अध्याय-3 (Vol-2) | 08 Jun 2020

प्रस्तावना:

  • भारत के वैदेशिक क्षेत्र में वर्ष 2019-20 की प्रथम छमाही में भुगतान शेष की स्थिति में सुधार देखने को मिला है। भारत का विदेशी रिज़र्व 10 जनवरी, 2020 तक 461.2 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुँच गया है। 
  • भुगतान संतुलन (Balance of Payment-BOP) में यह सुधार चालू खाता घाटा (Current Account Deficit-CAD) कम होने के कारण हुआ है जो वर्ष 2018-19 में 2.1% से घट कर वर्ष 2019-20 की प्रथम छमाही में जीडीपी का 1.5% हो गया है।  

भारत का भुगतान संतुलन: 

  • वर्ष 2014-19 की अवधि में सकल घरेलू उत्पाद में 7.5% की वृद्धि के साथ-साथ, भारत की ‘भुगतान शेष’ की स्थिति में सुधार देखने को मिला है।
  • यह सुधार वित्त वर्ष 2018-19 की समाप्ति तक संचित विदेशी रिज़र्व के 412.9 बिलियन अमेरिकी डालर तक पहुँचने के कारण हुआ है।
  • मार्च 2019 के अंत में विदेशी मुद्रा भंडार 412.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जो सितंबर 2019 में बढ़कर 433.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तथा 10 जनवरी, 2020 को 461.2 बिलियन अमेरिकी डालर हो गया।

चालू खाता घाटा:

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  • वर्ष 2009-14 और वर्ष 2014-19 तक की अवधि में चालू खाता घाटा में सुधार देखने को मिलता है।

 वाणिज्य पण्य व्यापार घाटा:

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  • उपरोक्त चित्र के विश्लेषण के अनुसार, औसत भार के पण्य व्यापार शेष में वर्ष 2009-14 की तुलना में वर्ष 2014-19 में सुधार देखने को मिला है।
  • वर्ष 2019-20 के दौरान भारत के सबसे बड़े 10 व्यापारिक भागीदार देशों के साथ भारत के कुल पण्य व्यापार में 50% से अधिक का योगदान है।

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वाणिज्य पण्य निर्यात:

  • पिछले कुछ वर्षों में सकल घरेलू अनुपात के साथ पण्य निर्यातों के अनुपात में गिरावट दर्ज की गई है जो भुगतान शेष की स्थिति पर ऋणात्मक प्रभाव को इंगित करता है।

trade-export

  • पेट्रोलियम, तेल एवं स्नेहक (Petroleum, Oil and Lubricants- POL) का निर्यात भारत की निर्यात टोकरी में एक प्रमुख हिस्सा है।
  • वर्ष 2009-14 से वर्ष 2014-19 तक गैर-POL निर्यात वृद्धि में गिरावट आई है।
  • 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) में मूल्य के संदर्भ में पेट्रोलियम संबंधित उत्पाद सबसे अधिक निर्यात होने वाले कमोडिटी बने रहे। 
  • वृद्धि के संदर्भ में औषधि यौगिकों और जैव पदार्थों में वर्ष 2011-12 और 2019-20 (अप्रैल- नवंबर) के बीच सबसे अधिक वृद्धि हुई थी।
  • वर्ष 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) के दौरान भारत से सबसे अधिक पण्य निर्यात होने वाले देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका पहले स्थान पर था, इसके बाद संयुक्त अरब अमीरात, चीन तथा हाॅन्गकाॅन्ग रहे।

पण्य आयात:

  • पण्य आयात/सकल घरेलू अनुपात में वृद्धि का भुगतान शेष की स्थिति पर निवल ऋणात्मक प्रभाव के कारण कई वर्षों से भारत में पण्य आयात अनुपात में गिरावट आ रही है।

Trade-Import

  • वर्ष 2019-20 (अप्रैल-नवंबर) के आयात बास्केट में कच्चे पेट्रोलियम का सबसे बड़ा अंश रहा है इसके बाद सोना एवं पेट्रोलियम उत्पादों का हिस्सा रहा है। 
  • यद्यपि वर्ष 2011-12 एवं 2019-20 के बीच इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का आयात जो कि नगण्य था, का हिस्सा तेज़ी से बढ़कर 3.6% हो गया है।

निवल सेवाएँ:

