देश-देशांतर: बजट फिर चला खेत-खलिहानों की ओर | 10 Feb 2018

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के आम बजट में खरीफ फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prize-MSP) किसानों की उत्पादन लागत का डेढ़ गुना करने की घोषणा की है। आगामी खरीफ सीज़न में सभी सूचीबद्ध फसलों के लिये एमएसपी घोषित करने का निर्णय लिया गया है, जो उत्पादन लागत का कम-से-कम डेढ़ गुना होगा। इसके अलावा, कृषि को एक उद्यम की तरह विकसित करने, कम आगतों से अधिक कृषि उत्पादकता हासिल करने तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये बजट 2018-19 में कृषि क्षेत्र हेतु अनेक नई पहलों की घोषणा की गई है। इनका उद्देश्य किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना है।

स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें 
लगभग 13 वर्ष पूर्व स्वामीनाथन आयोग (राष्ट्रीय कृषक आयोग) द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के अंतर्गत इस बात पर विशेष ज़ोर दिया गया था कि छोटे किसान को प्राप्त होने वाले लाभ तथा उसकी उत्पादन क्षमता के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना की जानी चाहिये। स्वामीनाथन आयोग ने अपनी सिफारिशों में किसानों को फसल लागत मूल्य से 50 प्रतिशत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात कही थी। इसके अतिरिक्त, किसानों हेतु लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिये उन्हें अनुबंध कृषि की ओर प्रोत्साहित करने की भी सिफारिश की गई थी। इसके अलावा स्वामीनाथन आयोग ने अपनी रिपोर्ट के आधार पर राष्ट्रीय किसान नीति का विस्तृत मसौदा प्रस्तुत किया था, जिसके आधार पर राष्ट्रीय किसान नीति 2007 बनी थी जो कि अभी प्रचलन में है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

क्या है एमएसपी?
किसान अपनी फसल को बाज़ार में किसी भी क़ीमत पर बेच सकता है और सरकार इसके लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती है। यह ख़रीद का वह मूल्य है, जिससे कम पर वैधानिक रूप से वह फसल खरीदी नहीं जा सकती और सरकार स्वयं भी इसी कीमत पर किसानों से फसल की खरीद करती है।

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग
किसी भी खाद्यान्न के लिये उत्पादन, आवश्यकता और मूल्य परस्पर संबद्ध रहते हैं। जब किसी फसल का उत्पादन बढ़ जाता है तो उसका बिक्री मूल्य कम हो जाता है। किसी भी कारण से कृषि उत्पादों के मूल्यों में भारी गिरावट को रोकने के लिये केंद्र सरकार प्रतिवर्ष लगभग सभी मुख्य फसलों का न्यूनतम बिक्री मूल्य निर्धारित करती है। इसके लिये कृषि लागत और मूल्य आयोग की अनुशंसाओं के आधार पर कुछ फसलों के बुवाई सत्र के आरंभ में न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी जाती है।

उद्देश्य: न्यूनतम समर्थन मूल्य का मुख्य उद्देश्य किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाकर उनकी उपज का अच्छा मूल्य प्रदान करना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये अनाज की खरीद करना है। यदि किसी फसल का बम्पर उत्पादन होने या बाजार में उसकी अधिकता होने के कारण उसकी कीमत घोषित मूल्य की तुलना में कम हो जाते हैं तो सरकारी एजेंसियाँ किसानों की अधिकांश फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद लेती है।

वर्तमान में सरकार 25 फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा करती है, जिसमें सात अनाज, पाँच दालें, आठ तिलहन तथा नारियल, कच्चा कपास, कच्चा जूट, गन्ना और वर्जीनिया फ्लू उपचारित तम्बाकू शामिल हैं।न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिये अनुशंसाएँ देते समय उत्पादक की लागत, इनपुट मूल्यों में परिवर्तन, इनपुट-आउटपुट मूल्य समता, बाजार कीमतों की प्रवृत्तियाँ, मांग और आपूर्ति, अंतर-फसल मूल्य समता, औद्योगिक लागत संरचना पर प्रभाव, जीवन यापन लागत पर प्रभाव, सामान्य मूल्य स्तर पर प्रभाव, अंतरराष्ट्रीय मूल्य स्थिति, किसानों द्वारा भुगतान किये गए और प्राप्त किये गए मूल्यों के बीच समता और निर्गम मूल्यों पर प्रभाव आदि को मद्देनज़र रखते हुए कृषि लागत और मूल्य आयोग द्वारा यह मूल्य निर्धारण किया जाता है।

