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लोकमंच/देश-देशांतर : नक्सलवाद का समाधान/सिमटता नक्सलवाद | 08 Feb 2018 | आंतरिक सुरक्षा

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
देश के सामने सबसे पुरानी और सबसे लंबे समय से चलने वाली हिंसक उग्रवाद की समस्याओं में एक है नक्सलवाद या माओवाद या वामपंथी चरमपंथ। इसे लेकर संसद सहित देश में विभिन्न मंचों पर समय-समय पर चिंता जताई जाती रही है और अभी हाल ही में लोकसभा में एक बार फिर सदस्यों ने इसको लेकर सरकार से सवाल पूछे।

नक्सलवाद की उत्पत्ति 
भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग ज़िले के नक्सलबाड़ी नामक गाँव से हुई और इसी वज़ह से इस उग्रपंथी आंदोलन को यह नाम मिला। ज़मींदारों द्वारा किये जा रहे छोटे किसानों के उत्पीड़न पर अंकुश लगाने को लेकर सत्ता के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार, कानू सान्याल और कन्हाई चटर्जी द्वारा शुरू किये गए इस सशस्त्र आंदोलन को नक्सलवाद का नाम दिया गया। यह आंदोलन चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग की नीतियों का अनुगामी था (इसीलिये इसे माओवाद भी कहा जाता है) और आंदोलनकारियों का मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं।

सामाजिक-आर्थिक कारणों से उपजा था नक्सलवाद 
केंद्र और राज्य सरकारें माओवादी हिंसा को अधिकांश रूप से कानून-व्यवस्था की समस्या मानती रही हैं, लेकिन इसके मूल में गंभीर सामाजिक-आर्थिक कारण भी रहे हैं।

अवैध वसूली का धंधा है आज नक्सलवाद 
आज स्थिति यह है कि नक्सलियों ने वसूली को अपना मुख्य धंधा बनाया हुआ है और इस वसूली का वार्षिक कारोबार सैकड़ों करोड़ रुपए का है। ये नक्सली, बीड़ी बनाने में इस्तेमाल होने वाले तेंदू पत्ते के ठेकेदारों, अवसंरचना के काम में लगे ठेकेदारों, कारोबारियों और कॉरपोरेट उद्योगपतियों से उगाही करते हैं। आज नक्सलवाद कोई सामाजिक आंदोलन अथवा संघर्ष नहीं, बल्कि एक किस्म की आतंकवादी गतिविधि बनकर रह गया है, जिसमें धन प्राप्ति के लिये हत्या, अपहरण जैसी हर प्रकार की अवैध गतिविधियाँ शामिल हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में गरीबों के हालात जस-के-तस बने हुए हैं और उनके हक की बात करने वाले नक्सली करोड़ों रुपए की वसूली कर रहे हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

सिमट रहा है नक्सलवाद 

'LWE' जिलों के लिये विशेष रणनीति
इस समस्या से निपटने के क्रम में केंद्र सरकार ने रेड कॉरिडोर का पुनर्निर्धारण किया। इसके तहत नक्सल प्रभावित ज़िलों (Left Wing Extremism-LWE-Affected Districts) की संख्या को लगभग इसके पाँचवें भाग तक कम करने का निर्णय लिया गया था। इनकी संख्या में कमी करने के पीछे सरकार का कहना था कि इन ज़िलों में हिंसा में कमी आई है। फिर भी इस पर प्रभावी नियंत्रण के लिये निम्नलिखित प्रयास करने की आवश्यकता है:

सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास 

और क्या किया जा सकता है?

माओवाद और कौशल विकास

(टीम दृष्टि इनपुट)

नक्सल प्रभावित हर ज़िले को केंद्र और राज्य सरकार इतना पैसा देती है कि अगर उसे सही तरीके से खर्च किया जाए तो ज़िलों की तस्वीर बदल जाए, लेकिन इसके बावजूद शौचालय और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं का तो अभाव है ही, अस्पताल जाने के लिये भी वहाँ लोगों को मीलों पैदल चलना पड़ता है। इस पैसे में से एक बड़ा हिस्सा नक्सलियों को भी जाता है।

नक्सलवाद से निपटने के लिये 'SAMADHAN' पहल

पिछले वर्ष नक्सल समस्या से निपटने के लिये केंद्र सरकर ने आठ सूत्रीय 'समाधान’ नामक एक कार्ययोजना की शुरुआत की। यह  अंग्रेज़ी के कुछ शब्दों के प्रथम अक्षरों से बना एक परिवर्णी शब्द (Acronym) है। इस कार्ययोजना के आठ बिंदु इस प्रकार हैं:

  1. S-Smart leadership=कुशल नेतृत्व
  2. A-Aggressive strategy=आक्रामक रणनीति 
  3. M-Motivation and training=प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण
  4. A-Actionable intelligence=कारगर खुफिया तंत्र
  5. D-Dashboard based key performance indicators and key result areas= कार्ययोजना के मानक
  6. H-Harnessing technology=कारगर प्रौद्यौगिकी
  7. A-Action plan for each threat=प्रत्येक रणनीति की कार्ययोजना
  8. N-No access to financing=नक्सलियों के वित्त-पोषण को विफल करने की रणनीति

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: माओवादी हिंसा  से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में सुधार करने के साथ ही इस पर नियंत्रण के लिये स्थायी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये। प्रभावित क्षेत्रों में आम लोगों के संरक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण कदम उठाने के साथ ही शांति योजनाएँ चलाने पर ध्यान दिया जाना चाहिये। ज़रूरत इस बात की भी है कि आम आदमी को इस बारे में शिक्षित कर राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले मामलों में उन्हें शामिल करना चाहिये। इस समस्या को लेकर सभी नक्सल प्रभावित राज्यों को मिलकर एक सुदृढ़ रणनीति बनानी चाहिये, ताकि व्यापक तरीके से नक्सलवाद के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई की जा सके। अभी स्थिति यह  है कि राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर पर इस चुनौती से लड़ती हैं और ऐसी कोई कार्य योजना नहीं है जिसके ज़रिये  नक्सलवाद की समस्या का एकजुट होकर सामना किया जा सके। इस मामले में एक समस्या यह भी है कि नक्सलवादी हमलों को अब तक केवल कानून व्यवस्था से जोड़कर देखा जाता रहा है और इसका सामना करने के लिये पूरी तरह से राज्य सरकारों को ही फैसला लेना होता है, केंद्र सरकार केवल मदद कर सकती है। इसके साथ-साथ राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को माओवादी प्रभाव वाले इलाकों को उनके प्रभाव से मुक्त कराने तथा प्रभावशाली शासन और त्वरित विकास के लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयासों के तहत निरंतर कार्रवाई करने के लिये द्विआयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।