देश देशांतर : मुक्त व्यापार की राह | 11 Dec 2018

संदर्भ


विभिन्न देशों के बीच मुक्त व्यापार आज के वैश्विक दौर की आर्थिक ज़रूरत है और इसीलिये मुक्त व्यापार की राह में आने वाली बाधाओं को खत्म किया जाना चाहिये जिससे आर्थिक विकास का लाभ सभी देशों को मिल सके। वित्त मंत्री अरुण जेटली के मुताबिक, टैरिफ वार को लेकर बढ़ती चिंता और दुनिया भर में अपने उद्योगों के हितों की रक्षा के लिये दूसरे देशों के सामने खड़ी की जा रही बाधाओं से वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान होने की आशंका है। सभी देशों के व्यापक हितों के लिये यह आवश्यक है कि व्यापार की राह में आने वाली बाधाओं को कम किया जाए। कोई भी देश सभी वस्तुएँ नहीं बना सकता या कम-से-कम कीमत पर बेहतरीन गुणवत्ता चाहने वाले उपभोक्ताओं के लिये सभी सेवाएँ मुहैया नहीं करा सकता। इसे देखते हुए मुक्त व्यापार (free trade) व्यवस्था की ज़रूरत है। मुक्त व्यापार बढ़ने से न केवल ग्लोबल इकॉनमी को बल्कि सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को फायदा होगा।

पृष्ठभूमि

  • दो ब्रिटिश अर्थशास्त्रियों एडम स्मिथ तथा डेविड रिकार्डो ने तुलनात्मक लाभ की आर्थिक अवधारणा के माध्यम से मुक्त व्यापार के विचार को बढ़ावा दिया था। तुलनात्मक लाभ तब होता है जब एक देश दूसरे से बेहतर गुणवत्ता वाले सामान का उत्पादन कर सकें।
  • राष्ट्र इन उत्पादों को उन अन्य देशों से आयात कर सकते हैं जिनके पास इन उत्पादों की सीमित मात्रा होती है।
  • मुक्त व्यापार उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करने के लिये आर्थिक संसाधनों के उपयोग को भी प्रभावित करता है।

क्या है मुक्त व्यापार तथा मुक्त व्यापार समझौता?

  • मुक्त व्यापार दो या दो से अधिक देशों के बीच बनाई गई वह नीति है जो साझेदार देशों के बीच वस्तुओं या सेवाओं के असीमित निर्यात या आयात की अनुमति देता है।
  • व्यापार समझौते तब होते हैं जब दो या दो से अधिक राष्ट्र आपस में व्यापार की शर्तों पर सहमत होते हैं। ये समझौते आयात और निर्यात पर लगाए गए टैरिफ और अधिभारों का निर्धारण करते हैं। सभी व्यापार समझौते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित करते हैं।
  • ऐसे समझौते करने के लिये देशों या देशों के समूहों को WTO के दायरे में आने की ज़रूरत नहीं पड़ती, इसलिये WTO के नियमों से अगर उन्हें कहीं रुकावट हो रही हो तो वे FTA के सहारे भी आगे बढ़ सकते हैं।
  • मुक्त व्यापार टैरिफ को समाप्त करता है तथा कॉर्पोरेशन को विदेशी बाज़ारों में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाता है।
  • FTA में आमतौर पर वस्तुओं (जैसे-कृषि या औद्योगिक उत्पाद) या सेवाओं के व्यापार (जैसे-बैंकिंग, निर्माण, ट्रेडिंग इत्यादि) को कवर किया जाता है।
  • FTA बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), निवेश, सरकारी खरीद और प्रतिस्पर्द्धी नीति आदि जैसे अन्य क्षेत्रों को भी कवर कर सकता है।

FTA विश्व व्यापार संगठन से कैसे अलग है?

