विवेकानंद | 30 Nov 2018

ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
उठो और जागो और तब तक मत रुको जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते।

अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा यह सिर्फ बुराई का एक ढेर है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाए उतना बेहतर है

एक विचार लो, उस विचार को अपना जीवन बना लो- उसके बारे में सोचो, उसके सपने देखो, उस विचार को जियो, अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो। यही सफल होने का तरीका है

तुम फुटबॉल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाय गीता का अध्ययन करने के।

शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है; विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है; प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है