हाइपरलूप परिवहन तकनीक | 08 Aug 2019

संदर्भ

हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने हाइपरलूप परिवहन तकनीक को व्यावहारिक एवं वाणिज्यिक रूप प्रदान करने वाली निजी कंपनी वर्जिन हाइपरलूप वन (Virgin Hyperloop One) को मुंबई से पुणे के बीच हाइपरलूप लिंक आरंभ करने की अनुमति प्रदान कर दी है।

हाइपरलूप तकनीक दुनिया में यातायात की परिभाषा को हमेशा के लिये बदल देगी। हाइपरलूप एक कैप्सूल रूपी चुंबकीय ट्रेन है जो 1000-1300 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार से दौड़ सकती है। अन्य विकसित देशों के साथ भारत में भी इस परियोजना पर काम शुरू हो गया है। भारत में मुंबई और पुणे के बीच इस ट्रेन को चलाने की तैयारी है। इसके लिये हाइपरलूप परिवहन तकनीक में अग्रणी कंपनी ‘ वर्जिन हाइपरलूप वन’ के साथ समझौता भी हो गया है।

हालाँकि इसे पूरा होने में 7 वर्ष का समय लगेगा लेकिन जब हाइपरलूप चलने लगेगी तो घंटों का समय मिनटों में पूरा हो सकेगा। हाइपरलूप तकनीक पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रही है। यही वज़ह है कि भारत के अलावा दुनिया के कई अन्य देशों में भी इस तकनीक को अपनाने के लिये काफी तेज़ गति से काम हो रहा है।

वर्जिन हाइपरलूप वन द्वारा भारत में अपनी परियोजना के लिये मुंबई-पुणे मार्ग का चुनाव किया गया है। हाइपरलूप परिवहन तकनीक भारत के लिये काफी व्यवहार्य है क्योंकि इन दोनों शहरों के मध्य लगभग 8-19 करोड़ लोग प्रतिवर्ष यात्रा करते हैं। इस परियोजना को महाराष्ट्र सरकार द्वारा पूर्व में ही आधिकारिक बुनियादी ढाँचा परियोजना घोषित किया जा चुका है।

उल्लेखनीय है कि वर्जिन हाइपरलूप वन द्वारा अमेरिका के नेवादा राजमार्ग के साथ दुनिया का पहला और एकमात्र पूर्ण पैमाने वाला हाइपरलूप परीक्षण ट्रैक ‘डेवलूप’ (DevLoop) का विकास किया गया है।इस ‘डेवलूप’ यानी वैक्यूम ट्यूब के माध्यम से लगभग 1000 किलोमीटर प्रतिघंटे की गति से पॉड दौड़ सकेगी।

इसका 400 बार परीक्षण किया जा चुका है, लेकिन अब तक मानव इस पर यात्रा नहीं कर पाएं हैं।

हाइपरलूप क्या है?

  • परिवहन के क्षेत्र में क्रांति लाने वाले हाइपरलूप का कॉन्सेप्ट ‘एलन मस्क’ ने दिया और इसे ‘परिवहन का पाँचवां मोड़’ भी बताया। इस तकनीक को हाइपरलूप इसलिये कहा गया क्योंकि इसमें परिवहन एक लूप के माध्यम से होगा जिसकी गति अत्यधिक होगी।
  • हाइपरलूप परिवहन का एक नया तरीका है जो माल ढुलाई के साथ ही लोगों को द्रुत-गति से सुरक्षित और ऑन-डिमांड उनके मूल स्थान से गंतव्य तक पहुँचाने में सक्षम है।

तकनीक की कार्यविधि

  • इस तकनीक में विशेष प्रकार से डिज़ाइन किये गए कैप्सूल या पॉड्स का प्रयोग किया जाता है जिसमें यात्रियों को बिठाकर या कार्गो लोड कर इन कैप्सूल्स या पॉड्स को ज़मीन के ऊपर बड़े-बड़े पारदर्शी पाइपों में इलेक्ट्रिकल चुंबक पर चलाया जाएगा और चुंबकीय प्रभाव से ये पॉड्स ट्रैक से कुछ ऊपर उठ जाएंगे जिससे गति ज़्यादा हो जाएगी और घर्षण कम होगा।
  • इसके अंतर्गत हाइपरलूप वाहन में यात्रियों के पॉड्स को एक कम दबाव वाली ट्यूब के अंदर उत्तरोत्तर विद्युत प्रणोदन (Electric Propulsion) के माध्यम से उच्च गति प्रदान की जाती है। जो अल्ट्रा-लो एयरोडायनामिक ड्रैग के परिणामस्वरूप लंबी दूरी तक हवाई जहाज की गति से दौड़ेंगे।

Hyperloop -parts

  • परिवहन की इस तकनीक में बड़े-बड़े पाइपों के अंदर वैक्यूम जैसा वातावरण तैयार किया जाएगा और वायु की अनुपस्थिति में पाॅड जैसे वाहन में बैठकर 1000-1300 किलोमीटर प्रतिघंटे की स्पीड से यात्रा की जा सकेगी।
  • पायलट की त्रुटि और मौसम संबंधी खतरों से बचने के लिये इसे स्वचालन तकनीक से युक्त किया गया है। साथ ही यह बिना किसी प्रत्यक्ष कार्बन उत्सर्जन के सुरक्षित और स्वच्छ प्रणाली है।
  • खतरनाक ग्रेड क्रॉसिंग से बचने और वन्यजीवों की रक्षा के लिये इसका निर्माण भूमिगत सुरंगों तथा ज़मीन के ऊपर स्तंभों पर भी किया जा सकता है।

