आचार समिति | 16 Jan 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू ने राज्यसभा सचिवालय को निर्देश दिया है कि वह सदन की आचार समिति की प्रक्रियाओं और कार्यप्रणाली के बारे में जनता के बीच जागरूकता को बढ़ावा दे, ताकि समिति के कामकाज को और प्रभावी बनाया जा सके। आचार समिति राज्यसभा के सदस्यों के आचरण और आचार संहिता के उल्लंघन से संबंधित शिकायतों की जाँच करती है। पिछले चार वर्षों में इस समिति के समक्ष प्रस्तुत कुल शिकायतों में से 22 शिकायतों को केवल इसलिये खारिज कर दिया गया क्योंकि इन शिकायतों में शिकायत दर्ज करने की निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। ज्ञातव्य है कि राज्यसभा में आचार समिति स्थायी, जबकि लोकसभा में यह एक तदर्थ समिति है।

भारतीय लोकतंत्र में संसद देश में जनता की सर्वोच्च प्रतिनिधि संस्था है, अतः जन-प्रतिनिधियों का यह कर्त्तव्य है कि वे अपने आचरण से एक गरिमामयी व्यक्तित्व का उदाहरण प्रस्तुत करें। किंतु राजनीति में प्रतिस्पर्द्धा, वैमनस्य और भ्रष्टाचार बढ़ने के साथ-साथ संसद और विधानसभाओं में भी हमें सांसदों एवं विधायकों के द्वारा अनैतिक व्यवहार भी देखने को मिला, जिस पर अंकुश लगाना ज़रूरी था। इस पर गहन विचार के बाद संसद में अन्य समितियों के साथ आचार समिति का भी गठन किया गया।

राज्यसभा की आचार समिति:

  • राज्यसभा की आचार समिति (Ethics Committee) स्थायी समिति (Permanent Standing Committee) की श्रेणी में आती है।
  • 23-24 सितंबर, 1992 को दिल्ली में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में संसद और विधानसभाओं में आचार समितियों के गठन का सुझाव दिया गया था।
  • इसके बाद देश में पहली बार 4 मार्च,1997 को राज्यसभा में आचार समिति का गठन किया गया जबकि इसे 30 मई, 1997 को स्थायी समिति का दर्जा दिया गया।
  • वर्ष 1998 में अपनी पहली रिपोर्ट में समिति ने 14 सूत्रीय संहिता (Code) प्रस्तुत की, जिसमें संसद के प्रति सम्मान और विश्वसनीयता प्रदर्शित करने के लिए सदस्यों के आचरण का निर्धारण किया गया।
  • राज्यसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन को प्रभावी बनाने के लिये वर्ष 2004 में आचार समिति के नियमों की रूपरेखा को निर्धारित किया गया।
  • राज्यसभा की आचार समिति में 10 सदस्य होते हैं, जिनका चुनाव सभापति द्वारा किया जाता है।
  • ज्ञातव्य है कि राज्यसभा की आचार समिति अब तक 10 रिपोर्ट सौंप चुकी है।

आचार समिति के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

राज्यसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन विषयक नियम के अंतर्गत-

  • नियम 286 से 290 तक समिति के गठन, सदस्य संख्या और संचालन से संबंधित नियमों और अनिवार्यताओं का विस्तृत उल्लेख किया गया है। इसके अतिरिक्त समिति द्वारा सदस्यों को नैतिक मानकों से संबंधित प्रश्नों के संबंध में स्वतः ही या अनुरोध करने पर सुझाव/सलाह देने की व्यवस्था की गई है।
  • साक्ष्य लेने या दस्तावेज़ मांगने का अधिकार: नियम 291 के तहत समिति को किसी व्यक्ति को प्रस्तुत होने का आदेश देने तथा साक्ष्य लेने या दस्तावेज़ मांगने का अधिकार है, परंतु यदि समिति द्वारा मांगा गया दस्तावेज़ प्रासंगिक नहीं है तो इस मुद्दे पर सभापति द्वारा अंतिम फैसला लिया जाएगा। इसके साथ ही किसी साक्ष्य को गुप्त रखने या न रखने का निर्णय समिति के विवेक पर निर्भर करता है।
  • रजिस्टर ऑफ़ इंटरेस्ट (Register of Interest): नियम 293 के तहत सदस्यों के लिये अपनी आय के स्रोतों और किसी संस्था या संगठन के साथ संबंध की जानकारी रजिस्टर ऑफ़ इंटरेस्ट में विस्तृत रूप से दर्ज करना अनिवार्य है, इनमें से कुछ इस प्रकार हैं- पारिश्रमिक निर्देशन, पारिश्रमिक गतिविधि, शेयरधारिता, परामर्शदाता के रूप में, पेशेवर भागीदारी आदि।
  • शिकायत का प्रावधान: नियम 295 के तहत कोई भी व्यक्ति समिति से किसी सदस्य के कथित अनैतिक व्यवहार या आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत कर सकता है। इसके अतिरिक्त समिति स्वप्रेरणा (Suo Motu) से भी किसी मामले को उठा सकती है या कोई सदस्य भी किसी मामले को समिति के पास भेज सकता है।
    • शिकायत की प्रक्रिया: कोई भी शिकायत समिति को या उसके द्वारा प्राधिकृत किसी अधिकारी को लिखित रूप से दी जा सकती है।
      • शिकायत में सयंमित भाषा का प्रयोग और यह तथ्यों पर आधारित होनी चाहिये।
      • शिकायतकर्त्ता को अपनी पहचान बताने के साथ-साथ आरोपों को सिद्ध करने के लिये प्रमाण प्रस्तुत करना ज़रूरी होता है।
      • समिति शिकायतकर्त्ता के अनुरोध पर उसके नाम को गुप्त रखती है।
      • समिति केवल मीडिया की अप्रामाणिक रिपोर्ट पर आधारित शिकायत या न्यायालय में विचाराधीन किसी मामले पर विचार नहीं करती।
      • इसके अतिरिक्त नियम 296 के तहत समिति की जाँच प्रक्रिया की रूपरेखा निर्धारित की गई है तथा इस नियम के अनुसार किसी सदस्य द्वारा झूठी शिकायत दर्ज कराने की स्थिति में समिति मामले को संसदीय विशेषाधिकार के उल्लंघन के रूप में लेकर कार्यवाही कर सकती है।
  • दंडात्मक कार्यवाही: समिति की जाँच में किसी सदस्य द्वारा नैतिक दुर्व्यवहार या आचार संहिता का उल्लंघन पाए जाने पर नियम 297 के तहत दंडात्मक कार्यवाही का भी प्रावधान है, जिसके तहत निंदा (Censure), भर्त्सना (Reprimand) व एक तय समय के लिये सदन से निलंबन (Suspension) शामिल है। समिति मामले की गंभीरता को देखते हुए एक साथ एक से अधिक दंड या किसी अन्य दंड का भी सुझाव दे सकती है।
  • इसके अतिरिक्त नियम 298 से लेकर 303 तक समिति के अन्य अधिकारों और आचार समिति तथा राज्यसभा के संबंधों की विस्तृत जानकारी दी गई है।

