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इनसाइट: भारत में मानव तस्करी | 19 Jan 2018 | सामाजिक न्याय

संदर्भ व पृष्ठभूमि 

मानव तस्करी के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है और इसे मानव तस्करी का Source (स्रोत), Transit (पारगमन) और Destination (गंतव्य) माना जाता है। किसी एक राज्य की सीमाओं के भीतर तथा अंतरराज्जीय मानव तस्करी के अलावा नेपाल और बांग्लादेश से अंतरराष्ट्रीय मानव तस्करी भी काफी लंबी खुली सीमा होने के कारण भारत में होती है। पश्चिम बंगाल मानव तस्करी का नया केंद्र बनकर उभरा है। भारत से पश्चिम एशिया, उत्तरी अमेरिका तथा यूरोपीय देशों में मानव तस्करी होती है। दुनियाभर में मानव तस्करी के पीड़ितों में एक-तिहाई बच्चे होते हैं।

मानव तस्करी की परिभाषा
संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार, किसी व्यक्ति को डराकर, बलपूर्वक या दोषपूर्ण तरीके से काम लेना, यहाँ-वहाँ ले जाना या बंधक बनाकर रखने जैसे कृत्य तस्करी की श्रेणी में आते हैं।

क्यों होती है मानव तस्करी?

बांग्लादेश से होती है सर्वाधिक मानव तस्करी

मानव तस्करी पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट-2017

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार 2016 में भारत में मानव तस्करी के 8,000 से अधिक मामले सामने आए हैं, जिनमें 182 विदेशियों सहित कुल 23 हज़ार पीड़ितों को रिहा कराया गया।

वर्ष 2016 में कुल 23,117 पीड़ितों को रिहा कराया गया अर्थात्  रोज़ लगभग 63 लोगों को बचाया। इन बचाए गए लोगों में 22,932 भारतीय नागरिक थे, 38 श्रीलंकाई और उतने ही नेपाली थे। रिहा कराए गए लोगों में से 33 की पहचान बांग्लादेशी और 73 की थाईलैंड तथा उज़्बेकिस्तान सहित अन्य देशों  के नागरिकों के तौर पर हुई।

(टीम दृष्टि इनपुट)

सीमा सुरक्षा बल की रिपोर्ट: दोनों देशों के बीच पश्चिम बंगाल में 2217 किमी. सीमा की निगरानी का ज़िम्मा सीमा सुरक्षा बल का है और उसकी एक रिपोर्ट के अनुसार निगरानी रहित सीमा पर कच्चे रास्तों और नदियों के रास्ते इस काम को अंजाम दिया जाता है। इस रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि तस्करी के ज़रिये रोहिंग्या महिलाओं को भी भारत में भेजा जा रहा है, जो वेश्यालयों तथा डांस बार में काम करती हैं। यह काम संगठित गिरोह करते हैं और महानगरों में घरेलू कामगार उपलब्ध कराने वाली अवैध प्लेसमेंट एजेंसियाँ भी इसमें शामिल होती हैं।

भारत में बंधुआ मज़दूरी के लिये होती है अधिक मानव तस्करी: बंधुआ मज़दूरी भारत की सबसे बड़ी मानव तस्करी की समस्या है, जिसमें पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को कर्ज़-बंधन, पिछली पीढिय़ों से विरासत में मिले ईंट-भट्टों, चावल मिलों और कारखानों में काम करने के लिये मजबूर होना पड़ता है। बेहद निर्धन परिवारों, दलितों, आदिवासियोँ, धार्मिक अल्पसंख्यकों और समाज से बहिष्कृत परिवारों की महिलाओं और लड़कियों के तस्करी के सर्वाधिक मामले पाए गए हैं। 

मानव तस्करी में इंटरनेट की भूमिका

चना प्रौद्योगिकी ने बेशक मानव जीवन को सरल-सुलभ बनाया है, लेकिन यह आज मानव तस्करी का सबसे बड़ा ज़रिया भी बन गई है।  सोशल नेटवर्किंग साइटों के साथ अन्य ऑनलाइन माध्यमों के ज़रिये विदेशों में रोज़गार दिलाने का झांसा देकर तो कभी इसके ज़रिये ही परवान चढ़े प्रेम के बाद शादी करने के झांसे में आकर अपना घर-बार छोड़ने से मानव तस्करी के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है।  कोलकाता स्थित अमेरिकी वाणिज्य दूतावास तथा मानव तस्करी की रोकथाम के लिये काम करने वाले गैर-सरकारी संगठन 'शक्तिवाहिनी' की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में हो रही मानव तस्करी में इंटरनेट एक बड़ा माध्यम बनकर उभरा है। देश के विभिन्न भागों में संगठित गिरोहों द्वारा इंटरनेट के ज़रिये धोखाधड़ी कर मानव तस्करी की जा रही है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

