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पंचायतें: कितनी प्रभावी! | 03 Aug 2019 | भारतीय राजनीति

संदर्भ

भारत में पंचायती राज व्यवस्था, दूसरे शब्दों में जिसे स्थानीय स्वशासन भी कहा जाता है, की शुरुआत हुए 25 वर्षों से अधिक समय हो चुका है किन्तु अब भी इस व्यवस्था की सफलता पर प्रश्न उठते हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाता है और कोई भी देश, राज्य या संस्था सही मायने में लोकतांत्रिक तभी मानी जा सकती है जब शक्तियों का उपयुक्त विकेंद्रीकरण हो एवं विकास का प्रवाह ऊपरी स्तर से निचले स्तर (Top to Bottom) की ओर होने के बजाय निचले स्तर से ऊपरी स्तर (Bottom to Top) की ओर हो।

परिभाषा

स्थानीय स्वशासन का अर्थ है, शासन-सत्ता को एक स्थान पर केंद्रित करने के बजाय उसे स्थानीय स्तरों पर विभाजित किया जाए, ताकि आम आदमी की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित हो सके और वह अपने हितों व आवश्यकताओं के अनुरूप शासन-संचालन में अपना योगदान दे सके।

स्वतंत्रता के पश्चात् पंचायती राज की स्थापना लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की अवधारणा को साकार करने के लिये उठाए गए महत्त्वपूर्ण कदमों में से एक थी। वर्ष 1993 में संविधान के 73वें संशोधन द्वारा पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता मिली थी। इसका उद्देश्य था देश की करीब ढाई लाख पंचायतों को अधिक अधिकार प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना और उम्मीद थी कि ग्राम पंचायतें स्थानीय ज़रुरतों के अनुसार योजनाएँ बनाएंगी और उन्हें लागू करेंगी।

पृष्ठभूमि

Panchayati raj inst.

पंचायती राज व्यवस्था की त्रि-स्तरीय संरचना

73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992

11वीं अनुसूची में शामिल विषय

  1. कृषि (कृषि विस्तार शामिल)।
  2. भूमि विकास, भूमि सुधार कार्यान्वयन, चकबंदी और भूमि संरक्षण।
  3. लघु सिंचाई, जल प्रबंधन और जल-विभाजक क्षेत्र का विकास।
  4. पशुपालन, डेयरी उद्योग और कुक्कुट पालन।
  5. मत्स्य उद्योग।
  6. सामाजिक वानिकी और फार्म वानिकी।
  7. लघु वन उपज।
  8. लघु उद्योग जिसके अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी शामिल हैं।
  9. खादी, ग्राम उद्योग एवं कुटीर उद्योग।
  10. ग्रामीण आवासन।
  11. पेयजल।
  12. ईंधन और चारा।
  13. सड़कें, पुलिया, पुल, फेरी, जलमार्ग और अन्य संचार साधन।
  14. ग्रामीण विद्युतीकरण, जिसके अंतर्गत विद्युत का वितरण शामिल है।
  15. अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत।
  16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम।
  17. शिक्षा, जिसके अंतर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी हैं।
  18. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा।
  19. प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा।
  20. पुस्तकालय।
  21. सांस्कृतिक क्रियाकलाप।
  22. बाज़ार और मेले।
  23. स्वास्थ्य और स्वच्छता (अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय)।
  24. परिवार कल्याण।
  25. महिला और बाल विकास।
  26. समाज कल्याण (दिव्यांग और मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों का कल्याण)।
  27. दुर्बल वर्गों का तथा विशिष्टतया अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का कल्याण।
  28. सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
  29. सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण।

