मानव प्रवासन: कारण और प्रभाव | 27 Jan 2022

चर्चा में क्यों

मानव प्रवासन और गतिशीलता सदियों पुरानी परंपरा है जो दुनिया भर के लगभग हर वर्ग को प्रभावित कर रही है। हालाँकि समय के साथ चीजें बदलती भी रही हैं।

प्रमुख बिंदु

  • प्रवासन के बारे में: अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (संयुक्त राष्ट्र प्रवासन एजेंसी) एक प्रवासी को किसी भी ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है, जो अपने निवास स्थान से दूर किसी अन्य राज्य या देश में स्थानांतरित हो रहा है या स्थानांतरित हो गया है।
    • प्रवासन का संख्यात्मक डेटा, जनसांख्यिकी और आवृत्ति में बदलाव की जाँच करने से यह समझने में मदद मिल सकती है कि प्रवासन कैसे और किस दिशा में हो रहा है। यह प्रवासन से जुड़ी नीतियों, कार्यक्रमों एवं परिचालन प्रतिक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है।
  • प्रवासन को निर्धारित करने वाले कारक: कारकों की एक विस्तृत शृंखला लोगों की आवाजाही को निर्धारित करती है। यह या तो स्वैच्छिक या मजबूरीवश हो सकता है, जिसमें आपदाओं के बढ़ते परिमाण या आवृत्ति, आर्थिक चुनौतियाँ और अत्यधिक गरीबी या संघर्ष जैसे कारक शामिल हैं।
  • प्रवासन के 'पुश' और 'पुल' कारक: 'पुश' (Push) कारक वे हैं जो किसी व्यक्ति को मूल स्थान छोड़ने और किसी अन्य स्थान पर प्रवास करने के लिये मजबूर करते हैं। जैसे - आर्थिक कारण, सामाजिक कारण, किसी विशेष स्थान के विकास में कमी।
    • 'पुल' (Pull) कारक उन कारकों को इंगित करते हैं जो प्रवासियों को किसी क्षेत्र की ओर आकर्षित करते हैं जैसे कि नौकरी के अवसर, रहने की बेहतर स्थिति, बुनियादी या उच्च स्तरीय सुविधाओं की उपलब्धता आदि।
  • प्रवास में क्रमिक वृद्धि: आर्थिक दृष्टिकोण से पिछले कई वर्षों में प्रवासन उत्पादन प्रक्रियाओं, प्रदान की गई सेवाओं के प्रतिमान में बदलाव और विभिन्न आर्थिक क्षेत्राधिकारों में मांग और अवसरों में वृद्धि के कारण देखा जाता है।
    • उत्पादन प्रक्रियाओं के नए प्रतिमान के कारण वर्ष 1980 के दशक से प्रवासन स्पष्ट रूप से बढ़ा है और कौशल के विकास ने इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया है।

प्रवासन और भारत

  • वैश्विक स्तर पर प्रवासन और संबंधित पहल: वर्ष 2020 तक लगभग 281 मिलियन लोग अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी थे, जो कुल वैश्विक आबादी के 3.6% का प्रतिनिधित्व करते थे।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन की चुनौतियों और कठिनाइयों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिवर्ष 18 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस मनाया जाता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी दिवस, 2021 का विषय 'मानव गतिशीलता की क्षमता का दोहन' था।
    • सतत् विकास के लिये 'एजेंडा 2030' पहली बार सतत् विकास में प्रवासन के योगदान को मान्यता देता है।
    • 17 सतत् विकास लक्ष्यों में से 11 में प्रवास या गतिशीलता के लिये प्रासंगिक लक्ष्य और संकेतक शामिल हैं।
  • भारत और अंतर्देशीय प्रवासन: भारत सबसे बड़ा प्रवासी देश है और कई देशों में अत्यधिक कुशल श्रमशक्ति की आपूर्ति करता रहा है। वर्ष 2018 तक भारत से प्रवासी लगभग 193 देशों में गए।
    • भारत के बाहर प्रवासी भारतीयों को सबसे जीवंत माना जाता है। यह स्थानीय समुदायों की अर्थव्यवस्थाओं में कई तरह से योगदान देता है और धन का प्रत्यावर्तन भी करता है।
    • इस तरह अन्य देशों में भारतीय प्रवासी दोनों देशों, भारत और जिस देश में वे प्रवास करते हैं, के लिये बेहतर स्थिति बनाने में योगदान देते हैं।
    • हालाँकि कोविड-19 महामारी के कारण से धन धीमी गति से प्रत्यावर्तित हुआ किंतु फिर भी अंतर्देशीय प्रवासन से प्रत्यावर्तित धन ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
  • भारतीय डायस्पोरा का योगदान: भारतीयों ने केन्या या युगांडा जैसे उन देशों में सहायता प्रदान करने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है जहाँ अशांति/संघर्ष की स्थिति है।
    • हालाँकि एक छोटी संख्या में भारतीय व्यवसायी नौकरी प्रदान कर एवं स्थानीय रोज़गार पैदा कर स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं साथ ही सेवा क्षेत्र में भी कार्य कर रहे हैं।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान विभिन्न देशों में प्रवासी भारतीयों के नेतृत्व में संगठनों ने भी ऑक्सीजन वितरित करने या भोजन किट जैसी मुफ्त सेवाएँ प्रदान की है।