मानव तस्करी रोकने के लिये किये गए विभिन्न उपाय 
आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013:  आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के तहत कानूनी उपायों को और मज़बूती प्रदान की गई है और यह संशोधित कानून 3 फरवरी, 2013 से प्रभाव में आ चुका है। 
भारतीय दंड संहिता की धारा 370: इस नए अधिनियम में भारतीय दंड संहिता की धारा 370 को 370ए और 370 के स्थान पर रखा गया है। यह धारा व्यापक तौर पर मानव तस्करी को रोकते हुए मानव तस्करी, बच्चों की तस्करी के अलावा किसी भी तरह के यौन शोषण, दासता और मानव अंगों को ज़बरदस्ती निकाले जाने के मामले में कठोर दंड देने का प्रावधान प्रदान करती है।
यूएनओडीसी: भारत के गृह मंत्रालय मानव तस्करी की रोकथाम के लिये यूएन ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम (UN Office of Drugs & Crime-UNODC) के साथ सहयोग कर रहा है। यूएनओडीसी दक्षिण एशिया प्रभाग कानून प्रवर्तन और पुनर्वास के परिप्रेक्ष्य से एक विशेष ‘ट्रैफिकिंग इन पर्सन्स प्लेटफॉर्म’ शुरू करने की प्रक्रिया में है। यूएनओडीसी की नवीनतम रिपोर्ट में तस्करी के 500 विभिन्न प्रकारों की पहचान की गई है।

मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक, 2016: इसके तहत मानव तस्करी के अपराधियों की सज़ा को दोगुना करने का प्रावधान है और ऐसे मामलों की त्वरित सुनवाई के लिये विशेष अदालतों के गठन का भी प्रावधान है। इस कानून के तहत पीड़ितों की पहचान को सार्वजनिक न करने का प्रावधान भी किया गया है, लेकिन जबरिया श्रम को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

विधेयक के प्रमुख प्रावधान 

बंधुआ मज़दूरी और बाल मज़दूरी से लेकर वेतन कम देने जैसे अपराध इस विधेयक  में शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर महानगरों के ऐसे परिवार जो छोटी बच्चियों को नौकरानी की तरह रखते हैं और उन्हें पर्याप्त वेतन नहीं देते, उनका शोषण करते हैं तो ऐसे परिवार के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।

इस विधेयक को शीघ्र पारित कर तस्करी में शामिल लोगों को अधिकतम दंड देने और तस्करी से संबंधित कानूनी प्रावधानों में सुधार लाकर बच्चों की तस्करी जैसे जघन्य अपराधों पर रोक लगाने की राह खुल सकती है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

संविधान का अनुच्छेद 23 (1): इस अनुच्छेद में मानव तस्करी को प्रतिबंधित किया गया है तथा  इसे कानूनन दंडनीय अपराध बनाया गया है। इसके साथ ही किसी व्यक्ति को पारिश्रमिक दिये बिना (बेगार) काम करने के लिये मज़बूर करना भी प्रतिबंधित किया गया है। हालाँकि, यह अनुच्छेद राज्य को सार्वजनिक प्रयोजन के लिये सेना में अनिवार्य भर्ती तथा सामुदायिक सेवा सहित, अनिवार्य सेवा लागू करने की अनुमति देता है।
trackthemissingchild.gov.in: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने यह वेबसाइट बनाई है। परस्पर संवाद स्थापित करने वाली यह वेबसाइट प्रत्येक राज्य में लापता बच्चों के संबंध में जानकारी देती है। इस वेबसाइट द्वारा लापता बच्चों की संख्या, उनके गायब होने का समय तथा संबंधित पुलिस स्टेशन के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है। 
समझौते भी हुए हैं: भारत सरकार ने संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब तथा बांग्लादेश के साथ मानव तस्करी की रोकथाम के पीड़ितों की सुरक्षा एवं उनके बचाव के उपाय करने की आवश्यकता जताई गई है। इसके लिये संबद्ध देशों के बीच जानकारियों का आदान-प्रदान, संयुक्त जाँच एवं मानव तस्करी की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये एक समन्वित प्रयास के लिये आपसी सहयोग की आवश्यकता है।

अन्य उपाय जो किये जा सकते हैं

खाड़ी देश हैं मानव तस्करी का एक बड़ा गंतव्य 

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: मानव तस्करी वर्तमान विश्व के सम्मुख उपस्थित कई बड़ी समस्याओं में से एक है।  तमाम कोशिशों के बावजूद इसे रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है  और न केवल अल्प-विकसित और विकासशील देश बल्कि विकसित राष्ट्र भी इस समस्या से अछूते नहीं है। मानव तस्करी भारत की भी प्रमुख समस्याओं में से एक है। कुछ समय पूर्व अमेरिका ने मानव तस्करी से प्रभावित देशों और इसे रोकने के लिये इन देशों में किये जा रहे प्रयासों का अवलोकन कर एक विशेष रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें भारत को टियर-2 श्रेणी में रखा गया, जिसका अभिप्राय है कि इस दिशा में प्रयास तो किये जा रहे हैं, लेकिन पूर्णतया प्रभावी साबित नहीं हो पा रहे हैं। ये सभी प्रयास आवश्यक अंतरराष्ट्रीय मानदंडों पर खरे नहीं उतर पा रहे। वैसे भारत सरकार ने देश में पीडि़तों की पहचान करना, अपराधियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई और सज़ा, पीड़ित महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष कार्ययोजना तैयार करना, पुनर्वास, आश्रय स्थलों और रोज़गार के इंतज़ाम के लिये बजट में बढ़ोतरी आदि उपाय किये हैं। लेकिन अभी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना शेष है।