भारत के लिये कितनी ज़रूरी है बुलेट ट्रेन? | 06 Oct 2017

भारत में बुलेट ट्रेन का परिचालन एनडीए सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। हाल ही में जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की यात्रा और जापान द्वारा बुलेट ट्रेन के परिचालन हेतु ऋण दिये जाने के बाद से चर्चाओं का बाज़ार एक बार फिर से गरम है कि यह ट्रेन आखिर कहाँ तक लाभदायक होगी। आज वाद-प्रतिवाद–संवाद के ज़रिये हम बुलेट ट्रेन परियोजना के सफल क्रियान्वयन के संभावित प्रभावों तथा अन्य पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

वाद

  • मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन ऐसी परियोजना है, जिसकी आर्थिक व्यवहार्यता चिंताजनक और सार्वजनिक सेवा का आधार कमज़ोर है।
  • विदित हो कि केवल विशिष्ट जनसांख्यिकी एवं उच्च आय वाले देशों में ही बुलेट ट्रेनों का सफल परिचालन संभव हो पाया है।
  • जहाँ कई देश इस प्रयास में नाकाम भी रहे, वहीं कई देशों ने इस परियोजना के संभावित प्रभावों का आकलन करते हुए इस पर आगे कार्य करने का विचार त्याग दिया है।
  • इस सन्दर्भ में जापान और दक्षिण कोरिया समेत कुछ देशों में बुलेट ट्रेन के परिचालन से संबंधित आँकड़ों पर गौर करना दिलचस्प होगा।

♦ जापान की अग्रणी शिनकासेन बुलेट ट्रेन टोक्यो को ओसाका को जोड़ती है, वहाँ के सबसे बड़े औद्योगिक और वाणिज्यिक केंद्रों से होकर गुजरती है और जापान की लगभग आधी जनसंख्या से सीधे जुड़ी हुई है, जबकि दक्षिण कोरिया में बुलेट ट्रेन वहाँ की 70 प्रतिशत जनता की ज़रूरतों को सकारात्मक ढंग से प्रभावित करती है। फिर भी यहाँ बुलेट ट्रेन की आर्थिक व्यवहार्यता को लेकर सवाल उठते रहते हैं।
♦ फ्राँस के पेरिस-ल्योन एचएसआर सेवा को समय-समय पर अच्छी खासी सब्सिडी देनी पड़ी। ताइवान की एचएसआर सेवा लगभग 1 अरब डॉलर के नुकसान के बाद दिवालिया होने की कगार पर पहुँच गई थी और सरकार को राहत पैकेज की घोषणा करनी पड़ी।
♦ अर्जेंटीना ने एचएसआर परियोजना की लागत का आकलन किया और उच्च लागत को देखते हुए निर्णय लिया कि केवल कुछ ही मार्गों पर बुलेट ट्रेन चलाने से बेहतर है कि समूची व्यवस्था का उन्नयन किया जाए। विदित हो कि अर्जेंटीना ने बुलेट ट्रेन की बजाय सम्पूर्ण सिस्टम अपग्रेडेशन द्वारा अपनी सभी ट्रेनों को हाई स्पीड ट्रेन (बुलेट ट्रेन) के बजाय मीडियम स्पीड ट्रेन में बदलने का फैसला किया है। कहा जा रहा है कि भारत को भी यही कदम उठाने चाहिये।
♦ अमेरिका ने सैन फ्राँसिस्को-लॉस एंजिल्स के एचएसआर गलियारे की शुरूआत तो की है, लेकिन वह अभी भी घनी आबादी वाले औद्योगिक-वाणिज्यिक इलाके से गुजरने वाले फिलाडेल्फिया-बोस्टन-न्यूयॉर्क-वाशिंगटन डीसी कॉरिडोर के बारे में अनिश्चित है।

  • बुलेट ट्रेन को लेकर चीन के अनुभव को ही सकारात्मक कहा जा सकता है, लेकिन सत्य यह भी है कि बुलेट ट्रेन का किराया कहीं आम आदमी की पहुँच से बाहर न हो जाए इसके लिये चीन प्रायः इसके किराये में कटौती करता रहता है।
  • मुंबई-अहमदाबाद एचएसआर की लागत करीब 1 लाख करोड़ रुपए है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद द्वारा जारी परियोजना से संबंधित एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि यदि 4,000- 5,000 रुपए के किराए पर कम से कम 1 लाख यात्री रोज़ाना यात्रा करें तब जाकर कहीं इस परियोजना से प्राप्त होने वाले लाभ या हानि की गणना की जा सकेगी।
  • गौरतलब है कि अहमदाबाद से मुंबई के लिये हवाई यात्रा का टिकट 2500 रुपए में उपलब्ध है, ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि बुलेट ट्रेन की टिकटें सब्सिडाइज्ड दरों पर उपलब्ध होंगी और इससे सरकारी के खज़ाने पर दबाव बढ़ेगा।
  • इस परियोजना के बारे में कुछ मिथक बड़ी तेज़ी से फैल रहे हैं जैसे कि इस परियोजना के सफल क्रियान्वयन से भारत और जापान के बीच तकनीकों का सुलभ आदान-प्रदान होगा।
  • हालाँकि, यह भारत के लिये तर्कसंगत नहीं होगा कि वह महंगी जापानी तकनीक को अपना सके। विदित हो कि हाई स्पीड रेल निर्माण की इस जापानी तकनीक पर होने वाला खर्च ‘स्वर्णिम चतुर्भुज रेल गलियारे’ के निर्माण पर आने वाले खर्च से 15 गुना अधिक है।
  • ऐसे में यह कहना कि बुलेट ट्रेन भारत की तस्वीर बदल देगी, एक अतिशयोक्तिपूर्ण बात होगी।

