मॉक इंटरव्यू विपुल कुमार | 13 Sep 2018

उम्मीदवार का परिचय

नामः विपुल कुमार
पिता का नामः महेन्द्र प्रसाद
माता का नामः शारदा देवी
जन्म स्थानः उज्जैन (मध्य प्रदेश)
जन्म तिथिः 20 अक्तूबर, 1987
वर्गः सामान्य

शैक्षणिक योग्यताः

  • हाईस्कूलः सेंट मैरी कॉन्वेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल, उज्जैन (79.5%)

  • इण्टरमीडिएटः राजकीय इण्टर कॉलेज, उज्जैन 

  • स्नातकः अमिटि इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनयरिंग एण्ड टेक्नोलॉजी, दिल्ली (76%; कम्प्यूटर साइंस)

वैकल्पिक विषयः भूगोल
माध्यमः हिंदी
प्रयासः चतुर्थ
रुचिः फिल्में देखना
सेवा संबंधी वरीयताएँ: IAS, IPS, IFS , IRS, IC & ES, IRTS, IRAS
राज्य संबंधी वरीयताएँ: मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़,  उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, असम- मेघालय, मणिपुर-त्रिपुरा, नागालैंड।

विपुल कुमार  मध्य प्रदेश के उज्जैन ज़िले के रहने वाले हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार से संबंधित होने के कारण विपुल को अपने जीवन में किसी विशेष आर्थिक-सामाजिक समस्या का सामना तो नहीं करना पड़ा और बचपन से ही अच्छी शिक्षा एवं सुविधाओं का लाभ उसे प्राप्त हुआ। परंतु पारंपरिक बिज़नेस को छोड़कर सिविल सेवा की तैयारी के क्षेत्र में आना उसके लिये बिल्कुल एक नया अनुभव था। हालाँकि तैयारी के शुरुआती दौर में वह मार्ग से विचलित भी हुआ और अपने जीवन के कुछ बहुमूल्य क्षण भी गवाँए। परन्तु सिविल सेवा परीक्षा की लगातार तीन असफलताओं ने उसे बहुत  बड़ी सीख दी और अगले प्रयास में अपने अथक परिश्रम की बदौलत वह इंटरव्यू तक पहुँचने में सफल हुआ। प्रस्तुत हैं विपुल के साक्षात्कार के प्रमुख अंशः

साक्षात्कार

(इंटरव्यू बोर्ड के सदस्य बैठे हुए आपस में बातें कर रहे हैं। उनके बैठने की व्यवस्था ऐसी है कि प्रवेश द्वार से ही सीधी दृष्टि उन्हीं पर पड़ती है।)

(सुरक्षा गार्ड के दरवाज़ा खोलने के पश्चात् विपुल बाहर से ही बोर्ड सदस्यों का अभिवादन करता है।)

विपुलःगुड मॉर्निंग सर... मे आई कम इन?

बोर्ड अध्यक्षः यस कम!..... बैठिये।

विपुलः थैंक्यू सर (कुर्सी को थोड़ा पीछे खिसकाकर बैठ जाता है।)

बोर्ड अध्यक्षः कैसे हैं?

विपुलः बढ़िया हूँ सर।

बोर्ड अध्यक्षः (विपुल के कपड़े को देखते हुए)... बाहर मौसम सही नहीं है क्या?... आपने ब्लेज़र चढ़ा रखे हैं... गर्मी नहीं लगती आपको?

विपुलः ऐसा नहीं है सर... दरअसल मैं ब्लेज़र में अधिक कॉन्फिडेंट महसूस करता हूँ इसलिये...

बोर्ड अध्यक्षः अच्छा... इसका क्या मनोवैज्ञानिक कारण हो सकता है?

विपुलः मुझे लगता है कि शायद थोड़े चुस्त कपड़े पहनने से शरीर में एक हल्का-सा कसाव महसूस होता है जिससे व्यक्ति सक्रिय रहता है और उसका कॉन्फिडेंस लेवल अच्छा रहता है।

बोर्ड अध्यक्षः आपने सूफी फकीरों के या साधु संतों के वस्त्र देखे हैं... बिल्कुल ढीले-ढाले से... इसका मतलब क्या वे नॉन कॉन्फिडेन्ट हैं?

विपुलः एक्च्युअली सर... मेरे कहने का मतलब यह नहीं था... मैं कहना चाहता था कि शायद चुस्त कपड़ों में अपेक्षाकृत अधिक सक्रियता महसूस होती है।

बोर्ड अध्यक्षः यह आपका पर्सनल परसेप्शन भी तो हो सकता है। 

विपुलः  बिल्कुल सर... मैं भी यही कहना चाहता हूँ कि इस बारे में केवल अपने अनुभवों के आधार पर व्याख्या दे सकता हूँ क्योंकि मैंने कहीं ऐसा पढ़ा नहीं है।

बोर्ड अध्यक्षः तो फिर आप किस आधार पर इतने कॉन्फिडेंस के साथ एक्सप्लेनेशन दे रहे थे... ये भी ब्लेज़र का ही असर था क्या?

(सारे सदस्य हँसते हैं)

(विपुल को घबराहट-सी महसूस हो रही है।)

विपुलः सॉरी सर।

बोर्ड अध्यक्षः इट्स ओके... कोई बात नहीं... आप कहाँ से हैं?