(टीम दृष्टि इनपुट) 

फसलों का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य
इस मुद्दे पर जल्द ही केंद्र सरकार और नीति आयोग राज्यों से विचार-विमर्श शुरू करने वाले हैं कि खरीफ की सभी फसलों पर लागत का डेढ़ गुना एमएसपी दिया जाएगा या फिर यह कुछ चुनिंदा फसलों के लिये ही मान्य होगा। उल्लेखनीय है कि सरकार ने पिछले वर्ष नवंबर में रबी फसलों के लिये लागत का डेढ़ गुना देने की घोषणा की थी। लेकिन सरकार के सामने किसानों को एमएसपी दिलाना ही सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि प्रायः देखने में आता है कि उत्पादन बढ़ने और मांग कम होने से फसलों के दाम गिर जाते हैं। ऐसी स्थिति में  सरकार किसानों को नुकसान से बचाने और फसल का उचित दाम दिलवाने के लिये राज्य सरकारों से भी सहयोग लेती  है।

भावांतर योजना 
इस दिशा में एक और कदम उठाते हुए सरकार ने मध्य प्रदेश की भावांतर योजना को पूरे देश में लागू करने की योजना बनाई है। इस योजना के लागू होने पर देशभर के किसानों को एमएसपी और बाज़ार भावों में अंतर होने पर किसी तरह का नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। मध्य प्रदेश सरकार ने कृषि क्षेत्र में कीमतों के जोखिम को कम कर किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने व कृषि उत्पादों के लिये मुआवज़ा देने के उद्देश्य से यह योजना शुरू की है। इस योजना के तहत सरकार फसल का पैसा सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजती है।

(टीम दृष्टि इनपुट) 

कृषि से जुड़े जोखिम
वर्ष 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में भारत में कृषि को एक जोखिम भरा व्यवसाय बताते हुए कहा गया था कि किसानों को फसलों के रोपण से लेकर अपने उत्पादों के लिये बाज़ार खोजने तक जोखिमों का सामना करना पड़ता है। 

  • भारत में कृषि में जोखिम फसल उत्पादन, मौसम की अनिश्चितता, फसल की कीमत, ऋण और नीतिगत फैसलों से जुड़े हैं।
  • कीमतों में जोखिम का मुख्य कारण पारिश्रमिक लागत से भी कम आय, बाज़ार की अनुपस्थिति और बिचौलियों द्वारा अत्यधिक मुनाफा कमाना है। 
  • बाज़ारों की अकुशलता और किसानों के उत्पादों की विनाशशील प्रकृति, उत्पादन को बनाए रखने में उनकी असमर्थता, अधिशेष या कमी के परिदृश्यों में बचाव या घाटे के खिलाफ बीमे में बहुत कम लचीलेपन के कारण कीमतों में जोखिम बहुत अधिक है।
  • इन जोखिमों को कम करने से कृषि आय और मुनाफे में वृद्धि हो सकती है, लेकिन आज भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। 
  • नीतिगत फैसलों और विनियमों से संबंधित कृषि जोखिमों को दूर करने के लिये व्यापार नीति और व्यापारियों के लिये स्टॉक की सीमा की घोषणा फसल लगाने से पहले घोषित की जानी चाहिये तथा इसे किसानों द्वारा कटी हुई फसल के बेचे जाने तक रहने दिया जाना चाहिये।

कृषि में महिलाओं की भागीदारी
आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार पुरुषों का गाँवों से शहरों की ओर पलायन होने की वज़ह से कृषि श्रमबल में महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि हो रही है। आर्थिक रूप से सक्रिय 80% महिलाएँ कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। इनमें से 33% मज़दूरों के रूप में और 48% स्व-नियोजित किसानों के रूप में कार्य कर रही हैं। लेकिन यह भी सच है कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के आँकड़ों के अनुसार पिछले तीन दशकों में कृषि क्षेत्र में महिलाओं एवं पुरुषों दोनों की संख्या में गिरावट आई है।