प्रतिवाद

  • यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दुनिया के तीसरे सबसे बड़े रेल नेटवर्क होने के बावजूद भारत में कोई भी हाई-स्पीड कॉरिडोर नहीं है, जबकि दुनिया भर में 15 देशों में यह मौज़ूद है। इस परियोजना को लेकर राजनीति प्रेरित आकलन से बचना होगा।
  • दरअसल, ऐसा नहीं है कि एनडीए सरकार ने ही बुलेट ट्रेन को लेकर ज़मीन-आसमान एक किया हुआ है। विदित हो कि पूर्ववर्ती सरकारों ने भी इस संबंध में महत्त्वपूर्ण प्रयास किये हैं। ऐसे में यह कहना कि केवल उद्योगपतियों को फायदा पहुँचाने के लिये यह ट्रेन चलाई जा रही है, उचित नहीं है।
  • बुलेट ट्रेन परियोजना के आक्रामक आलोचकों का तर्क यह है कि हाल ही में हुई रेल दुर्घटनाओं को देखते हुए पहले भारतीय रेलवे को यात्रियों के लिये तमाम सुरक्षा मुहैया कराने के प्रयास होने चाहिये।
  • यह ठीक है कि यात्री सुरक्षा बहाल होनी ही चाहिये, लेकिन इसे बुलेट ट्रेन से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिये। सरकार ने 2014 में रेलवे के बुनियादी ढाँचा में विकास के लिये 8.5 लाख करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई थी। हमें करना यह होगा कि हम इस निवेश को प्राथमिकता देते हुए अगले दो वर्षों में सभी सुरक्षा संबंधी अवसंरचनाओं का नवीनीकरण या उन्नयन करें।
  • बुलेट ट्रेन में होने वाले निवेश और रेल अवसरंचनाओं के उन्नयन में होने वाले निवेश को एक दूसरे से जोड़कर देखना इसलिये उचित नहीं है, क्योंकि ये दोनों ही निवेश आवश्यक हैं और ये एक-दूसरे के विकल्प नहीं बन सकते। दरअसल  हमें चीन से सीख लेनी होगी, जिसने पिछले 15 वर्षों में 22,000 किलोमीटर एचएसआर का नेटवर्क विकसित किया है और 2020 तक इस नेटवर्क को 30,000 किलोमीटर तक विस्तारित करने की योजना बना रहा है।
  • जापान की हाई स्पीड ट्रेन शिनकासेन अत्याधुनिक तकनीक से लैस तो है ही साथ में यहाँ बेहतर कार्य संस्कृति भी देखने को मिलती है। शिनकासेन ट्रेन अपने साथ जापानी कार्य संस्कृति, समयबद्धता, कठिन परिश्रम और प्रतिबद्धता लेकर आएगी।
  • दरअसल, भारत को इस  एचएसआर का नेटवर्क के विकास के लिये उन्नत तकनीक  के साथ बेहतर कार्य संस्कृति की भी ज़रूरत है। उम्मीद है कि जपानी बुलेट ट्रेन इसमें मददगार साबित होगी।