विपुलः  जी, मध्य प्रदेश के उज्जैन ज़िले से।

बोर्ड अध्यक्षः  अच्छा, आप उज्जैन से हैं... सुना है कि उज्जैन बेहद सुन्दर शहर है।

विपुलः  जी सर।

बोर्ड अध्यक्षः  कालीदास ने अपनी एक रचना में उज्जैन का सुन्दर वर्णन किया है। आपको पता है वह रचना कौन-सी है?

विपुलः जी, मेघदूतम्।

बोर्ड अध्यक्षः आपने मेघदूतम् पढ़ी है?

विपुलः  नहीं सर... बस इतना पढ़ा है कि कालीदास ने मेघदूतम् में उज्जैन का सुन्दर वर्णन किया है।

बोर्ड अध्यक्षः उज्जैन की किसी वर्तमान उपलब्धि के बारे में बताइये?

विपुलः  हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने शिक्षा के विकास के लिये एक बड़ा प्रोजेक्ट पास किया है जिसमें उज्जैन शहर के निकट 1200 एकड़ में एक विक्रमादित्य नॉलेज सिटी बनाया जाएगा। इससे उज्जैन के विकास में अत्यधिक मदद मिलेगी। यह प्रोजेक्ट भारत सरकार की दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरीडोर प्रोजेक्ट का एक हिस्सा है।

बोर्ड अध्यक्षः ये दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरीडोर प्रोजेक्ट क्या है?

विपुलः  यह एक विशाल औद्योगिक क्षेत्र स्थापित करने की भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना है जिससे इंफ्रास्ट्रक्चर और इंडस्ट्री का व्यापक स्तर पर डेवलपमेंट होगा तथा ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा में भी विस्तार होगा।

बोर्ड अध्यक्षः यह कॉरीडोर किन राज्यों से होकर गुज़रेगी?

विपुलः  जी, यह सात राज्यों दिल्ली, यू.पी., हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश से होकर गुज़रेगी।

बोर्ड अध्यक्षः भारत का सबसे बड़ा कॉरीडोर प्रोजेक्ट कौन-सा है?

विपुलः नॉर्थ-साउथ-ईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर प्रोजेक्ट।

बोर्ड अध्यक्षः इसमें कितने किलोमीटर हाइवे बनाने की योजना है?

विपुलः (सोचते हुए)... सॉरी सर... मुझे याद नहीं आ रहा।

बोर्ड अध्यक्षः गोल्डन क्वाडिलैट्रल के बारे में जानते हैं?

विपुलः जी सर।

बोर्ड अध्यक्षः क्या है गोल्डन क्वाडिलैट्रल?

विपुलः यह भारत का एक प्रमुख हाइवे नेटवर्क है जो भारत के चारों महानगरों चेन्नई, कोलकाता, दिल्ली एवं मुंबई को जोड़ता है।

बोर्ड अध्यक्षः यहाँ क्वाडिलैट्रल का क्या अर्थ है?

विपुलः सर, दरअसल यह हाइवे नेटवर्क चौकोर आकार में है इसलिये इसका नाम गोल्डन क्वाडिलैट्रल रखा गया है।

बोर्ड अध्यक्षः गुड...।

(बोर्ड अध्यक्ष संतुष्ट नज़र आ रहे हैं। वे दायीं ओर बैठे प्रथम सदस्य को सवाल पूछने के लिये इशारा करते हैं।)

प्रथम सदस्यः विपुल जी... आप अपने व्यक्तित्व को कैसे परिभाषित करेंगे?

(शायद विपुल प्रश्न समझ नहीं पा रहा है।)

विपुलः सॉरी सर...

प्रथम सदस्यः आपके व्यक्तित्व की क्या विशेषताएँ हैं?

विपुलः  सर, मैं किसी भी चीज़ के बारे में निगेटिव नहीं सोचता... हमेशा पॉज़िटिव रहने की कोशिश करता हूँ।

प्रथम सदस्यः ये भी तो गलत है... जो चीज़ें गलत हैं उन्हें गलत क्यों न समझा जाए... ये तो सावन के अंधे की तरह है। 

विपुलः  सर, मेरा मतलब था कि मैं अपनी मनःस्थिति को सकारात्मक रखने का प्रयास करता हूँ और हरेक कार्य को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने का प्रयत्न करता हूँ।

प्रथम सदस्यः वही तो मैं भी कह रहा हूँ... नकारात्मक चीज़ों को नकारात्मक क्यों न समझा जाए... शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सर छुपाने से समस्या तो खत्म नहीं हो जाती। इससे तो बेहतर है आँखें खोलकर नकारात्मकता का भी सामना किया जाए जिससे कि उसे सुधारा जा सके।

विपुलः  जी... यस सर... (सोचते हुए)... आप शायद सही कह रहे हैं सर।

प्रथम सदस्यः क्या सही कह रहा हूँ... यू हैवेन्ट कॉन्फिडेंस... एनीवन कैन चैंज़ योर परसेप्शन्स इज़िली।

विपुलः  सॉरी सर (विपुल के चेहरे पर घबराहट स्पष्ट नज़र आ रही है।)

प्रथम सदस्यः इट्स ओके... अगर आपको अपने आप में एक बदलाव करना पड़े तो आप क्या बदलाव करेंगे?

विपुलः  एक्च्युली सर... मैं अपने आपको बदलना नहीं चाहता... मैं जैसा हूँ, वैसा ही रहना चाहता हूँ।

प्रथम सदस्यः क्या?