  • सर्वाधिक पसंद वाले देशों के साथ व्यवहार या मोस्ट फेवर्ड नेशंस ट्रीटमेंट (MFNT) WTO के बुनियादी सिद्धांतों में से एक है। FTA इस सिद्धांत का अपवाद प्रस्तुत करता है।
  • मुक्त व्यापार समझौता और विश्व व्यापार संगठन अपनी संरचना में अलग हैं, साथ ही उनके दायरे भी अलग-अलग हैं।
  • WTO के अंदर ‘बाध्यकारी शुल्क’ निर्धारित होते हैं, जबकि मुक्त व्यापार समझौते के भीतर ये शुल्क या तो सीधे हटा दिये जाते हैं या शून्य प्रतिशत तक घटा दिये जाते हैं। इससे व्यापार में और भी ज़्यादा तेज़ी आने लगती है।
  • WTO विकासशील और कम विकसित देशों को कुछ विशेष प्रावधान, सुरक्षा के उपाय तथा लचीलापन प्रदान करता है, जबकि FTA विकासशील देशों और कम विकसित देशों के लिये विशेष प्रावधान या सुरक्षा के उपाय की अनुमति नहीं देता है।
  • मुक्त व्यापार समझौते उन क्षेत्रों में भी विस्तार करते हैं जहाँ WTO सीमित दायरे में होता है, जबकि FTA, WTO द्वारा तय किये गए बौद्धिक संपदा व्यापार संबंधी मानकों से कहीं आगे निकल जाते हैं तथा ट्रिप्स प्लस (TRIPS PLUS) के प्रावधानों को सम्मिलित करने की मांग करते हैं जो ट्रिप्स से ज़्यादा छूट देते हैं।
  • मुक्त व्यापार समझौते उन क्षेत्रों को अपने दायरे में शामिल करते हैं जो WTO से बाहर रखे गए थे, जैसे- निवेश, सरकारी खरीद तथा ई-कॉमर्स का उदारीकरण।

FTA की ज़रूरत क्यों?

  • टैरिफ और कुछ गैर-टैरिफ बाधाओं को खत्म करने से FTA भागीदारों को एक-दूसरे के बाज़ारों में पहुँच आसान होती है।
  • निर्यातक बहुपक्षीय व्यापार उदारीकरण के लिये FTA को पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें गैर-एफटीए सदस्य देश के प्रतिस्पर्द्धियों पर अधिमान्य सहूलियत मिलती है। उदाहरण के लिये आसियान के मामले में, आसियान का भारत के साथ FTA है लेकिन कनाडा के साथ नहीं।
  • चमड़े के जूते पर आसियान की कस्टम ड्यूटी 20% है लेकिन भारत के साथ FTA के अंतर्गत यह ड्यूटी शून्य हो जाती है।
  • FTA से बाहर विदेशी निवेश में वृद्धि की संभावना होती है, जबकि मुक्त व्यापार समझौते मुक्त व्यापार और निवेश प्रवाह को बढ़ावा देते हैं।
  • FTA व्यापार उत्पादकता और नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं। इससे क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ावा मिलता है। 
  • FTA विकासशील देशों की मदद कर सकते हैं तथा इससे व्यापार का माहौल गतिशील होता है।

FTA की राह में अवरोध

  • अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आयात होने वाले स्टील तथा एल्युमीनियम के उत्पादों पर आयात कर बढ़ा दिया है। दूसरी तरफ, भारत ने अमेरिका से आयातित उच्च क्षमता की मोटरसाइकिल एवं बादाम पर आयात कर बढ़ाने की बात कही है। इस प्रकरण से स्पष्ट होता है कि मुक्त व्यापार का सिद्धांत कारगर नहीं रह गया है।
  • वित्त मंत्री का वक्तव्य सीमा पार व्यापार में आ रही बाधाओं की ओर इशारा करता है। मुक्त व्यापार में जो मुख्य बाधाएँ आती हैं वह है टैरिफ बाधाएँ अर्थात् इम्पोर्ट ड्यूटी।
  • दूसरा, नॉन-टैरिफ बाधाएँ अर्थात् व्यापार में कितनी वस्तुओं पर पाबंदी लगेगी। इन पर टैरिफ तो ज़ीरो होगा लेकिन कुछ शर्तें लगा दी जाएंगी।
  • विश्व के अन्य देश अमेरिका के साथ मिलकर इन बाधाओं को दूर करने की तरफ बढ़ रहे थे लेकिन 2016 के बाद अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाना शुरू कर दिया जो कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। ध्यातव्य है कि भारत भी अमेरिका के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार करता है।
  • अमेरिका ने विभिन्न देशों के साथ टैरिफ बैरियर लगाना शुरू कर दिया। उसने चीन के साथ इंपोर्ट ड्यूटी भी लगानी शुरू की क्योंकि चीन का ट्रेड अमेरिका की तुलना में अधिक है।
  • अमेरिका, भारत के साथ दो वस्तुओं- स्टील और एल्युमीनियम पर इंपोर्ट ड्यूटी लगा चुका है। अमेरिका इतना निर्यात नहीं कर पाता जितना आयात करता है।
  • अमेरिका और चीन के संदर्भ में ट्रेड वार का ज़िक्र बार-बार आ रहा है जो वैश्विक आर्थिक विकास के लिये कतई ठीक नहीं है।

