देश देशांतर : दूध की गुणवत्ता पर सवाल | 22 Dec 2018

संदर्भ


देश भर में दूध पर किये गए राष्ट्रीय दूध गुणवत्ता सर्वे (National Milk Quality Survey) से पता चला है कि 39 प्रतिशत नमूनों में गुणवत्ता के मानकों का पालन नहीं किया गया है। अर्थात् दूध की गुणवत्ता के जो पैरामीटर तय किये गए हैं उसके हिसाब से ये सैंपल खरे नही उतरे हैं। वहीं दूसरी तरफ 9.9 प्रतिशत दूध के सैंपल असुरक्षित (unsafe) पाए गए हैं। यानी इस दूध को पीने से शरीर को नुकसान हो सकता है।

  • मई 2018 में FSSAI ने सर्वे की शुरूआत की थी। इसकी अंतरिम रिपोर्ट 13 नवंबर को जारी की गई थी। सर्वे में देश भर से लिये गए 6432 सैंपल की जाँच की गई।
  • सर्वे के दौरान दूध में 13 तरह की मिलावट की जाँच की गई जिसमें वनस्पति तेल, डिटर्जेंट, ग्लूकोज़, यूरिया और अमोनियम सल्फेट शामिल हैं।
  • सर्वे में यह बात सामने आई कि दूध में फैट और सॉलिड नॉट फैट (SNF) की मात्रा मानक के अनुरूप नहीं हैं।
  • भारत में प्रतिदिन करीब 14.68 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है और देश में प्रति व्यक्ति दूध की खपत करीब 480 ग्राम है।

हमारे द्वारा इस्तेमाल होने वाला दूध गुणवत्ता के मानकों पर कितना खरा है?

  • सर्वेक्षण में गुणवत्ता के 4, मिलावट (adulterant) के 12 तथा दूषित पदार्थों के लिये 4 पैरामीटर के अलावा 93 एंटीबायोटिक दवाओं के अवशेष, 18 कीटनाशकों के अवशेष, अफ्लाटॉक्सिन (Aflatoxin) M1 और अमोनियम सल्फेट पर परीक्षण किया गया।
  • सर्वेक्षण के मुताबिक, दूध के 10 प्रतिशत से भी कम नमूनों में हानिकारक तत्त्व पाए गए जो दूध के उपभोग को असुरक्षित (unsafe) बनाते हैं।
  • इन सभी मामलों में दूध की खराब गुणवत्ता, एंटीबायोटिक दवाओं के गैर-ज़िम्मेदाराना उपयोग और खराब कृषि प्रथाओं को दूध के संदूषित होने का प्रमुख कारण माना जा रहा है।
  • FSSAI ने 2011 में काम करना शुरू किया, उस समय भी एक सर्वे हुआ था और उसको लेकर देश भर में बहुत सी कमियाँ सामने आई थीं।
  • इस सर्वे में उन कमियों को दूर किया गया है, इसमें क्वालिटी और सेफ्टी दोनों को ध्यान में रखा गया है, उनका गुणात्मक विश्लेषण भी किया गया है जो इसके पूर्व के सर्वे में नहीं किया गया था।
  • सर्वे में केवल 9.9 प्रतिशत सैंपल असुरक्षित पाए गए हैं, जबकि मात्र 12 सैंपल में मिलावट पाई गई है।
  • 39 प्रतिशत सैंपल में सेफ्टी से जुड़ी कोई समस्या नहीं है लेकिन इसमें गैर-अनुपालन की समस्या पाई गई है। इनमें फैट और SNF की मात्रा मानक के मुताबिक नहीं पाई गई है।
  • 1.2 प्रतिशत सैंपल में कीटनाशकों के अवशेष पाए गए हैं। अफ्लाटॉक्सिन जो पशुओं के चारे से दूध में आ जाता है, की मात्रा 5.7 प्रतिशत में पाई गई है जो चिंता का विषय है।
  • कुछ सैंपल में अमोनियम सल्फेट पाया गया है। यह कहाँ से आया है इसकी जानकारी अभी ठीक प्रकार से नहीं मिल पाई है। यह यूरिया या उर्वरकों के प्रयोग से पानी में घुलने और उसी पानी को पशुओं द्वारा पीने के कारण भी हो सकता है या दूध में इसे मिलाया भी जा सकता है।

