औद्योगिक संबंध संहिता, 2019 | 10 Feb 2020

संदर्भ

केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्री द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र में ‘औद्योगिक संबंध संहिता, 2019’ विधेयक पेश किया गया था, यह संहिता वर्तमान के तीन श्रम कानूनों (i) ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926 (ii) औद्योगिक रोज़गार (स्थायी आदेश) एक्ट, 1946 (iii) औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 को संयोजित करेगी। विधेयक पर चर्चा के बाद इसे संसदीय समिति के पास भेज दिया गया है। इस संहिता में श्रमिक संगठनों के नामांकन की प्रक्रिया, हड़ताल और बंद के लिये नोटिस की अवधि तथा औद्योगिक विवादों के निपटारे के लिये औद्योगिक न्यायाधिकरण एवं राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण की स्थापना जैसे प्रावधान किये गए हैं।

केंद्र सरकार की योजना के तहत श्रम और उद्योगों से संबंधित कुल 44 पुराने श्रमिक कानूनों को 4 नई संहिताओं में समायोजित किया जाएगा। इस परिवर्तन के पीछे केंद्र सरकार का उद्देश्य श्रम कानूनों का सरलीकरण और इसके द्वारा श्रमिकों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए उद्योगों को बढ़ावा देना है।

श्रमिक कानूनों से संबंधित चार नए संहिताएँ निम्नलिखित हैं:

  • वेतन संहिता विधेयक 2019 (अगस्त 2019 में पारित)
  • सामाजिक सुरक्षा संहिता तथा पेशेगत सुरक्षा, संहिता
  • औद्योगिक संबंध संहिता
  • व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थितियाँ संहिता (Occupational Safety, Health and Working Conditions Code)

औद्योगिक संबंध संहिता, 2019

  • श्रमिक संगठन: सहिंता में प्रस्तावित नियमों के अनुसार, किसी श्रमिक संघ से जुड़े 7 या उससे अधिक सदस्य श्रमिक संगठन के पंजीकरण हेतु आवेदन कर सकते हैं। इस नियम के अंतर्गत उन श्रमिक संगठनों का पंजीकरण किया जाएगा जिनमें कम-से-कम 10% या 100 (जो भी कम हो) कर्मचारी हों। इस नियम के तहत पंजीकृत संगठनों में सदैव कम-से-कम 7 ऐसे सदस्यों का होना अनिवार्य है जो उस क्षेत्र से संबंधित संस्थान या औद्योगिक प्रतिष्ठान में कार्यरत हों।
  • औद्योगिक विवादों का समाधान:
    • इस संहिता में किसी औद्योगिक संस्थान में नियोक्ता और कर्मचारियों के बीच बातचीत के लिये एकमात्र मध्यस्थता संघ की मान्यता का प्रावधान किया गया है। किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान में एक से अधिक श्रमिक संगठन होने की दशा में 75% या इससे अधिक श्रमिकों वाले संगठन को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा मध्यस्थता संघ (Negotiating Union) के रूप में मान्यता दी जाएगी।
    • संहिता के नियमों में श्रमिक और नियोक्ताओं के लिये स्वेच्छा से लिखित समझौते द्वारा विवादों के आपसी समाधान की व्यवस्था भी की गई है।
    • नए नियमों के अंतर्गत सरकार औद्योगिक विवादों के समाधान या मध्यस्थता के लिये अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है। ये अधिकारी विवादों की जाँच कर उनके उचित और सौहार्दपूर्ण समाधान की प्रक्रिया की व्यवस्था करेंगे।
    • इसके अतिरिक्त विवादों के समाधान के लिये कोई भी पक्ष (श्रमिक या नियोक्ता) औद्योगिक न्यायाधिकरण में अपील कर सकता है।
  • कार्यस्थगन या हड़ताल: संहिता में ‘हड़ताल’ को पुनः परिभाषित करते हुए ‘सामूहिक आकस्मिक अवकाश’ को भी हड़ताल की श्रेणी में रखा गया है। संहिता के नियमों के तहत विरोध के रूप में कार्यस्थगन या हड़ताल के लिये श्रमिकों या श्रमिक संघ द्वारा औद्योगिक प्रतिष्ठान को हड़ताल से 14 दिन पहले नोटिस देना अनिवार्य होगा। साथ ही ऐसे समय में भी हड़ताल करने पर प्रतिबंध होगा जब मामला न्यायिक अधिकरण में या मध्यस्थता अधिकारी के समक्ष चल रहा हो।
  • औद्योगिक न्यायाधिकरण: संहिता में औद्योगिक विवादों के समाधान के लिये दो सदस्यीय औद्योगिक न्यायाधिकरण की स्थापना की व्यवस्था की गई है। इस व्यवस्था के तहत सामान्य मामलों की सुनवाई एक न्यायाधीश द्वारा जबकि विशेष महत्त्व के मामलों में सुनवाई हेतु दो सदस्यीय न्यायाधीश बेंच की व्यवस्था की जाएगी। न्यायाधिकरण का एक न्यायिक सदस्य जो कि उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या ज़िला जज या अवर-ज़िला जज के रूप में न्यूनतम तीन वर्ष का अनुभव रखता हो तथा दूसरे सदस्य के रूप में चयनित व्यक्ति के लिये अर्थशास्त्र, व्यवसाय , विधि और श्रम संबंधी क्षेत्र में 20 वर्ष का प्रशासनिक अनुभव होना अनिवार्य होगा।
    • इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों और दो अलग-अलग राज्यों में स्थित औद्योगिक प्रतिष्ठानों के विवाद के मामलों में राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण का गठन कर सकती है।
  • अनुबंध (Contract) की वैधानिकता: इस व्यवस्था के तहत कंपनियों को एक निश्चित अवधि के लिये अनुबंध पर कर्मचारियों की नियुक्ति करने की अनुमति दी गई है, साथ ही संहिता में यह भी प्रावधान किया गया है कि कर्मचारियों को अनुबंध की इस अवधि के दौरान सामान्य कर्मचारियों के सामान सारे लाभ (वेतन, अंशदान और अवकाश) दिये जाएंगे।
  • निष्कासन और छँटनी: प्रस्तावित नियमों के तहत 100 या इससे अधिक कर्मचारियों वाले औद्योगिक संस्थान को काम बंद करने या छँटनी से पहले केंद्र या राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी। इस संदर्भ में नियमों का पालन न करने वाले संस्थान पर 1 लाख रुपए से लेकर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। संहिता में छंटनी की स्थितियों को परिभाषित किया गया है। इसके तहत नियोक्ता संसाधनों की कमी या तकनीकी गड़बड़ी के कारण रोज़गार उपलब्ध कराने में असमर्थता जाहिर कर सकता है।
  • स्थायी आदेश (Standing Orders): संहिता के प्रावधानों के अनुसार, 100 या इससे अधिक कर्मचारियों वाले औद्योगिक संस्थानों को संहिता की अनुसूची में सूचीबद्ध मामलों पर स्थायी आदेश तैयार करना होगा, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
    • श्रमिकों का वर्गीकरण
    • कार्य के घंटे(समय)
    • कार्य-दिवसों (Work Days) की संख्या, अवकाश और वेतन की दर
    • रोज़गार की समाप्ति (Termination of Employment)
    • दुर्व्यवहार की स्थिति में निष्कासन
    • कर्मचारियों के लिये शिकायत निवारण प्रणाली

केंद्र सरकार इन मामलों से संबंधित माॅडल स्थायी आदेश तैयार करेगी जिसके आधार पर औद्योगिक संस्थानों को अपने स्थायी आदेश तैयार करने होंगे।

औद्योगिक निकायों द्वारा तैयार स्थायी आदेशों को प्रमाणित करने से पहले श्रमिक संगठनों से इस संबंध में विचार-विमर्श किया जाएगा।

  • रि-स्किलिंग फंड (Re-Skilling Fund) : संहिता में प्रस्तावित नियमों के अनुसार, कंपनियों को एक रि-स्किलिंग फंड की स्थापना करनी होगी। इस फंड के तहत किसी कंपनी में छँटनी के दौरान निष्कासित कर्मचारी को उसके अंतिम 15 दिनों के वेतन के बराबर की धनराशि दी जाएगी। कंपनियों को यह धनराशि कर्मचारी के निष्कासन के 45 दिनों के अंदर उसके बैंक खाते में जमा करानी होगी।

औद्योगिक संबंध संहिता में बदलाव की आवश्यकता क्यों?

  • श्रम और उद्योगों से जुड़े ज़्यादातर कानून बहुत ही जटिल एवं पुराने हैं (जैसे-ट्रेड यूनियन एक्ट, 1926)।
  • औद्योगिक विवाद के मामलों की लंबी न्यायिक प्रक्रिया।
  • कर्मचारी-नियोक्ता संबंध में संतुलन की कमी।
  • वर्तमान समय की औद्योगिक ज़रूरतों को न पूरा कर पाना।

औद्योगिक संबंध संहिता के लाभ:

  • संहिता के प्रावधानों से अनुबंधित श्रमिकों को भी सामान्य श्रमिकों के बराबर लाभ मिल सकेगा।
  • कंपनियाँ अपनी सीमित ज़रूरतों के लिये आसानी से अनुबंध पर श्रमिओं को नियुक्त कर सकेंगी।
  • इस व्यवस्था से कंपनी और कर्मचारी के मध्य बिचौलियों से छुटकारा मिलेगा।
  • कंपनियाँ (जहाँ 100 या इससे अधिक कर्मचारी कार्यरत हों) सरकार की सहमति के बगैर कर्मचारियों का निष्कासन नहीं कर सकेंगी।
  • दो सदस्यीय औद्योगिक न्यायाधिकरण से विवादों के निपटारे में तेज़ी आएगी।
  • अधिकारियों की मध्यस्थता से मामलों के उचित और सौहार्दपूर्ण समाधान सुनिश्चित किया जा सकेगा।
  • संहिता में प्रस्तावित संशोधनों से कानूनों में व्याप्त जटिलताओं को दूर करने में मदद मिलेगी।
  • नियमों में संशोधन से विभिन्न क्षेत्रों में विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा।

औद्योगिक संबंध संहिता की आलोचना:

नई औद्योगिक संबंध संहिता की अनेक सकारात्मक अपेक्षाओं के बावज़ूद कई सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और श्रमिक संगठनों ने इसका विरोध किया है। आलोचकों द्वारा संहिता के विरोध के कुछ कारण निम्नलिखित हैं-

  • संहिता में प्रस्तावित परिवर्तनों के परिणामस्वरूप श्रमिकों द्वारा विरोध के लिये बंद या सामूहिक अवकाश का उपयोग करना कठिन हो जाएगा।
  • अनुबंध संबंधी नियमों के दुरुपयोग से कर्मचारियों के हितों की क्षति होगी।
  • संहिता में मंत्रालय द्वारा गठित समिति के सुझावों के विपरीत न्यूनतम वेतन 375 रुपए के स्थान पर मात्र 175 रुपए ही रखा गया है।
  • संहिता के लागू होने के बाद भी देश के लगभग 85% औद्योगिक इकाइयाँ कर्मचारियों की कम संख्या के कारण इस कानून के दायरे से बाहर रहेंगी, संहिता में इस समस्या को संबोधित नहीं किया गया है।
  • वर्तमान में देश में एक बड़ी संख्या उन श्रमिकों की है जो असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, संहिता में प्रस्तावित परिवर्तनों में इस पर ध्यान नहीं दिया गया है।

निष्कर्ष:

किसी भी संस्थान की सफलता के लिये उसके समस्त भागीदारों का एक साथ मिलकर काम करना आवश्यक है। नियोक्ता और श्रमिक के मध्य विवाद न सिर्फ औद्योगिक प्रतिष्ठानों को आर्थिक क्षति पहुँचाते हैं बल्कि ऐसे विवाद अप्रत्यक्ष रूप से विकास को बाधित करने के साथ ही वैश्विक बाज़ार में भी देश की स्थिति को कमज़ोर करते हैं। बदलते वैश्विक परिवेश के साथ औद्योगिक ज़रूरतों के अनुरूप नियमों में अपेक्षित परिवर्तन करने के साथ ही देश के सर्वांगीण विकास के लिये श्रमिक वर्ग के हितों की रक्षा सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है।

अभ्यास प्रश्न: नई औद्योगिक संबंध संहिता के आलोक में देश में श्रमिक - नियोक्ता संबंधों में सुधार की संभावना पर चर्चा करें। क्या इससे देश में श्रमिकों कि स्थिति में सकारात्मक बदलाव के साथ उद्योगों के विकास में तेज़ी आएगी?