वैश्विक व्यापार में क्या बदलाव आया है?

  • विश्व व्यापार संगठन की व्यवस्था में गिरावट देखी जा रही है क्योंकि 1994 में इसकी स्थापना के बाद से मुक्त व्यापार तथा व्यापार का उदारीकरण जिस रफ़्तार से होना चाहिये था वह नहीं हो पाया है।
  • तथाकथित विकसित देश जैसे-अमेरिका, यूरोप, फ़्राँस, ज़र्मनी, जापान अपना रास्ता खोलने के लिये विकासशील देशों पर दबाव बना रहे थे। लेकिन जब विकासशील देश अपना रास्ता खोलने पर सहमत हुए तो इन विकसित देशों ने अपना रास्ता बंद कर दिया। अर्थात् रिवर्सल ऑफ द लिबरलाइज़ेशन की प्रक्रिया शुरू हुई।
  • ट्रेड वार के संदर्भ में WTO के अस्तित्व को लेकर एक बड़ा सवाल है। कभी विकसित देश विकासशील देशों को सेवाएँ प्रदान करने के लिये मुक्त व्यापार व्यवस्था की बात करते थे लेकिन अब विकसित देश इससे पीछे हट रहे हैं और यही बात अब विकासशील देश बोलने लगे हैं।
  • सभी बड़े देशों में प्रखर राष्ट्रवाद की बात चल रही है। अमेरिका फर्स्ट की नीति की तरह फ़्राँस, जर्मनी, जापान आदि विकसित देश नेशन फर्स्ट की नीति पर चल रहे हैं। ये देश अन्य सभी देशों के लिये सब कुछ ओपन नहीं करना चाहते।
  • मुक्त व्यापार के लिये विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को काफी सहूलियतें दी जाती थीं। अब यही विकासशील देश यूटर्न ले रहे हैं या यूँ कहें कि अपने दरवाजे बंद कर रहे हैं।

क्या FTA की प्रासंगिकता घट रही है?