विधानसभाओं में आचार समितियाँ: देश के कुछ राज्यों की विधानसभाओं में भी आचार समितियों का गठन किया गया है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • भारतीय राज्यों में सबसे पहले छत्तीसगढ़ राज्य में आचार समिति बनी।
  • बिहार राज्य की विधानपरिषद में 20 अगस्त, 2010 को आचार समिति का गठन किया गया।
  • उपरोक्त समिति ने 19 दिसंबर, 2014 को विधानपरिषद में अपना पहला प्रतिवेदन (Report) रखा जिसमें सदन में तथा अध्ययन यात्रा और शिष्टमंडलों में वार्ता के दौरान सदस्यों के आचरण से संबंधित नियमों का समावेश किया गया है।
  • इसके साथ ही महाराष्ट्र विधानसभा में सदस्यों के आचरण और कार्यप्रणाली की निगरानी के लिये विधानसभा में 19 सदस्यीय आचार समिति का गठन किया गया।

लोकसभा में आचार समिति:

  • लोकसभा की आचार समिति तदर्थ (Ad hoc) समिति होती है।
  • लोकसभा में पहली आचार समिति का गठन 16 मई, 2000 को हुआ था।
  • इस समिति में 15 सदस्य होते हैं, जिनका कार्यकाल 1 वर्ष का होता है।
  • समिति के सदस्यों का चुनाव लोकसभा अध्यक्ष द्वारा किया जाता है।
  • यह समिति आचार संहिता के निर्माण के साथ सदस्यों के नैतिक और सदाचार संबंधी व्यवहार की निगरानी तथा इस संबंध में की गई हर तरह की शिकायत की जाँच करती है।
  • लोकसभा में Register of Interest की व्यवस्था नहीं होती है परंतु सदस्यों को अपनी संपत्ति (Assets) और देनदारी (Liabilities) का ब्योरा देना अनिवार्य होता है।

संसदीय आचार समिति की दंडात्मक कार्यवाही के उदाहरण:

  • वर्ष 1951 में लोकसभा से एच.जी. मुद्गल का निष्कासन।
  • वर्ष 1976 में सुब्रमण्यम स्वामी का राज्यसभा से निष्कासन (अमर्यादित आचरण के आधार पर)।
  • नवंबर 1977 में इंदिरा गांधी का लोकसभा से निष्कासन।
  • दिसंबर 2005 में रुपए लेकर सवाल पूछने के मामले में 11 सांसदों का निष्कासन।
  • वर्ष 2016 में राज्यसभा से विजय माल्या का निष्कासन।

आगे की राह: अपनी स्थापना के बाद से ही आचार समिति ने कई महत्त्वपूर्ण कार्यों से अपनी सार्थकता प्रमाणित की है। राज्यसभा की आचार समिति न केवल सांसदों के आचरण, अनैतिक व्यवहार और नियमों के उल्लंघन की जाँच करती है बल्कि अपने काम-काज के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने का कार्य भी करती है जिससे राज्यसभा की कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी बनाया जा सके। वर्तमान समय में राज्यसभा की आचार समिति की कार्यप्रणाली और इसके उद्देश्यों के प्रति जनता के बीच जागरूकता और समझ को बढ़ाने की आवश्यकता है। साथ यह भी अत्यंत आवश्यक है कि सभी राज्यों की विधानसभाओं में भी आचार समिति का गठन कर उसके नियमित एवं स्वतंत्र संचालन को सुनिश्चित किया जाए।

प्रश्न: वर्तमान राजनीतिक परिवेश में जनप्रतिनिधियों के व्यवहार को विनियमित करने में आचार समिति की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।