प्रवासन का महत्त्व

  • श्रम की मांग और आपूर्त्ति: प्रवासन श्रम की मांग और आपूर्त्ति में अंतराल को भरता है एवं कुशल श्रम, अकुशल श्रम तथा सस्ते श्रम का कुशलतापूर्वक आवंटन करता है।
  • कौशल विकास: प्रवासन बाहरी दुनिया के साथ संपर्क और बातचीत के माध्यम से प्रवासियों के ज्ञान और कौशल को बढ़ाता है।
  • जीवन की गुणवत्ता: प्रवासन रोज़गार और आर्थिक समृद्धि की संभावना को बढ़ाता है जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है।
    • प्रवासी भी अतिरिक्त आय और प्रेषण को घर वापस भेजते हैं, जिससे उनके मूल स्थान पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • आर्थिक प्रेषण (Remittances): प्रवासियों की मज़बूत आर्थिक स्थिति मूल क्षेत्रों में उनके परिवारों को जोखिम के खिलाफ बीमा प्रदान करती है। साथ ही उपभोक्ता व्यय, स्वास्थ्य, शिक्षा और संपत्ति निर्माण में निवेश को बढ़ाती है।
  • सामाजिक प्रेषण: प्रवासन प्रवासियों के सामाजिक जीवन को बेहतर बनाने में मदद करता है क्योंकि वे नई संस्कृतियों, रीति-रिवाजों और भाषाओं के बारे में सीखते हैं जो लोगों के बीच भाईचारे को बढ़ाने में मदद करते हैं एवं अधिक समानता व सहिष्णुता सुनिश्चित करते हैं।

प्रवासन से संबंधित चुनौतियाँ

  • सीमांत वर्गों के सामने आने वाले मुद्दे: आर्थिक रूप से समृद्ध और सामाजिक रूप से व्यापक रूप से स्वीकृत लोग (जैसे भारत में उच्च जाति या पश्चिमी देशों में गोरे रंग वाले लोग) अन्य समाजों में आसानी से स्थानांतरित और स्वीकृत होते हैं।
    • जबकि जो लोग गरीब हैं या हाशिये पर हैं, उनके लिये इनमें से कई देशों में प्रवेश करना इतना आसान नहीं है। यदि प्रवेश मिल भी जाए तो वे अन्य लोगों से घुल-मिल नहीं पाते हैं।
  • सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलू: कई बार मेजबान देश आसानी से प्रवासियों को स्वीकार नहीं करते हैं और वे हमेशा दूसरे दर्जे के नागरिक के रूप में बने रहते हैं।  
    • एक नए देश में प्रवास करने वाले किसी भी व्यक्ति को सांस्कृतिक अनुकूलन और भाषा की बाधाओं से लेकर बीमारी व अकेलेपन जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • राजनीतिक अधिकारों और सामाजिक लाभों से बहिष्करण: प्रवासी श्रमिक अपने राजनीतिक अधिकारों, जैसे वोट देने के अधिकार का प्रयोग करने से वंचित हो जाते हैं।
    • इसके अलावा पता प्रमाण पत्र, राशन कार्ड, वोटर आईडी और आधार कार्ड प्राप्त करने की सुलभता में कमी, जो उनके प्रवासन के कारण मुश्किल है, उन्हें कल्याणकारी योजनाओं एवं नीतियों तक पहुँचने से वंचित करते हैं।

आगे की राह

  • प्रवासन-केंद्रित नीतियाँ: प्रवासन मानव विकास की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है और सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे प्रवासन को रोकना प्रतिकूल स्थितियों को भी पैदा कर सकता है।
    • समावेशी विकास सुनिश्चित करने एवं संकट प्रेरित प्रवास को कम करने के लिये भारत को प्रवासन केंद्रित नीतियों, रणनीतियों और संस्थागत तंत्रों को तैयार करने की आवश्यकता है, जिससे भारत में गरीबी में कमी हो।
  • राज्य सरकार की भूमिका: भारत प्रवासन केंद्र, विदेश मंत्रालय (MEA) का एक शोध थिंक-टैंक उन लोगों को प्रशिक्षित और रोज़गार उन्मुख बनाने के तरीकों का पता लगाने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है जो अंतर्देशीय प्रवासन के इच्छुक हैं।
    • साथ ही यह राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी होगी (क्योंकि रोज़गार भारतीय संविधान की राज्य सूची के तहत एक विषय है) कि वह निगरानी करे कि अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी अन्य देशों में सुचारू रूप से काम कर रहे हैं।
    • केंद्र सरकार को लोगों को रोज़गार के नज़रिये से प्रशिक्षित करने एवं रोजगारोन्मुख बनाने में सक्रिय भूमिका निभाने में भी सहायता करनी चाहिये।
  • व्यवहार में बदलाव: प्रवासन और आप्रवासन नीतियों में अधिक लचीलेपन की आवश्यकता है जिससे मानव पूंजी का हस्तांतरण आसान हो।
    • इसके अलावा यह पुराने प्रतिमानों से दूर जाने का समय है जिसमें प्रवासन और आप्रवास को मुख्य रूप से 'शरण लेना' माना जाता था। अब यह माना जाना चाहिये कि प्रवासन मानव विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

प्रवासन के लिये कई कारक ज़िम्मेदार हैं और उनमें से सबसे प्रमुख सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय हैं।

यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि प्रवासन की यह प्रक्रिया मूल देश के साथ-साथ गंतव्य देश दोनों के लिये कैसे फायदेमंद है। अतः प्रवासन के लिये समावेशी नीति की आवश्यकता है।