भारत में हाइपरलूप परिवहन की वर्तमान स्थिति

  • महाराष्ट्र सरकार ने वर्जिन हाइपरलूप वन (Virgin Hyperloop One) को मुंबई से पुणे के बीच हाइपरलूप लिंक आरंभ करने की स्वीकृति दे दी है। यह मुंबई के बी.के.सी. से पुणे के वाकड स्टेशन तक लगभग 117.5 किलोमीटर की दूरी तय करेगी।
  • इस प्रोजेक्ट में हाइपरलूप वाहन की रफ्तार 496 किलोमीटर प्रतिघंटा रहेगी। ज्ञातव्य है कि इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिये 70,000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है एवं इसे पूरा होने में 7 वर्ष लगेंगे।
  • इस प्रोजेक्ट के पहले चरण में 5000 करोड़ रुपए की लागत से एक पायलट प्रोजेक्ट तैयार किया जाएगा जिसमें 11.8 किलोमीटर की दूरी तय की जाएगी। इसके सफल होने के पश्चात् ही मुख्य परियोजना पर कार्य आरंभ होगा।
  • गौरतलब है कि मुंबई-पुणे के बीच हर साल यात्रियों की संख्या बढ़कर दोगुनी हो रही है और वर्ष 2026 तक यह संख्या लगभग 75 मिलियन हो जाने की उम्मीद है इसलिये इस परियोजना को लागू करने हेतु इस क्षेत्र को चुना गया है।

दुनिया के किन देशों में यह तकनीक प्रस्तावित है?

दुनिया के बहुत से विकसित देश इस हाइपरलूप परिवहन प्रणाली को अपनाने के लिये आगे आए हैं, जैसे-अमेरिका, कनाडा और सऊदी अरब। इन देशों में भी ‘हाइपरलूप वन’ कंपनी इस परिकल्पना को साकार रूप देने के काम में जुटी हुई है। गौरतलब है कि दुबई व अबू धाबी के बीच भी एक हाइपरलूप लिंक परियोजना पर कार्य चल रहा है।

आवश्यकता

  • बढ़ती वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये तेज़, सस्ते, सुरक्षित और कुशल परिवहन साधनों की आवश्यकता है।
  • मौज़ूदा परिवहन माध्यम जैसे- सड़कें, हवाई अड्डे और बंदरगाह भीड़भाड़ युक्त हैं। इसे अपनाने से भारी ट्रैफिक से निजात मिलेगी।
  • इसके अतिरिक्त पिछले 100 वर्षों से हमने परिवहन के किसी नए माध्यम को भी नहीं खोजा है।
  • अतः हमें विशेष रूप से अल्ट्रा-फास्ट, ऑन डिमांड, उत्सर्जन मुक्त, ऊर्जा कुशल तथा हाई-स्पीड वाले अन्य परिवहन माध्यमों की तुलना में छोटे पदचिह्न (Foot Print) वाले परिवहन माध्यमों की ज़रूरत है।
  • ऐसे में हाइपरलूप ही वर्तमान परिवहन माध्यम से जुड़ने और बिना किसी रुकावट के एकीकृत होने की क्षमता से युक्त है।
  • यह प्रणाली शून्य कार्बन उत्सर्जन के साथ टिकाऊ भी है। ऐसा माना जा रहा है कि इसे अपनाने से 30 वर्षों में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में 36000 टन की कमी आएगी।

Hyperloop

हाई स्पीड ट्रेन से भिन्नता

  • यह सबसे तेज़ गति वाली हाई स्पीड ट्रेन से दो-तीन गुना अधिक तेज़ है।
  • ट्रेन अपने निर्धारित समय पर चलती है और कई जगहों पर रुकती है, जबकि हाइपरलूप पॉड ऑन-डिमांड होती है और बिना रुके गंतव्य तक पहुँच सकती है।
  • यह पर्यावरण के अनुकूल है क्योंकि इसका पर्यावरणीय प्रभाव बहुत कम है तथा कोई प्रत्यक्ष उत्सर्जन या शोर उत्पन्न नहीं करती है।
  • हाई स्पीड ट्रेन और पारंपरिक मैग्लेव ट्रेन के लिये पटरियों के साथ-साथ बिजली की आवश्यकता होती है जिससे यह अधिक खर्चीला साधन है, जबकि हाइपरलूप कम खर्चीली और अलग तकनीक है।

चुनौतियाँ

  • तेज़ रफ़्तार इस परिवहन तकनीक की विशेषता भी है और कमज़ोरी भी। 1000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार से चलने पर इसमे इमरजेंसी ब्रेक लगाने में समस्या होगी और ब्रेक का यात्रियों एवं वाहन पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर अब भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
  • यद्यपि डेवलूप ने अपने परीक्षण के दौर में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की है फिर भी सुरक्षा संबंधी प्रश्न अभी बना हुआ है क्योंकि इसका मानव-युक्त परीक्षण नहीं किया गया है।
  • वाहनों को घुमावदार रास्ते पर संचालित करने में ट्यूब से टकराने का डर रहेगा विशेषतौर पर तब जब सुरंग संकरी होगी।
  • साथ ही पॉड्स की चौड़ाई कम होने के कारण यात्रियों को इसमें बैठने में असुविधा होगी, अत: यात्रियों के बीच इसकी स्वीकार्यता जैसे सवाल भी महत्त्वपूर्ण हैं।

अभ्यास प्रश्न: हाइपरलूप परिवहन तकनीक की कार्यविधि की चर्चा करते हुए वर्तमान समय में इसकी प्रासंगिकता पर विचार करें।