(विपुल घबरा जाता है।)

विपुलः  स...स... सॉरी सर।

प्रथम सदस्यः सॉरी किसलिये? हाँ, बताइये क्या बोल रहे थे?

विपुलः  सर, मेरी जो कमज़ोरी है... मैं उसे दूर करना चाहूंगा।

प्रथम सदस्यः क्या है आपकी कमज़ोरी?

विपुलः  शायद, आत्मविश्वास की कमी।

प्रथम सदस्यः (मुस्कुराते हुए)... इसमें भी शायद...

विपुलः सॉरी सर।

प्रथम सदस्यः (नाराज़गी में)... अरे, कितना सॉरी बोलेंगे आप। आप तो सामने वाले को भी दुःखी कर देंगे। (नॉर्मल होकर) इतना सॉरी भी अच्छा नहीं होता।

विपुलः  स...स... सॉरी...

(सारे सदस्य हँसने लगते हैं।)

प्रथम सदस्यः आपके लिये पैसे और पद में क्या महत्त्वपूर्ण है?

विपुलः  सर... महत्त्वपूर्ण तो दोनों ही हैं।

प्रथम सदस्यः लेकिन, दोनों में अगर चुनना पड़े?

विपुलः  मैं पद को अधिक महत्त्व दूंगा।

प्रथम सदस्यः क्यों?

विपुलः  क्योंकि मैं देश और समाज के लिये जो करना चाहता हूँ वह केवल पैसों से नहीं हो सकता और पद में रहने के बाद तो पैसे स्वतः ही आएंगे।

प्रथम सदस्यः क्या करना चाहते हैं आप देश के लिये?

विपुलः  सर, आज भी हमारे समाज में कई लोग जानवरों से भी बदतर ज़िदगी बसर करने को मज़बूर हैं। मैं उनके लिये कुछ करना चाहता हूँ। अशिक्षा, गरीबी, भ्रष्टाचार जैसी कई समस्याएँ हमारे समाज में व्याप्त हैं, मैं उन्हें दूर करना चाहता हूँ और इसके लिये पद ज़रूरी है सर।

प्रथम सदस्यः पद पाने के बाद क्या करेंगे आप इनके लिये?

विपुलः  सर, मैं जिस क्षेत्र में रहूंगा, कम-से-कम उस क्षेत्र में शिक्षा की स्थिति सुदृढ़ करने की कोशिश करूंगा। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का प्रयत्न करूंगा। इसके अलावा यह भी प्रयत्न करूंगा कि योजनाओं का लाभ ज़रूरतमंदों तक पहुँच सके।

प्रथम सदस्यः क्या इतना पर्याप्त है समाज की समस्याओं को दूर करने के लिये?

विपुलः नहीं सर... इसके अलावा व्यक्तिगत तौर पर भी मैं प्रयास करूंगा।

प्रथम सदस्यः क्या प्रयास करेंगे... एनजीओ चलाएंगे?

विपुलः जी सर... कुछ इसी प्रकार का...

(प्रथम सदस्य दायीं ओर बैठी महिला सदस्य से प्रश्न पूछने के लिये निवेदन करते हैं।)

महिला सदस्यः विपुल जी... आपको पता तो होगा कि एनजीओ के नाम पर कई संगठन आपराधिक गतिविधियों में संलग्न हैं तो कई ने इसे ब्लैक मनी को व्हाइट मनी में बदलने का ज़रिया भी बना लिया है। इनमें से कई पर एफसीआरए के उल्लंघन के भी आरोप हैं। ऐसे में क्या एनजीओ को समाज सेवा करने का सही ज़रिया माना जा सकता है?

विपुलः मैम, आप बिल्कुल सही कह रही हैं। परंतु कुछ संगठनों की वज़ह से सारे समाजसेवी संगठनों की नीयत पर सवाल उठाना भी तो सही नहीं है।

महिला सदस्यः कौन से संगठन सही हैं और कौन गलत, इसका फैसला कौन करेगा?

विपुलः इसके लिये सरकार द्वारा कुछ मानक निर्धारित कर इसकी विधिवत जाँच कराई जा सकती है। इसके लिये खुफिया एजेंसियों की भी मदद ली जा सकती है और इस प्रकार गलत कार्यों में संलिप्त संगठनों को चिह्नित कर उनका पंजीकरण रद्द किया जा सकता है। 

महिला सदस्यः गुड... आपने बी.टेक. किया हुआ है, कोशिश करते तो ठीक-ठाक जॉब भी मिल सकती थी। फिर आप आई.ए.एस. के प्रति क्यों आकर्षित हुए?

विपुलः मैम, सच तो यह है कि मैं इस पद की गरिमा और प्रतिष्ठा को देखकर ही इसके प्रति आकर्षित हुआ। मेरे गाँव के एक व्यक्ति आई.ए.एस. हैं, उनका सम्मान और उनके व्यक्तित्व ने मुझे बहुत आकर्षित किया। आस-पास के पूरे क्षेत्र में उनका बहुत सम्मान है। इसके अलावा जितना मैं समाज को समझ पाया, मुझे लगा कि समाज की खातिर कुछ करने के लिये पद भी ज़रूरी है।

महिला सदस्यः ऐसा क्या है... कई लोग हैं जो बिना पद के समाज की सेवा कर रहे हैं?

विपुलः हाँ... परंतु... परंतु सम्मान एवं प्रतिष्ठा...

