द बिग पिक्चर: वैश्विक कॉर्पोरेट कर और भारत | 15 Jun 2021

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सात (G7) देशों के समूह (उन्नत अर्थव्यवस्थाओं का समूह ) के वित्त मंत्रियों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ (Global Minimum Corporate Tax Rate- GMCTR) स्थापित करने हेतु एक ऐतिहासिक समझौते को अंतिम रूप दिया है।

  • G7 के वित्त मंत्रियों द्वारा लिये गए इस  निर्णय को जुलाई 2021 में  G20 देशों (विकासशील और विकसित देशों के समूह) के समक्ष रखा जाएगा।

प्रमुख बिंदु: 

  • उद्देश्य: इस समझौते का उद्देश्य वर्षों पुराने उस अंतर्राष्ट्रीय टैक्स कोड का आधुनिकीकरण करना तथा ट्रान्साटलांटिक तनाव (Transatlantic Tensions) को कम करना है जिसके कारण  व्यापार युद्ध के  खतरे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • करों के लिये मार्ग प्रशस्त: यह समझौता बहुराष्ट्रीय कंपनियों (Multinational Companies- MNCs) पर उन देशों में लेवी लगाने हेतु मार्ग प्रशस्त करता है जहाँ वे कार्य करती हैं  न कि जहाँ उनका मुख्यालय स्थित है।
  • देशों के कर अधिकार: नए समझौते के तहत जिन देशों में बड़ी फर्में कार्य करती हैं उन्हें 10% मार्जिन से अधिक लाभ पर कम-से-कम 20% तक कर लगाने का अधिकार मिलेगा जो कि सबसे बड़े और सबसे अधिक लाभदायक बहुराष्ट्रीय उद्यमों पर लागू होगा।
  • OECD के प्रयास: आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organization for Economic Cooperation and Development- OECD) भी 140 देशों के बीच सीमा पार डिजिटल सेवाओं पर कर लगाने और वैश्विक कॉर्पोरेट न्यूनतम कर सहित कर आधार क्षरण (Base Erosion) को रोकने के नियमों पर 140 देशों के बीच कर वार्ता का समन्वयन कर रहा है।
  • वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर (GMCTR):
    • G7 वित्त मंत्रियों ने कम-से-कम 15% की वैश्विक न्यूनतम कर दर का आह्वान किया है।
  • कॉर्पोरेट कर: यह एक प्रत्यक्ष कर है जो विदेशी या घरेलू कॉरपोरेट इकाइयों की शुद्ध आय या लाभ पर लगाया जाता है।
  • GMCTR की आवश्यकता:
    • कर का न्यूनतम क्षेत्राधिकार: बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ मुख्यालय की स्थिति के आधार  पर कर लगाने की प्रणाली का पालन करती हैं जहाँ कर सबसे कम होता है ताकि कंपनी बहुत कम दर पर कर का भुगतान कर सके इसलिये आयरलैंड जैसे छोटे देश लाभ की स्थिति में थे लेकिन बड़े देश कर राजस्व प्राप्त करने में काफी पीछे थे।
      • G7 देशों ने सभी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर न्यूनतम 15% कर की दर की घोषणा की है चाहे वे किसी भी स्थान पर स्थित हों, ताकि देश के  लाभांश का स्थानांतरण न हो।
      • इसका निर्धारण GMCTR को करना चाहिये ताकि देशों द्वारा की जाने वाली कर की कमी को रोका जा सके।
    • कर में एकरूपता: ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ दशकों से चली आ रही प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त  कर देगी, जिसके तहत विभिन्न देशों द्वारा बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों को कर दरों में छूट देकर आकर्षित करने की प्रतिस्पर्द्धा की जा रही है और यह वैश्विक स्तर पर कॉर्पोरेट कराधान में एकरूपता लाएगा।
    • बहुस्तरों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा मुनाफे प्राप्त करना:  ये कंपनियाँ प्रायः प्रमुख बाज़ारों से कम कर वाले देशों जैसे आयरलैंड या कैरेबियाई देशों जैसे ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह या बहामा अथवा पनामा जैसे मध्य अमेरिकी देशों में अपने लाभ को बढ़ाने के लिये सहायक कंपनियों के जटिल वेब पर निर्भर रहती हैं।
  • वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर और भारत:
  • समानता लाना: भारतीय संदर्भ में GMCTR उन लोगों हेतु एक समानता का स्तर कायम करेगा जो संभवत:  भारत के लिये कार्य कर रहे हैं लेकिन भारत में नहीं रहते हैं जिस कारण वे किसी भी प्रकार  का कोई कर नहीं चुका रहे हैं।
    • निवेश के आकर्षित होने की संभावना: भारत को वैश्विक न्यूनतम 15 प्रतिशत कॉर्पोरेट कर दर समझौते से लाभ होने की संभावना है, क्योंकि भारत की प्रभावी घरेलू कर दर 15 प्रतिशत की न्यूनतम सीमा से अधिक है और इस तरह भारत अधिक निवेश आकर्षित करता रहेगा।
      • सभी संभावनाओं में रियायती भारतीय कर व्यवस्था अभी भी कार्य  करेगी तथा भारतीय निवेश को आकर्षित करती रहेगी।
    • लाभ की स्थिति में: अपनी कर दरों के कारण भी भारत लाभप्रद स्थिति में होगा क्योंकि भारतीय कर दरें ऐसी स्थिति में आ गई हैं जहाँ भारत अंतर्राष्ट्रीय कर दरों में कमी किये बिना बड़ी कंपनियों को कर में रियायतें दे सकता है।
    • चुनौती: हालांँकि 15% GMCTR भारत में मौजूदा निवेश को प्रभावित नहीं करेगा, लेकिन अधिक SEZs स्थापित करना या कंपनियों को भारत में निवेश करने हेतु प्रोत्साहन देना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।