Net-services

  • सकल घरेलू उत्पाद के संबंध में भारत की निवल सेवा अधिशेष में धीरे-धीरे ह्रास हो रहा है।

सेवा निर्यात:

Service-export

  • वर्ष 2018-19 से वर्ष 2019-20 में भारतीय सेवा निर्यात सतत् रूप से जीडीपी 7.4 से 7.7% के बीच रहा जो भुगतान संतुलन के स्थायित्व में योगदान देने वाले इस स्रोत की निरंतरता को प्रदर्शित करता है।
  • सेवा निर्यात में सॉफ्टवेयर सेवाओं का योगदान सबसे ज्यादा (लगभग 40-45%) रहा है, इसके बाद क्रमशः व्यापार सेवाएँ जिनकी भागीदारी 18-20%, पर्यटन सेवाएँ 11-13% एवं परिवहन सेवाओं की भागीदारी 9-11% रही है।

सेवा आयात: 

  • पिछले कुछ वर्षों में जीडीपी के संबंध में सेवा आयात में तेजी से वृद्धि हो रही है जिससे भुगतान संतुलन पर दबाव बढ़ रहा है।

GDP-Percent

  • FDI में वृद्धि और मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम में उत्तरोत्तर प्रगति से जीडीपी में सेवा आयात वाले हिस्सेदारी में वृद्धि होना ज़रूरी है।

प्रमुख निर्यात संवर्द्धन योजनाएँ:

  • भारत से वाणिज्यिक वस्तुओं के निर्यात की स्कीम (एमईआईएस): इस स्कीम को 01 अप्रैल, 2015 को शुरू किया गया था, इसका उद्देश्य भारत में उत्पादित/निर्मित वस्तुओं/उत्पादों के निर्यात में शामिल अवसंरचनात्मक अक्षमताओं को दूर करना और संबद्ध लागतों की भरपाई करना है।
  • भारत से सेवाओं के निर्यात की स्कीम (एसईआईएस): इस स्कीम के तहत उन सेवा प्रदाताओं को जो भारत से शेष विश्व में अधिसूचित सेवाएँ उपलब्ध करवा कर निवल विदेशी मुद्रा आय  प्राप्त करते हैं, की ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप के रूप में पारितोषिक उपलब्ध होता है।
  • पूंजीगत माल निर्यात संवर्द्धन (ईपीसीजी) स्कीम: यह स्कीम निर्यातकों को उत्पादन-पूर्व, उत्पादन के दौरान और उत्पादन पश्चात के लिये शून्य सीमा शुल्क पर पूंजीगत माल के आयात की अनुमति देती है। इसके एवज मे निर्यातक से यह अपेक्षित है कि वह स्वीकृति देने की तारीख से छह साल के भीतर, पूंजीगत माल पर बचाए गए आयात शुल्कों, करों और उप-करों से छह गुना अधिक निर्यात दायित्व पूर्ण करे।
  • अग्रिम स्वीकृति स्कीम
  • सीमा शुल्क मुक्त आयात स्वीकृति (डीएफआईए)
  •  ब्याज समकारी स्कीम (आईईएम)
  • मानित निर्यात योजना

निवल धन प्रेषण: 

  • निवल धन प्रेषण में वृद्धि से भुगतान संतुलन की स्थिति में सुधार हुआ है। विदेशों में कार्यरत भारतीयों के कारण निवल धन प्रेषण वर्ष-दर-वर्ष बढ़ता रहा है। 

Net-remittance

  • वर्ष 2018-19 के कुल प्राप्तियों में 50% से अधिक निवल धन प्रेषण की प्राप्ति वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में हुई है।

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश:

  • वर्ष 2019-20 के शुरू के आठ महीनों में निवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश 24.4 अमेरिकी बिलियन डॉलर रहा। 
  • निवल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में वृद्धि से भुगतान संतुलन की स्थिति में सुधार हुआ है।

Foreign-direct-investment

भावी परिदृश्य: 

  • वर्ष 2018-19 में आर्थिक साधनों में बढ़ोतरी देखने को मिलती है जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में साधारण गिरावट देखने को मिली। वैदेशिक ऋण जीडीपी के 20% के निम्न स्तर पर है। 
  • भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वर्ष 2019-20 की पहली छमाही में 27.5 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की अभिवृद्धि दर्ज करते हुए 461.2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की बढ़ोतरी देखने को मिली।