  • 1990 के दशक में अमेरिका मुक्त व्यापार का समर्थक था। अमेरिका ने अन्य देशों के साथ मिलकर विश्व व्यापार संधि को लागू किया था और विश्व व्यापार संगठन (WTO) को स्थापित किया था। वहीँ, आज डोनाल्ड ट्रंप WTO को नुकसानदेह बता रहे हैं।
  • उस समय अमेरिका में नई तकनीकों का आविष्कार हो रहा था। जैसे- माइक्रोसॉफ्ट ने विंडो सॉफ्टवेयर का आविष्कार किया। इस सॉफ्टवेयर को बनाने में माइक्रोसॉफ्ट का लगभग एक डॉलर प्रति सॉफ्टवेयर का खर्च आता था, जबकि उस समय वह इसे दस डॉलर में बेच रहा था।
  • इसी प्रकार सिस्को सिस्टम द्वारा इंटरनेट के राउटर, आईबीएम तथा हयूवेट पेकार्ड द्वारा कंप्यूटर बनाकर पूरी दुनिया में भेजे जा रहे थे।
  • मोनसानटो द्वारा जीन परिवर्तित बीज जैसे- बीटी काटन बनाकर उसका निर्यात किया जा रहा था। इससे अमेरिका को भारी लाभ हो रहा था इसलिये अमेरिका के लिये उस समय मुक्त व्यापार दोहरे लाभ का सौदा था।
  • दूसरी तरफ, भारत जैसे विकासशील देशों से सस्ते कपड़े और खिलौने अमेरिकी उपभोक्ताओं को मिल रहे थे। इसलिये अमेरिका ने उस समय मुक्त व्यापार की ज़ोर-शोर से पैरवी की और WTO को बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
  • आज अमेरिका में विंडो सॉफ्टवेयर जैसे नए उत्पाद बनने बंद हो गए हैं। इंटरनेट पर चीन ने अपना दखल कायम कर लिया है। चीन तथा कोरिया में बड़ी मात्रा में आधुनिक कंप्यूटर बनाए जा रहे हैं।
  • परिणामस्वरूप, अमेरिका का निर्यात दबाव की स्थिति में है, जबकि आयात बढ़ रहा है। आयात बढ़ने से अमेरिकी मज़दूरों को नुकसान हो रहा है,  जबकि हाईटेक उत्पादों के निर्यात में कमी आने से भी अमेरिकी मज़दूरों का नुकसान हो रहा है।
  • इस समस्या से उबरने के लिये अमेरिका ने भारत से आयातित स्टील तथा चीन से आयातित तमाम उत्पादों पर आयात कर बढ़ा दिये हैं। अमेरिका की सोच यह है कि भारत तथा चीन से माल नहीं आएगा तो उस माल का उत्पादन अमेरिका में होगा।
  • इससे नागरिकों के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे, लेकिन दूसरी तरफ, भारत द्वारा व्यक्त प्रतिक्रिया के अनुसार आयात कर बढ़ाने से अमेरिका में भी निर्यात घटेंगे।
  • मुक्त व्यापार के दो पहलू हैं। पहला है विदेशी निवेश, इसके पीछे सोच यह थी कि मुक्त व्यापार के साथ अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारत में निवेश करेंगी तथा नई कंपनियाँ लगाएंगी, जिससे भारत में उच्च तकनीक के साथ विदेशी निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा।
  • आज अमेरिका के पास उच्च तकनीक न होने के कारण विदेशी निवेश के आधार पर उसका भारत में निवेश कम हो गया है।
  • दूसरा पहलू है कि यदि हम वैश्वीकरण को अपनाए रखते हैं तो भी हमारे निर्यात में कमी आएगी क्योंकि अमेरिका द्वारा मुक्त व्यापार का त्याग किया जा रहा है।

क्या है विकल्प?

  • मुक्त व्यापार से पीछे हटकर संरक्षणवाद की नीति अपनाना आज के समय में ज़्यादा प्रासंगिक है। विदेशी निवेश के स्थान पर घरेलू निवेश को प्रोत्साहन दिया जाना अधिक ज़रूरी है।
  • भारत के उद्यमी आज भारत में निवेश करने के स्थान पर विदेशों में कारखाने लगाना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं।
  • देशी निवेश के माध्यम से नई तकनीकों को हासिल करने के स्थान पर भारत को अब स्वयं नई तकनीकों के आविष्कार हेतु प्रयास करना चाहिये तथा अपने विश्वविद्यालयों और अन्य संस्थानों में अनुसंधान कार्यक्रमों में तेज़ी लाना चाहिये। ऐसा करने से हम घरेलू निवेश एवं घरेलू तकनीकों के आधार पर आगे बढ़ सकेंगे।
  • अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में उलझन और समस्याएँ बढ़ती ही जा रही हैं। जाहिर है कि मुक्त व्यापार के साथ दुनिया के जुड़ने और समृद्ध होने के दौर पर फिलहाल विराम लग गया है।

निष्कर्ष


अमेरिका को मुक्त व्यापार के क्षेत्र में अब विश्व के तमाम देशों से टक्कर लेनी पड़ रही है जिसमें वह असफल हो रहा है। अपने मंतव्य को पूरा करने के लिये राष्ट्रपति ट्रंप ने WTO को ही खंडित करने की रणनीति अपना ली है। WTO के नियमों में व्यवस्था है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र कोई भी देश किसी विशेष माल पर आयात कर लगा सकता है। इस प्रावधान का उपयोग करते हुए अमेरिका ने भारत में उत्पादित इस्पात पर आयात कर बढ़ायाI अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह संरक्षणवादी नीतियों और व्यापार शुल्क को हथियार के तौर पर उपयोग करना आरंभ किया है उससे विश्व अर्थव्यवस्था में मुक्त व्यापार के अंत की आशंका ही अधिक दिखती हैI