महिला सदस्यः (बीच में ही बात काटकर) सच तो ये है कि आपको समाज और देश से कोई विशेष मतलब नहीं है। आप बस केवल प्रतिष्ठा पाने के लिये आई.ए.एस. बनना चाहते हैं। आप केवल पड़ोसियों को दिखाने के लिये आई.ए.एस. बनना चाहते हैं। 

(विपुल घबराहट महसूस कर रहा है।)

विपुलः सॉरी मैम... ऐसा नहीं है... दरअसल मैं सही ढंग से अपनी बात नहीं रख पाया। 

महिला सदस्यः कोई बात नहीं... आप पर कोई दबाव नहीं है। आप आराम से अपनी बात रख सकते हैं।

विपुलः दरअसल, मेरे कहने का अर्थ था कि मेरे मन में प्रतिष्ठा की इच्छा तो है ही परंतु यह प्राथमिक नहीं है। प्राथमिक इच्छा समाज के लिये कार्य करना ही है। 

महिला सदस्यः ओके... आपकी नज़र में प्रतिष्ठा का क्या अर्थ है?

विपुलः जिन्हें लोग महत्त्व दें, वही प्रतिष्ठा है।

महिला सदस्यः महत्त्व तो कई कारणों से दिया जा सकता है, डर से भी महत्त्व दिया जाता है। बड़े-बड़े गुंडों को लोग सलाम करते हैं। क्या यह प्रतिष्ठा है?

विपुलः नहीं मैम... जिन्हें लोग अच्छे कृत्यों के कारण सम्मान दें, वह प्रतिष्ठा है।

महिला सदस्यः तो फिर इसमें पद का क्या रोल है?

विपुलः मैम, पद से भी प्रतिष्ठा मिलती है।

महिला सदस्यः वही तो पूछ रही हूँ... कैसे?

विपुलः मैम, विभिन्न समाजों में प्रतिष्ठा के अलग-अलग मायने होते हैं। यह उनकी आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। जैसे किसी समाज में नौकरी की बजाय व्यापार को अधिक महत्त्व दिया जाता है। उसी तरह हमारे सामाजिक माहौल में पद की प्रतिष्ठा है। 

महिला सदस्यः गुड... (अगले सदस्य को प्रश्न पूछने के लिये इशारा करती हैं।)

तृतीय सदस्यः आपका ऑप्शनल सब्जेक्ट ज्योग्राफी है?

विपुलः जी सर।

तृतीय सदस्यः भूगोल और भू-विज्ञान में क्या अंतर है?

विपुलः भूगोल एक विस्तृत अवधारणा है जिसके अंतर्गत पृथ्वी के स्वरूप, प्राकृतिक विभाग, आकाशीय पिण्ड, जीव-जन्तु, वनस्पति आदि सम्पूर्ण क्षेत्र का अध्ययन किया जाता है जबकि भू-विज्ञान भूगोल की एक शाखा है जिसमें पृथ्वी की संरचना तथा संगठन आदि का अध्ययन किया जाता है।

तृतीय सदस्यः ज्योग्राफी मानविकी का विषय है अथवा नहीं? अगर है, तो कैसे और अगर नहीं है तो क्यों?

विपुलः  (सोचते हुए)... सर, जहाँ तक मेरा अनुमान है कि ज्योग्राफी मानविकी का विषय नहीं है क्योंकि इसका अध्ययन मूल रूप से विज्ञान पर आधारित है।

तृतीय सदस्यः अच्छा!... फिर सोशल ज्योग्राफी, ह्यूमैन ज्योग्राफी आदि के अध्ययन में कौन-से विज्ञान की ज़रूरत पड़ती है?

विपुलः (सोच में पड़ जाता है)... पता नहीं, सर... सॉरी। वैसे मुझे लगता है कि दरअसल भूगोल आंशिक रूप से मानविकी का विषय है क्योंकि इसके कुछ भाग विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक अध्ययन की मांग करते हैं तो कुछ मानविकी पर आधारित हैं।

तृतीय सदस्यः गुड... क्या भूगोल को पूर्ण रूप से मानविकी के विषय की श्रेणी में रखा जाना चाहिये?

विपुलः मुझे तो लगता है कि भूगोल न तो पूर्ण रूप से मानविकी का विषय है और न ही विज्ञान का। इसलिये इसे किसी एक स्ट्रीम में रखना भी सही नहीं है। इसे आंशिक रूप से क्रमशः मानविकी एवं विज्ञान में शामिल किया जाना चाहिये।

तृतीय सदस्यः एथिकल ज्योग्राफी क्या है?

विपुलः सॉरी सर, इसका उत्तर एक्ज़ेक्टली तो मुझे नहीं पता। परंतु मुझे लगता है कि शायद रीति-रिवाज़ों, परंपराओं, नैतिक नियमों एवं मानवीय चरित्र की विशेषताओं आदि का वर्णन करने वाली भौगोलिक शाखा को ही एथिकल ज्योग्राफी कहा जाता होगा। 

तृतीय सदस्यः (मुस्कुराते हुए) गुड... आपके लिये सफलता का क्या अर्थ है?

विपुलः मुझे लगता है सर, इसका कोई वस्तुनिष्ठ उत्तर नहीं दिया जा सकता क्योंकि कई बार लोग लक्ष्य को प्राप्त करके भी सफल नहीं होते।

तृतीय सदस्यः फिर भी... आप सफलता के बारे में क्या ख्याल रखते हैं?

