RBI के अधिकार और सहकारी बैंक | 11 Jul 2020

संदर्भ:

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा लाए गए एक अध्यादेश के माध्यम से भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की शक्तियों में वृद्धि की गई है। इस अध्यादेश में देश में सक्रिय सहकारी बैंकों की निगरानी के लिये RBI को अधिकार देने का निर्णय लिया गया है। इसके बाद सहकारी बैंकों की गतिविधियों और व्यापार की जाँच के साथ बैंकों के प्रमुख कार्यकारी अधिकारियों की नियुक्ति भी RBI द्वारा की जाएगी।           

 

पृष्ठभूमि: 

  • शुरुआत में सहकारी बैंक मुख्यतः कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक सक्रिय रहे। 
  • 1990 के दशक के उदारीकरण बाद ‘शहरी सहकारी बैंकों’ (Urban Co-operative Banks- UCBs) की संख्या में वृद्धि देखने को मिली
  • शहरी सहकारी बैंक शहरी क्षेत्र में सक्रिय होने के कारण मुख्य रूप से उद्योग, व्यवसाय आदि को ही पूँजी उपलब्ध करते हैं, परंतु इनका पंजीकरण ‘सहकारी समिति अधिनियम’ के तहत होता है
  • वस्तुतः UCBs का प्रबंधन ‘सहकारी समितियों’ की तरह ही होता है।  
  • गौरतलब है कि RBI की देखरेख में सक्रिय अनुसूचित और व्यावसायिक बैंकों की कार्यप्रणाली, उच्च पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति, ऋण जारी करने आदि के संदर्भ कठोर एवं पारदर्शी नियमों का निर्धारण किया गया है तथा बैंकों द्वारा इनका सख्ती से पालन भी किया जाता है। 
  • सहकारी बैंकों में राजनीति का काफी हस्तक्षेप देखा गया है, जिससे सहकारी बैंकों में ऋण वितरण  जैसी महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया में नियमों की भारी अनदेखी पाई जाती रही है। 
  • ऐसे में लंबे समय से सहकारी बैंकों को RBI के अधिकार क्षेत्र में रखने की मांग तेज़ हुई थी    

प्रमुख बिंदु:    

  • इससे पहले वर्ष 2005 में RBI द्वारा जारी ‘विज़न डॉक्यूमेंट’ जारी किया गया जिसके तहत राज्यों के सहकारी बैंकों में विनियमन की दोहरी व्यवस्था में व्याप्त त्रुटियों को दूर करने के लिये एक ‘टास्क फोर्स’ की स्थापना की बात कही गई परन्तु इसे लागू नहीं किया जा सका   
  • वर्तमान में देश में कुल 1482 शहरी सहकारी बैंक और 58 बहु-राज्य सहकारी बैंक सक्रिय हैं     
  • केंद्र सरकार के इस निर्णय के माध्यम से सहकारी बैंकों के लगभग 8.6 करोड़ ग्राहकों के लगभग 4.84 लाख करोड़ रुपयों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी   

शहरी सहकारी बैंक (Urban Co-operative Bank- UCB):

  • UCB, ऐसे सहकारी बैंक होते हैं जो शहरों या अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में स्थित होते हैं  
  • पारंपरिक रूप से UCBs का कार्य छोटे समुदायों, क्षेत्र के कार्य समूहों तक केंद्रित थे और इनका उद्देश्य छोटे व्यवसाइयों को धन उपलब्ध कराना और स्थानीय लोगों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ना था  
  • परंतु समय के साथ UCBs कार्यक्षेत्र में काफी विस्तार हुआ है  

शहरी सहकारी बैंकों की अनियमितताएँ:

  • वर्ष 2014 में बनी ‘आर. गाँधी समिति’ (R. Gandhi Committee) द्वारा जारी रिपोर्ट में पाया गया कि जहाँ छोटे, गैर-अनुसूचित UCBs 10 लाख से कम के ऋण वितरण पर विशेष ध्यान दे रहे थे, वहीं बड़े और अनुसूचित UCBs अपने मुख्य उद्देश्य से हटते हुए व्यावसायिक बैंकों की तरह बड़े व्यापारिक ऋण वितरण में अधिक सक्रिय थे
  • जबकि इस दौरान ऐसे बैंकों ने सहकारी बैंकों के लिये निर्धारित कई प्रकार की छूट का लाभ भी प्राप्त किया    
  • सहकारी बैंकों में अनियमितता की बढती घटनाओं को देखते हुए RBI हाल के वर्षों में नए UCBs को लाइसेंस जारी करने से बचता रहा है
  • विनियमन की दोहरी व्यवस्था:  
    • सहकारी बैंकों का पंजीकरण संबंधित राज्य के ‘सहकारी समिति अधिनियम' (Co-operative Societies Act) या ‘बहु-राज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 2002’ (Multi-State Co-operative Societies Act, 2002) के तहत किया जाता है  
    • सहकारी बैंकों के विनियमन का कार्य सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार और RBI द्वारा किया जाता है 
    • इस व्यवस्था में RBI द्वारा ‘बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949’ के तहत सहकारी बैंकों की बैंकिंग प्रणाली की निगरानी का कार्य किया जाता है। 
    • जबकि सहकारी बैंकों के निदेशकों की नियुक्ति और बैंकों की ऑडिट प्रक्रिया की निगरानी सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा की जाती है  