संवाद

  • मानव जाति का आरंभ से ही रफ़्तार के प्रति आकर्षण रहा है। परिवहन के सभी माध्यमों में एक-दूसरे को पीछे करने की होड़ मची रहती है और बुलेट ट्रेन का यह उद्भव रेलवे की इसी होड़ का नतीज़ा है। दरअसल, आज राष्ट्रों के पास हाई स्पीड नेटवर्क का होना एक ‘स्टेटस सिंबल’ बन चुका है।
  • भारत आने वाले 25 वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना संजोए हुए है। यह पहले से ही परमाणु ताकत से लैश है और अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में इसने विश्वसनीय प्रगति की है। ऐसे में एचएसआर नेटवर्क वाले देशों के विशेष क्लब में शामिल होने का भारत का यह प्रयास जायज़ नज़र आता है।
  • भारत के पास बुलेट ट्रेनों के परिचालन की तकनीक मौज़ूद नहीं थी और न ही भारत के पास इतनी बड़ी पूंजी थी कि वह इस तकनीक में निवेश कर सके। जापान द्वारा सस्ता कर्ज़ और उसकी शिनकासेन तकनीक दोनों को प्राप्त कर भारत ने एक तीर से दो निशाना लगाने की कोशिश की है।
  • समस्या एक ही है और वह इस परियोजना पर होने वाले भारी खर्च से संबंधित है। एचएसआर नेटवर्क को विकसित करने की लागत और भी बढ़ सकती है। इस नेटवर्क का निर्माण भारत में हुए मेट्रो लाइनों के निर्माण की तर्ज़ पर ही किया जाएगा।
  • विदित हो कि 1 किलोमीटर के मेट्रो मार्ग के निर्माण में 250 करोड़ का खर्च आया है और इस पर अधिकतम 100 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार वाली ट्रेनें ही चल सकती हैं। ऐसे में 320 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ़्तार वाली बुलेट ट्रेन के लिये पथ निर्माण की प्रक्रिया काफी खर्चीली होगी। एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान लागत में कम से कम 40 हज़ार करोड़ की बढ़ोतरी हो सकती है।
  • वित्तीय बाधाओं को परे रखकर बात करें तो एचएसआर परिवहन के लिये एक नया आयाम है और यह एक अलग और विशिष्ट उपक्रम है जो कि मेट्रो रेल की तरह ही पारंपरिक रेलवे से अलग है। एचएसआर के वित्त और प्रबंधन का परंपरागत भारतीय रेलवे के साथ कुछ भी लेना-देना नहीं है। ऐसे में बुलेट ट्रेन का स्वागत करना चाहिये।

निष्कर्ष

  • 14 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अहमदाबाद में साबरमती के पास देश की पहली हाई-स्पीड ट्रेन (बुलेट ट्रेन) परियोजना की आधारशिला रखी। भारत सरकार ने यह परियोजना जापान की मदद से शुरू की है।
  • एचएसआर के साथ-साथ नए उत्पादन अड्डों और टाउनशिप को भी विस्तारित किया जाएगा। इसके लिये आवश्यक सस्ते आवासों, लॉजि़स्टिक्स केंद्रों और औद्योगिक इकाइयों के खुलने से छोटे कस्बों और शहरों को भी लाभ होगा।
  • महाराष्ट्र के पालघर और गुजरात के वलसाड ज़िले के साथ-साथ संघ राज्य क्षेत्र दमन में भी निवेश के नए अवसर निर्मित होंगे।  बुलेट ट्रेन की निर्माण संबंधी गतिविधियों से इस्पात, सीमेंट एवं विनिर्माण जैसे संबद्ध उद्योगों को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • इससे अतिरिक्त इससे रसद एवं वस्तुओं की भंडारण संबंधी मांग में भी बढ़ावा होगा। इससे निकट अवधि में देश की आर्थिक उन्नति को बढ़ावा देने में भी मदद मिलेगी।  इससे देश में बहुत सी नई अस्थायी एवं स्थायी नौकरियाँ सृजित होंगी। अकेले निर्माण चरण में ही लगभग 20,000 लोगों के लिये रोज़गार के अवसर पैदा होने की संभावना है। 
  • परियोजना के संचालन के बाद ट्रेन की लाइनों के संचालन और रखरखाव के लिये कम से कम 4,000 नौकरियों का सृजन किया जाएगा। इसके अलावा, तकरीबन 16,000 अप्रत्यक्ष रोज़गार के भी अवसर उत्पन्न होने की उम्मीद है।
  • इतना ही नहीं, इस जटिल और बृहद परियोजना का प्रबंधन करना भारतीय एजेंसियों के लिये भी एक बेहतर अनुभव साबित होगा, जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में अधिक से अधिक कौशल विकास होने की संभावना है।
  • वस्तुतः इस परियोजना की सफलता इसके निष्पादन पर निर्भर करती है। स्पष्ट है कि यदि इस परियोजना को सफल तरीके से समय पर पूरा किया जाता है तो यह परियोजना न केवल भारत में कुशल परियोजना कार्यान्वयन की संस्कृति विकसित करने के लिये एक शक्तिशाली उत्प्रेरक का काम करेगी, बल्कि इससे परियोजना कार्यान्वयन के संदर्भ में वैश्विक परिदृश्य में भारत की छवि में भी सुधार होगा।
  • इसके लिये आवश्यक है कि भारत द्वारा इस परियोजना संबंधी कार्यों के शुरू होने से पहले इससे संबद्ध आवश्यक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाए, ताकि समय पर इसका कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके। यह भारत के लिये एक परिवर्तनकारी परियोजना साबित हो सकती है।