भारत में महिलाएँ कृषि विकास और संबद्ध गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाती हैं। भारत सहित अधिकतर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण महिलाओं का सबसे अधिक योगदान है। भारत में लगभग 18% खेतिहर परिवारों का नेतृत्व महिलाएँ ही करती हैं। कृषि का ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसमें महिलाओं की भागीदारी न हो। जनगणना 2011 के अनुसार, कुल महिला मुख्य श्रमिकों में से 55% कृषि श्रमिक और 24% कृषि मज़दूर के अंतर्गत कार्यरत थीं। किंतु प्रचालित भू-जोतों (Operational Holdings) के स्वामित्व में महिलाओं का हिस्सा केवल 12.8% है, जो भू-स्वामित्व में लैंगिक असमानता को दर्शाता है। कृषि में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका को मान्यता देते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने प्रतिवर्ष 15 अक्तूबर को महिला किसान दिवस घोषित किया है।

(टीम दृष्टि इनपुट) 

बजट में कृषि संबंधी अन्य प्रमुख पहलें
ऑपरेशन ग्रीन्स: 500 करोड़ रुपए की राशि के साथ ‘ऑपरेशन ग्रीन्स’ लॉन्च किया जाएगा, ताकि जल्द नष्ट होने वाली जिंसों जैसे-आलू, टमाटर और प्याज की कीमतों में तेज़ उतार-चढ़ाव की समस्या से निपटा जा सके। इसके तहत इस क्षेत्र में किसान उत्पादक संगठनों, कृषि-लॉजिस्टिक्स, प्रसंस्करण सुविधाओं और क्षेत्र के व्यावसायिक प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाएगा।

जैविक खेती को बढ़ावा: बड़े पैमाने पर जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु बड़े क्लस्टरों, विशेषकर प्रत्येक 1000 हेक्टेयर में फैले क्लस्टरों में किसान उत्पादक संगठनों और ग्रामीण उत्पादक संगठनों के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। पूर्वोतर तथा पहाड़ी राज्यों को इस योजना का विशेष लाभ प्राप्त होगा। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम के तहत क्लस्टरों में जैविक खेती करने के लिये महिला स्वयं सहायता समूहों को भी प्रोत्साहित किया जाएगा।

ग्रामीण युवा रोज़गार के लिये ‘आर्या’ (ARYA)
‘आर्या’ का पूरा नाम है (Attracting & Retaining Youth in Agriculture-ARYA)। इसकी शुरुआत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने की। इसका उद्देश्य सतत आय का ज़रिया प्रदान कर ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के लिये अवसर उत्पन्न करना है। इस पहल के ज़रिये बाज़ार तक पहुँच बनाई जाती है, ताकि युवा पीढ़ी अपने गाँवों को लौट सके। कृषि विज्ञान केंद्र इस योजना को लगभग पूरे देश में क्रियान्वित कर रहे हैं और प्रत्येक राज्य के कम-से-कम एक ज़िले में यह योजना चल रही है। इस योजना के तहत उन कारगर तरीकों के बारे में बताया जाता है जो युवाओं के लिये आर्थिक रूप से उपयोगी हों और जिनमें उन्हें आकर्षित करने की क्षमता हो।(टीम दृष्टि इनपुट)

ग्रामीण कृषि बाज़ार: देश में 86% से भी अधिक छोटे एवं सीमांत किसान हैं जो सीधे APMC या अन्य थोक बाज़ारों में लेन-देन करने की स्थिति में हमेशा नहीं होते हैं। इसके समाधान के लिये मौजूदा 22,000 ग्रामीण हाटों को ग्रामीण कृषि बाजारों के रूप में विकसित किया जाएगा। इन्हें इलेक्ट्रॉनिक रूप से ई-नाम (e-NAM) से जोड़ा जाएगा तथा APMC के नियमन के दायरे से बाहर रखा जाएगा। इससे किसान सीधे उपभोक्ताओं और व्यापक स्तर पर खरीदारी करने वालों को अपनी उपज बेच सकेंगे।

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: यह क्षेत्र औसतन 8% वार्षिक दर से संवृद्धि कर रहा है। बजट में इस क्षेत्र के लिये बजटीय आवंटन बढ़ाकर विशिष्ट कृषि-प्रसंस्करण वित्तीय संस्थानों की स्थापना की जाएगी तथा सभी 42 मेगा फूड पार्कों में अत्याधुनिक परीक्षण सुविधाओं की स्थापना की जाएगी।