संबंधित अन्य चुनौतियाँ:

  • वैश्विक सहमति बनना: इस व्यवस्था के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती प्रमुख राष्ट्रों को एक साथ एक ही मंच पर लाना है, क्योंकि ‘वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर दर’ किसी राष्ट्र की कर नीति तय करने के लिये उसके संप्रभु अधिकार को प्रभावित करती हैं ।
  • अनिवार्य रूप से एक वैश्विक न्यूनतम दर देश द्वारा अपने अनुकूल नीतियों को आगे बढ़ाने हेतु किये गए प्रयासों को नियंत्रित करती हैं।
  • छोटे देशों की समस्या: आयरलैंड जैसे देश, जिनकी कर दर 12.5% ​​है, वैश्विक न्यूनतम कर के खिलाफ सामने आए हैं, उनका तर्क है कि यह उनके आर्थिक मॉडल हेतु विघटनकारी साबित होगा।
  • विकासशील देशों के मुद्दे: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) और विश्व बैंक (World Bank) के आंँकड़े बताते हैं कि मेगा प्रोत्साहन पैकेज (Mega Stimulus Packages) की कम क्षमता वाले विकासशील देशों को विकसित देशों की तुलना में लंबे समय तक आर्थिक हैंगओवर (Economic Hangover) का सामना कर पड़ सकता है।
    • बांग्लादेश जैसे देशों जिनके पास विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zone) के अलावा बहुत अधिक लाभ नहीं हैं, को ध्यान में रखते हुए G7 देशों का यह निर्णय बहुत अनुकूल साबित नहीं हो सकता है।
  • कर चोरी की रोकथाम: निम्न कर दर एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग देश वैकल्पिक रूप से आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ाने हेतु कर सकते हैं। साथ ही वैश्विक न्यूनतम कर दर कर की चोरी से निपटने में मददगार साबित होगा।
  • नियमों में कठोरता: एक बार न्यूनतम वैश्विक कर की दर हेतु 15% की अंतर्राष्ट्रीय  प्रतिबद्धता हो जाने के बाद, राष्ट्रों के लिये यह कहना बहुत मुश्किल होगा कि कौन 15% की कर दर पर रहता है और कौन नहीं। यह नियमों में एक कठोरता का परिचय देगा जो कि देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिये  अनुकूल नहीं है।

आगे की राह: 

  • प्रभावी कार्यान्वयन: GMCTR को लागू करने का विचार अच्छा है लेकिन यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि इसे लागू करने की प्रक्रिया पारदर्शी हो तथा  इसमें विभिन्न खामियों से लाभ उठाने वाले लोग शामिल हों।
  • उचित समन्वय: डिजिटल सेवा करों सहित नए अंतर्राष्ट्रीय कर नियमों को लागू करने के मध्य  उचित समन्वय होना चाहिये। इस प्रकार के किसी भी अंतिम समझौते के परिणाम कम कर वाले देशों और टैक्स हेवन देशों के लिये प्रतिघाती साबित हो सकते हैं।
  • भारत के लिये आगे की राह: एक बार यह समझौता हो जाने के बाद भारत अपने दोहरे कराधान अपवंचन समझौतों (Double Tax Avoidance Agreements) पर बातचीत करने हेतु  G20 शिखर सम्मेलन में एक लाभप्रद स्थिति में होगा।
    • भारत उस अवसर का लाभ उठाएगा जो इस समझौते द्वारा प्रदान किया जाएगा क्योंकि भारत के दोहरे कराधान अपवंचन समझौतों पर पश्चिम के उन कई देशों ने  हस्ताक्षर नहीं किये जिनके साथ भारत वर्षों से बातचीत कर रहा है।

निष्कर्ष: 

  • G7 देशों की यह पहल उन विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने हेतु एक स्वागत योग्य कदम है जिनका वर्तमान में कई देश सामना कर रहे हैं।
  • G7 द्वारा निर्धारित न्यूनतम स्लैब पर वैश्विक कॉर्पोरेट कर लगाने से विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर प्रमुख रूप से प्रभाव पड़ेगा।