खुले मिल्क से बेहतर प्रोसेस्ड मिल्क

  • खुले दूध के मुकाबले पैकेज्ड या प्रोसेस्ड दूध की गुणवत्ता बेहतर मानी जा सकती है क्योंकि इसमें प्रक्रिया पूरी तरह से निभाई जाती है।
  • ग्रामीण इलाकों में मिल्क सेंटर होते हैं जहाँ दूध इकट्ठा किया जाता है। इस दूध के कई परीक्षण किये जाते हैं। दूध में मिलावट पाए जाने पर उसे लौटा दिया जाता है। अगर गलती से दूध प्लांट तक पहुँच भी जाए तो उसे वहाँ से भी लौटा दिया जाता है।
  • दूध उत्पादकों और किसानों से उपलब्ध दूध में मौजूद फैट और सॉलिड नॉन फैट (वसा और पानी के अलावा दूध में मौजूद अन्य पोषक तत्त्वों) की जाँच के आधार पर दूध का मूल्य निर्धारित किया जाता है। इसलिये वे दूध में मिलावट से बचते हैं।
    · चिलिंग दूध को इंसुलेटेड टैंकरों के ज़रिये प्लांट में लाया जाता है। प्लांट में दूध की प्रोसेसिंग होती है।
  • दूध के कई तरह के टेस्ट होते हैं। इसके बावजूद दूध बेचने वाला दुकानदार दूध को ठीक तरह से स्टोर नहीं करता है तो उसके बिक्री अधिकार वापस लेने की कार्रवाई की जाती है। यही कारण है कि पैकेज्ड दूध खुले दूध से बेहतर है।

दूध की अशुद्धता के कारण

  • किसी भी दूध प्रोसेसिंग यूनिट या एग्री उत्पाद की प्रोसेसिंग यूनिट का रा- मैटेरियल किसानों से प्राप्त किया जाता है। फाइनल प्रोडक्ट देने के लिये मानकों के आधार पर टेस्टिंग होती है।
  • संगठित क्षेत्र से प्राप्त रा-मैटेरियल की गुणवत्ता मापी जाती है, इसकी जाँच के कुछ मापदंड होते हैं जिसे जाँच प्रक्रिया में शामिल किया जाता है और उसके हिसाब से किट भी इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि दूध की प्रोसेसिंग इसी क्षेत्र से सर्वाधिक होती है।
  • दूध का रा-मैटेरियल असंगठित क्षेत्र से भी आता है। गुणवत्ता की समस्या इसी क्षेत्र से ज़्यादा उत्पन्न होती है क्योंकि किसान अपना नफा-नुकसान जोड़कर रा-मैटेरियल कंपनियों को बेचता है। वह क्वालिटी और टेस्टिंग के न्यूनतम बिंदुओं को ध्यान में रखता है।
  • असंगठित क्षेत्र का किसान गुणवत्तापूर्ण रा-मैटेरियल उपलब्ध नहीं करा पाता है, इसमें किसान का भी दोष नहीं है क्योंकि रा-मैटेरियल की गुणवत्ता पशुधन के गुणवत्तापूर्ण चारा और पानी पर भी आधारित होता है।
  • किसान सिर्फ यही देख सकता है कि उसके पशुधन ख़राब चारा-पानी न लेने पाएँ। दूध में हैवी मेटल पानी के संदूषण की वजह से आते हैं, इस समस्या को दूर करने में किसान सक्षम नहीं है।
  • एक गरीब किसान द्वारा उत्पादित दूध सप्लायर के पास जाता है और सप्लायर सभी से दूध इकठ्ठा करके मिल्क प्रोसेसिंग यूनिट को देता है तथा इसमें उसको 24 से 48 घंटे के समय की ज़रूरत पड़ती है। साथ ही उसके पास इसके लिये वैसी सुविधाएँ नहीं होती हैं जिससे वह दूध को खराब होने से बचाने हेतु उचित तापमान पर रख सके।
  • इसके लिये वह दूध में कुछ पदार्थ जैसे-हाइड्रोजन पेरॉक्साइड, फॉरमेल्डेहाइड मिला देता है ताकि दूध खराब न हो।

दूध की मिलावट का शरीर पर प्रभाव

  • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दूध में मिलावट का स्वास्थ्य पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है।
  • दूध में अनेक पदार्थों की मिलावट होती है और इसके नियमित उपभोग से स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। दूध में मिलावटी पदार्थ तथा उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव निम्नलिखित हैं-

1. ऑक्सीटॉसिन इंजेक्शन

  • गायों और भैंसों में दुग्ध क्षमता बढ़ाने के लिये इस हार्मोन इंजेक्शन का उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग पूरे भारत में किया जाता है।
  • दूध में ऑक्सीटॉसिन की कम मात्रा भी लोगों में हार्मोनल असंतुलन का कारण बन सकती है। इससे किडनी रोग, याददाश्त की कमी, हृदय रोग आदि शारीरिक दुष्प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं।

2. फॉर्मलिन (फॉर्मल्डेहाइड)