पशुपालन: मत्स्य पालन एवं पशुपालन क्षेत्र के छोटे और सीमांत किसानों की कार्यशील पूंजी संबंधी ज़रूरतों की पूर्ति में सहायता के लिये किसान क्रेडिट कार्डों की सुविधा अब इस क्षेत्र को भी देने का प्रस्ताव रखा गया है। इससे भैंस, बकरी, भेड़, मुर्गी एवं मत्स्य पालन के लिये फसल ऋण और ब्याज सब्सिडी का लाभ मिल सकेगा, जो अभी तक केवल कृषि क्षेत्र को ही उपलब्ध था।

स्मार्ट कृषि के लिये किसान-ज़ोन 

  • किसान-ज़ोन स्मार्ट कृषि के लिये एक सामूहिक खुला-स्रोत डेटा मंच है, जो छोटे और सीमांत किसानों के जीवन में सुधार के लिये जैविक अनुसंधान और डेटा का उपयोग करता है। 
  • किसान-ज़ोन जलवायु परिवर्तन, मौसम का पूर्वानुमान, मिट्टी, पानी और बीज इत्यादि की जानकारियों के लिये किसान की सभी ज़रूरतों को पूरा करने में सहायता प्रदान करेगा।
  • विज्ञान, प्रौद्योगिकी, नवाचार और कृषि पारिस्थितिक तंत्र को एकीकृत करने के लिये किसान-ज़ोन को जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा तैयार किया गया है।
  • किसान-ज़ोन प्लेटफार्म किसानों और वैज्ञानिकों, सरकारी अधिकारियों, कृषि विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों और बिग डेटा एवं ई-कॉमर्स क्षेत्र में काम करने वाले वैश्विक कंपनियों के प्रतिनिधियों हेतु  प्रौद्योगिकी-आधारित स्थानीय कृषि समाधानों के लिये एक मंच का काम करता है।

(टीम दृष्टि इनपुट) 

पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन: बाँस को ‘हरित सोना’ की संज्ञा देते हुए कृषि तथा गैर-कृषि क्रियाकलापों को बढ़ाने के लिये 1290 करोड़ रुपए के पुनर्गठित राष्ट्रीय बाँस मिशन लॉन्च करने की घोषणा की गई है जो बाँस मूल्यवर्द्धन श्रृंखला की बाधाएँ दूर करने और समग्र रूप से बाँस क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये क्लस्टर अवधारणा पर आधारित होगा।

संस्थागत ऋण: किसानों को समय पर ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु कृषि क्षेत्र के लिये संस्थागत ऋण को वर्ष 2017-18 के 10 लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर वर्ष 2018-19 में 11 लाख करोड़ रुपए किया गया है।

मूल्य और मांग का पूर्वानुमान: मूल्य और मांग का पूर्वानुमान लगाने के लिये एक संस्थागत तंत्र की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है। इसके माध्यम से किसान समय पर यह निर्णय ले सकेंगे कि उन्हें कितनी मात्रा में कौन सी फसल उगाने से अधिक लाभ होगा।

Model Land License Cultivator Act की भी घोषणा की गई है जिसके माध्यम से बंटाईदार तथा ज़मीन को किराये पर लेकर खेती करने वाले छोटे किसानों को भी संस्थागत ऋण व्यवस्था का लाभ मिल सकेगा। इसके लिये नीति आयोग राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करेगा। 

निष्कर्ष: भारत की कुल जनसंख्या के लगभग 58% लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि है और विश्व की कुल उपज का 7.68% उत्पादन यहाँ होता है। देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में भी कृषि का योगदान लगभग पाँचवें हिस्से के बराबर है। कुल निर्यात का लगभग 10% हिस्सा कृषि से प्राप्त होता है और इससे अनेक उद्योगों को कच्चा माल भी मिलता है। देश के अनेक हिस्सों में अस्थिर कृषि न केवल राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिये खतरा है, बल्कि देश के आर्थिक विकास के लिये कृषि बेहद महत्त्वपूर्ण है। इसके मद्देनज़र सरकार ने एक महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य तय किया है, जिसके तहत 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने का कार्यक्रम तैयार किया गया है। सरकार द्वारा हाल में उठाए गए कदमों और कृषि में तकनीकी नवाचारों के ज़रिये भी इस क्षेत्र की प्रतिष्ठा पुनः बहाल करने के प्रयास किये जा रहे हैं। इन प्रयासों से किसानों का उपभोक्ताओं के साथ सीधा संबंध स्थापित होगा, जिससे उन्हें आय सुनिश्चित हो सकेगी और कृषि क्षेत्र में उपज में भी पर्याप्त वृद्धि होगी।