केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो | 25 Feb 2020

 Last Updated: July 2022 

सामान्य जानकारी:

  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) भारत की एक प्रमुख अन्वेषण एजेंसी है।
    • यह केंद्रीय सतर्कता आयोग और लोकपाल को सहायता प्रदान करता है।
  • यह भारत सरकार के कार्मिक, पेंशन तथा लोक शिकायत मंत्रालय के कार्मिक विभाग [जो प्रधानमंत्री कार्यालय (Prime Minister’s Office-PMO) के अंतर्गत आता है] के अधीक्षण में कार्य करता है।
  • हालाँकि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत अपराधों के अन्वेषण के मामले में इसका अधीक्षण केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) के पास है।
  • यह भारत की नोडल पुलिस एजेंसी भी है जो इंटरपोल की ओर से इसके सदस्य देशों में अन्वेषण संबंधी समन्वय करती है।
  • इसकी अपराध सिद्धि दर (Conviction Rate) 65 से 70% तक है, अतः इसकी तुलना विश्व की सर्वश्रेष्ठ अन्वेषण एजेंसियों से की जा सकती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वर्ष 1941 में ब्रिटिश भारत के युद्ध विभाग (Department of War) में एक विशेष पुलिस स्थापना (Special Police Establishment- SPE) का गठन किया गया था ताकि युद्ध से संबंधित खरीद मामलों में रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच की जा सके।
  • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (Delhi Special Police Establishment- DSPE Act), 1946 को लागू करके भारत सरकार के विभिन्न विभागों/संभागों में भ्रष्टाचार के आरोपों के अन्वेषण हेतु एक एजेंसी के रूप में इसकी औपचारिक शुरुआत की गई।
  • सीबीआई एक वैधानिक निकाय नहीं है, लेकिन इसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 द्वारा अन्वेषण करने की शक्ति प्राप्त है।

  • सीबीआई की स्थापना की सिफारिश भ्रष्टाचार रोकथाम पर संथानम समिति (1962-1964) द्वारा की गई थी।

  • CBI को दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 द्वारा अन्वेषण करने की शक्ति प्राप्त है।
  • वर्ष 1963 में भारत सरकार द्वारा CBI का गठन भारत की रक्षा से संबंधित गंभीर अपराधों, उच्च पदों पर भ्रष्टाचार, गंभीर धोखाधड़ी, ठगी व गबन और सामाजिक अपराधों (विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी, कालाबाज़ारी और मुनाफाखोरी) के अन्वेषण हेतु किया गया।
  • कुछ समय बाद CBI को चर्चित हत्याओं, अपहरण, विमान अपहरण, चरमपंथियों द्वारा किये गए अपराध जैसे अन्य अपराधों की जाँच का उत्तरदायित्व भी सौंपा जाने लगा।

CBI द्वारा अन्वेषण योग्य मामले:

  • भ्रष्टाचार निरोधक अपराध– केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, भारत सरकार के स्वामित्व व नियंत्रण वाले निगमों या निकायों के लोक अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दर्ज मामले।
  • आर्थिक अपराध- इसमें प्रमुख वित्तीय घोटाले और गंभीर आर्थिक धोखाधड़ी के मामले जिसमें नकली भारतीय मुद्रा, बैंक धोखाधड़ी एवं साइबर अपराध, आयात-निर्यात और विदेशी मुद्रा विनिमय उल्लंघन, बड़े पैमाने पर मादक पदार्थों, पुरातन अवशेषों, सांस्कृतिक संपत्ति एवं अन्य विनिषिद्ध वस्तुओं की तस्करी आदि मामले शामिल हैं।
  • विशेष अपराध- राज्य सरकारों के निवेदन पर या उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के निर्देश पर भारतीय दंड संहिता एवं अन्य कानून के अंतर्गत दर्ज गंभीर, सनसनीखेज एवं संगठित अपराध, जैसे-आतंकवाद, बम विस्फोट, फिरौती के लिये अपहरण और माफिया/अंडरवर्ल्ड द्वारा किये गए अपराध।
  • स्वतः संज्ञान के मामले (Suo Moto Cases)- CBI केवल केंद्रशासित प्रदेशों में स्वतः संज्ञान लेकर अपराधों की जाँच कर सकती है।
    • केंद्र सरकार किसी राज्य में अपराध की जाँच के लिये CBI को अधिकृत कर सकती है लेकिन ऐसा केवल संबंधित राज्य सरकार की सहमति से किया जा सकता है।
    • उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय CBI को राज्य की सहमति के बिना भी देश में कहीं भी किसी अपराध की जाँच का आदेश दे सकते हैं।

CBI का निदेशक:

  • CBI का निदेशक (Director of CBI) दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत पुलिस महानिरीक्षक के रूप में संगठन के प्रशासन के लिये उत्तरदायी होता है।
  • वर्ष 2014 तक CBI निदेशक की नियुक्ति DSPE अधिनियम, 1946 के आधार पर की जाती थी।
  • वर्ष 2003 के विनीत नारायण मामले में सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिश पर DSPE अधिनियम को संशोधित किया गया। साथ ही एक समिति द्वारा केंद्र सरकार को CBI निदेशक की नियुक्ति से संबंधित सिफारिश भेजी गई जिसमें केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission-CVC) के प्रतिनिधि तथा गृह मंत्रालय एवं कार्मिक और लोक शिकायत मंत्रालय के सचिव सदस्य के रूप में शामिल थे।
  • वर्ष 2014 में लोकपाल अधिनियम ने CBI निदेशक की नियुक्ति के लिये एक समिति का प्रावधान किया:
    • अध्यक्ष: प्रधानमंत्री
    • अन्य सदस्य- विपक्ष के नेता/सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता, भारत का मुख्य न्यायाधीश/सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश।
    • गृह मंत्रालय, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) को योग्य उम्मीदवारों की एक सूची भेजता है। इसके बाद DoPT वरिष्ठता, ईमानदारी और भ्रष्टाचार निरोधक मामलों की जाँच के आधार पर एक अंतिम सूची तैयार करता है और इसे समिति को भेजता है।
  • CVC अधिनियम, 2003 द्वारा CBI के निदेशक को कार्यकाल दो वर्ष तय किया गया।
  • नवंबर 2021 में राष्ट्रपति ने दो अध्यादेश जारी किये, जो केंद्र सरकार को ‘केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो’ (CBI) और ‘प्रवर्तन निदेशालय’ (ED) के निदेशकों के कार्यकाल को दो साल से बढ़ाकर पाँच वर्ष करने की अनुमति देते हैं। 
  • ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ में संशोधन: 
    • सार्वजनिक हित में संबंधित समिति (प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्त्व वाली समिति) की सिफारिश के आधार पर निदेशक के कार्यकाल को एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। 
      • बशर्ते कि प्रारंभिक नियुक्ति में उल्लिखित अवधि सहित कुल मिलाकर पाँच वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद ऐसा कोई विस्तार प्रदान नहीं किया जाएगा। 

CBI द्वारा जाँच से संबंधित मुद्दे: 

  • दिसंबर 2021 में सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने एक मामले को संदर्भित किया है, जिसमें केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) ने कई राज्यों द्वारा CBI को दी जाने वाली 'सामान्य सहमति' वापस लेने पर भारत के मुख्य न्यायाधीश के विचारार्थ एक हलफनामा दायर किया। 
    • आठ राज्यों ने अपने क्षेत्र में जाँच शुरू करने के लिये CBI से सहमति वापस ले ली है। 
      • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा 6 के अनुसार, जिसके तहत CBI कार्य करती है, केंद्रशासित प्रदेशों से परे CBI जाँच का विस्तार करने के लिये राज्य की सहमति की आवश्यकता होती है। 
    • CBI के अनुसार, सहमति की इतनी व्यापक वापसी विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में काम करने वाले केंद्रीय कर्मचारियों और उपक्रमों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच के संबंध में इसे बेमानी बना रही है। 
    • लंबित जांँच पर प्रभाव: 
      • सामान्य सहमति को वापस लेने से लंबित जांँच (काजी लेंधुप दोरजी बनाम CBI, 1994) या किसी अन्य राज्य में दर्ज मामले प्रभावित नहीं होते हैं, इस संबंध में जाँच उसके राज्य क्षेत्र में होती है, जिसने सामान्य सहमति वापस ले ली है तथा न ही यह CBI जाँच का आदेश देने के क्षेत्राधिकार वाले उच्च न्यायालय की शक्ति को सीमित करती है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय का पूर्ववर्ती निर्णय:  
    • एडवांस इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड मामला, 1970 (Advance Insurance Co. Ltd case, 1970) में एक संविधान पीठ ने कहा कि ‘राज्य’ की परिभाषा में केंद्रशासित प्रदेश भी शामिल हैं। 
      • इसलिये CBI दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत मान्यता प्राप्त केंद्रशासित प्रदेशों के लिये गठित एक बल होने के नाते केवल उनकी सहमति से राज्यों क्षेत्रों में जांँच कर सकती है।