विपुलः सर, ये मेरा कोई मौलिक विचार तो नहीं परंतु मैं इससे इत्तेफाक रखता हूँ कि सफलता कोई पड़ाव नहीं बल्कि सफलता एक सतत् यात्रा है। अगर आप सतत् रूप से सफल हैं तो आप सफल हैं।

तृतीय सदस्यः वेरी गुड... और असफलता क्या है?

विपुलः सफलता के प्राप्त न होने की स्थिति असफलता है।

तृतीय सदस्यः ये क्या बात हुई? आपके अनुसार जो व्यक्ति सतत् रूप से सफल नहीं है वह असफल है। इस तरह तो दुनिया का हरेक व्यक्ति असफल है।

विपुलः नहीं, सर... मेरे कहने का अर्थ था कि जब व्यक्ति अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो पाता तो वह असफल है।

तृतीय सदस्यः आपने घुमा-फिराकर फिर वही बात कह दी। अच्छा छोड़िये... सफलता और असफलता में क्या संबंध हैं?

विपुलः मेरे अनुसार सफलता और असफलता एक-दूसरे के विपरीत नहीं हैं बल्कि अलग-अलग फेज़ हैं। असफलता कई बार सफलता तक पहुँचाने का भी कार्य करती है।

तृतीय सदस्यः वेरी गुड (तृतीय सदस्य संतुष्ट नज़र आ रहे हैं। वे अगले सदस्य को सवाल पूछने के लिये इशारा करते हैं।)

चतुर्थ सदस्यः अभी आप सफलता-असफलता की बात कर रहे थे। अगर आपको सफलता एवं ईमानदारी में से किसी एक को चुनना पड़े तो आप क्या चुनेंगे?

विपुलः ईमानदारी।

चतुर्थ सदस्यः अगर आपको ईमानदारी से थोड़ा-सा समझौता करने भर से सफलता मिल जा रही हो फिर भी सफलता को ठुकरा देंगे जबकि आपको यह भी पता हो कि इसके बाद सफलता मिलनी काफी मुश्किल है। 

विपुलः मैं पहले परिस्थितियों को समझूंगा। अगर ईमानदारी से समझौता करने से किसी को बड़ी हानि अथवा कष्ट होता है तो मैं खुशी-खुशी सफलता को ठुकरा दूंगा। 

चतुर्थ सदस्यः लगता है आपने बॉलीवुड की  काफी फिल्में देखी है... अच्छा, आपकी तो रुचि फिल्में देखना ही है। है न...?

विपुलः (शरमाते हुए)... जी सर।

चतुर्थ सदस्यः कैसी फिल्में पसंद हैं आपको?

विपुलः मैं हर तरह की फिल्में देखता हूँ। 

चतुर्थ सदस्यः हॉलीवुड, बॉलीवुड, टॉलीवुड, पॉलीवुड कुछ तो विशेष रूप से पसंद करते होंगे?

विपुलः जी, बॉलीवुड।

चतुर्थ सदस्यः आपको किसी भी फिल्म की कौन-सी विशेषता सर्वाधिक आकृष्ट करती है? कहानी, गीत, एक्टिंग....?

विपुलः यूँ तो सर किसी भी फिल्म में अगर सारी चीज़ें ठीक अनुपात में हों तो बेस्ट है लेकिन यदि चुनना ही पड़े तो मैं कहानी और एक्टिंग को अधिक महत्त्व देता हूँ।

चतुर्थ सदस्यः अच्छा... आपकी फेवरेट फिल्म कौन-सी है?

विपुलः मेरा नाम जोकर।

चतुर्थ सदस्यः अरे, ये तो काफी पुरानी फिल्म है और दुःखांत भी। आप तो पॉज़िटिव इनर्जी वाले व्यक्ति हैं, फिर यह दुःखांत फिल्म आपको क्यों पसंद है?

विपुलः सर, दरअसल इस फिल्म की सारी चीज़ें मुझे पसंद है जैसे कहानी, गीत, संगीत, निर्देशन, एक्टिंग आदि।

(बीच में ही तृतीय सदस्य बात को काटते हुए पुनः प्रश्न पूछते हैं)

तृतीय सदस्यः ‘मेरा नाम जोकर’ किस फिल्म से प्रेरित है?

विपुलः जी, चार्ली चैप्लिन की ‘द सर्कस’ से यह प्रेरित है। 

तृतीय सदस्यः  आपने वह फिल्म देखी है?

विपुलः जी सर।

तृतीय सदस्यः आपको उस फिल्म की कौन-सी बातें सबसे अच्छी लगी?

विपुलः चार्ली चैप्लिन की एक्टिंग, जोकर का चरित्र और कथानक।

तृतीय सदस्यः ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘द सर्कस’ में आपको कौन-सी फिल्म ज़्यादा अच्छी लगी?

विपुलः वैसे तो दोनों ही अच्छे हैं और दोनों की विशेषताएँ अलग-अलग हैं। परंतु दोनों के दुःख अनूठे हैं। 

तृतीय सदस्यः अच्छा... (मुस्कुराते हैं और फिर चतुर्थ सदस्य से पुनः सवाल पूछने के लिये आग्रह करते हैं।)

चतुर्थ सदस्यः  हाल-फिलहाल की कोई फिल्म जिसने आपको प्रभावित किया हो?

विपुलः जी, वज़ीर।

चतुर्थ सदस्यः वज़ीर की कौन-सी बात आपको सबसे अच्छी लगी?