74वाँ संविधान संशोधन

12वीं अनुसूची में शामिल विषय

  1. नगरीय योजना।
  2. भूमि उपयोग का विनियमन और भवनों का निर्माण।
  3. आर्थिक व सामाजिक विकास योजना।
  4. सड़कें और पुल।
  5. घरेलू, वाणिज्यिक और औद्योगिक प्रयोजनों के लिये जल आपूर्ति।
  6. लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफाई और कूड़ा करकट प्रबंधन।
  7. अग्निशमन सेवाएँ।
  8. नगरीय वानिकी, पर्यावरण का संरक्षण और पारिस्थितिक आयामों की अभिवृद्धि ।
  9. समाज के दुर्बल वर्ग, जिनके अंतर्गत दिव्यांग और मानसिक रूप से मंद व्यक्ति भी हैं, के हितों की रक्षा।
  10. झुग्गी बस्ती सुधार और प्रोन्नयन।
  11. नगरीय निर्धनता उन्मूलन।
  12. नगरीय सुख-सुविधाओं और अन्य सुविधाओं, जैसे- पार्क, उद्यान, खेल के मैदान आदि की व्यवस्था।
  13. सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौंदर्यपरक आयामों की अभिवृद्धि।
  14. शव गाड़ना और कब्रिस्तान, शवदाह और श्मशान तथा विद्युत शवदाह गृह।
  15. कांजी हाऊस पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण।
  16. जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण।
  17. सार्वजनिक सुख सुविधाएँ, जिसके अंतर्गत सड़कों पर प्रकाश, पार्किंग स्थल, बस स्टॉप और जन सुविधाएँ भी हैं।
  18. वधशालाओं और चर्मशोधनशालाओं का विनियमन।

वर्तमान स्थिति

पंचायतों से संबंधित अनुच्छेदः एक नज़र में

अनुच्छेद विषय-वस्तु
243  परिभाषाएँ
243क ग्राम सभा
243ख पंचायतों का गठन
243ग पंचायतों की संरचना
243घ स्थानों का आरक्षण
243घ पंचायतों की अवधि आदि
243च सदस्यता के लिये निरर्हताएँ
243छ पंचायतों की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व
243ज पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियाँ और उनकी निधियाँ
243झ वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिये वित्त आयोग का गठन
243ञ पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा
243ट पंचायतों के लिये निर्वाचन
243ठ संघ-राज्य क्षेत्रोंं में लागू होना
243ड इस भाग का कतिपय क्षेत्रोंं पर लागू न होना
243ढ विद्यमान विधियों और पंचायतों का बने रहना
243ण निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्ज़न

 

पंचायती राज का महत्त्व

पेसा अधिनियम, 1996

‘भूरिया समिति’ की सिफारिशों के आधार पर संसद में वर्ष 1996 में ‘पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रोंं का विस्तार) विधेयक’ प्रस्तुत किया गया। दिसंबर 1996 में दोनों सदनों से पारित होने के उपरांत 24 दिसंबर को राष्ट्रपति की सहमति के पश्चात् ‘पेसा अधिनियम’ अस्तित्व में आया।

पेसा अधिनियम द्वारा ग्राम सभा एवं पंचायतों को प्रदत्त शक्तियाँ

पेसा अधिनियम का महत्त्व

पंचायती राज्य की सफलता में बाधाएँ

हालाँकि 14वें वित्त आयोग ने पंचायतों के लिये 2 लाख करोड़ रुपए की निधि तय की है जिसे किसी विशेष मद में खर्च करने की बाध्यता नहीं रहेगी।

अन्य पक्ष

पंचायती राज व्यवस्था को और अधिक व्यावहारिक बनाने के उपाय

निष्कर्ष

पंचायती राज व्यवस्था राजनीतिक जागरूकता के साथ-साथ आम आदमी के सशक्तीकरण का भी परिचायक है। विकेंद्रीकृत शासन व्यवस्था और सहभागितामूलक लोकतंत्र पंचायती राज व्यवस्था के दो मुख्य घटक हैं। इसकी सफलता केवल स्थानीय स्तर पर लोगों की सक्रियता के लिये ही नहीं बल्कि देश में लोकतंत्र के उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भी आवश्यक है।

अभ्यास प्रश्न: भारतीय राजनीति और समाज में पंचायती राज व्यवस्था कितनी प्रासंगिक है? तर्क सहित विवेचना कीजिये।