर्भ में कानून बनाने या किसी वर्ग को अन्य पिछड़े वर्ग के रूप में वर्गीकृत करने की राज्यों की शक्ति को निरस्त करता है और जिससे भारत के संविधान की संघीय नीति/संरचना प्रभावित होती है।

संविधान एवं आरक्षण 

  • 77वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1995: इंद्रा साहनी मामले में निर्णय दिया गया कि केवल प्रारंभिक नियुक्तियों में आरक्षण होगा, पदोन्नति में आरक्षण नहीं होगा।
    • हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 16 (4A) के अनुसार, राज्य को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के कर्मचारियों की पदोन्नति के मामलों में उस स्थिति में आरक्षण के लिये प्रावधान करने का अधिकार है, यदि राज्य को लगता है कि राज्य के अधीन सेवाओं में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
  • 81वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2000: इसने अनुच्छेद 16 (4B) पेश किया जिसके अनुसार किसी विशेष वर्ष में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के रिक्त पदों को अनुवर्ती वर्ष में भरने के लिये पृथक रखा जाएगा और उसे उस वर्ष की नियमित रिक्तियों में शामिल नहीं किया जाएगा। संक्षेप में इसने बैकलॉग रिक्तियों में आरक्षण की 50% सीमा को समाप्त कर दिया है।
  • 85वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2001: यह अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के सरकारी कर्मचारियों हेतु पदोन्नति में आरक्षण के लिये ‘परिणामिक वरिष्ठता’ का प्रावधान करता है, इसे वर्ष 1995 से पूर्व प्रभाव के साथ लागू किया गया था।
  • 102वाँ, 103वाँ एवं 104वाँ संविधान संशोधन: पिछले दो दशकों में संविधान में 102वें संशोधन, 104वें संशोधन जैसे कई संशोधन किये गए हैं।
  • अनुच्छेद 335: इसमें कहा गया है कि अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के दावों को प्रशासन की दक्षता बनाए रखने हेतु ध्यान में रखा जाएगा।

वर्ष 1992 का निर्णय एवं राज्यों द्वारा इसका पालन:

  • इंद्रा साहनी एवं अन्य बनाम भारत संघ, 1992: इंद्रा साहनी मामले में 16 नवंबर, 1992 को निर्णय दिया गया था।
    • इसमें नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा निर्णय दिया गया था, इस पीठ ने आरक्षण में 50% सीमा जैसे कई ऐतिहासिक प्रस्ताव रखे।
      • इसमें कहा गया कि ”यद्यपि संविधान इसकी सीमा तय करता है तब भी एक संरक्षणवादी उपाय के रूप में 
      • आरक्षण, समता के संतुलन के सिद्धांत के आधार पर कम सीटों पर होना चाहिये, यह किसी भी परिस्थिति में 50% से अधिक नहीं होना चाहिये।”
    • इस निर्णय में ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को भी महत्त्व दिया गया और प्रावधान किया गया कि पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण केवल प्रारंभिक नियुक्तियों तक सीमित होना चाहिये और पदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिये।
    • इससे पहले आरक्षण केवल अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों  के लिये था। मंडल आयोग द्वारा अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes- OBC) को आरक्षित श्रेणी में लाया गया।
  • राज्यों द्वारा सीमा का पालन: सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 1992 के निर्णय के बावजूद कई राज्यों जैसे- महाराष्ट्र, तेलंगाना, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश ने 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करते हुए कानून पारित किये हैं।
    • इनके अतिरिक्त तमिलनाडु, हरियाणा एवं छत्तीसगढ़ ने भी आरक्षण की 50% सीमा का उल्लंघन करने वाले कानून पारित किये हैं।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने मराठा आरक्षण मामले का निर्णय करने के पश्चात् तमिलनाडु के 69% आरक्षण पर भी विचार करने का निर्णय लिया है।
      • तमिलनाडु में 69% आरक्षण इंद्रा साहनी मामले के पहले से ही लागू है।
    • जनवरी 2000 में आंध्र प्रदेश (तेलंगाना सहित) के राज्यपाल ने अनुसूचित क्षेत्रों में स्कूली शिक्षकों के पदों पर अनुसूचित जनजाति (ST) के उम्मीदवारों के लिये 100% आरक्षण की घोषणा की। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक करार दिया था।
  • 50% आरक्षण सीमा कानून द्वारा निर्धारित: हालाँकि आरक्षण की 50% सीमा किसी भी कानून द्वारा निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन इसे सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया है अतः यह सभी प्राधिकरणों के लिये बाध्यकारी था।
    • हालाँकि निर्णय में कहा गया कि असाधारण परिस्थितियों (Exceptional Circumstance) में आरक्षण की सीमा में वृद्धि की जा सकती है।
    • ‘असाधारण परिस्थिति’ के साथ मुद्दा उठता है कि क्या वास्तव में किसी मामले में असाधारण परिस्थिति है अथवा नहीं और यदि है तो आरक्षण 50% की सीमा से कितना अधिक हो सकता है।

आगे की राह 

  • वर्ष 1992 के निर्णय की समीक्षा: सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालयों द्वारा दिये गए विभिन्न निर्णयों के कारण उत्पन्न होने वाले मुद्दों को हल करने के लिये इंद्रा साहनी मामले पर विचार करेगा।
    • आरक्षण का उद्देश्य जाति आधारित जनगणना में सीमांत वर्गों की स्थिति के अनुरूप उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करना है।
  • संघीय संरचना को बनाए रखना: आरक्षण तय करते समय यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि क्या विभिन्न समुदायों के लिये आरक्षण का प्रावधान करने वाली राज्य सरकारें संघीय ढाँचे का पालन कर रही हैं या इसे नष्ट कर रही हैं।
    • अनुच्छेद 341 एवं अनुच्छेद 342 के तहत किसी विशेष समुदाय को अनुसूचित जाति (Scheduled Caste- SC) अथवा अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe- ST) के रूप में अधिसूचित करने की शक्ति संसद में निहित है।
  • आरक्षण एवं योग्यता के बीच संतुलन: विभिन्न समुदायों को आरक्षण देते समय प्रशासन की दक्षता को भी ध्यान में रखना होगा।
    • सीमा से अधिक आरक्षण के कारण योग्यता की अनदेखी होगी जिससे संपूर्ण प्रशासन की दक्षता प्रभावित होगी।
    • आरक्षण का एकमात्र उद्देश्य कम सुविधा संपन्न समुदायों के ऐतिहासिक शोषण के मुद्दे को संबोधित करना है, लेकिन एक निश्चित सीमा से अधिक योग्यता को भी उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिये।