कुलभूषण जाधव: अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला | 23 Jul 2019

संदर्भ

17 जुलाई को नीदरलैंड्स के द हेग स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) ने अपने फैसले में भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की फाँसी की सज़ा पर रोक को बरकरार रखते हुए पाकिस्तान से इस पर पुनर्विचार करने को कहा। साथ ही पाकिस्तान से कुलभूषण जाधव को कॉन्सुलर एक्सेस (भारतीय राजनयिकों से मिलने की इज़ाजत) देने के लिये भी कहा। लेकिन उसकी सज़ा रद्द करने, बरी करने, रिहा करने या वापस भारत भेजने को लेकर न्यायालय ने कुछ नहीं कहा।

  • नीदरलैंड्स के द हेग स्थित ICJ की अब्दुलकावी अहमद यूसुफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2 साल 2 महीने तक चली सुनवाई के बाद 15-1 के बहुमत से भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव की फाँसी की सज़ा पर रोक को बरकरार रखा और पाकिस्तान से इस पर पुनर्विचार करने को कहा।
  • विदित हो कि पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने कुलभूषण जाधव को जासूसी के मामले में मृत्युदंड की सज़ा सुनाई थी, जिसे मई 2017 में भारत ने चुनौती दी थी, जिसके बाद जुलाई 2018 में सज़ा पर रोक लगा दी गई।
  • द हेग के पीस पैलेस में सार्वजनिक सुनवाई के बाद न्याय पीठ ने फैसला सुनाया। इस बहुचर्चित मामले में न्यायालय की 15 सदस्यीय पीठ ने भारत और पाकिस्तान की मौखिक दलीलें सुनने के बाद 21 फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
  • कुलभूषण जाधव की सज़ा पर ‘प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार’ का यह आदेश वर्ष 2017 के उस अस्थायी आदेश की अगली कड़ी है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने अंतिम फैसला आने तक कुलभूषण जाधव को फाँसी न देने की बात कही थी।

पृष्ठभूमि

  • पाकिस्तान का दावा है कि उसके सुरक्षा बलों ने कुलभूषण जाधव उर्फ हुसैन मुबारक पटेल को 3 मार्च, 2016 को बलूचिस्तान प्रांत से गिरफ्तार किया था, जो कथित रूप से ईरान से बलूचिस्तान में घुस गए थे।
  • भारत का कहना है कि उन्हें ईरान से अगवा किया गया था, जो भारतीय सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद अपने कारोबार के संबंध में ईरान गए थे। इसके बाद कुलभूषण जाधव को पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने अप्रैल 2017 में बंद कमरे में सुनवाई के बाद जासूसी और आतंकवाद के आरोपों में फाँसी की सज़ा सुनाई थी।
  • पाकिस्तानी सैन्य अदालत के फैसले और 16 बार कॉन्सुलर एक्सेस के निवेदन ठुकराए जाने के बाद 8 मई, 2017 को भारत ने इसे वियना संधि का उल्लंघन बताते हुए ICJ में याचिका दायर की। इसके अगले ही दिन ICJ ने कुलभूषण जाधव की मौत की सज़ा पर सुनवाई पूरी होने तक रोक लगा दी। इन दो वर्षों में भारत और पाकिस्तान ने लिखित व मौखिक रूप से अपना-अपना पक्ष रखा।
  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को राजनयिक पहुँच उपलब्ध कराने की भारत की मांग खारिज कर दी थी और दावा किया था कि भारत अपने जासूस द्वारा एकत्र की गई खुफिया जानकारी के लिये उस तक पहुँचना चाहता है।
  • पिछले महीने पाकिस्तान ने ICJ में कहा था कि वियना संधि के तहत ऐसी सुविधा जासूसों के लिये नहीं, बल्कि वैध यात्रियों हेतु होती है।

न्यायाधीशों ने लगभग सर्वसम्मति से यह माना कि इस मामले में भारत का ICJ में अपील करना बिल्कुल सही है और यह मामला न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। न्यायालय के 16 न्यायाधीशों में 15 ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान के विरोध को खारिज कर दिया, केवल पाकिस्तान के एडहॉक जज जिलानी ने अपना विरोध जताया।

वियना कन्वेंशन क्या है?

  • सबसे पहले वर्ष 1961 में स्वतंत्र और संप्रभु देशों के बीच आपसी राजनयिक संबंधों को लेकर वियना संधि हुई थी। इसके तहत ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया जिसमें राजनयिकों को विशेष अधिकार दिये गए।
  • इस संधि के दो साल बाद 1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इससे मिलती-जुलती एक और संधि का प्रावधान किया, इसे वियना कन्वेंशन ऑन कॉन्सुलर रिलेशंस कहा गया। इसका ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन ने तैयार किया था। इसे 1964 में लागू किया गया और तभी वियना संधि पूरी तरह से अस्तित्व में आई।
  • फरवरी 2017 तक वियना संधि पर दुनियाभर के कुल 191 देश हस्ताक्षर कर चुके थे। वहीं, ‘वियना कन्वेंशन ऑन कॉन्सुलर रिलेशंस’ पर अब तक 179 देशों ने हस्ताक्षर कर अपनी सहमति दी है। भारत और पाकिस्तान भी इनमें शामिल हैं।
  • इस संधि के तहत कुल 85 आर्टिकल हैं और भारत ने कुलभूषण जाधव का मामला इसी संधि के तहत उठाया था।

प्रमुख नियम-कायदे

  • मेज़बान देश अपने यहाँ रहने वाले अन्य देशों के राजनयिकों को विशेष दर्जा देता है।
  • कोई भी देश किसी अन्य देश के राजनयिकों को किसी भी कानूनी मामले में गिरफ्तार नहीं कर सकता और न ही उन्हें किसी तरह की हिरासत में रखा जा सकता है।
  • किसी राजनयिक पर मेज़बान देश में किसी तरह का कस्टम टैक्स नहीं लग सकता।
  • संधि के आर्टिकल 31 के मुताबिक, मेज़बान देश अन्य देश के दूतावास में नहीं घुस सकता और मेज़बान देश को उस दूतावास की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उठानी होगी।
  • संधि के आर्टिकल 36 के अनुसार अगर कोई देश किसी विदेशी नागरिक को गिरफ्तार करता है, तो संबंधित देश के दूतावास को तुरंत इसकी जानकारी देनी होगी।
  • संधि के आर्टिकल 5 में पाँच कामों का उल्लेख किया गया है। इनमें मेज़बान देश में अपने देश और नागरिकों के हितों की रक्षा करना, आर्थिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संबंधों को दो देशों के बीच कायम रखना शामिल है।

कॉन्सुलर एक्सेस

  • गिरफ्तार किये गए विदेशी नागरिक के आग्रह पर मेज़बान देश की पुलिस को संबंधित दूतावास या राजनयिक को फैक्स करके इसकी सूचना देनी पड़ेगी। इस फैक्स में पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति का नाम, गिरफ्तारी की जगह और वज़ह भी बतानी होगी। भारत ने ICJ में इसी आर्टिकल 36 के प्रावधानों का हवाला देते हुए कुलभूषण जाधव का मामला उठाया तथा विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा करने की मांग भी इसी संधि के तहत उठाई गई थी।
  • इस संधि में यह भी प्रावधान है कि राष्ट्रीय सुरक्षा (जासूसी या आतंकवाद) के मामलों में गिरफ्तार विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुँच नहीं भी दी जा सकती। विशेषकर तब जब दो देशों ने इस मसले पर कोई आपसी समझौता किया हो।
  • विदित हो कि भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 2008 में इसी तरह का एक समझौता हुआ था। पाकिस्तान इसी समझौते को आधार बनाकर कुलभूषण जाधव को राजनयिक पहुँच देने से इनकार करता रहा है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय क्या है?

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रधान न्यायिक अंग है।
  • इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा 1945 में की गई थी और अप्रैल 1946 में इसने कार्य करना प्रारंभ किया था।
  • इसका मुख्यालय (पीस पैलेस) हेग (नीदरलैंड्स) में स्थित है।
  • इसके प्रशासनिक व्यय का भार संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वहन किया जाता है।
  • इसकी आधिकारिक भाषाएँ अंग्रेज़ी और फ्रेंच हैं।
  • ICJ में 15 जज होते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा नौ वर्षों के लिये चुने जाते हैं। इसका कोरम 9 जजों का है।
  • ICJ में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति पाने के लिये प्रत्याशी को महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों में ही बहुमत प्राप्त करना होता है।
  • इन न्यायाधीशों की नियुक्ति उनकी राष्ट्रीयता के आधार पर न होकर उच्च नैतिक चरित्र, योग्यता और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर उनकी समझ के आधार पर होती है।
  • किसी न्यायाधीश को हटाने के लिये अन्य न्यायाधीशों का सर्वसम्मत निर्णय ज़रूरी है।
  • एक ही देश से दो न्यायाधीश नहीं चुने जा सकते।
  • ICJ में प्रथम भारतीय मुख्य न्यायाधीश डॉ. नगेन्द्र सिंह थे तथा वर्तमान में जस्टिस दलवीर भंडारी ICJ में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
  • मामलों पर निर्णय न्यायाधीशों के बहुमत से होता है। सभापति को निर्णायक मत देने का अधिकार है।
  • ICJ का निर्णय अंतिम होता है तथा इस पर पुनः अपील नहीं की जा सकती है, परंतु कुछ मामलों में पुनर्विचार किया जा सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार, इसके सभी 193 सदस्य देश इस न्यायालय से न्याय पाने का अधिकार रखते हैं। हालाँकि जो देश संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य नहीं हैं वे भी यहाँ न्याय पाने के लिये अपील कर सकते हैं।

पहले भी हो चुका है आमना-सामना

कुलभूषण जाधव मामले से पहले भी भारत और पाकिस्तान तीन बार ICJ में आमने-सामने आ चुके हैं:

  • पहली बार वर्ष 1971 में, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन द्वारा पाकिस्तान के हक में दिये गए फैसले के खिलाफ भारत ने अपील की थी। ICJ ने तब भारत का दावा खारिज कर दिया था।
  • वर्ष 1973 के दूसरे मामले में ICJ ने भारत का साथ दिया था और पाकिस्तान के इस दावे को गलत माना था कि उसके कैदियों के साथ भारत में दुर्व्यवहार किया जा रहा है।
  • तीसरा मामला वर्ष 2000 का है, जब पाकिस्तानी विमान को मार गिराने संबंधी शिकायत पर अदालत ने भारत के तर्कों से सहमति जताई थी।

लेकिन इन मामलों से पहले वर्ष 1950 के दशक में ICJ ने दमन, दादरा और नगर हवेली पर पुर्तगाल के दावे को निरस्त करते हुए अपना फैसला भारत के पक्ष में सुनाया था।

वर्ष 2014 में परमाणु हथियारों के प्रसार को रोक पाने में कथित विफलता के कारण जब मार्शल आइलैंड ने ICJ में अपील की थी, तो वर्ष 2016 में फैसला सुनाते हुए भारतीय पक्ष से सहमति जताई थी और द्विपक्षीय विवाद न होने के कारण कोई व्यवस्था या फैसला देने से इनकार कर दिया था।

कितना बाध्यकारी है ICJ का फैसला?

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 94 के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश न्यायालय के उस फैसले को स्वीकार करेंगे जिसमें वे स्वयं पक्षकार (Party) हैं। ऐसी स्थिति में न्यायालय का फैसला अंतिम होगा और इस पर कोई अपील नहीं की जा सकेगी।
  • लेकिन अगर निर्णय की किसी पंक्ति या शब्द के अर्थ को लेकर किसी प्रकार की आशंका हो या उसके एक से अधिक अर्थ संभव हों तो संबंधित पक्ष द्वारा न्यायालय के समक्ष उसकी पुनः व्याख्या की अपील की जा सकती है।
  • मामले से संबंधित देशों/देश ICJ द्वारा दिये गए फैसले को लागू करने के लिये बाध्य हैं, लेकिन ऐसे भी मामले देखे गए हैं जब देशों ने न्यायालय के फैसले को मानने से इनकार किया है। उदाहरण के लिये वर्ष 1991 में निकारागुआ ने अमेरिका के खिलाफ ICJ में शिकायत की थी कि अमेरिका ने एक विद्रोही संगठन की मदद कर उसके खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ दिया है। ICJ ने इस मामले में निकारागुआ के पक्ष में फैसला दिया था, लेकिन अमेरिका ने वीटो पॉवर का इस्तेमाल करते हुए इसके फैसले को मानने से इनकार कर दिया था।
  • ICJ के पास अपने फैसलों को लागू कराने के लिये कोई प्रत्यक्ष शक्ति नहीं है, ऐसे में इसके फैसले को न मानने के संबंध में आशंका और भी बढ़ जाती है।

पाकिस्तान द्वारा फैसला न मानने पर भारत के लिये विकल्प

  • यदि पकिस्तान ICJ के इस फैसले को लागू करने के मामले में अनिच्छा व्यक्त करता है या फैसले को मानने से इनकार करता है तो ऐसी स्थिति में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से अपील कर सकता है कि वह पकिस्तान से इस फैसले को लागू करने को कहे।
  • चूँकि चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और भारत तथा चीन के बीच संबंधों एवं पाकिस्तान के साथ चीन की निकटता को देखते हुए ऐसा संभव है कि चीन पाकिस्तान द्वारा इस फैसले को मानने के संदर्भ में अपने वीटो पॉवर का प्रयोग करे, जैसा कि अमेरिका द्वारा निकारागुआ मामले में किया गया था।

बन सकता है संबंध सुधारने का ज़रिया

फैसले के मुताबिक, पाकिस्तान ‘प्रभावी समीक्षा और पुनर्विचार’ के लिये सभी प्रकार के उपाय करने को स्वतंत्र है। इसमें जरूरत होने पर उपयुक्त कानून बनाना भी शामिल है। वैसे पाकिस्तान चाहे तो इस फैसले का इस्तेमाल दोनों देशों के बीच जमी बर्फ को पिघलाने के लिये कर सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि यदि पाकिस्तान कुलभूषण जाधव को लौटा देता है तो भारतीय जनमानस पर इसका सकारात्मक असर पडे़गा। यह तब और प्रभावशाली होगा, जब अमेरिका, चीन या किसी अन्य देश के दबाव में आए बिना पाकिस्तान यह काम करे।

जहाँ तक पाकिस्तान के घरेलू कानूनों का प्रश्न है तो पाकिस्तानी आर्मी एक्ट-1952 का एक प्रावधान यह भी है कि यदि कोर्ट मार्शल की कार्रवाई अन्यायपूर्ण प्रतीत होती है, तो संघीय सरकार उसे रद्द कर सकती है। पाकिस्तान यह कर सकता है। इस मामले को मानवीय आधार पर सुलझाने से अन्य मानवीय गतिविधियाँ भी तेज़ होंगी, जैसे सीमापार लोगों की आवाजाही बढे़गी और सुगम यात्रा सुनिश्चित हो सकेगी। ये सब द्विपक्षीय और सार्थक बातचीत का आधार भी बन सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: फाँसी की सज़ा टल जाने तथा काउंसलर एक्सेस मिलने से क्या कुलभूषण जाधव की सुरक्षित भारत वापसी संभव हो सकेगी? सभी संभावित विकल्पों के आलोक में चर्चा कीजिये।