सहकारी बैंकों की वर्तमान समस्याएँ:

  • हाल के वर्षों में सहकारी बैंकों के द्वारा ऋण वितरण प्रक्रिया के दौरान RBI के नियमों और मानदंडों की अनदेखी करते हुए अयोग्य संस्थानों/व्यक्तियों को धन उपलब्ध कराया गया जिसके कारण बैंकों की गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (Non-performing assets-NPAs) में भारी वृद्धि देखी गई
  • गौरतलब है कि ‘पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक’ (Panjab and Maharashtra Cooperative- PMC) में वित्तीय गड़बड़ी का मामला सामने आने के बाद जनवरी 2020 सहकारी बैंकों के संदर्भ में RBI ने कई कड़े कदम उठाए थे        
  • सहकारी बैंकों के विनियमन की दोहरी व्यवस्था से दोहराव और भ्रम की स्थिति होने के कारण कई गंभीर अनियमितताओं पर समय रहते कार्रवाई नहीं की जा सकी  

RBI के द्वारा सहकारी बैंकों के विनियमन का लाभ:

  • सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के माध्यम से RBI की निगरानी में वार्षिक रूप से सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली की नियमित समीक्षा की जा सकेगी   
  • इस अध्यादेश में दी गई शक्तियों के माध्यम से सहकारी बैंकों के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति RBI द्वारा की जाएगी, जिसे बैंकों के महत्त्वपूर्ण निर्णयों में अधिक पारदर्शिता लाना संभव हो सकेगा
    • यह निर्णय अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में प्रकाश में आए कई बैंकों में गड़बड़ी के कई मामलों में शीर्ष अधिकारियों द्वारा RBI को गलत आँकड़े उपलब्ध कराए गए थे।
  • वर्तमान व्यवस्था में किसी भी सहकारी बैंक में अनियमितता के खिलाफ कार्रवाई के लिये RBI राज्य सरकार को सिर्फ सुझाव दे सकती थी परंतु इस अध्यादेश के लागू होने के बाद RBI ऐसे मामलों में सीधे कार्रवाई कर सकेगी।
  • इस अध्यादेश में प्रस्तावित बदलावों के द्वारा सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता में वृद्धि होगी जिससे सहकारी बैंकों के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ेगा।    

चुनौतियाँ:

  • सहकारी समितियों का उद्देश्य व्यावसायिक हितों को पीछे रखते हुए जन भागीदारी के द्वारा लोगों की ज़रूरतों के अनुरूप बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना है परंतु इस प्रक्रिया में राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना एक बड़ी चुनौती होगी
  • अध्यादेश में प्रस्तावित सुधार पहले से निजी और अन्य व्यावसायिक बैंकों पर लागू होने के बावज़ूद हाल में कई बैंकों में वित्तीय गड़बड़ी के मामले देखें गए हैं। ऐसे में RBI को इन गड़बड़ियों की पुनरावृत्ति को रोकने हेतु आवश्यक सुधार करने होंगें।     
  • RBI पहले से ही व्यावसायिक बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक औ सैंकड़ो ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनीयों’  (Non-Banking Financial Company- NBFC) की निगरानी का कार्य करता है ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों में फैले सहकारी बैंकों की निगरानी और उनके विनियम हेतु संसाधन जुटाना RBI के लिये एक बड़ी चुनौती होगी      

आगे की राह:

  • सहकारी बैंकों को RBI के दिशा-निर्देशों के अनुरूप अपनी बैंकिंग प्रक्रिया में आवश्यक सुधार करते हुए निजी बैंकों के साथ सकारात्मक प्रतिस्पर्द्धा रखते हुए आगे बढ़ना चाहिये  
  • सहकारी बैंकों के आतंरिक गतिविधियों में पारदर्शिता हेतु बैंकों के अंकों को नियमित रूप से RBI के साथ साझा किया जाना चाहिये      
  • साथ ही शहरी क्षेत्रों में स्थित UCBs को सामान्य व्यावसायिक बैंकों के बराबर अधिकार प्रदान किए जाने चाहिये

निष्कर्ष:

सहकारी बैंक, निजी बैंकों की प्राथमिकता से दूर छोटे जमाकर्त्ताओं की एक बड़ी आबादी को बैंकिंग सेवाओं से जोड़ते हैं, परंतु हाल के वर्षों में PMC के साथ कुछ अन्य बैंकों में NPA के बढ़ने और अन्य वित्तीय गड़बड़ियों के मामले सामने आने के बाद सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली पर प्रश्न उठाने लगे थे। केंद्र सरकार द्वारा सहकारी बैंकों की निगरानी और उच्च अधिकारियों की नियुक्ति के लिये RBI के अधिकारों में वृद्धि से सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में व्याप्त अनियमितताओं को दूर करने में सहायता प्राप्त होगी। साथ ही इन सुधारों के माध्यम से सहकारी बैंकों में राजनीतिक हस्तक्षेप को भी सीमित किया जा सकेगा।

अभ्यास प्रश्न: सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में व्याप्त अनियमितताओं को दूर करने हेतु केंद्र सरकार द्वारा RBI के अधिकारों में वृद्धि का निर्णय कितना सही है? तर्क सहित समीक्षा कीजिये।