विपुलः अमिताभ बच्चन और फरहान अख्तर की एक्टिंग तथा सधा हुआ कथानक।

चतुर्थ सदस्यः ...और इस फिल्म का सबसे कमज़ोर बिन्दु।

विपुलः मुझे कुछ निर्देशन में कमी लगी। आखिरी दृश्य में पूरी कहानी के खुलासे की बजाय इसे दर्शकों के विवेक पर अगर छोड़ दिया जाता तो यह फिल्म को और अधिक प्रभावी बनाता।

चतुर्थ सदस्यः अच्छा... हरेक व्यक्ति की अपनी समीक्षा दृष्टि होती है। आप फिल्मों की समीक्षा भी करते हैं?

विपुलः कभी-कभार।

चतुर्थ सदस्यः हमारा समाज फिल्मों से प्रभावित होता है या फिल्में समाज से प्रभावित होती हैं?

विपुलः मुझे लगता है सर कि दोनों को अलग-अलग करके नहीं देखा जा सकता। फिल्में समाज से प्रभावित होती हैं और समाज को प्रभावित भी करती हैं?

चतुर्थ सदस्यः और समाज...?

विपुलः समाज भी फिल्मों से प्रभावित होता है और फिल्मों को प्रभावित भी करता है।

चतुर्थ सदस्यः वेरी गुड...

(चतुर्थ सदस्य संतुष्ट नज़र आ रहे हैं। वे अध्यक्ष महोदय से पूछते हैं कि क्या वे कोई अन्य सवाल करना चाहेंगे? अध्यक्ष महोदय नहीं में सर हिलाते हैं।)

अध्यक्षः ओके... अब आप जा सकते हैं।

विपुलःथैक्यू सर।

(विपुल उठकर कुर्सी को पुनः यथास्थान रख देता है और अभिवादन करता हुआ बाहर चला जाता है।)

मॉक इंटरव्यू का मूल्यांकन

इंटरव्यू में जाने से पूर्व उम्मीदवार तरह-तरह की तैयारियाँ करते हैं। वेश-भूषा कैसी हो; कपड़ों का रंग क्या हो; चश्मा पहनें अथवा नहीं, पहनें तो किस प्रकार का; जूते कैसे पहनें; अभिवादन कैसे करें; हिंदी में अभिवादन करें या अंग्रेज़ी में जैसे कई ऊहापोहों के बीच उम्मीदवार तरह-तरह के अभ्यास करता है। परंतु इंटरव्यू के शुरुआती पाँच मिनट के बाद ये सारी बातें गौण हो जाती हैं एवं केवल व्यक्तित्व की अंदरूनी परख शेष रह जाती है। लेकिन फिर भी उम्मीदवार का पहला प्रभाव उसका बाहरी व्यक्तित्व ही निर्धारित करता है, इसलिये सकारात्मक प्रभाव डालने के लिये वेश-भूषा आदि की भी अहम भूमिका होती है। हालाँकि विपुल की वेश-भूषा ठीक थी जो बिल्कुल फॉर्मल एवं बिना किसी चटक-मटक के साधारण और हल्के रंग वाली थी। परंतु उसने स्वयं को और अधिक निखारने के लिये ब्लेज़र भी पहन रखा था जो मौसम के अनुसार बिल्कुल अटपटा लग रहा था। इसलिये इंटरव्यू के शुरुआती दौर में ही विपुल को थोड़ी असहज स्थितियों का सामना करना पड़ा। हालाँकि बाद में विपुल ने अपने आप को संभालते हुए आगे इंटरव्यू को अच्छा मोड़ दिया। इंटरव्यू के दौरान कई बार उसे कुछ विषम स्थितियों का भी सामना करना पड़ा तो कई प्रश्नों पर उसने बेहद शानदार उत्तर भी दिये। आइये विश्लेषण करते हैं कि इंटरव्यू के दौरान कौन-से बिन्दु विपुल के पक्ष में रहे तथा कहाँ वे कमज़ोर पड़े-

विपुल के पक्ष में रहे बिन्दु

1. किसी भी उम्मीदवार को साक्षात्कार से पूर्व अपने क्षेत्र की सामाजिक-भौगोलिक-आर्थिक विशेषताओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिये। इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों को उम्मीदवार से यह अपेक्षा रहती है कि वह कम-से-कम अपने क्षेत्र के बारे में विस्तृत जानकारी रखे। विपुल मध्य प्रदेश के उज्जैन ज़िले से संबंधित है, इसलिये उससे उज्जैन से संबंधित कुछ साधारण सवाल पूछे गए। विपुल ने उज्जैन से संबंधित सवालों के सही एवं संतुलित उत्तर दिये जिसने बोर्ड सदस्यों पर अच्छा प्रभाव डाला। विपुल ने नॉर्थ-साउथ-ईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर से संबंधित प्रश्नों के भी सही उत्तर दिये जो उसकी सामान्य जानकारी पर पकड़ को दर्शाता है। साथ ही, नॉर्थ-साउथ-ईस्ट-वेस्ट कॉरीडोर की लंबाई के बारे में पता नहीं होने पर उसने विनम्रतापूर्वक क्षमा मांग ली जो उसके विनम्र व्यक्तित्व का परिचायक है।

2. पैसे और पद में किसी एक को चुनने के सवाल पर विपुल ने पद को चुनने की बात की और इसके पीछे ठोस तर्क भी रखे। विपुल के द्वारा पद को प्राथमिकता दिया जाना वास्तव में उसकी पद के प्रति निष्ठा एवं ईमानदार छवि को दर्शाता है।