चुनौतियाँ

  • राजनीतिक हस्तक्षेप: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने CBI के कार्यकलापों में अत्यधिक राजनीतिक हस्तक्षेप किये जाने के कारण इसकी आलोचना की थी और इसे "अपने स्वामी की आवाज़ में बोलने वाला पिंजराबंद तोता" कहा था।
    • इसका दुरुपयोग प्रायः निवर्तमान सरकार द्वारा अपने गलत कार्यों को छुपाने, गठबंधन के सहयोगियों पर दबाव बनाने और राजनीतिक विरोधियों के उत्पीड़न के लिये किया जाता रहा है।
  • जाँच में देरी: CBI पर जाँच पूरी करने में अत्यंत विलंब करने का आरोप लगाया जाता रहा है। उदाहरण के लिये वर्ष 1990 के दशक के जैन हवाला डायरी मामले के उच्च प्रभाव वाले लोगों के विरुद्ध जाँच में शिथिलता।
  • विश्वसनीयता में कमी: एजेंसी की छवि को सुधारना अब तक की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है क्योंकि प्रमुख राजनेताओं से जुड़े कई मामलों में कुप्रबंधन संबंधी समस्या सामने आई है।
  • बोफोर्स घोटाले, हवाला कांड, संत सिंह चटवाल ​​केस, भोपाल गैस कांड, वर्ष 2008 का आरुषि तलवार केस जैसे कई संवेदनशील मामलों की जाँच में देरी के चलते उसकी तीव्र आलोचना हुई।
  • जवाबदेही का अभाव: CBI को सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों से छूट प्राप्त है और इस प्रकार वह सार्वजनिक जवाबदेही से मुक्त है।
  • कर्मियों की भारी कमी: इस कमी का एक प्रमुख कारण CBI के कार्यबल का सरकार द्वारा कुप्रबंधन है, अर्थात् अकुशल प्रणाली और अनावश्यक रूप से पक्षपातपूर्ण भर्ती नीतियों (जहाँ अपनी पसंद के अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है) को आगे बढ़ाना, जिससे इस संगठन का अहित होता है।
  • सीमित शक्तियाँ: जाँच के संबंध में CBI के सदस्यों की शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र राज्य सरकार की सहमति के अधीन हैं। इस प्रकार CBI द्वारा की जाने वाली जाँच की सीमा को सीमित कर दिया गया है।
  • नियंत्रित पहुँच: संयुक्त सचिव और उससे ऊपरी स्तर के सरकारी कर्मचारियों की जाँच के लिये CBI को केंद्र सरकार की पूर्व मंज़ूरी लेनी होती है जो नौकरशाही के उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार का मुकाबला करने में एक बड़ी बाधा है।

संयुक्त राज्य अमेरिका और फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका में संघीय राज्यों का अपना संविधान है, लेकिन फिर भी उन्होंने स्वयं को फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (Federal Bureau of Investigation- FBI) के अधिकार क्षेत्र के अधीन रखा है जो कि एक केंद्रीय एजेंसी है।
  • भारत की तरह ही संयुक्त राज्य अमेरिका में भी पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था राज्य सूची का विषय है तथा संघीय अपराध के सभी मामलों में FBI एवं स्थानीय पुलिस को समवर्ती क्षेत्राधिकार प्राप्त है; लेकिन जिस मामले में FBI संलग्न होती है उस मामले में स्थानीय पुलिस अपनी जाँच बंद कर देती है।

सुझाव

  • CBI को सरकार के प्रशासनिक नियंत्रण से मुक्त करना- जब तक सरकार के पास CBI में अपनी पसंद के अधिकारियों की नियुक्ति और स्थानांतरण की शक्ति रहेगी, तब तक CBI स्वायत्त नहीं हो सकेगी और मामलों की स्वतंत्र रूप से जाँच करने में असमर्थ होगी।
  • एक विधान के माध्यम से नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और निर्वाचन आयोग को प्राप्त वैधानिक स्थिति सदृश स्थिति CBI को भी प्रदान करने से इस संस्था की स्वतंत्रता को बनाए रखने में मदद मिलेगी।
  • कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी स्थायी समिति (Department related Parliamentary Standing Committee on Personnel, Public Grievances, Law and Justice) की 24वीं रिपोर्ट ने CBI के कार्यकलाप पर निम्नलिखित सिफारिशें की हैं:
    • CBI की क्षमता बढ़ाकर मानव संसाधन को सशक्त करना;
    • अवसंरचनात्मक सुविधाओं में बेहतर निवेश;
    • जवाबदेही के साथ वित्तीय संसाधन और प्रशासनिक सशक्तीकरण में वृद्धि;
    • CBI को अधिक शक्तियाँ (भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची की संघ, राज्य और समवर्ती सूची से संबंधित) प्रदान करना;
    • केंद्रीय खुफिया एवं अन्वेषण ब्यूरो अधिनियम (Central Bureau of Intelligence and Investigation Act) के तहत अलग अधिनियमन और इसे DSPE अधिनियम से स्थानांतरित करना।
      • वर्ष 1978 में एल.पी. सिंह समिति ने ‘कर्त्तव्यों और कार्यों से संबंधित आत्मनिर्भर वैधानिक चार्टर’ के साथ केंद्रीय जाँच एजेंसी की कमी को दूर करने के लिये एक व्यापक केंद्रीय विधान बनाने की सिफारिश की थी।
      • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2007) ने भी सुझाव दिया था कि CBI के कामकाज को संचालित करने के लिये एक नया कानून बनाया जाना चाहिये।