विशेष: संरक्षित काले हिरण को मारने का दोषी सलमान खान | 10 Apr 2018

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि

अभिनेता सलमान खान को काले हिरणों का शिकार करने के मामले दोषी पाया गया है। 20 साल पुराने इस मामले में जोधपुर की ज़िला अदालत ने उन्हें पांच साल की सज़ा सुनाई। इसी मामले में पाँच अन्य आरोपियों को अदालत ने बरी कर दिया। दो दिन जोधपुर सेंट्रल जेल में बिताने के बाद 7 अप्रैल को जोधपुर सेशंस कोर्ट ने उन्‍हें 50 हज़ार रुपए के मुचलके पर जमानत दे दी। कोर्ट ने उनसे 25-25 हज़ार के दो बॉन्ड भरने को कहा तथा यह शर्त भी लगाई कि कोर्ट के आदेश के बिना वह देश छोड़कर नहीं जा सकते। 

हाई प्रोफाइल मामला 

सलमान खान पर जोधपुर में 1998 में फिल्म 'हम साथ-साथ हैं' की शूटिंग के दौरान 3 काले हिरणों और 2 चिंकारा के शिकार का आरोप लगा था। कुल मिलाकर उन पर 4 मामले दर्ज हुए, तीन मामलों हिरणों के शिकार और चौथा मामला आर्म्स एक्ट का था। इन मामलों में सोनाली बेंद्रे, सैफ अली खान, तब्बू और नीलम पर उन्हें शिकार के उकसाने का आरोप लगा। इन मामलों में सलमान दो बार जोधपुर की जेल में न्यायिक हिरासत में भी रहे। गिरफ्तारी के दौरान सलमान के कमरे से पुलिस ने पिस्टल और राइफल बरामद की थी। इन हथियारों की लाइसेंस अवधि खत्म हो चुकी थी।

करीब 20 साल बाद कांकाणी गाँव मामले में अब जो फैसला आया है उसमें 1-2 अक्तूबर, 1998 की रात बिश्नोई समाज ने पुलिस थाने में सलमान खान के साथ सैफ अली खान, नीलम, तब्बू और सोनाली बेंद्रे के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि शिकार सलमान ने किया था और जब गोलियों की आवाज़ सुनकर गाँव वाले पहुँचे तो वहाँ दो काले हिरण मरे हुए थे। 

 संरक्षित प्रजातियों में शामिल है काला हिरण

काला हिरण देश में संरक्ष‍ित प्रजातियों में शामिल है। यह कृष्णमृग बहुसिंगा की प्रजाति है जो भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाती है। काला हिरण बहुसिंगा प्रजाति की इकलौती जीवित जाति है। काला हिरण को भारतीय मृग के रूप में भी जाना जाता है। काला हिरण मूलतः भारत, पाकिस्तान और नेपाल में पाया जाता है। इसकी प्रजातियाँ बांग्लादेश में पाई जाती थीं, लेकिन अब वहां यह विलुप्त हो गया है। भारत में 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची-1 के तहत काले हिरण का शिकार निषिद्ध है। 

(टीम दृष्टि इनपुट)

कौन सी धारा लगाई गई?

सलमान खान पर वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 51 के तहत मामला चला जिसमें उन्हें दोषी पाया गया और पाँच साल की जेल की सज़ा सुनाई गई। इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर अधिकतम 6 साल की सज़ा का प्रावधान है। उन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 9/51 के तहत दोषी पाया गया। वैसे काले हिरण के शिकार के मामले में इस अधिनियम की धारा 149 के तहत सात साल अधिकतम सज़ा का प्रावधान है।

यदि सलमान खान की सज़ा तीन साल से कम की होती तो उन्हें उसी अदालत से जमानत मिल सकती थी, लेकिन पाँच साल की सज़ा होने के कारण उन्हें जमानत के लिये सेशन कोर्ट में जाना पड़ा। इस मामले में सभी पर वन्यजीव संरक्षण कानून के तहत मुकदमा चलाया गया था, जिसमें सलमान को छोड़ अन्य सभी को इस कानून की धारा 9/51 के साथ 52 और भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के तहत सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया। 

इन मामलों में सलमान खान ने इससे पहले 1998, 2006, 2007 में कुल 18 दिन की जेल काटी है।

 वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972

देश की पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से वन्य प्राणियों, पक्षियों और पादपों के संरक्षण के लिये तथा उनसे संबंधित या प्रासंगिक या आनुषंगिक विषयों का उपबंध करने के लिये यह अधिनियम बनाया गया। यह जम्मू-कश्मीर को छोड़कर संपूर्ण भारत में लागू है। इस अधिनियम का उद्देश्य सूचीबद्ध लुप्तप्राय वनस्पतियों और जीव एवं पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्रों को सुरक्षा प्रदान करना है।

भारत सरकार ने देश के वन्य जीवन की रक्षा करने और प्रभावी ढंग से अवैध शिकार, तस्करी और वन्य जीवन तथा उसके व्युत्पन्न के अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से यह अधिनियम लागू किया। इसे जनवरी 2003 में संशोधित किया गया तथा कानून के तहत अपराधों के लिये सज़ा एवं ज़ुर्माने को और अधिक कठोर बना दिया गया। 

इसमें कुल छह अनुसूचियाँ हैं:

अनसूची-1 

इस अनुसूची में 43 वन्यजीव शामिल हैं। इनमें सूअर से लेकर कई तरह के हिरण, बंदर, भालू, चिंकारा, तेंदुआ, लंगूर, भेड़िया, लोमड़ी, डॉलफिन, कई तरह की जंगली बिल्लियाँ, बारहसिंगा, बड़ी गिलहरी, पेंगोलिन, गैंडा, ऊदबिलाव, रीछ और हिमालय पर पाए जाने वाले अनेक जानवर शामिल हैं। इसके अलावा इसमें कई जलीय जंतु और सरीसृप भी शामिल हैं। इस अनुसूची के चार भाग हैं और इसमें शामिल जीवों का शिकार करने पर धारा 2, 8, 9, 11, 40, 41, 43, 48, 51, 61 तथा धारा 62 के तहत दंड मिल सकता है।

अनुसूची-2 

इस अनुसूची में शामिल वन्य जंतुओं के शिकार पर धारा 2, 8, 9, 11, 40, 41, 43, 48, 51, 61 और धारा 62 के तहत सज़ा का प्रावधान है। इस सूची में कई तरह के बंदर, लंगूर, साही, जंगली कुत्ता, गिरगिट आदि शामिल हैं। इनके अलावा अन्य कई तरह के जानवर भी इसमें शामिल हैं।

  • इन दोनों अनुसूचियों के तहत आने वाले जानवरों का शिकार करने पर कम-से-कम तीन साल और अधिकतम सात साल की जेल की सज़ा का प्रावधान है। 
  • कम-से-कम ज़ुर्माना 10 हज़ार रुपए और अधिकतम ज़ुर्माना 25 लाख रुपए है।
  • दूसरी बार अपराध करने पर भी इतनी ही सज़ा का प्रावधान है, लेकिन न्यूनतम ज़ुर्माना 25 हज़ार रुपए है। 

अनुसूची-3 और अनुसूची-4: इसके तहत भी वन्य जानवरों को संरक्षण प्रदान किया जाता है लेकिन इस सूची में आने वाले जानवरों और पक्षियों के शिकार पर दंड बहुत कम है।

अनुसूची-5: इस सूची में उन जानवरों को शामिल किया गया है, जिनका शिकार हो सकता है।

अनुसूची-6: इसमें दुर्लभ पौधों और पेड़ों की खेती और रोपण पर रोक है। 

क्या खास है इस कानून में?

  • वन्यजीव ( संरक्षण) अधिनियम, 1972 के उपबंधों के अंतर्गत वन्‍य पशुओं को शिकार और वाणिज्यिक शोषण के विरुद्ध विधिक सुरक्षा दी गई है। 
  • संरक्षण और खतरे की स्थिति के अनुसार वन्‍य जीवों को अधिनियम की विभिन्‍न अनुसूचियों में रखा जाता है। 
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में इसके उपबंधों का अतिक्रमण करने संबंधी अपराध के लिये दंड का प्रावधान है। 
  • वन्‍यजीव अपराध हेतु प्रयोग में लाए गए किसी उपकरण, वाहन अथवा हथियार को जब्‍त करने का भी प्रावधान है। 
  • वन्‍य जीवों और उनके पर्यावासों की सुरक्षा के लिये देशभर में महत्त्वपूर्ण पर्यावासों को शामिल करते हुए सुरक्षित क्षेत्र अर्थात् राष्‍ट्रीय उद्यान, अभयारण्‍य, संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक रिज़र्व सृजित किये गए हैं। 
  • वन्‍य जीवों के अवैध शिकार और वन्‍यजीवों तथा उनके उत्‍पादों के अवैध व्‍यापार पर नियंत्रण संबंधी कानून के प्रवर्तन के सुदृढ़ीकरण हेतु वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्‍यूरो की स्‍थापना की गई है। 
  • वन्यजीव अपराधियों को पकड़ने और उन पर मुकदमा चलाने के लिये सीबीआई को अधिकार दिये गए हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

 राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड 

यह एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण निकाय है क्योंकि यह वन्यजीव संबंधी सभी मामलों की समीक्षा करने और राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों में तथा आस-पास की परियोजनाओं को स्वीकृति देने के लिये सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है।

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत गठित राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड एक सांविधिक संगठन हैl
  • सैद्धांतिक रूप से बोर्ड की प्रकृति 'सलाहकारी' है और यह देश में वन्य जीवों के संरक्षण के लिये नीतियाँ तैयार करने और उपायों पर केंद्र सरकार को सलाह देता हैl
  • राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की अध्यक्षता भारत के प्रधानमंत्री करते हैं और इसके उपाध्यक्ष पर्यावरण मंत्री होते हैंl
  • इसी तर्ज़ पर राज्यों में भी वन्यजीव बोर्डों का गठन हुआ है, लेकिन केंद्र सरकार में इस बोर्ड के ऊपर एक स्टैंडिंग कमेटी है जो अंतिम फैसले लेती है, परंतु राज्यों में ऐसा नहीं हैl
  • वर्तमान में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की संरचना के तहत इसमें 15 अनिवार्य सदस्य और तीन गैर-सरकारी सदस्यों को रखने का प्रावधान हैl

इन अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का सदस्य है भारत 

भारत पाँच मुख्य अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों का हिस्सा है जो वन्यजीव संरक्षण से जुड़े हैं:

  1. लुप्तप्राय प्रजातियों (CITES) पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन
  2. वन्यजीव तस्करी (CAWT) के खिलाफ गठबंधन
  3. अंतरराष्ट्रीय व्हेलिंग कमीशन (IWC)
  4. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन--विश्व धरोहर समिति (UNESCO– WHC)
  5. प्रवासी प्रजातियों पर कन्वेंशन (CHS)

(टीम दृष्टि इनपुट)

भारत में वन्य जीवों के कानूनी अधिकार 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(A) के अनुसार प्रत्येक जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्त्तव्य है।
  • कोई भी पशु (मुर्गी सहित) केवल बूचड़खाने में ही काटा जाएगा...बीमार और गर्भधारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा। पशू क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 और फूड सेफ्टी रेगुलेशन में इसे लेकर स्पष्ट नियम हैं।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक किसी पशु को मारना या अपंग करना दंडनीय अपराध है, चाहे वह आवारा ही क्यों न हो। 
  • पशू क्रूरता निवारण अधिनियम के मुताबिक किसी पशु को आवारा छोड़ने पर तीन महीने की सज़ा हो सकती है।
  • जानवर को पर्याप्त भोजन, पानी, शरण देने से इनकार करना और लंबे समय तक बांधे रखना दंडनीय अपराध है। इसके लिये ज़ुर्माना या तीन महीने की सज़ा या फिर दोनों हो सकते हैं।
  • पशुओं को लड़ने के लिये भड़काना, ऐसी लड़ाई का आयोजन करना या उसमें हिस्सा लेना संज्ञेय अपराध है।
  • ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स 1945 के मुताबिक जानवरों पर कॉस्मेटिक्स का परीक्षण करना और जानवरों पर परीक्षण किये जा चुके कॉस्मेटिक्स का आयात करना प्रतिबंधित है।
  • स्लॉटर हाउस रूल्स 2001 के मुताबिक देश के किसी भी हिस्से में पशु बलि देना गैरकानूनी है।
  • चिड़ियाघर और उसके परिसर में जानवरों को चिढ़ाना, खाना देना या तंग करना दंडनीय अपराध है। ऐसा करने वाले को तीन साल की सज़ा, 25 हजार रुपए का ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
  • प्रिवेंशन ऑफ क्रुएलिटी ऑन एनिमल्स एक्ट की धारा 22(2) के मुताबिक भालू, बंदर, बाघ, तेंदुए, शेर और बैल को मनोरंजन के लिये प्रशिक्षित करना तथा इस्तेमाल करना गैरकानूनी है।
  • पक्षी या सरीसृप के अंडों को नष्ट करना या उनसे छेड़छाड़ करना या फिर उनके घोंसले वाले पेड़ को काटना या काटने की कोशिश करना शिकार कहलाएगा। इसके दोषी को सात साल की सज़ा या 25 हजार रुपए का ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
  • किसी भी जंगली जानवर को पकड़ना, फँसाना, ज़हर देना या लालच देना दंडनीय अपराध है। इसके दोषी को सात साल की सज़ा या 25 हजार रुपए का ज़ुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