  • फॉर्मलिन एक प्रिज़र्वेटिव और कीटाणुनाशक है जिसका उपयोग मुख्य रूप से मृत शरीर और अन्य जैविक नमूनों को संरक्षित करने के लिये किया जाता है। लेकिन वर्तमान में इस रसायन का उपयोग दूध की ख़राब होने की अवधि बढ़ाने के लिये किया जा रहा है।
  • प्रशीतन के खर्च को बचाने के लिये डेयरी किसान इसकी कुछ बूँदें दूध में डालते हैं। लेकिन यह क्रिया दूध उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य को खतरे में डाल देती है। इसके कुछ दुष्प्रभावों में कैंसर, त्वचा रोग, आँख की बीमारियाँ, अल्सर जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग तथा किडनी से संबंधित परेशानियाँ शामिल हैं।

3. हाइड्रोजन पेरॉक्साइड

  • हाइड्रोजन पेरॉक्साइड फॉर्मलिन के समान ही कार्य करता है। इसका उपयोग भी दूध को खराब होने से बचाने के लिये किया जाता है।
  • नियमित आधार से हाइड्रोजन पेरॉक्साइड की कम मात्रा में उपभोग भी कई स्वास्थ्य परेशानियाँ पैदा कर सकता है जैसे- हृदय संबंधी परेशानियाँ, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (पेट संबंधी) रोग तथा ख़राब पाचन तंत्र।

4. डिटर्जेंट

  • अगर आपको लगता है कि झाग के साथ सफेद दूध इसकी शुद्धता की पहचान है तो आप गलत हैं। दूध में डिटर्जेंट डालकर यह प्रभाव देखा जा सकता है।
  • डिटर्जेंट दूध को सफ़ेद और गाढ़ा बनाता है जो उपभोक्ताओं को आकर्षित करता है। लेकिन इससे कई दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा हो सकती हैं जैसे- गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग तथा गुर्दे से संबंधित समस्याएँ।

क्या किये जाने की ज़रूरत है?

  • दूध में मिलावट रोकने के लिये सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर सुझाव दिये हैं जो अति महत्त्वपूर्ण हैं।
  • उसने केंद्र सरकार को कई बार मिलावट के मामले में सख्त सज़ा का प्रावधान करने का निर्देश दिया है। कुछ राज्यों ने आईपीसी में संशोधन कर इस मामले में उम्रकैद तक की सज़ा का प्रावधान किया है।
  • पूर्व मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अगुआई वाली बेंच ने यह भी कहा था कि शिकायत करने के लिये ऑनलाइन मैकेनिज्म की व्यवस्था की जानी चाहिये ताकि दूध में मिलावट की शिकायत कोई भी कर सके।
  • फूड लैब्स की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ जाँच अधिकारियों की तैनाती भी सुनिश्चित की जानी चाहिये। 
  • कई राज्यों ने इसके लिये कानून तो बनाए हैं लेकिन उचित संख्या में खाद्य निरीक्षकों तक की नियुक्ति नहीं की गई है। फूड लैब्स की भी भारी कमी है।
  • जहाँ फूड लैब्स हैं भी तो इनमें काम करने वाले कर्मचारी नहीं हैं। एक-एक रिपोर्ट के आने में छह-छह महीने का समय लगता है। इसका फायदा मिलावटखोर उठाते हैं।
  • भारत एक शाकाहार प्रधान देश है और दूध को प्रोटीन का सबसे व्यापक स्रोत माना जाता है। पिछले कुछ सालों में भारत दूध उत्पादन के मामले में पूरी दुनिया में प्रथम स्थान पर आ गया है।
  • देश में प्रतिदिन करीब दो लाख गाँवों से दूध एकत्रित किया जाता है और डेयरी उद्योग लगातार मज़बूत हो रहा है। ज़रूरत इसे व्यवस्थित रूप देने और बेहतर ढंग से इस क्षेत्र का रेगुलेशन करने की है। 
  • दूध की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत जाँच तंत्र बनाया जाना चाहिये। 

निष्कर्ष


2011 में देश भर से दूध के जितने सैंपल इकठ्ठा किये गए थे उनमें से 70 प्रतिशत सैंपल खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अनुरूप नहीं पाए गए थे। संतोष की बात यह है कि वर्तमान में यह घटकर 39 प्रतिशत पर आ गया है अर्थात् दूध की गुणवत्ता में क्रमिक सुधार हो रहा है। यह सही है कि लीवर, किडनी, हृदय रोग और कैंसर के मामलों के तेज़ी से बढ़ने की सबसे बड़ी वज़ह खाद्य पदार्थों में मिलावट है। दूध जो कि बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के लिये एक पौष्टिक आहार है, की 100 प्रतिशत शुद्धता को सुनिश्चित करने के लिये कारगर कदम उठाए जाने की ज़रूरत है।