3. देश के लिये कुछ करने की बात पर विपुल ने उन समस्याओं का ज़िक्र किया जो वास्तव में हमारे समाज की मूल समस्याएँ हैं। इसके अलावा उसे दूर करने के लिये भी जिन उपायों को उसने बताया वे भी व्यावहारिक थे। साथ ही, इन समस्याओं से लड़ने के लिये विपुल ने अपने व्यक्तिगत प्रयासों की भी बात की जो उसकी सामाजिक दायित्वों के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।

4. महिला सदस्य द्वारा कुछ एनजीओ की गतिविधियों पर सवाल उठाए जाने पर विपुल ने जिस प्रकार संतुलित तरीके से इसके सकारात्मक- नकारात्मक पक्षों के बीच एक सम्यक् रास्ता सुझाया वह वाकई सराहनीय था।

5. बी.टेक. करने के बावजूद आई.ए.एस. की तरफ आकृष्ट होने के कारण पूछे जाने पर विपुल ने झूठे और बनावटी डींगों की बजाय बेबाक होकर बताया कि वह प्रथमतया इस पद की गरिमा और प्रतिष्ठा को लेकर आकृष्ट हुआ। इससे उसकी इमेज एक ईमानदार और स्पष्टवादी उम्मीदवार के रूप में बनती है। हालाँकि इससे उसकी एक स्वकेन्द्रित छवि भी उभरती है जो कि नकारात्मक है परन्तु अपने आगे के उत्तरों से वह अपनी सकारात्मक छवि को स्पष्ट करने में सफल हो जाता है।

6. महिला सदस्य द्वारा यह पूछे जाने पर कि आपकी नज़र में प्रतिष्ठा का क्या अर्थ है, विपुल थोड़ा-सा उलझा परंतु बाद में अपने आपको सही करते हुए उसने समाजशास्त्र के मानकों के आधार पर इसकी संतुलित व्याख्या की जो वाकई प्रभावी था।

7. चूँकि विपुल का वैकल्पिक विषय भूगोल था, इसलिये उससे भूगोल से संबंधित प्रश्न पूछे जाने स्वाभाविक थे। हालाँकि विपुल से पूछे गए प्रश्न विषय के गूढ़ सिद्धांतों पर आधारित न होकर सामान्य संदर्भों से थे जिसकी संतुलित व्याख्या विपुल ने की।

8. भूगोल के संदर्भ में यह विवाद सामान्य रूप से प्रचलित है कि भूगोल मानविकी का विषय है अथवा विज्ञान का। यहाँ तक कि कुछ विश्वविद्यालयों में स्नातक तक इसे मानविकी में रखा जाता है जबकि परास्नातक में विज्ञान में। हालाँकि इस सवाल पर विपुल थोड़ा-सा विचलित हुआ और शुरुआत में साधारण प्रकृति के उत्तर दिये जिसे सही नहीं माना जा सकता। परंतु आगे के सवालों पर अपने आपको सही करते हुए उसने भूगोल को आंशिक रूप से मानविकी एवं विज्ञान में शामिल करने का सुझाव दिया जो तार्किक रूप से सही प्रतीत होता है।

9. यह कोई आवश्यक नहीं कि हर प्रश्न के उत्तर उम्मीदवार को पता ही हो। परन्तु कई बार कुछ नहीं जानने वाले प्रश्नों पर भी सेंस ऑफ ह्यूमर के आधार पर उत्तर दिया जा सकता है। इससे उम्मीदवार की त्वरित समझ का पता चलता है। एथिकल ज्योग्राफी के बारे में विपुल को कोई सैद्धान्तिक जानकारी नहीं थी, परन्तु अपनी त्वरित समझ के द्वारा उसने इसके नाम के आधार पर ही इसका विश्लेषण कर दिया जो व्यावहारिक रूप से सही भी था। विपुल के इस सेंस ऑफ ह्यूमर ने बोर्ड सदस्यों पर अच्छा प्रभाव डाला होगा।

10. विपुल के पूरे इंटरव्यू का सबसे बेहतरीन उत्तर वह रहा जब उससे सफलता के बारे में पूछा गया। सफलता के बारे में उसने अपनी जो राय रखी वह वाकई प्रभावी थी। उसने असफलता को सफलता के विपरीत न बताकर इसे सफलता की एक स्थिति के रूप में बताया जो उसकी सकारात्मक सोच को दर्शाता है।

11. सफलता और ईमानदारी में से किसी एक को चुनने के सवाल पर जिस प्रकार विपुल ने तटस्थ होकर ईमानदारी को चुना, वह वाकई विपुल की ईमानदारी, निष्ठा एवं सकारात्मक भावुकता का परिचायक है।

12. किसी भी इंटरव्यू में उम्मीदवार से रुचियों के बारे में प्रश्न पूछा जाना अत्यंत स्वाभाविक है। चूँकि विपुल की रुचि फिल्में देखना थी, इसलिये उससे भी फिल्मों से संबंधित कुछ साधारण से सवाल पूछे गए। हालाँकि इन सवालों में किसी भी प्रकार के गूढ़ तथ्यों से संबंधित कोई सवाल नहीं थे। सारे सवाल साधारण चर्चा के सवाल थे जिनके उत्तर भी विपुल ने सहजता से दिये। 

13. ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘द सर्कस’ की तुलना से संबंधित प्रश्न पूछे जाने पर विपुल ने एकपक्षीय दृष्टिकोण न रखते हुए दोनों को अलग-अलग मामलों में विशिष्ट बताया जो उसके सम्यक् दृष्टिकोण का परिचायक है।

14. हाल-फिलहाल की फिल्म के बारे में पूछे जाने पर विपुल ने ‘वज़ीर’ का नाम लिया तथा ‘वज़ीर’ के बारे में अपनी समीक्षा दृष्टि रखी जो व्यावहारिक रूप से सही भी प्रतीत होती है।

15. समाज फिल्मों से प्रभावित होता है या फिल्में समाज से प्रभावित होती हैं, के सवाल पर विपुल ने एक अत्यंत संतुलित उत्तर दिया जिसने वाकई बोर्ड सदस्यों को प्रभावित किया होगा।

विपुल के कमज़ोर बिन्दु 

1. साक्षात्कार में जाने से पूर्व उम्मीदवार को अपनी वेश-भूषा आदि का सावधानीपूर्वक चयन करना चाहिये। वेश-भूषा ऐसी भी न हो कि उम्मीदवार बिल्कुल लुंज-पुंज और लापरवाह सा दिखे और वेश-भूषा ऐसी भी नहीं होनी चाहिये जिसमें दिखावे का पुट झलकता हो। साथ ही, वेश-भूषा के चयन में मौसम, स्थान व समय का भी ध्यान रखना चाहिये। विपुल का गर्मी के दिनों में ब्लेज़र पहनकर आना वाकई थोड़ा अटपटा लग रहा था, जिस कारण उसे कई अटपटे सवालों का सामना करना पड़ा और इस क्रम में वह हँसी का पात्र भी बना। इंटरव्यू के शुरुआती दौर में ही इस प्रकार की स्थितियों का सामना करना अच्छे-अच्छे उम्मीदवारों के मनोबल को भी तोड़ सकता है। वेश-भूषा के चयन में की गई इस भूल को विपुल की एक बड़ी कमज़ोरी के तौर पर देखा जा सकता है।

2. वेश-भूषा के आधार पर व्यक्तित्व की विशेषता आँकने के जिस तर्क को विपुल ने बोर्ड सदस्यों के सामने रखा, उसमें वास्तव में कोई विशेष दम नहीं था। हालाँकि उसके तर्क को ठीक समझा जा सकता है परंतु वे तर्क प्रभावी नहीं थे जिसका मज़ाक भी बन गया। साथ ही, केवल व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर आत्मविश्वास के साथ कोई निष्कर्ष देना एक बड़ा दोष माना जाता है। तर्कशास्त्र की भाषा में ‘अवैध सामान्यीकरण’ का दोष कहा जाता है। एक समझदार उम्मीदवार से ऐसी गलतियाँ नहीं करने की अपेक्षा की जाती है।

3. व्यक्तित्व की विशेषता बताने के सवाल पर विपुल पुनः अत्युक्ति का शिकार नज़र आता है। सामान्य मनोविज्ञान के अनुसार कोई भी व्यक्ति पूर्ण रूप से पॉज़िटिव या निगेटिव नहीं हो सकता। परंतु जिस प्रकार से उसने अपने आपको शत-प्रतिशत सकारात्मक घोषित किया, यह वाकई बचकानेपन का परिचायक है। इसी कारण वह आगे चलकर कई शाखित प्रश्नों में उलझा।

4. विपुल के इंटरव्यू के दौरान एक बात जो स्पष्ट मालूम चलती है और वह है उसके अंदर आत्मविश्वास की कमी। यद्यपि उसने अपनी इस कमज़ोरी को स्वीकारा भी, परंतु एक सिविल सेवक के लिये आत्मविश्वास की कमी का होना एक बड़ी कमज़ोरी है। अपनी ही बात पर स्थिर नहीं रह पाना और थोड़ा-सा दबाव बनाने पर अपना मत बदल लेना, विपुल की एक बड़ी कमज़ोरी के तौर पर देखा जा सकता है।

5. कभी-कभी इंटरव्यू की किताबें भी उम्मीदवार को भरमा देती हैं क्योंकि इंटरव्यू की तैयारी वाली पुस्तकों में सैद्धांतिक बातें तो होती हैं, परंतु व्यावहारिकता में उस पर कैसे अमल किया जाए, इसका कोई सूत्र नहीं होता। विपुल के साथ भी यही हुआ। संभवतः उसने किताबों में पढ़ा होगा कि ‘सॉरी’ बोलने से बोर्ड पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और उसने छोटी-छोटी बात पर ‘सॉरी’ बोलना शुरू कर दिया जिसका परिणाम सकारात्मक की बजाय नकारात्मक हुआ क्योंकि कोई भी व्यक्ति इतना सॉरी सुनकर परेशान हो जाएगा।

संभावित अंकः 63% 

हमारा अनुमान है कि विपुल को इस साक्षात्कार के लिये 63% अंक मिलेंगे। यानी 275 में से 174 तथा 200 में से 126.
 

कुल मिलाकर विपुल का इंटरव्यू अच्छा रहा। कुछ छोटी-मोटी गलतियों को अगर छोड़ दिया जाए तो अधिकांश प्रश्नों के उत्तर उसने बेहद संतुलित तरीके से दिये। कुछ स्थानों पर वह विचलित भी हुआ परंतु कई प्रश्नों के उसने शानदार उत्तर दिये।