बढ़ रहे हैं वन्य जीवों के प्रति अपराध 

विश्‍व में तीसरा सबसे बड़ा व्‍यापार वन्यजीव सामग्रियों का है, इसीलिये इन जीवों का बड़े पैमाने पर अवैध शिकार किया जाता है। इसकी वज़ह से कई प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुकी हैं। वन्यजीव अपराध एक बड़ा व्यापार है और खतरनाक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क वन्यजीवों और इनके अंगों की तस्करी अवैध ड्रग्स और हथियारों की तरह ही कर रहे हैं। वन्य जीवों के अवैध व्यापार के मूल्य के संदर्भ में विश्वसनीय आँकड़े तो उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क पर विशेषज्ञों की राय है कि यह अरबों डॉलर का व्यापार है।

वन्य जीवों से संबंधित विषय समवर्ती सूची में आते हैं अर्थात् इनके संरक्षण के लिये केंद्र और राज्य सरकारें कानून बना सकती हैं, लेकिन केंद्र सरकार के कानूनों को वरीयता दी जाती है। 1976 से पहले वन्यजीव सुरक्षा का मुद्दा राज्य सूची में दर्ज था परंतु इसके बाद इसे समवर्ती सूची में शामिल किया गयाl 

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: विकास के लिये आवश्यक अवसंरचना और रहने के लिये घरों के निर्माण की बढ़ती ज़रूरतों के मद्देनज़र भूमि की उपलब्धता कम हो गई है तथा जानवरों के प्राकृतिक आवास पर मनुष्यों का दखल बढ़ता जा रहा है। हालांकि, विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में तालमेल बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है और इसे सुनिश्चित करने के लिये कई कानून लागू किये गए हैं। लेकिन केवल कानून लागू कर देने मात्र से वन्य जीवों का संरक्षण नहीं हो सकता। शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, खेती, वन्यजीव व्यापार और शिकार ने वन्य जीवों पर भारी संकट पैदा कर दिया है। यदि कुछ बुनियादी बातों पर ध्यान दिया जाए तो इस स्थिति में बदलाव लाया जा सकता है, जैसे–वन्य जीवों के अवैध शिकार पर कड़ी नज़र, लोगों में यह जागरूकता पैदा करना कि वन्य जीवों का संरक्षण स्वयं मानवता के हित में है, क्योंकि पर्यावरण व्यवस्था में संतुलन और वन्य क्षेत्रों के निकट रहने वाले लोगों की रोजमर्रा की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इनका होना ज़रूरी है।

इस क्षेत्र में समर्पित गैर-सरकारी संगठनों (NGO) का संज्ञान लेकर उनकी भागीदारी बढ़ाने और उन्हें पूर्ण समर्थन देने से भी लाभ होगा। वन्य जंतुओं का शिकार एक बड़ी समस्या है जो इनके संरक्षण के प्रयासों को प्रभावित करती है। वन्य जीवों के शरीर के विभिन्न अंगों की मांग और सीमापार इनके गैर-कानूनी व्यापार नेटवर्क ने संरक्षण के प्रयासों के लिये गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। जोखिम वाली प्रजातियों के अंतरराष्‍ट्रीय व्‍यापार पर आधारित संधि के प्रावधानों को लागू करके और दंडात्‍मक प्रावधान बढ़ाकर देश में इसके लिये पहल की गई है।